Sunday 27 March 2022

जहाँआरा:एक ख्वाब एक हक़ीक़त




प्रो हेरंब चतुर्वेदी जाने माने इतिहासकार हैं और लेखन के क्षेत्र में अति सक्रिय हैं। हाल के वर्षों में इतिहास और इतिहासेतर विषयों पर उनकी अनेक पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं।

2013 में उनकी एक पुस्तक प्रकाशित हुई थी 'दास्तान मुग़ल महिलाओं की'। इसे नया ज्ञानोदय और बीबीसी ने उस साल की सबसे चर्चित पुस्तकों में शामिल किया था। ये पुस्तक अपने कथ्य में इस दृष्टि से विशिष्ट थी कि ये मुग़ल राजपरिवार की कम चर्चित महिलाओं पर केंद्रित थी। ऐसे मध्यकालीन समाज में जब महिलाओं की स्थिति किसी 'ऑब्जेक्ट' से इतर कुछ नहीं हो और मुग़ल इतिहास में भी जिन महिलाओं का नाम मुग़ल नामावली को पूरा करने भर के लिए शामिल किया जाता रहा हो,इस पुस्तक में उसी काल की छह ऐसी ही बहुत कम चर्चित या अचर्चित महिलाओं के मुग़ल इतिहास में महत्वपूर्ण हस्तक्षेप को रेखांकित करने का प्रयास किया गया था। कहन की दृष्टि से ये इसलिए अलग थी कि ये इतिहास का शुष्क  इतिवृत्तात्मक वर्णन ना होकर कथा कहानी के रूप में बहुत ही रोचक और सरस बयान थी।

अब इसी विषय पर उनकी एक और पुस्तक आयी है 'जहाँआरा:एक ख़्वाब एक हक़ीक़त'। एक तरह से इसे पहली पुस्तक का विस्तार  माना जाना चाहिए। इस पुस्तक में भी उन्होंने एक अन्य मुग़ल महिला 'जहाँआरा' के अपने समय, इतिहास और व्यक्तियों के जीवन में उसके हस्तक्षेप और उसकी भूमिका को रेखांकित करने का प्रयास किया है। भिन्नता केवल आकार की दृष्टि से है। जहां पहली पुस्तक के 183 पृष्ठों में छह कहानियों में छह मुग़ल महिलाओं का ज़िंदगीनामा है,वहाँ इस पुस्तक के 308 पृष्ठों में केवल एक मुग़ल महिला का आत्मकथ्य शैली में औपन्यासिक रोज़नामचा।

ये स्वाभाविक और ज़रूरी भी था। मुग़ल बादशाह शाहजहां की बेटी और दारा शिकोह व औरंगजेब की बहन जहाँआरा का कृतित्व और व्यक्तित्व है ही इतना विराट कि किसी कहानी/अध्याय में वो समा ही नहीं सकता था। उसे एक औपन्यासिक कृति की ही ज़रूरत थी जिसे प्रो चतुर्वेदी ने पूरा किया।

 जहाँआरा अपनी नानी और बादशाह जहांगीर की सबसे प्रिय बेग़म नूरजहां के बाद मुग़ल इतिहास की दूसरी सबसे प्रभावशाली महिला हैं। लेकिन वो अपनी नानी नूरजहां से कहीं अधिक पढ़ी लिखी,समझदार,विचारवान और शालीन व्यक्तित्व की स्वामिनी हैं। नूरजहां ने मुग़ल इतिहास को बहुत गहरे से प्रभावित किया, लेकिन उसका ये प्रभाव मुख्यतः राजनीतिक और नकारात्मक है। इसके विपरीत जहाँआरा ने अपने समय के हर क्षेत्र में दखल दिया और सकारात्मक रूप से प्रभावित किया। और इस दृष्टि से वो नूरजहां से भी ज़्यादा प्रभावी और बड़ा व्यक्तित्व दिख पड़ती हैं। वो नेपथ्य में रहकर अपनी भूमिका का निर्वहन करती हैं और अपने समय की ना केवल राजनीति में बल्कि समाज,अर्थ,साहित्य और संस्कृति सभी क्षेत्रों में समान रूप से सकारात्मक हस्तक्षेप करती हैं। 

उनकी केवल दर्शन और सूफीवाद में ही रुचि नहीं है,बल्कि साहित्य, इतिहास, चिकित्सा, गणित, राजनीति सभी विषयों में गति है। वो मल्लिका के रूप में ना केवल हरम का प्रबंधन करती हैं बल्कि राजनीति में भी हस्तक्षेप करती हैं। उन्हें एक तरफ मुग़ल राजवंश की उसकी प्रतिष्ठा का ख़्याल है तो दूसरी तरफ अपनी रियाया,अपने अधीनस्थों और अपने परिवार की परवाह भी है। वो जितना अध्ययन में डूबती हैं,उतनी ही प्रकृति के साहचर्य में जाती हैं। वो जितनी रुचि बाग बगीचों और नहरों के निर्माण में लेती हैं उतनी ही स्थापत्य में भी। ये कमाल ही है कि हरम और राज दरबार के लौकिक षडयंत्रकारी शुष्क जीवन के बीच भी वो अपने भीतर आध्यात्मिक और नैतिकता की नमी को बनाये रखती हैं। अपनी पुस्तक में प्रो चतुर्वेदी मध्यकालीन समय की ऐसी गरिमामय मुग़ल शहज़ादी जहाँआरा के  बेहद खूबसूरत व्यक्तित्व का खूबसूरत चित्र अपनी कलम से उकेरते हैं।

ऐतिहासिक कथ्य को कहने की अपनी दिक्कतें हैं। जब ऐतिहासिक तथ्यों पर ज़ोर दिया जाता है तो कथ्य शुष्क और इतिवृत्तात्मक होता जाता है और कहन पर ज़ोर दिया जाता है तो ऐतिहासिक तथ्य से समझौता करना पड़ता है। तमाम ऐतिहासिक कृतियों में ऐतिहासिक तथ्यों को गलत रूप के प्रस्तुत किया गया है। इससे भ्रम की स्थिति उत्पन्न होती है। ऐतिहासिक कृति को पढ़ते हुए चाहे आप जितना सजग रहें कि आप इतिहास नहीं साहित्यिक कृति पढ़ रहे हैं, पर अवचेतन में इतिहास हावी रहता है और आपके दिमाग में एक गलत इतिहास की निर्मिति होती ही है।

लेकिन प्रो चतुर्वेदी एक मंजे हुए इतिहासकार तो हैं ही, एक हुनरमंद कवि भी हैं। भाषा पर उनकी गज़ब की पकड़ है। उनकी भाषा में बहते पानी की गति है और गज़ब का लालित्य भी। इसीलिए उन्हें अपने कहन में रोचकता के लिए ऐतिहासिक तथ्यों से समझौते की ज़रूरत नहीं पड़ती। वो खुद ब खूब चली आती है। वे लिख इतिहास ही रहे होते हैं। शोधपरक प्रामाणिक इतिहास। लेकिन वे इसे कविता में लिख रहे होते हैं। दरअसल जब हम उनकी ऐतिहासिक कृति को पढ़ रहे होते हैं तो इतिहास को कविता के माध्यम से पढ़ रहे होते हैं। और ये भी कि हम व्यक्ति और घटनाओं के रूप में नीरस इतिवृत नहीं पढ़ रहे होते बल्कि व्यक्ति के व्यक्तित्व निर्माण और घटनाओं की निर्मिति के पीछे की परिस्थितियों का गंभीर विश्लेषण पढ़ रहे होते हैं।

जहाँआरा अपनी रियाया और विशेष तौर पर किसानों के हितों का ध्यान रखने की बात करती हैं। वो इस बात का उल्लेख करती है कि अकबर सहित तमाम बादशाह समय समय पर किसानों के हितों से संबंधित आदेश जारी करते रहे हैं। पुस्तक के 157 पृष्ठ पर उल्लिखित इस संदर्भ का उल्लेख आदरणीय असगर वज़ाहत साहब ने किया है और इसे अभी हाल के किसान आंदोलन से जोड़ते हुए वे कहते हैं कि तब और अब के शासकों की सोच  में किसान हित को लेकर कितना अन्तर है। दरअसल ये अंतर सोच का नहीं बल्कि कथनी और करनी का है। किसान हित की बात प्राचीन काल से होती आयी है। लेकिन इस संबंध में धरातल पर शायद ही कभी कुछ हुआ हो। किसान आत्महत्या के लिए हमेशा मजबूर होते आये हैं। कल भी आज भी। इसी पुस्तक में एक जगह संदर्भ है कि जहाँआरा अपनी प्रिय सेविका फिदा के कहने पर कश्मीर की अपनी जागीर के किसानों का लगान  किसानों की परेशानी को देखते हुए 50 फीसद से 40 फीसद कर देती हैं। इसके अलावा किसानों को अपने जागीरदारों को जो समय समय पर अन्य कर और नज़राने देने पड़ते,वे अलग से। विचारणीय प्रश्न ये है कि 50 फीसद लगान के बाद किसान कितना सुखी हो सकता था। सारे अध्ययन अभी तक यही बताते हैं किसी भी काल में किसान सुखी नहीं थे। यानि कथनी और करनी का अंतर हर काल में रहा है,जो आज तक जारी है।

मानव की मूल प्रवृति और विचार हर युग में एक से होते हैं। एक संदर्भ आता है कि  जहाँआरा  स्वयं अपना समुद्री व्यापार शुरू करती हैं। इसके लिए वो अपनी बचत और साथ ही अपनी परिचारिकाओं की बचत का निवेश अपने इस व्यापार में लाभ के लिए करती हैं। इससे लाभ होता है और हरम की बाकी दासियाँ और महिलाएं भी इससे प्रेरित होकर अपनी बचत को व्यापार में निवेशित करने को उद्धत होती हैं। यानि बचत, निवेश और लाभ की प्रवृति हर काल और स्थान पर समान हैं। जहाँआरा ना केवल अपना व्यापार शुरू करती हैं बल्कि उसके लिए एक पानी का जहाज 'साहिबी' का निर्माण भी करवाती हैं। हम आज के समय में तमाम सफल 'महिला उद्यमियों' की बात करते हैं। मध्यकाल में भी सफल महिला उद्यमी हुआ करती थीं।

इस पुस्तक की शुरुआत भी 'दास्तान...'की तरह शुष्क सी होती है। उस पुस्तक में ये शुष्कता कथ्य की भौगोलिक पृष्ठभूमि के कारण होती है तो यहां पर कथ्य की भूमिका तैयार करने की ज़रूरत से। इस पुस्तक के कुछ पृष्ठ उस भूमिका के निर्माण हेतु तत्कालीन समय और परिस्थितियों के वर्णन में खर्च होते हैं जिसमें जहाँआरा जैसे व्यक्तित्व का आविर्भाव होता है। लेकिन जैसे जहाँआरा का व्यक्तित्व परिदृश्य पर नमूदार होता हैं और उनके आत्मकथ्य शब्दों में पृष्ठ पर अवतरित होने लगते हैं,शुष्क इतिवृत कविता में तब्दील होता जाता है।

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'जहाँआरा:एक ख्वाब एक हक़ीक़त'दरअसल ख्वाब के हक़ीक़त में तब्दील होने के बजाय हक़ीक़त के ख्वाब में बदल जाने की बात है। ये इतिहास की किताब से शुरू होकर महाकाव्य में बदल जाने की बात है।

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दरअसल ये किताब जहाँआरा के बहुमुखी व्यक्तित्व के अलग अलग पहलुओं की खूबसूरत गज़लों का एक निहायत संजीदा दीवान है। ये एक व्यक्ति के चरित्र को समझने का प्रयास भर नहीं है बल्कि उसके माध्यम से तत्कालीन इतिहास,राजनीति,समाज और जीवन को समझने की युक्ति भी है।

Friday 18 March 2022

अकारज_18

 

उसे रंगों से प्यार था। वो रंगों से खेला करती। ज़हीन चित्रकार जो ठहरी।

मैंने उसके गालों पर गुलाल लगाया और कहा 'रंग मुबारक'।

उसने प्यार से मुझे देखा कि गुलाबी रंग मेरे मन पर बिखर गया।

फिर वो हौले से मुस्कराई कि बासंती रंग फ़िज़ा में घुल गया।

अब उसने दिलकश आवाज में मुझसे कहा कि आत्मा का रंग सुर्ख हो चला।

उसने मुझसे कहा 'ये जो रंग तुम देख रहे हो ना ये तो फीके पड़ जाते हैं। असल रंग तो वही होते हैं जो तुम महसूस रहे हो।'

मैंने उसकी और देखा।

वो बोली 'जानते हो सुख का रंग इतना चमकीला होता है कि आपके मन की आखों को बंद कर देता है और आप सिर्फ अपने स्वार्थ के काले रंग में रंग जाते हो।'

'और दुख का' मैंने पूछा।

'दुख से निर्मल रंग किसका होगा जो आत्मा को निष्कलुष कर देता है। जैसे मिलन का रंग इतना सुर्ख होता है कि सभी संवेगों के रंग उसमें घुलकर विलीन हो जाते हैं। और...'

अचानक वो चुप हो गई। मैंने पूछा 'और क्या'

'जानते हो सबसे कारुणिक लेकिन गहरा रंग जुदाई का होता है। समय का कोई भी रंग जुदाई की स्मृति के इस रंग को नहीं फीका कहाँ कर पाता है। उलट रंग और गहराता जाता है।

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अब मौन का सुफेद रंग वातावरण में फैल गया था। अनगिनत संवेगों के मिश्रित रंग से दो मन भीज रहे थे




Tuesday 1 March 2022

प्रो कबड्डी लीग_06 दबंग दिल्ली धमाल दिल्ली



ये एक नए चैंपियन का उदय था। अब दबंग दिल्ली केसी टीम प्रो कबड्डी सीजन 08 की नई चैंपियन थी। दिल्ली का स्टार खिलाड़ी नवीन एक्सप्रेस के जिस चेहरे से सीजन 07 के फाइनल के बाद आंसू झर रहे थे,उससे आज खुशियां बिखर बिखर जा रही थीं। पिछला टूटा सपना अब हक़ीक़त बन उसका अपना जो था। एक रोमांचक मैच में दिल्ली ने पटना को 37-36 अंकों से हराकर सीजन 08 का चैंपियन बनने का गौरव जो हासिल कर लिया था।


आज सीजन 08 का फाइनल इस सीजन की सबसे सफल और कंसिस्टेंट प्रदर्शन करने वाली दो टीमों पटना पाइरेट्स और दिल्ली दबंग के बीच खेला गया। इन दो टीमों के टाइटल 'पाइरेट्स' और 'दबंग'कहीं से भी सकारात्मक ध्वनि नहीं निकालते हैं। पाइरेट्स मने समुद्री लुटेरे और दबंग मने अपनी ताकत का बेजा इस्तेमाल करने वाला। लेकिन दोनों टीमों के खिलाड़ियों ने अपने शानदार खेल से बहुत ही सकारात्मकता उत्पन्न की। उन दोनों ही टीमों के खिलाड़ियों ने अपने शानदार खेल से बताया ये शब्द नहीं बल्कि कर्म होता जो स्प्रिट बनाता या प्रदर्शित करता है। उन्होंने अपने खेल से इन शब्दों से भी सकारात्मक ध्वनि उत्पन्न करा दी। उन्होंने बताया कि शक्ति शब्दों में नहीं कर्म में होती है।


22 दिसम्बर से शुरू हुए सीजन 08 में दिल्ली और पटना दोनों टीमों ने शानदार खेल दिखाया और सीधे सेमीफाइनल के लिए क्वालीफाई किया। पटना 86 अंकों के साथ पहले और उससे 11 अंक कम 75 अंकों के साथ दिल्ली दूसरे स्थान पर रही। सेमीफाइनल में भी पटना ने यूपी योद्धा पर और दिल्ली ने बेंगलुरु बुल्स पर चैंपियन की तरह ही जीत हासिल की थी। 


पटना तीन बार की चैंपियन थी और चौथी बार फाइनल में पहुंची थी। उसके पास राम मेहर जैसे शानदार कोच थे जिन्होंने प्रदीप नरवाल जैसे चैंपियन खिलाड़ी को बनाया था। लेकिन इस बार प्रदीप पटना के साथ नहीं थे जिन्होंने उसे तीन बार चैंपियन बनाने में सबसे अहम भूमिका निभाई थी। लेकिन प्रदीप की कमी उस टीम को नहीं खली। भले ही उनके पास कोई स्टार इस बार नहीं था। लेकिन इसी कमी को उन्होंने अपनी ताकत बनाया। वे एक यूनिट के रूप में खेले। युवा ईरानी खिलाड़ी शादलू के रूप में शानदार डिफेंडर और सचिन तंवर और गुमान सिंह के रूप में बेहतरीन रेडर ने टीम की अगुवाई की। हालांकि उनके एक बेहतरीन अनुभवी खिलाड़ी मोनू गोयत ज्यादातर समय बेंच पर बैठे रहे। लेकिन हर खिलाड़ी ने जीत में अपना योगदान किया और टीम को लगभग अजेय बना दिया। वो बहुत ही संतुलित टीम थी।


दूसरी और दिल्ली की टीम भी बहुत संतुलित थी। वो सितारों से भरी थी। उसके पास एक्सप्रेस की तेजी वाला नवीन कुमार जैसे शानदार युवा रेडर थे और मंजीत छिल्लर जैसे शानदार डिफेंडर और कैम्पेनर भी थे जिनके प्रो लीग में सबसे ज़्यादा टैकल पॉइंट हैं। नवीन ने शानदार शुरुआत की और लगातार सात मैचों में सुपर 10 बना 28 मैचों में लगातार सुपर 10 बनाने का अद्भुत रिकॉर्ड बनाया। दुर्भाग्य से नवीन को चोट लगी और वो कई मैच नहीं खेल पाए। लेकिन उनकी अनुपस्थिति में एक नए स्टार का उदय हुआ। ये विजय मलिक थे। 



          इस तरह दोनों टीमों के अपने प्लस थे। पटना 86 अंकों के साथ पहले स्थान पर थी और वो सेमीफाइनल में योद्धा टीम को आसानी से हराकर फाइनल में पहुंची थी। सबसे बड़ा प्लस उसके पास तीन बार के चैंपियन होने का अनुभव था। दूसरी और दिल्ली की टीम संघर्षपूर्ण मैच में बुल्स को हराकर फाइनल में ज़रूर पहुंची थी। लेकिन उसके चैंपियन खिलाड़ी नवीन की चोट के बाद वापसी हो चुकी थी और वो फॉर्म में आ चुके थे।सेमीफाइनल में उन्होंने शानदार सुपर 10 से टीम को फाइनल में पहुंचाया था। लेकिन उनका सबसे बड़ा प्लस वो मनोवैज्ञानिक बढ़त थी जो दोनों लीग मैच में पटना टीम को हराकर हासिल की थी।

आज का फाइनल मैच निसंदेह एक बेहतरीन मैच था। जैसा एक फाइनल मैच को होना चाहिए था। एक ऐसा मैच जो धीरे धीरे सींझते हुए चरम रोमांच पर पहुंचा। ये मैच पटना के पक्ष में शुरू होता हुआ बीच में सम पर पहुंचा और बिल्कुल अंत में हल्का सा,केवल एक अंक भर दिल्ली के पक्ष में झूल गया। 

दोनों टीमों ने आज बहुत ही सतर्क शुरुआत की। टॉस पटना ने जीता और नवीन ने पहली रेड में ही बोनस अंक लेकर अपने इरादे जाहिर कर दिए।लेकिन पटना में जल्द ही 4-1 की बढ़त बनाई। उसके  बाद दिल्ली को आल आउट कर 12-08 की।  पहला हाफ पटना के पक्ष में 17-15 पर खत्म हुआ। ये अंकों का अंतर सिर्फ आल आउट बोनस अंकों का था। वरना दोनों के 12-12 रेड और 1-1 टैकल पॉइंट थे। पहले हाफ में दोनों का डिफेंस नहीं चल पाया जो दोनों ही टीमों की बड़ी ताकत थी। 29वें मिनट तक पटना 24-21 से आगे थी। ठीक इसी पॉइंट पर विजय एक सुपर रेड करते हैं और 03 अंकों के साथ स्कोर 24-24 करते हैं। विजय की ये सुपर रेड मैच का टर्निंग पॉइंट था। मैच में पहली बार दिल्ली पटना की बराबरी पर आती है। उसके बाद नवीन रेड में एक अंक जुटाते हैं और पहली बार दिल्ली को 25-24 से बढ़त दिलाते हैं। इस अंक के साथ वे अपना सुपर 10 पूरा करते हैं। नवीन का सुपर 10 पूरा करने का इससे बेहतरीन मौका और क्या हो सकता था। अब पासा पलट चुका था। मैच चरम रोमांच पर पहुंच चुका था। तीन मिनट रहते दिल्ली की बढ़त 35-30 की हो चुकी थी जिसका अंत 37-36 पर दिल्ली के पक्ष में हुआ।


आप जानते हैं बड़े खिलाड़ी वे होते जो टीम के लिए सही समय पर डिलीवर करते हैं। जब खिलाड़ी सही समय पर डिलीवर करते हैं तभी टीम जीतती है। पटना की टीम बहुत हद तक शादलू के शानदार डिफेंस पर निर्भर थी और आज शादलू नहीं चले। लेकिन दिल्ली एक्सप्रेस नवीन ने शानदार खेल दिखाया तथा एक और सुपर 10 लगाकर टीम को विजयी बनाया। उन्होंने कुल 13 अंक जुटाए। लेकिन आज के सुपर हीरो विजय मलिक रहे। उन्होंने आज दो सुपर रेड की और एक टैकल अंक सहित कुल 14 अंक जुटाए।

ये प्रो लीग का एक शानदार सीजन था। निसंदेह इससे कबड्डी का एक शानदार भविष्य झांक रहा है। इस सीजन 12 टीमों के बीच कड़ा संघर्ष देखने को मिला। तमाम मैच टाई हुए। क्लोज मैच हुए। जो टीमें क्वालीफाई राउंड के पहले चरण में पिछड़ रही थीं,उन्होंने दूसरे चरण में शानदार वापसी की। पुनेरी पलटन और गुजरात जायंट जैसी टीमों ने शुरुआती असफलता से पार पाते हुए प्ले ऑफ के लिए क्वालीफाई किया तो पिछला चैंपियन बेंगाल वारियर्स प्ले ऑफ के लिए भी क्वालीफाई नहीं कर सका।

हम जानते हैं कि एक घटना व्यक्ति के जीवन को बदल देती है। ऐसा ही कुछ खेलों के साथ भी हो सकता है। अब देखिए ना 1983 विश्व कप क्रिकेट में भारत की जीत भारत में क्रिकेट के भाग्य को बदल देती है। इस जीत से बड़े शहरों तक सीमित खेल गली मोहल्लों का खेल बनकर धर्म सरीखा हो जाता है। भारत का राष्ट्रीय खेल हॉकी कृत्रिम सतह पर खेले जाने के एक निर्णय भर से भारतीय हॉकी ही नहीं बल्कि एशियाई हॉकी ही पतन के गर्त में चली जाती है।          

 ठीक ऐसे ही एक निर्णय एक और खेल के चरित्र को बदल देता है। ये 2014 में कबड्डी के लिए एक लीग शुरू करने का निर्णय था। ये कबड्डी के भाग्य को बदल देता है। भारत मे अनेक खेलों में लीग शुरू हुई। लेकिन ये आईपीएल के बाद सबसे लोकप्रिय लीग बन गयी। पहले सीजन ही इसे 45 मिलियन दर्शक मिले जो बढ़कर 55 मिलियन से ज़्यादा पहुंच चुके हैं।

लीग ने इसे केवल लोकप्रिय ही नहीं बनाया। बल्कि इसका चरित्र ही बदल दिया। किसी समय का ये गवईं खेल अब इलीट खेल के रूप में बदल गया है। किसी समय मिट्टी पर नंगे पैर खेले जाने वाला खेल अब शानदार मैट पर ब्रांडेड जूते पहनकर खेला जाने वाला खेल बन गया है। इसमें अब पैसा और ग्लैमर दोनों का समावेश हो गया है। अब इसमें खिलाड़ी करोड़ों रुपये कमा रहे हैं। प्रदीप नरवाल को इस बार यूपी योद्धा ने डेढ़ करोड़ से भी ज़्यादा रुपये दिए। उसने अब अपने खिलाड़ियों के करोड़पति बनने के सपने को हक़ीक़त में बदल दिया है। इसके खिलाड़ी क्रिकेट या फिल्मी सितारों की तरह स्टारडम का स्टेटस पा रहे हैं। अब इसके खिलाड़ी शानदार हेयर और बेयर्ड कट में दिखाई देने लगे हैं। अब कबड्डी में भी राहुल चौधरी, सिद्धार्थ देसाई, प्रदीप नरवाल, नवीन कुमार,पवन सेहरावत,शादलू और मनिंदर जैसे आइडल खिलाड़ी मौजूद हैं।

पश्चिमी उत्तर प्रदेश,दिल्ली और हरियाणा के ग्रामीण क्षेत्रों में जगह जगह खुल रही कबड्डी की अकादमियां इस बात की ताईद करती हैं कि खेल का भविष्य उज्जवल है।

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खेल को मिली लोकप्रियता मुबारक हो

और 

लीग को नया चैंपियन भी मुबारक ।


प्रो कबड्डी लीग_05

 


कल प्रो कबड्डी सीजन आठ के सेमीफाइनल मैच खेले गए। दोनों मैच अपनी प्रकृति में भिन्न थे पर समान परिणाम वाले। दोनों मैचों में बेहतरीन टीम ने जीत हासिल की।

पहला सेमीफाइनल पटना पाइरेट्स और यूपी योद्धा के बीच था। पाइरेट्स ने योद्धा को लगभग एकतरफा मुकाबले में 38-27 अंकों से हरा दिया। ये मुकाबला स्टार खिलाड़ी बनाम टीम का था। योद्धा में प्रदीप नरवाल,सुरेंद्र गिल और आशु अंग जैसे स्टार थे तो दूसरी तरफ पाइरेट्स में कोई स्टार नहीं है। प्रदीप नरवाल ने पाइरेट्स को तीन बार चैंपियन बनाया था।लेकिन इस बार वे योद्धा के लिए खेल रहे थे। पाइरेट्स के पास कोई बड़ा चेहरा नहीं था। लेकिन यही उनकी सबसे बड़ी ताकत थी। वे एक यूनिट के रूप में खेल रहे थे। और उन्होंने अपने खेल से दिखाया कि टीम गेम में एक यूनिट के रूप में टीम किसी भी स्टार से बड़ी होती है। पूरे सीजन पाइरेट्स ने शानदार  प्रदर्शन किया। 


दरअसल इस मैच में चौथा टाइटल दांव पर था। या तो पाइरेट्स को चौथे टाइटल का दावेदार बनना था या फिर पाइरेट्स के पूर्व स्टार  प्रदीप नरवाल को। जीत पटना पाइरेट्स की हुई। कल पाइरेट्स ने शुरू में में ही 4-0 की बढ़त ले ली। उसके बाद योद्धा को आल आउट कर I1-4 की बढ़त ले ली। आधे समय तक पाइरेट्स की बढ़त 23 -09 की हो चुकी थी। 

दूसरे हाफ में भी स्थिति वैसी ही रही। पाइरेट्स ने तीन अंक और जुटाए और बढ़त 17 अंकों की कर ली। इसके बाद योद्धा ने कुछ संघर्ष करने की कोशिश की। लेकिन तब तक देर हो चुकी थी। दरअसल पटना की टीम को प्रदीप का शानदार खेल ही हरा सकता था। वैसा खेल जैसा प्रदीप ने पुनेरी पलटन के खिलाफ दिखाया था। लेकिन प्रदीप एक बार फिर खराब खेले और केवल 04 अंक जुटा पाए। दरअसल प्रदीप का खराब खेलना योद्धा का हार जाना था।  पाइरेट्स की और से युवा खिलाड़ी गुमान सिंह ने 08  रेड अंक और पहला सीजन खेल रहे ईरानी खिलाड़ी मोहम्मद रेज़ा ने 06 टैकल अंक हासिल किए। ये दोनों पटना पाइरेट्स के  और लीग के नए उभरते सितारे हैं। दरअसल बड़े सितारों का डूबना नए सितारों के उदय का रास्ता बनाता है।


दूसरा सेमीफाइनल दिल्ली दबंग और बेंगलुरु बुल्स के बीच था। पहले सेमीफाइनल के उलट ये एक संघर्षपूर्ण मैच था। ये दो सितारों की भिड़ंत का,उनके कौशल के द्वंद का मैच था। एक तरफ इस सीजन के सबसे अधिक रेड अंक जुटाने वाले बुल्स के पवन सहरावत थे तो दूसरी और शानदार युवा रेडर नवीन कुमार थे। दोनों ने शानदार प्रदर्शन किया। नवीन ने 14 रेड अंक जुटाए तो पवन ने 18 रेड अंक लिए। अंतर केवल साथियों के सहयोग  का था। पवन टीम के लिए अकेले संघर्ष कर रहे थे। बुल्स के जिस डिफेंस ने एलिमिनेटर मैच में गुजरात जायंट को बांध कर रख दिया था,उसके इस मैच में खुद हाथ बंध गए थे। दूसरी तरफ नवीन को साथियों का साथ मिला। यही कारण था दिल्ली की दबंगई ने बेकाबू बुल्स को काबू में कर लिया और मैच 40-35 अंकों से जीत लिया।

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अब शुक्रवार को पटना पाइरेट्स अपने चौथे खिताब के लिए खेलेगी तो दिल्ली दबंग का ये बैक टू बैक लगातार दूसरा फाइनल होगा। नवीन का पिछली बार बेंगाल वारियर्स से हार के बाद ज़ार ज़ार रोना किसे भूला होगा। उनकी आंखों से पानी इस बार भी बहना लाज़मी है। देखना बस इतना है कि इन आंसुओं में मुस्कुराहट घुली होगी या उदासी।

और हां हिंदी अखबारों ने फिर निराश किया। 

ये हार भारतीय क्रिकेट का 'माराकांजो' है।

आप चाहे जितना कहें कि खेल खेल होते हैं और खेल में हार जीत लगी रहती है। इसमें खुशी कैसी और ग़म कैसा। लेकिन सच ये हैं कि अपनी टीम की जीत आपको ...