Friday 26 July 2024

पेरिस ओलंपिक 2024_06: भारत का प्रदर्शन और संभावनाएंदुजार्दिन






 दुनिया का सबसे बड़ा खेल मेला 33वां ओलंपिक आज फ्रांस की राजधानी पेरिस में विधिवत उद्घाटन के बाद औपचारिक रूप से आरंभ हो जाएगा। अब अगले 17 दिन दुनिया के 200 से भी अधिक देशों के सर्वश्रेष्ठ 10500 एथलीट 329 से  पदकों के अपना सर्वश्रेष्ठ देने के लिए जी जान लगा देंगे। इस प्रक्रिया में आएंगे हैरतअंगेज परिणाम और अविश्वसनीय प्रदर्शन। दुनिया की नज़रें इन सारे एथलीटों के प्रदर्शन पर तो होगी ही,लेकिन हर देश के खेल प्रेमियों की नज़रें अपने देश के एथलीटों के प्रदर्शन पर विशेष रूप से लगी होगी। भारत के 1.4 बिलियन लोगों की उम्मीदें 117 एथलीटों और उनके प्रदर्शन पर होंगी।

तो आज एक नजर ओलंपिक में भारत के अब तक के प्रदर्शन पर और इस ओलंपिक में भारत की संभावनाओं पर।

लंपिक खेलों में भारत ने अब तक कुल 35 पदक जीते हैं जिनमें 10 स्वर्ण,09 रजत,16 कांसे के पदक शामिल हैं। सबसे अधिक हॉकी में 08 स्वर्ण,01 रजत और 03 कांसे सहित कुल 12 पदक जीते हैं। शेष दो स्वर्ण अभिनव बिंद्रा ने 2008 में शूटिंग में और नीरज चोपड़ा ने 2021 में टोक्यो में जीते। इसके अलावा रेसलर सुशील कुमार और शटलर पी वी सिंधु दो ऐसे खिलाड़ी हैं जिन्होंने दो दो पदक जीते हैं। पिछले ओलंपिक में भारत ने कुल 07 पदक जीते जिनमें एक स्वर्ण,02 रजत और 04 कांसे के पदक शामिल हैं। ये भारत का अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन था।

कुल मिलाकर देखा  जाए तो भारत का प्रदर्शन हॉकी को छोड़कर बहुत ही साधारण रहा है। छिटपुट प्रदर्शन को छोड़ कर। इसीलिए भारत के ओलंपिक में प्रदर्शन को लेकर जो स्मृतियां बनती हैं वे मुख्यता दो तरह की हैं। मोटे तौर पर,एक 2000 से पहले की और दो, उसके बाद की।

पिछली शताब्दी में हम जब भी ओलंपिक में भारत के प्रदर्शन को लेकर बात करते हैं तो हम हॉकी की स्वर्णिम सफलता की याद करते और मिल्खा सिंह और पीटी उषा की असफता को भी।  इन दोनों की स्मृति पदक को बहुत ही मामूली अन्तर से चूक जाने की स्मृति है। और ये स्मृति आज भी बहुत चमकीली है। ये भी तय है कि अगर उनमें से किसी ने पदक जीता होता तो उन्हें इतनी शिद्दत से ना याद किया जाता जितनी शिद्दत से अब किया जाता है। ये बात कहती है कि आपकी जीत से ज्यादा आपका प्रयास बोलता है,मेहनत बोलती है,आपकी प्रयासों की संजीदगी बोलती है,आपकी प्रतिभा बोलती है। ये इस बात की भी ताईद करती है कि हमारे पास प्रतिभा तो थी पर उस प्रतिभा को पदक जीतने वाले खिलाड़ियों में तब्दील करने वाला आधारभूत खेल ढांचा और सुविधाएं ना थीं।

1980 में स्वर्ण पदक जीतने के बाद हॉकी नेपथ्य में चली जाती है। और 2000 के आस पास से भारतीय खिलाड़ी व्यक्तिगत स्पर्धाओं में पदक जीतना शुरू कर देते हैं। यहां से हमारी हॉकी के स्वर्णिम काल की और मिल्खा व उषा के प्रयासों की स्मृति धुंधली पड़ने लगती है और उभरते नए सितारों को अपनी पलकों पर बैठाने लगते हैं।  यहां उल्लेखनीय है अब जो भी सफलताएं आती हैं वे टीम गेम में नहीं वैयक्तिक स्पर्धाओं में आती हैं।

सकी शुरुआत 1996 के अटलांटा ओलंपिक में लिएंडर पेस टेनिस पुरुष एकल कांस्य पदक जीतकर करते हैं। उसके बाद 2000 सिडनी में कर्णम मल्लेश्वरी भारोत्तोलन में कांस्य जीतने वाली पहली भारतीय महिला बनती हैं। 2004 में एथेंस में राज्यवर्धन सिंह राठौर शूटिंग में चांदी का पदक जीतते हैं। 2008 में बीजिंग में 1952 के दो पदकों के बाद पहला अवसर था जब भारत ओलंपिक खेलों में एक से अधिक पदक जीतता है। अभिनव बिंद्रा पहली बार व्यक्तिगत स्पर्धा का स्वर्ण जीतते है। इस बार भारत ने कुल तीन पदक जीते। 2012 के लंदन ओलंपिक में भारत उस समय तक का सबसे अच्छा प्रदर्शन करता है और कुल 06 पदक प्राप्त करता है। लेकिन 2016 में रियो में एक बार फिर 02 पदकों पर सिमट जाता है।

र तब आता है 2021 का साल। टोक्यो ओलंपिक में भारत अब तक का सबसे बेहतरीन प्रदर्शन करता है और कुल सात पदक जीतता है। टोक्यो खेलों के अंतिम दिन नीरज चोपड़ा जेवलिन थ्रो में स्वर्ण पदक जीतकर एथलेटिक्स में ना केवल पदक ना जीत पाने के जिंक्स को तोड़ते हैं और एक नए युग की शुरुआत करते हैं।


2024 के पेरिस ओलंपिक में नीरज चोपड़ा ठीक वहीं से शुरू करेंगे जहां टोक्यो में उन्होंने छोड़ा था। ये यहां भारत के लिए पदक की सबसे बड़ी उम्मीद हैं और आश्वस्ति भी। उन्होंने टोक्यो के बाद लगातार अच्छा प्रदर्शन किया है। उन्होंने विश्व चैंपियनशिप और एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीते हैं। लेकिन वे अभी तक 90 मीटर का बैरियर पार नहीं कर पाए हैं। अपना स्वर्णिम प्रदर्शन दोहराने के लिए उन्हें अपना सर्वश्रेष्ठ देना होगा उनके जो भी प्रतिद्वंदी हैं, वे उनसे कम नहीं हैं। चेक गणराज्य के जैकब वाडलेश का सर्वश्रेष्ठ 90.88 मीटर है। जर्मनी के जूलियन वेबर की बेस्ट थ्रो 89.54 की है। इसके अलावा एक और युवा जर्मन मैक्स देहिंग हैं जिनका बेस्ट 90.20 मीटर का  है। इन तीनों के लिए अलावा पाकिस्तान के अरशद नदीम की चुनौती से भी पार पाना होगा। वे भी 90 मीटर के बैरियर को पार कर अपनी बेस्ट थ्रो 90.18 की कर चुके हैं। इस साल नीरज की तैयारी बहुत अच्छी नहीं रही हैं। उन्होंने केवल तीन प्रतियोगिताओं में भाग लिया है और सीजन की बेस्ट थ्रो में वे नंबर चार पर हैं। 

एथलेटिक्स का दल सबसे बड़ा है जिसमें 29 एथलीट शामिल हैं। नीरज के बाद अगर किसी की थोड़ी बहुत पदक जीतने की संभावना है तो वे हैं अविनाश सांबले। बाकी सब का स्तर अंतरराष्ट्रीय स्तर से काफी पीछे है। ऐसे में उनसे पदक जीतने की उम्मीद रखना बेमानी होगा।

बैडमिंटन में भारत की सबसे बड़ी आशा चिराग शेट्टी और सात्विक साईराज रैंकी रेड्डी की जोड़ी है। वे इस समय नंबर तीन हैं और विश्व नम्बर वन रहा चुके हैं। वे 2023 की एशियाई चैंपियनशिप,2022 के एशियाई खेल, 2022 के कामनवेल्थ खेलों में डबल का स्वर्ण पदक जीत चुके हैं साथ ही थॉमस कप में भारत को स्वर्ण पदक जिताने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी। वे इस समय फॉर्म में हैं और शानदार खेल रहे हैं। इस जोड़ी से भी पदक की उम्मीद बेमानी नहीं हैं। सिंधु ओलंपिक में दो पदक जीत चुकी हैं। लेकिन इस समय वे फॉर्म में नहीं हैं। उनका  ड्रा  भी कठिन है। पदक जीतना इस बार उनके लिए कठिन लगता है। हाँ, लक्ष्य सेन और एच एस प्रणय दोनों अच्छी फॉर्म में हैं और अच्छा खेल रहे हैं। दोनों ही उलटफेर करने में सक्षम हैं और कोई पदक जीत ले तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए।

शूटिंग में भारत ने अब तक एक गोल्ड और एक सिल्वर पदक जीता है। शूटिंग में पिछले कुछ सालों से पदकों की उम्मीद सबसे ज़्यादा रहती है क्योंकि शूटर विश्व स्तर पर बेहतरीन प्रदर्शन कर रहे होते हैं। लेकिन निराश भी सबसे ज़्यादा वे ही करते हैं। टोक्यो ओलंपिक में उनसे बहुत अधिक संभावना थी, लेकिन दल के खिलाड़ियों और स्टाफ़ में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा था। उनका प्रदर्शन बेहद निराशाजनक रहा। इस बार भी शूटिंग से बहुत उम्मीद हैं। एथलेटिक्स के बाद सबसे बड़ा 21 सदस्यों का दल शूटर्स का ही है। मनु भाकर दो इवेंट्स  10 मीटर और 25 मीटर एयर पिस्टल में भाग ले रही हैं और पदक जीतने बड़ी की दावेदार हैं। उनके अलावा 50 मीटर थ्री पोजीशन में सिफ़त कौर, 10 मीटर एयर राइफल में संदीप सिंह और 50 मीटर राइफल में ऐश्वर्य प्रताप सिंह तोमर,25 मीटर रैपिड फायर पिस्टल में अनीश भानवाला से पदकों की सबसे ज़्यादा उम्मीद है।

कुश्ती में कुल 06 पहलवानों ने अहर्ता प्राप्त की। कुश्ती में भारत में  हाल के दिनों में जिस तरह का माहौल रहा है वो बहुत ही निराशाजनक था। कुश्ती संघ और पहलवानों के बीच हुए विवाद ने कुश्ती की ओलंपिक तैयारियों को खासा प्रभावित किया। पहलवान प्रतिगोगिताओं में भाग नहीं ले सके। कोई राष्ट्रीय कैम्प तक नहीं लग पाया। इस सबके बावजूद अहर्ता प्राप्त करने वाले सभी पहलवानों ने अच्छा प्रदर्शन किया है और उन सभी से पदक की उम्मीद की जा सकती है। एकमात्र पुरुष पहलवान अमन सहरावत हों,विनेश फोगाट हो या फिर अंतिम पंघाल और अंशु मलिक हों,सभी पदक जीतने में सक्षम हैं।

टेबल टेनिस में हालांकि इस साल खिलाड़ियों ने बेहतरीन प्रदर्शन किया है,लेकिन उनसे पदक की उम्मीद नहीं की जा सकती।

भारोत्तोलन में मीराबाई चानू ने टोक्यो में रजत पदक जीता था। लेकिन उसके बाद से वे अपनी चोट और फर्म से जूझ रहीं हैं। ऐसे में वे इस बार अपना प्रदर्शन दोहरा पाएंगी,इसमें संदेह है।

तीरंदाजी में कुल छह तीरंदाज हैं। निश्चित रूप से इनके अन्य विश्व प्रतियोगिताओं में प्रदर्शन के मद्देनज़र पदकों की उम्मीद की जा सकती है,विशेष रूप से बहुत ही अनुभवी और सीजंड दीपिका कुमारी से।

गोल्फ में दीक्षा डागर और अदिति अशोक ने पिछली बार अच्छा प्रदर्शन किया था। अदिति अशोक तो अंतिम दिन तक पदक की दौड़ में थीं और बस कांस्य पदक चूक गईं। उनके प्रदर्शन पर निगाह रखनी चाहिए। वे पदक की दावेदार हो सकती हैं।

बॉक्सिंग में भी कुल छह बॉक्सर हैं। पिछली बार की सिल्वर मेडल विजेता लोवलीना बोरगोइन और दो बार की विश्व चैंपियन और ओलंपिक डेब्यू करने वाली ज़रीन निखत भारत की पदक की बड़ी उम्मीद हैं। बाकी बॉक्सर में अमित पंघाल भी पदक की होड़ में आ सकते हैं।

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कुल मिलाकर पिछले प्रदर्शन  को देखकर ये बात की जा रही है कि क्या इस बार भारत दहाई के अंकों में पदक जीत सकता है। लेकिन ऐसा लगता है कि भारतीय दल के लिए पिछली बार की बराबरी कर लेना भी पेरिस ओलंपिक में भारत की बड़ी चुनौती सिद्ध होगी। हाँ अगर शूटिंग में प्रदर्शन अच्छा रहा तो दहाई के अंक में पहुंचना संभव हो सकता है।

गुड लक टीम इंडिया।




पेरिस ओलंपिक 2024_05:चार्लोट दुजार्दिन





र इसे क्रिकेट की भाषा में कहना चाहें तो ओलंपिक खेलों के शुरू होने से पहले ही एक विकेट गिर गया। ये विकेट ब्रिटेन के मशहूर घुड़सवार चार्लोट दुजार्दिन का है।

 दुजार्दिन से बेहतर अब भला कौन समझ सकता है कि भावावेश के किसी एक क्षण में या अनजाने में कई गई एक छोटी सी भूल भी किसी के हाथ से इतिहास बनाने का मौका छीन सकती, उसे  अर्श से फर्श पर ला सकती है,उसके सपनों को चूर चूर कर सकती है।

लंपिक खेलों के शुरू होने से पहले ही उनका एक वीडियो वायरल हुआ जिसमें उन्हें एक व्यक्तिगत घुडसाल में प्रशिक्षण के दौरान अपने घोड़े के साथ दुर्व्यवहार करते हुए देखा जा सकता है। इसे अंतरराष्ट्रीय घुड़सवार संघ ने  आपत्तिजनक और जानवरों के प्रति गलत व्यवहार मानते हुए उन्हें जांच पूरी होने तक छह महीने के लिए निलंबित कर दिया है। निलंबन के बाद चार्लोट ने ओलंपिक से नाम वापस ले लिया है।

वे ब्रिटेन की जानी मानी घुड़सवार हैं जिन्होंने अब तक छह ओलंपिक पदक जीते थे और इस बार उनके एक भी पदक जीतने पर वे लौरा केनी को पीछे छोड़कर सर्वाधिक ओलंपिक पदक जीतने वाली ब्रिटिश हो जातीं।

न्होंने  2012 के लंदन ओलंपिक में घुड़सवारी की ड्रेसेज स्पर्धा में व्यक्तिगत और टीम का स्वर्ण पदक जीता था। उसके बाद 2016 के रियो ओलंपिक में एक स्वर्ण व एक रजत और 2021 के टोक्यो ओलंपिक में दो कांस्य पदक जीते थे।

हार्ड लक चार्लोट।




Wednesday 24 July 2024

पेरिस ओलंपिक खेल 2024_04:नवाचार और चुनौतियां





पेरिस शहर। दुनिया का सबसे खूबसूरत शहर। सपनों का शहर। प्रेम का शहर। रोशनी का शहर। फैशन का शहर। कला और साहित्य का शहर। स्थापत्य का शहर। एक शहर जिसने इतिहास मिटते देखा और इतिहास बनते देखा। शहर जिसके चप्पे चप्पे में आर्थिक और सांस्कृतिक वैभव के निशान बिखरे पड़े हैं। एक शहर जो आर्थिक वैभव की रोशनी से नहाया हुआ है। एक शहर जो सांस्कृतिक वैभव की रोशनी से गुलज़ार है। एक ऐसा शहर कला, साहित्य व अन्य क्षेत्रों में ना जाने कितने नवाचारों का, नए नए आंदोलनों का साक्षी रहा,केन्द्र रहा। स्वप्न सरीखा शहर। स्वप्नों का शहर। शहर जिसने उत्कृष्टता के नए शिखर बनाए,नए पैमाने गढ़े।

सपनों के इसी शहर में 26 जुलाई से 11 अगस्त तक दुनिया के कोने कोने से 10500  खेल कलाकार 32 खेलों की 329 स्पर्धाओं में अपने कौशल और प्रतिभा की रोशनी से ना केवल इस शहर को बल्कि विश्व भर को चकाचौंध कर देंगे। यहां 19 दिनों तक वे अपने सपनों को साकार करेंगे और रचेंगे उत्कृष्टता के नए पैमाने। और इसके लिए अपना सबकुछ दांव पर लगा देंगे। वे सब 'सिटियस,अल्टियस,फोर्टियस ' के इस महायज्ञ में अपने कला कौशल और योग्यता की आहुति देंगे और करेंगे खुद को साबित कुछ और अधिक तेज, कुछ और अधिक ऊंचा, कुछ और अधिक शक्तिशाली

फ्रांस की राजधानी पेरिस ठीक सौ साल बाद फिर से ओलंपिक खेलों की मेजबानी कर रही है।

यहां इससे पहले 1924 में  ओलंपिक खेल हुए थे। वो इन खेलों का 07वां आयोजन था और ये 33वां।

ये शहर बना ही नए पयोगों और नवाचारों के लिए। कला से लेकर साहित्य तक और अर्थ से लेकर राजनीति तक नए प्रयोगों और नवाचारों का शहर है ये। फिर ऐसा कैसे ही सकता है कि इस शहर में इतना बड़ा खेल आयोजन हो और उनमें कुछ नवीनता ना हो। नए प्रयोग ना हों। 

1924 के ओलंपिक खेलों में भी इस शहर ने कुछ नवीन परंपराएं स्थापित की और पुरानी को छोड़ा था। और इस बार भी ऐसा ही होने जा रहा है।

1924 में जब पेरिस में ओलंपिक खेल आयोजित किए जा रहे थे तो ये दूसरा अवसर था कि पेरिस में ओलंपिक खेल हो रहे थे। इससे पहले 1900 में दूसरे ओलंपिक खेल भी पेरिस में ही हुए थे। इस प्रकार 1924 में पेरिस दुनिया का पहला शहर बन रहा था जिसे दो बार इन ओलंपिक खेलों के आयोजन का गौरव प्राप्त हुआ।

1924 के पेरिस ओलंपिक में पहली बार रेडियो रेडियो पर इन खेलों का सजीव प्रसारण किया गया था।

इतना ही नहीं इन खेलों में  पहली बार खेल गांव बनाया गया था और सारे खिलाड़ी एक साथ इस खेल गांव में रुके थे।

समापन समारोह के आयोजन की परंपरा भी इन्हीं खेलों से आरम्भ हुई जिसमें ओलंपिक कमेटी के अलावा मेजबान और अगले मेजबान देश का ध्वजारोहण किया गया था।

इन खेलों में पहली बार आयरलैंड को स्वतंत्र देश के रूप में मान्यता और भाग लेने की अनुमति दी गई थी और आयरलैंड ने पहली बार ओलंपिक खेलों में भाग लिया।

और ये भी कि अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक कमेटी के पियरे दी कुबर्टीन के निर्देशन में ये अंतिम ओलंपिक खेल थे।

नवाचारों की ये परंपरा ये शहर अभी भी बदस्तूर निभा रहा है। बहुत कुछ इस बार भी नया होने जा रहा है।

इस बार के खेलों का सबसे बड़ा प्रयोग उद्घाटन समारोह में होने जा रहा है। इस बार का उद्घाटन समारोह स्टेडियम में ना होकर सीन नदी पर होगा। इसमें दर्शकों पर किसी तरह का कोई प्रतिबंध नहीं होगा। प्रत्येक देश की टीम एक बोट पर होगी जिस पर कवरेज के लिए कैमरे लगे होंगे। ये बॉड लगभग 6किमी का फासला तय करेंगी।

 ये अब तक के पहले खेल होंगे जिसमें पुरुष और स्त्री खिलाड़ियों की संख्या एकदम बराबर होगी। पचास पचास फीसद।

एक बात ये भी कि ये खेल बहुत अधिक सस्टेनेबल होंगे। इसके लिए नए ढांचों का निर्माण नहीं किया गया है। बल्कि पहले से स्थापित स्ट्रक्चर्स को ही सुदृढ़ कर उन्हें प्रयोग में लाया जा रहा है। या फिर कुछ अस्थायी ढांचों का निर्माण किया गया है जिन्हें इस आयोजन के लिए ही बनाया जा रहा है।

जिस समय पेरिस को खेल आयोजन का अधिकार मिला था उस समय उसने चार नए खेलों को शामिल किए जाने का प्रस्ताव किया था। ये खेल थे-स्केटबोर्डिंग,सर्फिंग, स्पोर्ट्स क्लाइंबिंग और ब्रेकिंग (ब्रेक डांस)। इनमें से पहले तीन तो टोक्यो में ही शामिल कर लिए गए थे और इस बार भी इन्हें शामिल किया गया है। जबकि ब्रेकिंग पहली बार ओलंपिक खेलों में शामिल किया जा रहा है।

ज्यादातर खेल तो पेरिस और उसके उपनगरों वर्साइल,सेंट डेनिस,ले बोर्गेट, नैनटरे,वेरेस सुर मोर्ने में आयोजित किए जाएंगे। लेकिन कुछ खेल पेरिस से काफी दूर स्थित जगहों पर भी आयोजित किए जाएंगे। मसलन बास्केटबॉल और हैंडबॉल का आयोजन पेरिस से 225 किमी दूर लिली में होगा जबकि नौकायन प्रतियोगिता और कुछ फुटबॉल मैच भूमध्यसागरीय शहर मार्साइल में खेले जाएंगे जो पेरिस से 777 किमी दूर है। फुटबॉल के मैच पांच अन्य शहरों में भी आयोजित किए जाएंगे जिसमें लीग क्लब के गृह मैदान नीस,बोर्डो, लियोन,सेंट एटीन और नैनटेस ।

सर्फिंग की प्रतियोगिता तो पेरिस से 15717 किमी दूर फ्रेंच पोलिनेशिया के गांव ताहुपोहो में होंगी।

इन खेलों के आयोजकों का दावा है कि ये खेल अधिक हरित,अधिक स्वच्छ और अधिक सुरक्षित होंगे। लेकिन इसी के चलते ही शायद एक बड़ा विवाद भी खड़ा हो गया है।  तमाम मानवाधिकार संगठन और एनजीओ ये आरोप लगा रहे हैं कि सुरक्षा और साफ सफाई की बिना पर उन क्षेत्रों से अस्थाई रूप से निवास कर रहे निर्धन लोगों को जिनमें से आधे से अधिक शरणार्थी हैं और जो सड़कों पर रहते हैं,को बेदखल किया जा रहा है जहां पर्यटकों के आने की संभावना है और जो क्षेत्र खेल आयोजन स्थलों के आसपास हैं। हालांकि आयोजकों ने इन आरोपों का खंडन किया है। 

विवाद और चिंताएं और भी है। इजरायल और हमा युद्ध के चलते इजरायल को भाग लेने की अनुमति विवाद का एक बड़ा मुद्दा है और रूस यूक्रेन युद्ध के चलते रूस और बेलारूस की टीमों को तटस्थ दल के रूप में अनुमति दिया जाना भी विवाद का विषय है। इसके अलावा पर्यावरण संबंधी मुद्दे, खिलाड़ियों और दुनिया भर से आने वाले खिलाड़ियों के लिए मूलभूत ढांचे और सुविधाओं की उपलब्धता जैसे मुद्दे और चिंताएं मौजूद हैं। एक बड़ा मुद्दा सड़कों पर सदियों से सड़क पर सामान बेचने वाले विक्रेताओं को खेलों के शुरू होने से पहले हटाने का मुद्दा भी है और गर्म मौसम भी खिलाड़ियों और आयोजकों के लिए बड़ी चुनौती खड़ी कर सकता है।

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चुनौतिया और चिंताएं चाहे जैसी हो,इन खेलों के भव्य और सफल आयोजन के बारे में शायद ही किसी को संदेह होना चाहिए।




Tuesday 23 July 2024

आकाशवाणी संकेत धुन का रचयिता:काफमैन






ज 23 जुलाई को जब हम भारत में रेडियो का स्थापना दिवस मना रहे हैं, तो हमारा एक व्यक्ति को बहुत शिद्दत से याद करना बनता है। ये व्यक्ति है वाल्टर काफमैन। इस व्यक्ति ने अपनी एक असाधारण कंपोजिशन से  रेडियो को एक अलग पहचान दी। ये कंपोजिशन थी ए 'आईआर सिग्नेचर ट्यून' जो राग शिवरंजनी में निबद्ध थी।

वाल्टर काफमैन चेक मूल के यहूदी थे और होलोकास्ट के चलते एक शरणार्थी के रूप में 1934 में भारत आए और अगले 14 वर्षों तक भारत में रहे। वे संगीत के विद्यार्थी थे और प्राग के जर्मन विश्वविद्यालय से संगीत में पीएचडी की थी। लेकिन जब उन्हें पता चला कि उनके सुपरवाइजर गुस्ताव बेकिंग स्थानीय युवा नाज़ी संगठन का लीडर हैं तो उन्होंने डिग्री लेने से इंकार कर दिया। 

भारत आने से पहले वे रेडियो प्राग में काम कर चुके थे। भारतीय संगीत में उनकी विशेष रुचि थी और उन्होंने सामवेद के संगीत तत्वों और गोंड व बैगा लोक गीतों,उत्तर भारतीय रागों और दक्षिण भारतीय रागों पर विशेष काम किया था। भारत में रहते हुए उन्होंने ऑल इंडिया रेडियो में यूरोपियन ब्रॉडकास्टिंग निदेशक के रूप में कार्य किया। भारत आने के थोड़े दिनों के भीतर ही उन्होंने बॉम्बे चैंबर म्यूजिक सोसायटी की स्थापना की और हिंदी फिल्मों में भी काम किया।

सी दौरान उन्होंने 'आकाशवाणी संकेत धुन' कंपोज करने के अविस्मरणीय कार्य को अंजाम दिया।

नकी पत्नी गेरटा प्रसिद्ध लेखक फ्रांज काफ्का की भांजी थीं और सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक एलबर्ट आइंस्टीन उनकी संगीत प्रतिभा से बहुत ज्यादा मुत्तासिर थे और उनकी प्रसंशा में उन्हें एक पत्र भी लिखा था।

भारत की आजादी के समय वे वाया ब्रिटेन कनाडा गए और अंततः अमेरिका में बस गए जहां 1984 में वे इस फ़ानी दुनिया से रुखसत हुए।

पेरिस ओलंपिक 2024 _03:तचलोविनी मेलाके गैब्रिएसोस





 ऐसा माना जाता है कि मानव का उद्भव अफ्रीका महाद्वीप में हुआ और वहां से दुनिया भर में उसका संचरण हुआ। ये संचरण आज तक जारी है। पूर्व काल में अफ्रीका से बाकी दुनिया तक का संचरण बहुत ही सहज और स्वाभाविक रहा होगा,लेकिन आज के दौर में ये पलायन में तब्दील हो गया है और बहुत ही त्रासद भी।

फ्रीका एक बहुत ही दुर्गम भौगोलिक पहचान है और प्रचुर प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर भी।लेकिन संसाधनों का दोहन पश्चिमी  विश्व ने किया और यहां के मूल निवासियों के हिस्से आई घोर निराशा, अवसाद,गरीबी और उससे निजात पाने के रूप में कड़े जीवन संघर्ष। इस सबकी परिणति हुई थोड़े से बचे संसाधनों पर अधिकार के लिए होने वाले अनवरत गृहयुद्ध और भीषण संघर्षों में।

हां की कठिन परिस्थितियों ने यहां के निवासियों में अदम्य साहस और संघर्ष करने का ज़ज़्बा और हौंसला तो भरा ही लेकिन साथ ही इन परिस्थितियों से छुटकारा पाने की अदम्य लालसा भी भरी। इस लालसा के कारण सैकड़ों हजारों लोग इस महाद्वीप के अलग अलग हिस्सों से विश्व भर में पलायन करते है और इस पलायन से जन्म लेती हैं बेशुमार प्रेरणादायी कहानियां।

 ये कहानी भी एक ऐसी ही कहानी है जो अफ्रीका के पूर्वी हिस्से में स्थित छोटे से निर्धन देश इरिट्रिया के एक गांव से शुरू होती है और वाया इथियोपिया, सुडान, मिस्र और सिनाई प्रायद्वीप होती हुई इजरायल के तेलअवीव में जाकर ठहरती है। एक ऐसी कहानी जो मृत्यु के भय से शुरू होती है और दुनिया जीत लेने के जज्बे पर आकर रुकती है। एक ऐसी कहानी जो नाउम्मीदी व आंसुओं से शुरू होती है और उम्मीद पर जाकर खत्म होती है। ये कहानी लंबी दूरी के ऐसे धावक की है जो केवल रहने के लिए मानवीय परिस्थितियों कीभखोज में घर से भाग निकलता है और दौड़ते दौड़ते प्रसिद्धि को पा लेता है। 

ये साल 2010 था। अफ्रीका के पूर्वी हिस्से में स्थित आंतरिक अव्यवस्था और अशांति से जूझ रहे देश इरिट्रिया में हथियारबंद सैनिक घर घर जाते हैं और युवाओं को जबरिया सेना में शामिल करते हैं। एक बारह साल का युवा इससे बेतरह डर जाता है। वो सेना में भर्ती नहीं होना चाहता और ना लड़ना चाहता है। उसकी आंखों में कुछ और सपने थे और मन में कुछ चाहतें। वो अपने एक साथी के साथ देश छोड़कर भाग निकलता है। 

सके पास कुछ नहीं होता है। बस होता है तो बहुत थोड़ा सा धन और एक बेहतर भविष्य का सपना और कुछ कर गुजरने की इच्छा।

न्हीं संसाधनों के सहारे वो बालक कई दिन की यात्रा के बाद पहले इथियोपिया पहुंचता है और अपनी एक रिश्तेदार जो पहले से ही इजरायल में शरण ले चुकी है,के निर्देश पर वहां से सुदान पहुंचता है इजरायल जाने के लिए। यहां वो बेदु मानव तस्करों के संपर्क करता है और इजरायल के लिए यात्रा शुरू होती है। दरअसल ये एक दुस्वप्न की शुरुआत थी। वे बेदु मानव तस्करों के अत्याचार और यात्रा की कठिनाइयों के  बाद मिस्र पहुंचता है। उसके बाद कई दिनों की कठिन यात्रा के बाद सिनाई रेगिस्तान को पारकर इजरायल बॉर्डर पर पहुंचता है।

क दुस्वप्न का अंत होता है। एक नया सवेरा आता है। उस 12 साल के बालक को इजरायल में शरण मिल जाती है और तेलअवीव के हादसाह नेरीम (hadassah neurim) बोर्डिंग स्कूल में जगह मिलती है। ये ऐसे ही बालको के लिए बना है।

हां उसकी स्कूली शिक्षा पूरी होती है और खेलों और विशेष रूप से दौड़ में रुचि देखते हुए 'रनिंग प्रोग्राम' में शामिल किया जाता है। यहां उसके कोच बनते हैं अलेमायु फ्लोरो जो उस बालक को एक बेहतरीन लंबी दूरी के धावक में तब्दील कर देता है।

ये बालक कोई और नहीं इस बार के पेरिस खेलों के लिए ओलंपिक शरणार्थी टीम का सदस्य तचलोविनी मेलाके गैब्रिएसोस हैं जो मैराथन दौड़ में हिस्सा लेंगे। 

वे पहली बार चर्चा में तब आए जब उन्हें 2019 में दोहा में आयोजित विश्व चैंपियनशिप एथलेटिक रिफ्यूजी टीम में चुना गया। यहां उन्हें पांच हजार मीटर दौड़ में भाग लेना था। उसके बाद उन्होंने एथलेटिक रिफ्यूजी टीम के सदस्य के रूप में 2020 में पोलैंड में आयोजित हॉफ मैराथन में हिस्सा लिया। फिर  2021में टोक्यो ओलंपिक खेल आए। वे एक टोक्यो ओलंपिक रिफ्यूजी टीम के लिए चुने गए और यहां पर 106 प्रतिभागियों में वे 16वें स्थान पर रहे। साथ ही ओपनिंग सेरेमनी में टीम के ध्वज वाहक होने का सम्मान भी मिला।

वे इस बार फिर पेरिस ओलंपिक शरणार्थी टीम के सदस्य हैं और मैराथन में भाग लेंगे।

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क दौड़ जो उन्होंने 12 साल की उम्र में एक 'बेहतर जिंदगी के लिए शुरू की थी जहां वे मानवीय परिस्थितियों में रह सकें',उनके हौसलों जज्बे और सफलता की दौड़ में तब्दील हो गई है। लेकिन वे अपने अतीत को भूले नहीं हैं। वे कहते हैं 'उन्हें उस अतीत से हिम्मत मिलती है और शक्ति भी'।

ब आप पेरिस ओलंपिक में अपने प्रिय खिलाड़ियों के प्रदर्शन पर नजर गड़ाए हुए होंगे तो इस पर से भी अपनी दृष्टि ओझल मत होने दीजिएगा।



पेरिस ओलंपिक 2024 _02:शुभंकर

 




जिन लोगों की खेलों में जरा भी रुचि रही है और उनकी स्मृति के किसी भी कोने में दिल्ली में 1982 में आयोजित एशियाड खेल विश्राम कर रहे होंगे,उनकी स्मृति में रंग बिरंगा गोल मटोल हाथी का बच्चा 'अप्पू' भी जरूर जगमग जगमग कर रहा होगा। ये दिल्ली एशियाड खेलों का शुभंकर था। जो अत्यधिक लोकप्रिय हुआ था।

भी खेल आयोजनों में शुभंकर जारी किया जाना अब इन खेलों का एक अनिवार्य हिस्सा है। ये इन खेलों की जरूरी रवायत बन गई है। ओलंपिक खेलों में भी इसका प्रयोग ओलंपिक ब्रांड के एक अनिवार्य तत्व के रूप में उसके प्रचार प्रसार और इसे लोकप्रिय बनाने के लिए किया जाने लगा है। विशेष रूप से शुभंकर को बच्चों व युवाओं को ओलंपिक खेलों और उसकी भावना के प्रति जागरूक करने और उनमें रुचि जगाने के माध्यम के तौर पर किया जाता है।

विभिन्न आकार और रूपों वाले ये शुभंकर ना केवल ओलंपिक खेलों की थीम को अभिव्यक्त करते हैं,बल्कि मेजबान देश और शहर की सांस्कृतिक,ऐतिहासिक और भौगोलिक विशिष्टताओं के वाहक भी होते हैं।

लंपिक खेल आयोजन अपनी जिन कुछ खास विशेषताओं के लिए जाने जाते हैं,उनमें एक शुभंकर भी है। पेरिस ओलंपिक अन्य बातों के अलावा अपने शुभंकर की विशिष्टता के लिए याद किया जाएगा।

स बार पेरिस ओलंपिक का शुभंकर फ्रीज़ (phryge)को बनाया गया है। फ्रीजियन टोपी दरअसल फ्रांस की एक पारंपरिक टोपी है। ये शुभंकर लाल,नीले और सफेद रंग की टोपी है जिस के सीने पर सुनहरे रंग का पेरिस ओलंपिक को लोगो अंकित है। ये तीन रंग फ्रांस के राष्ट्रीय ध्वज के रंग भी हैं। इस टोपी में पैर लगाकर इसे सजीव आकार दिया गया है। ओलंपिक और पैरालंपिक दोनों के लिए यही फ्रीज़ शुभंकर है। बस पैरालंपिक शुभंकर में प्रोस्थेटिक पैर लगाए गए हैं।

फ्रीजियन कैप फ्रांस में प्राचीन काल से प्रयोग में लायी जा रही है। पूरे फांसीसी इतिहास के दौरान ये 'स्वतंत्रता' का प्रतीक रही है। शुभंकर को जारी करते समय कहा गया कि इसके 'नाम और डिजायन को स्वतंत्रता के प्रतीक के रूप में और फ्रांसीसी गणराज्य के प्रतीकात्मक आंकड़ों का प्रतिनिधित्व करने के लिए चुना गया है'।

स शुभंकर की सबसे विशिष्ट बात ये है कि पहली बार शुभंकर किसी वस्तु (टोपी) को बनाया गया है। इससे पहले तक ये शुभंकर जानवर या मानव होते थे। यही इस बार के शुभंकर की विशिष्टता है।

स्कट या शुभंकर के प्रचलन का श्रेय खेलों को ही दिया जाता है। उन्नीसवीं सदी के अंतिम दो दशकों में खेल आयोजनों के दौरान टीमें लोगों को आकर्षित करने और 'लकी चार्म' के रूप में सजीव जानवरों का शुभंकरों के रूप प्रयोग करते थे। टीमों द्वारा सजीव शुभंकरों के प्रयोग की ये परंपरा बीसवीं सदी के आरंभिक दो दशकों में उस समय तक जारी रही जब तक कि तक पशुप्रेमियों द्वारा इसके प्रयोग पर आपत्ति करना शुरू नहीं कर दिया गया।

सके बाद सजीव शुभंकरों की परंपरा भले ही खत्म हो गई हो लेकिन उसके बाद कपड़ों के तथा अन्य रूपों में शुभंकर बनाए जाने लगे। सजीव शुभंकरों से लेकर आज के आभासी शुभंकरों तक का शुभंकरों का लम्बा इतिहास रहा है।

हां तक महाद्वीपीय या वैश्विक खेल आयोजनों के शुभंकर की बात है तो 1966 में इंग्लैंड में आयोजित विश्व कप फुटबॉल प्रतियोगिता में पहली बार शुभंकर जारी किया गया माना जाता है। ये स्थानीय शेर 'विली' था जो यूनियन जैक वाली जर्सी पहने था और उस पर 'वर्ल्ड कप' लिखा था। इसको बच्चों की पुस्तकों के रेखाचित्र तैयार करने वाले एक फ्रीलांस कलाकार रेगे होए ने तैयार किया था। बहुत से लोग इसे अब तक का सर्वश्रेष्ठ शुभंकर मानते हैं।

हां तक ओलंपिक खेलों की बात है तो 1972 के म्यूनिख ओलंपिक में पहली बार आधिकारिक रूप से शुभंकर बनाया गया था। इसका नाम 'वाल्डी' था जर्मनी के कुत्ते की लोकप्रिय नस्ल 'देश्चु' (dachshund) था। ये एक एथलीट के लिए आवश्यक दृढ़ता,चपलता और प्रतिरोध जैसे गुणों का प्रतिनिधित्व करता है।

लेकिन यहां ये उल्लेखनीय है कि अनौपचारिक रूप से सबसे पहला शुभंकर 1968 में फ्रांस के ग्रेनोबल में आयोजित शीतकालीन ओलंपिक के लिए जारी किया गया था जिसका नाम 'शुस' (shuss) था। 1968 में मैक्सिको में आयोजित ग्रीष्मकालीन ओलंपिक में भी शुभंकर बनाया गया था 'जगुआर'।

सामान्यतया एक खेल आयोजन में एक ही शुभंकर जारी किया जाता है। लेकिन 1998 के नागानो शीतकालीन ओलंपिक में  चार शुभंकर थे,2000 के सिडनी ओलंपिक में तीन,2004 के एथेंस ओलंपिक में दो और 2008 के बीजिंग ओलंपिक में पांच शुभंकर थे। लेकिन 2012 के लंदन में एक ही शुभंकर जारी किया गया था।

अस्तु।



पेरिस ओलंपिक 2024_01:ओलंपिक खेल और शरणार्थी

 




खेलों पर कितना भी बाजार का प्रभाव हो, उनमें कितनी ही राजनीति हो और खेल कितने भी टेक्निकल हो गए हो,लेकिन खेल अभी भी अपने मूल स्वरूप में मानवीय मूल्यों और मानवीय गरिमा के सबसे बड़े पहरुए हैं। और फिर एक नेक काम के लिए खेल को राजनीति के टूल के रूप में उपयोग किया भी जाए तो किसी को क्या आपत्ति हो सकती है।

हम जानते हैं कि विस्थापन कितनी बड़ी त्रासदी है। और ये भी कि दुनिया में ना जाने कितने लोग गृह युद्धों और आतंकवाद के कारण अपनी मातृभूमि से बेदखल हो शरणार्थियों के रूप में घोर यातनापूर्ण जीवन व्यतीत कर रहे हैं।

 2016 में ओलंपिक खेल समिति ने सौ मिलियन से भी अधिक ऐसे ही अभागे शरणार्थियों में उम्मीद की एक किरण जगाने के लिए पहली बार रियो ओलंपिक में एक अलहदा टीम के निर्माण और उसके प्रतिभाग की घोषणा की। और तब पहली बार शरणार्थी ओलंपिक टीम ने ओलंपिक ध्वज तले इन रियो ओलंपिक 2016 में भाग लिया। उस बार कुल 10 एथलीटों ने भाग लिया था। 

उसके बाद टोक्यो ओलंपिक में कुल 20 एथलीटों ने भाग लिया। हालांकि इनमें से कोई भी पदक नहीं जीत सका है। लेकिन ये ओलंपिक मोटो है कि ' जीतने से महत्वपूर्ण भाग लेना है'।

इस बार पेरिस ओलंपिक में इस टीम में 11 देशों से संबंधित कुल 37 खिलाड़ी 12 खेलों में प्रतिभाग करेंगे। इनमें सबसे अधिक 14 ईरान के हैं। अफगानिस्तान में जन्मी मासोमा अली ज़ादा इस दल की चीफ द मिशन होंगी। वे टोक्यो ओलंपिक में साइकिलिंग में इस टीम के सदस्य के रूप में प्रतिभाग कर चुकी हैं।

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तो अगले हफ्ते से जब आप अपनी टीम और अपने चहेते खिलाड़ियों का समर्थन कर रहे होंगे तो इन खिलाड़ियों पर, इनके प्रदर्शन पर और इनके हौंसलो व ज़ज्बे पर भी नज़र रखियेगा।




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