Monday, 5 August 2024

संघर्षों के आगे शोहरत का एक पूरा जहां है

 


पेरिस ओलंपिक में इस बार जिम्नास्टिक की व्यक्तिगत ट्रैम्पोलिन स्पर्धा के महिला और पुरुष वर्ग के स्वर्ण पदक विजेता विशिष्ट हैं। प्रेरक हैं। अनुकरणीय हैं।

ये विजेता हैं ब्रिटेन की ब्रायोनी पेज और बेला रूस के इवान लिट्विनोविच।


हिला वर्ग स्वर्ण पदक ग्रेट ब्रिटेन की ब्रायोनी पेज ने जीता है। उन्होंने 2016 के रियो में ओलंपिक डेब्यू किया था और ब्रिटेन के लिए पहला ट्रैंपोलिन पदक जीता। ये रजत पदक था। उसके बाद 2021 के टोक्यो में कांस्य पदक जीता। पेरिस में स्वर्ण पदक जीतकर अपने पदकों के संग्रह को पूरा किया। 

लेकिन उनकी ये खेल जीवन की यात्रा डर के आगे जीत की कहानी है। 

न्होंने बचपन में अपने लिए जिम्नास्टिक को चुना और ट्रैम्पोलिन का अभ्यास करने लगीं। लेकिन शीघ्र ही वे लॉस्ट मूव सिंड्रोम का शिकार हो गईं। इसमें व्यक्ति लगातार हवा में भ्रमित हो जाता है और बेतरतीब और अक्सर डरावने कौशल करता है। और अपनी काबिलियत का सही प्रदर्शन नहीं कर पाता। अब ब्रोयोनी पेज को भी अपनी क्षमताओं पर भरोसा खो बैठी। वे हवा में छलांग लगाने से डराने लगीं। वे हवा में अपने मूव भूल जाती। हवा में कलाबाजी करने में डरती। स्थिति बाद से बदतर होती चली गईं।वे उदास और परेशान रहने लगीं। ये एक ऐसी जीग ठिंकिसासे वे सबसे ज्यादा प्यार करती थीं और उससे दूर होती जा रही थीं।

ब उनके जीवन में कोच मार्टिन पेरी आए। उन्होंने ब्रायोनी में आत्मविश्वास भरा,फिर से ट्रेनिंग शुरू की। जल्द ही उन्होंने अपने दृढ़ संकल्प और परिश्रम से लॉस्ट मूव सिंड्रोम पर ना केवल काबू पाया बल्कि ब्रिटेन के सीनियर टीम में शामिल कर ली गईं। 

ये बात 2009 की है। उन्होंने उस साल विश्व कप भाग लिया और 24वें स्थान पर आईं। 2010 के बेल्जियम विश्व कप में 15वें स्थान पर रही और यूरोपीय चैंपियनशिप में 15वें स्थान पर रही। तब साल 2013 आया। उन्होंने ना केवल ब्रिटिश चैंपियनशिप जीती बल्कि विश्व चैंपियनशिप भी जीती। 

ब वे ना केवल दो बार की विश्व चैंपियन हैं बल्कि व्यक्तिगत स्पर्धा में तीन तीन ओलंपिक की पदक विजेता भी हैं।


र इस बार की ट्रैंपोलिन के पुरुष वर्ग स्पर्धा स्वर्ण पदक इवान लिट्विनोविच ने लगातार दूसरी बार जीता। वे पेरिस ओलंपिक में न्यूट्रल प्लेयर के रूप में गोल्ड मेडल जीतने वाले पहले एथलीट बन गए है। वे बेलारूस के हैं। और बेलारूस रूस यूक्रेन युद्ध में रूस का सहयोगी। इन दोनों देशों के  खिलाड़ियों को अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भाग नहीं लेने दिया जा रहा है। वे निराश थे। 

न्हें इस बार पुनः ओलंपिक में भाग लेने की अनुमति तो मिल गई। परंतु न्यूट्रल  पहचान के रूप में। एक ऐसे खिलाड़ी के रूप में जिसकी कोई राष्ट्रीय पहचान नहीं थी। वे जिस समय प्रतियोगिता में प्रतिस्पर्धा कर रहे थे उन्हें पता था कि उनके द्वारा जीता गया मेडल उनके देश के खाते में नहीं जुड़ेगा। इतना ही नहीं वे ये भी जानते थे कि मेडल लेते समय ना तो उनके देश का झंडा फहराया जाएगा और ना ही राष्ट्रगान बजेगा। 

राष्ट्रीय पहचान एक खिलाड़ी के लिए खेल मैदान में सबसे बड़ी प्रेरणा होती है। इस प्रेरणा के अभाव में उन्होंने भाग लिया और पिछले ओलंपिक का स्वर्णिम सफलता को दोहराया।

दरअसल खेल केवल खेल नहीं होते। ये खिलाड़ियों के अपने अपने संघर्षों के आईने भी होते हैं। वे दिखाते हैं खिलाड़ी किन कठिनाइयों,परेशानियों और संघर्षों के बाद यहां तक पहुंचा है। वे यहां तक अपने कठोर परिश्रम,दृढ़ संकल्प और आत्मविश्वास के सहारे यहां तक पहुंचते हैं। क्योंकि वे जानते हैं इन संघर्षों के आगे शोहरत का एक पूरा जहां उनके स्वागत के लिए खड़ा है।

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