Saturday 28 May 2022

खेल भावना

 



'कोई भी जीत आपके आशीर्वाद के बिना अधूरी है।'

 निखत ज़रीन के ये शब्द उनके हाल में जीते स्वर्ण पदक की चमक को इस कदर बढ़ा देते हैं कि उसकी चमक में सारे गिले-शिकवे,अहम, ईर्ष्या,राग-द्वेष सब घुल जाते हैं।

निसंदेह निखत की जीत बड़ी है। लेकिन निखत के ये शब्द उसकी जीत को बहुत बहुत बड़ा बना देते हैं।

दरअसल ये खेल ही है जो खिलाड़ी को थोड़ा ज्यादा विनम्र बनाते हैं,उसे कुछ और ज़्यादा झुकना सिखाते हैं,उसे थोड़ा अधिक मनुष्य बनाते हैं।

इन शब्दों ने एक बार फिर सिद्ध किया कि हमारे जीवन के सद्भावना, मैत्री, प्रेम और सहयोग के सबसे ख़ूबसूरत दृश्य खेल मैदानों से ही आते हैं।

---------------

निखत को और उसकी खेल भावना को सलाम।


Wednesday 18 May 2022

'पहली जीत' की त्रयी



ऐसा कई बार होता है कि कोई खास क्षण, कोई दिन या फिर समय का कोई खास काल खंड खास आप के लिए बना होता है। आज का तो हर क्षण, आज का पूरा दिन और 09 से 15 मई,2022 का काल खंड केवल और केवल भारतीय पुरुष बैडमिंटन टीम के लिए ही बना था। एक ऐसा क्षण,एक ऐसा दिन और एक ऐसा काल खंड जिसने भारतीय खेल पटल पर एक नए इतिहास को


लिख देना था। नहीं तो 09 मई से पहले किसने सोचा था कि टीम इंडिया 'टीम चैंपियन' बनने जा रही है।

थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक के उपनगर नॉनताबूरी के इम्पैक्ट अरीना में थॉमस कप में आज पहली बार फाइनल खेल रहा भारत, 14 बार के चैंपियन इंडोनेशिया पर 2-0 की बढ़त बना चुका था। अब तीसरे मैच में भारत के. श्रीकांत इंडोनेशिया के जोनाथन क्रिस्टी के विरुद्ध दूसरे गेम में 22-21 के स्कोर पर चैंपियनशिप के लिए सर्विस कर रहे थे। उन्होंने सर्विस की। एक छोटी रैली हुई। क्रिस्टी के एक डीप हाई रिटर्न पर श्रीकांत ने ऊंची छलांग लगाई और शानदार क्रॉस कोर्ट स्मैश लगाया। इस स्मैश का क्रिस्टी के पास कोई जवाब नहीं था। दरअसल श्रीकांत का ये  स्मैश ना केवल बैडमिंटन की चैंपियन टीम का मानमर्दन कर रहा था बल्कि पूर्व विजेता इंडोनेशिया पर  3-0 की जीत दिला कर भारत को नया चैंपियन भी बना रहा था। श्रीकांत की ये छलांग सही मायने में भारतीय टीम की बैडमिंटन के आसमां पर शोहरत की नई उड़ान थी जिससे भारत के बैडमिंटन को नई बलन्दी पर पहुंच जाना है।

जैसे ही किदाम्बी श्रीकांत ने विजयी स्मैश लगाया,सबसे पहले दौड़कर लक्ष्य सेन कोर्ट पर आए और किदाम्बी से लिपट गए। उसके पूरी टीम कोर्ट पर थी। वे जीत का जश्न मना रहे थे। तिरंगा लहरा रहे थे। भारत की जीत और खुशियों के रंग से पूरा इम्पैक्ट अरीना सराबोर था। 

इस बार भारत की टीम सफेद और काले रंग की पोशाक में खेल रही थी। मानो वे इस बार ये निश्चय करके आएं हो कि या तो चैंपियन बनना है या तो हार जाना है। कोई आधी अधूरी जीत नहीं। श्वेत या स्याह। बीच का कोई ग्रे शेड नहीं। खिलाड़ियों के जोश,जज़्बे और हुनर से उनके हिस्से सुफेद रंग आया जिसमें जीत के चमकीले रंग भर जाने थे,तिरंगे के रंग बिखर जाने थे।

ऐसा नहीं है कि भारतीय बॅडमिंटन का ये कोई पहला स्वर्णिम क्षण था। प्रकाश पादुकोण, सैय्यद मोदी,पुलेला गोपीचंद,साइना नेहवाल,पीवी सिंधु और के. श्रीकांत ने विश्व पटल पर भारत को स्वर्णिम उपलब्धियां दिलाईं हैं। भारत को एक पहचान दी। लेकिन ये सब खिलाड़ियों की वैयक्तिक उपलब्धियां थी। एक टीम के रूप में भारत कहां ठहरता था। ये पहली बार है टीम में इतनी गहराई है कि भारत के नंबर एक खिलाड़ी लक्ष्य सेन के क्वार्टर फाइनल और सेमीफाइनल मैच हारने के बाद भी टीम पहली बार फाइनल में पहुंचती है और जीत हासिल करती है।

आज फाइनल में पहला मैच लक्ष्य सेन और एंथोनी जिनटिंग के बीच था। पहला गेम वे 08- 21 से हार गए। लगा सेन अपने पहले दो मैच का परफॉर्मेंस दोहराने वाले हैं। लेकिन बड़ा खिलाड़ी वही होता जो ऐन बड़े मौके पर परफॉर्म करता है। आज लक्ष्य ने ऐसा ही किया। उन्होंने अगले दो गेम 21-17 और 21-16 से जीतकर भारत को 1-0 की बढ़त दिला दी। ये मैच 65 मिनट चला। अगला युगल मैच  भारतीय नंबर एक जोड़ी चिराग शेट्टी और सात्विकसाइराज रैंकिरेड्डी का इंडोनेशियाई जोड़ी अहसान और सुकोमुलजो से था। भारतीय जोड़ी इस समय ज़रबर्दस्त फॉर्म में थी और इस बार भी उसने निराश नहीं किया। 70 मिनट चले संघर्षपूर्ण मैच मैच में भारतीय जोड़ी ने 18-21, 23-21 और 21-19 से जीत हासिल कर भारत को 2-0 की बढ़त दिला दी। अब भारत का खिताब लगभग तय हो गया था। क्योंकि अगला मैच किदाम्बी श्रीकांत का था  जो इस समय शानदार फॉर्म में थे और अभी तक अजेय थे। उन्होंने केवल 48 मिनट में जोनाथन क्रिस्टी को 21-15 और 23-21 से सीधे सेटों में हराकर भारत को अविस्मरणीय जीत दिला दी।

भारत की इस जीत में एक नाम और लिया जाना बाकी है जिनकी फिनाले में ज़रूरत ही नहीं पड़ी। और वो नाम है एच एस प्रनॉय का। सेमीफाइनल में भारत ने डेनमार्क को 3-2 से हराया था। पहला मैच लक्ष्य सेन हार गए। इसके बाद चिराग और सात्विक की जोड़ी और किदाम्बी ने अपने मैच जीतकर भारत को 2-1 की बढ़त दिला दी। लेकिन भारत की दूसरी युगल जोड़ी कृष्णा प्रसाद और विष्णुवर्धनमैच हार गए। अब निर्णायक मैच में सारा दारोमदार प्रनॉय पर था। प्रनॉय ने रासमस गेमके को 13 -21,21-9,21-12 से हराकर फाइनल में पहुंचाया। ठीक यही परफॉर्मेंस प्रनॉय ने क्वार्टर फाइनल में दी थी। लक्ष्य और  प्रसाद कृष्णा की जोड़ी अपने मैच हार गए। जबकि किदाम्बी और चिराग सात्विक की जोड़ी ने अपने मैच जीते थे। 2-2 की बराबरी पर प्रनॉय ने निर्णायक मैच लोंग जुन हाओ को 21-13 और 21-08 से हराकर भारत को सेमीफाइनल में पहुंचाया।

इस प्रतियोगिता में भारत को चीनी ताइपे ,जर्मनी और कनाडा के साथ ग्रुप सी में रखा गया था। ग्रुप स्टेज में भारत ने कनाड़ा और जर्मनी को 5-0 से हराया, जबकि चीनी ताइपे से करीबी मुकाबले में 2-3  से हार गया। इस प्रकार भारत ने अपने ग्रुप में दूसरे स्थान पर रहकर क्वार्टर फाइनल के लिए क्वालीफाई किया।

यदि भारतीय खेलों में टीम गेम की बात की जाए तो हॉकी में ओलंपिक में स्वर्णिम जीत के अलावा उसके खाते में केवल दो अविस्मरणीय जीत हैं। एक,1975 में कुआलालंपुर में फाइनल में एक बेहद संघर्षपूर्ण मैच में पाकिस्तान को 3-2 से हराकर पहली बार हॉकी विश्व कप जीतना। दो, 1983 में लॉर्डस, इंग्लैंड में दो बार की विश्व चैंपियन लगभग अजेय टीम वेस्टइंडीज को 43 रन से हराकर पहली बार क्रिकेट विश्व कप जीतना। अब बॅडमिंटन टीम ने पहली बार थॉमस कप जीतकर 'पहली जीत' की त्रयी की निर्मिति की है।

यदि हॉकी और क्रिकेट में पहली  विश्व कप जीत की बात करें तो जीत के प्रभाव की दृष्टि से ये दोनों जीत भारतीय खेलों के लिए एकदम विपरीत प्रभाव वाली परिघटनाएं सिद्ध हुईं। हॉकी की ये जीत अभी हाल के हॉकी के पुनरुत्थान से पहले की आखरी बड़ी जीत साबित हुई। इस जीत के बाद का भारतीय हॉकी का सफर गर्त में जाने का सफर था। जो  2008 में ओलंपिक में क्वालीफाई ना कर सकने पर पूर्ण हुआ। दूसरी तरफ  क्रिकेट में जीत  भारतीय क्रिकेट की प्रगति और लोकप्रियता के शिखर पर जाने की कहानी है।

तो बैडमिंटन में इस पहली जीत का भारतीय बैडमिंटन में क्या प्रभाव होगा ये देखा जाना रोचक और ज़रूरी होगा। ये इसलिए भी ज़रूरी है कि प्रभाष जोशी के शब्दों में कहें तो 'खेल केवल खेल नहीं होते।' भारत के बैडमिंटन में बढ़ते प्रभाव को अन्य महारथी खेल शक्तियां इसे किस रूप में लेती हैं और आगे खेल नियमों में किस तरह के बदलाव होंगे और भारत किस तरह से इस पर प्रतिक्रिया करेगा,ये सबसे महत्वपूर्ण होगा। हॉकी की तरह या क्रिकेट की तरह।

खैर इस प्रश्न को भविष्य पर छोड़ देना बेहतर। फिलहाल ये जीत सेलिब्रेट करने का समय है। ये जो पहली जीत की खुश्बू है ,उसका रोमांच है ,उसका रोमान है,उसका नशा है बिल्कुल पहले प्यार का सा होता है।

०००००

तो भारतीय बैडमिंटन टीम को ये पहली जीत,ये रोमांच,ये रोमान और ये नशा बहुत बहुत मुबारक।

बुक मार्क_मारीना

 



'...कोई ऐसा जो मेरे झरते हुए जीवन में वसंत की तरह था...'

एक किताब के भीतर की यात्रा के दौरान जो भी सहायक उपकरण होते हैं,उनमें बुकमार्क मुझे सबसे अहम और आकर्षक  लगता है।
मेरे जाने ये एक अभिनव प्रयोग है। जब आप 'मारीना' पढ़ते हैं तो आपको कहीं बाहर से बुकमार्क नहीं जुगाड़ना पड़ता। ये कहन में 'इन बिल्ट' हैं। ऐसे खूबसूरत बुकमार्क जो पढ़ते हुए शायद ही कभी आपके हाथ लगे हों। ये मारीना की जीवन यात्रा से होकर गुजरने वाले पाठक के लिए ठहरने के ठिकाने हैं। अगले पड़ाव के प्रस्थान स्थल हैं। ये आपको यात्रा के एक हिस्से को पूरा करने का सुकून ही नहीं देते,  बल्कि एक व्यग्रता, एक बेचैनी,छटपटाहट भी पैदा करते हैं और आगे जाने की,ज़ियादा और ज़ियादा  जानने की। ये दिमाग को मथते जाते हैं और दिल को सहलाते भी चलते हैं, एक साथ।
अगर इस किताब में सिर्फ और सिर्फ बुकमार्क होते और कुछ भी ना होता तो भी ये अपने आप में मुकम्मल किताब होती। 
आप पूछेंगे ऐसे खूबसूरत बुकमार्क भी होते हैं क्या? 
मैं कहूंगा मारीना पढ़ो ना।
----------------------------
एक बुकमार्क की इबारत है-
'वापसी शब्द अजीब है। वापसी देह की संभव है,लेकिन वापसी पर सब कुछ वैसा ही हो-जैसा हम छोड़कर गए थे,ऐसा कहां होता है।' मारीना ने अपने कटे हुए बालों की लटों को कान के पीछे अटकाते हुए कहा।
'हां, जीवन की तरह।'बेसाख्ता मेरे मुंह से निकला।
'बिल्कुल।' उसने मेरी और देखते हुए कहा
'जीवन की ही तरह। हम आते हैं एक तरह से ही दुनिया में,लेकिन वापसी तक सबकी अलग अलग यात्रा होती है। जीवन यात्रा।'
'निर्वासन भी यात्रा ही थी।' मैं कहती हूँ। इस कहन में सवाल भी है।
'हां, निर्वासन भी यात्रा रही,कठिन बीहड़ यात्रा,बचपन से निर्वासन,देश से निर्वासन,जीवन से निर्वासन।'
हम दोनों खामोश हो गए। सूरज हमारे सामने ढल रहा था। ढल रहा था हमारे भीतर भी बहुत कुछ।

ये हार भारतीय क्रिकेट का 'माराकांजो' है।

आप चाहे जितना कहें कि खेल खेल होते हैं और खेल में हार जीत लगी रहती है। इसमें खुशी कैसी और ग़म कैसा। लेकिन सच ये हैं कि अपनी टीम की जीत आपको ...