Saturday 29 January 2022

क्वीन ऑफ क्वींसलैंड


        


         मेलबोर्न के रॉड लेवर एरीना का ये एक बेहद खूबसूरत दृश्य था। पूरा एरीना नीले रंग की रोशनी  से नहाया हुआ था। यहां तक कि नीले रंग के कोर्ट पर नीले रंग का पोडियम था,नीले रंग का माइक था,मास्टर ऑफ सेरेमनी प्रसिद्ध  टेनिस खिलाड़ी टॉड वुडब्रिज नीले रंग का कोट पहने थे,ट्रॉफी प्रेजेंटर 13 बार की ग्रैंड स्लैम विजेता महान एवोन गूलागोंग नीले रंग की ड्रेस में थीं और महिला एकल की आज की विजेता एश्ले बार्टी नीले रंग की जैकेट में थीं। ये उत्साह,उमंग और खुशियां का नीला महासागर था। आखिरकार ये 44 साल के इंतज़ार का अंत था। बार्टी 1978 में क्रिस ओ नील के बाद पहली स्थानीय विजेता जो थीं। और खुशियों के इस नीले समुद्र में कुछ अलग था तो हार के ग़म में डूबी उदास काली ड्रेस में डेनिल कॉलिन्स थीं।

 ऑस्ट्रेलिया ओपन 2022 का महिला एकल फाइनल 25 वर्षीया ऑस्ट्रेलिया की एश्ले बार्टी और अमेरिका की 28 वर्षीया डेनिल कॉलिन्स के बीच था। इन दो प्रतिद्वंदियों के बीच कुछ भी एक सा नहीं था। विश्व नंबर एक खिलाड़ी बार्टी को पहली वरीयता मिली थी जबकि विश्व नंबर 30 को 27वीं वरीयता मिली थीं। बार्टी दो बार की ग्रैंड स्लैम विजेता थीं और ये उनका तीसरा फाइनल था। तो कॉलिन्स का पहला ग्रैंड स्लैम फाइनल। बार्टी ने 2011 में 15 वर्ष की उम्र में पहला विम्बलडन जूनियर का खिताब जीता था और कॉलिन्स ने 23 साल की उम्र में अंतरराष्ट्रीय टेनिस सर्किट में प्रवेश किया था। ये दोनों अब तक चार बार आपस में खेलीं थीं और बार्टी 3-1 से आगे थीं। लेकिन कॉलिन्स के पक्ष में ये था कि आखिरी बार बार्टी फरवरी 2021 में ब्रिस्बेन ओपन में कॉलिन्स से सीधे सेटों में हारी थीं। अगर कुछ समान तो ये कि इन दोनों ने यहां फाइनल तक के सफर में शानदार खेला था। लेकिन यहां भी बार्टी किसी अपराजेय योद्धा की तरह अपनी प्रतिद्वंदियों को रौंद कर आगे बढ़ी थीं। इस दौरान वे केवल 21 गेम हारी और एक सर्विस ब्रेक हुई। दूसरी और कॉलिन्स कड़ा संघर्ष करते हुए आगे बढ़ीं और अपने से ऊपर की सीडेड खिलाड़ियों को खेत किया।

आज पहले कॉलिन्स में मैदान में प्रवेश किया। उनके चेहरे खासी गंभीरता और दृढ़ता थी लेकिन उस गंभीरता के पीछे तनाव और चिंता की लकीरें स्पष्ट चमक रही थीं। उनका दर्शकों की ओर से नरम सा स्वागत हुआ। उसके बाद बार्टी आईं। उनके चेहरे पर हमेशा की तरह एक सौम्य सी मुस्कान फैली हुई थी जिसे उनका आत्मविश्वास और भी खूबसूरत बना रहा था। वे दर्शकों की चहेती थीं। उनका जोरदार स्वागत हुआ। तालियों से स्टेडियम गूंज उठा। ये एक ऐसी शरुआत थी जिसे बार्टी को अपने खेल से अगले 90 मिनट तक बनाए रखना था और उन्होंने अपने दर्शकों को निराश नहीं किया। उन्होंने कॉलिन्स को 6-3,7-6(7-2) से हरा दिया।

दरअसल इन दोनों खिलाड़ियों के हाव भाव उनके खेल के अनुरूप ही थे। ये क्राफ्ट बनाम रॉ पावर का मुकाबला था। बार्टी के तरकश में हर तरह का तीर होता है। शानदार सर्विस उनके खेल की जान है और बैकहैंड स्लाइस उनका सबसे बड़ा हथियार। वे अपनी सर्विस से खेल को गति प्रदान करती हैं और बैकहैंड स्लाइस से उसमें लय भरती हैं। और क्योंकि वे डबल्स की भी बेहतरीन खिलाड़ी हैं, इसीलिए सर्व और वॉली उनका अतिरिक्त प्लस है और नेट पर बढ़िया खेलती हैं। 'सर्व और वॉली' उनके खेल को अतिरिक्त लय और खूबसूरती प्रदान करती है।

दूसरी और कॉलिन्स का सबसे बड़ा हथियार उनकी रॉ हिटिंग है। उनके बैकहैंड सर्विस रिटर्न्स बहुत शानदार होते हैं। वे बेस लाइन की खिलाड़ी हैं और बेसलाइन के पीछे से पावरफुल हिटिंग से प्रतिद्वंदी को हतप्रभ कर देती हैं।

लेकिन कमाल की बात है कि आज दोनों अपने जॉनर में सहज नहीं दिखीं। अगर बार्टी ने बैकहैंड स्लाइस पर लगातार बेजा गलतियां कीं तो कॉलिन्स ने बेसलाइन हिटिंग से। फलतः दोनों को अपनी रणनीति में बदलाव करना पड़ा। बार्टी अपने शॉट्स फोरहैंड से खेलने लगीं तो कॉलिन्स अधिकांश समय बेसलाइन के भीतर से खेलीं और नेट से अंक अर्जित किए।

पूरा मैच दो पलड़ों में झूलता रहा। अगर पूरे मैच को तीन हिस्से में बांटे तो पहला और आखरी हिस्सा बार्टी के नाम और मध्य भाग कॉलिन्स के नाम रहा। बार्टी ने चौथे दौर के मैच में एनिसिमोवा के विरुद्ध एक सेट में सर्वाधिक 4 गेम हारे। पहले सेट में यहां भी यही रहा। दोनों खिलाड़ियों ने अपनी पहली दो सर्विस होल्ड की और स्कोर 2-2 हुआ। अब बार्टी ने कॉलिन्स की तीसरी सर्विस ब्रेक कर स्कोर 4-2 किया और पहला सेट आसानी से 6-3 से जीत लिया। लेकिन दूसरे सेट का आरंभ पहले के एकदम विपरीत था। कॉलिन्स ने गियर बदला। कॉलिन्स बेसलाइन के अंदर से खेलने लगीं और बार बार नेट पर आईं। उन्होंने अपनी पावर हिटिंग से बार्टी को निरुत्तर कर दिया। कॉलिन्स ने दो सर्विस ब्रेक की और 5-1 की बढ़त ले ली। यहां पर एक बार फिर खेल का रुख बदला। शायद कॉलिन्स में एक आत्मतुष्टि का भाव आ गया और उन्हें लगा कि वे ये सेट जीत गईं हैं। अब बार्टी ने अपनी खोई लय फिर से पा ली और दो सर्विस ब्रेक के साथ स्कोर 5-5 और 6-6 किया। फिर टाईब्रेक आसानी से 7-2 से जीत लिया।

 अब वे ऑस्ट्रेलिया ओपन की नई चैंपियन थीं। पूरा स्टेडियम गुंजायमान हो उठा था। आज इस एरीना में अतिरिक्त दर्शक थे। जिन्हें अंदर प्रवेश नहीं मिला,वे बाहर से ही एक नए चैंपियन का उदय होते देख रहे थे। जो उनके अपने देश का था। अपने बीच का था। वे रोमांचित थे। और गौरव से भरे थे। 1980 में वेंडी टर्नबुल के बाद ऑस्ट्रेलिया ओपन के फाइनल में प्रवेश करने वाली ऑस्ट्रेलियाई महिला खिलाड़ी और 1978 में क्रिस ओ नील के 44 बाद इस खिताब को जीतने वाली खिलाड़ी बन रही थीं। बार्टी वर्तमान खिलाड़ियों में सेरेना विलियम्स के बाद तीन सतहों-हार्ड कोर्ट,ग्रास कोर्ट और क्ले कोर्ट पर ग्रैंड स्लैम जीतने वाली दूसरी खिलाड़ी बन गई हैं।

मैच बाद सेरेमनी में टॉड वुडब्रिज उन्हें 'चैंपियन एथलीट'कह रहे थे और टेनिस ऑस्ट्रेलिया की चेयर पर्सन जेन हार्डलिका कह रहीं थीं 'हमें आप पर गर्व है।'और वे सही कह रही थीं। उन्होंने चार साल की उम्र से टेनिस सीखना शुरू किया वेस्ट ब्रिस्बेन टेंस सेन्टर में। वहां जिम जोएस उनके पहले कोच थे। वे सामान्यतः इतनी छोटी उम्र के बच्चों को सिखाने से गुरेज करते थे। लेकिन वे बार्टी के पहले ही परफेक्ट शॉट से और 'हैंड-आई कोर्डिनेशन' से इतने प्रभावित हुए कि उन्हें ट्रेनिंग देना स्वीकार कर लिया। 2011 में 15 साल की उम्र में वे जूनियर विम्बलडन चैंपियन बनी और और 2013 में ऑस्ट्रेलिया और विम्बलडन के महिला डबल्स के फाइनल में पहुंचीं। 2014 में उन्होंने टेनिस से ब्रेक लिया और क्रिकेट में हाथ आजमाया। वे दो साल महिला बिग बैश लीग में ब्रिस्बेन हीट से खेलीं। उससे पहले बचपन में उन्होंने नेटबॉल भी खेला लेकिन उसे छोड़ दिया क्योंकि ये उन्हें 'लड़कियों का खेल'लगता था। वे यहीं नहीं रुकीं। 2021 में उन्होंने गोल्फ में हाथ आजमाया और ना केवल ब्रूकवाटर गोल्फ क्लब की महिला चैंपियन बनी बल्कि टाइगर वुड्स जैसे दिग्गज गोल्फर को अपने खेल से प्रभावित भी किया।

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चैंपियन खिलाड़ी ऐसे ही होते हैं। दरअसल वे 'क्वीनलैंड्स की क्वीन'हैं।


ऑस्ट्रेलिया को अपनी नई चैंपियन मुबारक।

Tuesday 25 January 2022

'इट्स नेवर लेट टू ट्राई'

 




खेल मैदान पर कुछ ऐसे अद्भुत दृश्य खिलाड़ी अपनी भावनाओं की कूंची से उकेर देते हैं जिन्हें केवल और केवल महसूस किया जा सकता है।

आज रॉड लेवर कोर्ट पर चौथे दौर के मैच में फ्रांस की 32 वर्षीया अलिजे कोर्नेट ने पूर्व विश्व नंबर एक खिलाड़ी सिमोना हालेप को  6-4,3-6,6-4 से हरा दिया। वे अपने कॅरियर में पहली बार क्वार्टर फाइनल में पहुंची। मैच के बाद इंटरव्यू के दौरान अलिजे कोर्नेट और उनका इंटरव्यू करने वाली पूर्व खिलाड़ी और कमेंटेटर जेलेना डाकिच दोनों के गले भावनाओं से रुंधे थे। भावनाओं को शब्दों में तब्दील होने में मुश्किल हो रही थीं। और इसलिए दोनों अब गले मिल रही थीं। दोनों की आंखें एक दूसरे के सम्मान में और प्रेम में आर्द्र हो रही थीं।

कमाल की बात ये है कि किसी समय ये दो प्रतिद्वंदी खिलाड़ी हुआ करती थीं। वे आज इस रूप में आमने सामने थीं। आज वे दोनों समय के बहाव में विपरीत दिशा में बह रही थीं। दोनों साल 2009 में पहुंच गई थीं। इसी कोर्ट पर कोर्नेट अपना चौथे दौर का मैच रूस की दियारा सफीना के विरुद्ध खेल रही थीं और तीसरे और निर्णायक सेट में 5-2 से आगे थीं। लेकिन वे ये सेट 7-5 से हार कर अपना मैच भी हार गईं। यदि वे मैच जीत जातीं तो उनका मुकाबला जेलेना डोकिच से होता। वे आमने सामने एक प्रतिद्वंदी के रूप में होतीं। नियति ने उसी मैदान पर ठीक 13 साल बाद उन दोनों को आमने सामने ला खड़ा किया था और अब भावनाएं थीं कि उफन-उफन जा रही थीं।

याद कीजिए 2017 के यूएस ओपन के महिला एकल फाइनल को। ये दो एफ्रो अमेरिकन खिलाड़ी स्लोअने स्टीफेंस और मेडिसन कीज के बीच था। स्टीफेंस ने कीज को जैसे ही 6-3,6-0 से हराया,दोनों ने एक दूसरे को गले लगाया। दोनों की आंखों की से अश्रुओं की अविरल धारा बह रह थी।वे एक दूसरे को ऐसे जकड़ी थी कि मानो उन्हें जुदा  ही नहीं होना है। या फिर 2021 के टोक्यो ओलंपिक में इटली के जी ताँबेरी और क़तर के बरशिम का एक दूसरे से लिपट कर ज़ार ज़ार रो लेना। ज़ब भी भावनाएं उफान पर होती हैं और उनके बाहर निकलने का कोई रास्ते नहीं मिलता तो आंखों के रास्ते आंसुओं में बह निकलते हैं। आज भी ऐसा ही हो रहा था।

कोर्नेट के लिए ये मैच महज एक मैच भर नहीं था। खेल ज़िंदगी का अभी तक का सबसे बड़ा हासिल था। उन्होंने अपना पहला ग्रैंड स्लैम मैच 15 साल की बाली उम्र में पेरिस में फ्रेंच ओपन खेला था। इस बरस ये ऑस्ट्रेलियन ओपन उनका लगातार 60वां और कुल मिलाकर 63वां ग्रैंड स्लैम था। और वे कभी भी चौथे दौर से आगे नहीं बढ़ पाई थीं। लेकिन उन्होंने कभी 'गिवअप' नहीं किया किया,कभी हार नहीं मानी। अब वे 32 साल की हैं।  इस पकी उम्र में उन्होंने अपना अब तक का सर्वश्रेष्ठ हासिल किया। मैच जीतने के बाद उन्होंने कहा 'इट्स नेवर लेट टू ट्राई'। 

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उनकी जीत और जुनून ने एक बार फिर सिद्ध किया कि 'कोशिश करने वालों की हार नहीं होती' और ये भी कि उम्र केवल एक नंबर होती है उससे अधिक और कुछ नहीं।


Sunday 16 January 2022

नोवाक प्रकरण:एक ट्रेजिक कॉमेडी


 


              रोजर फेडरर,राफेल नडाल और नोवाक जोकोविच हमारे समय के ही महानतम खिलाड़ी नहीं हैं बल्कि वे सार्वकालिक महानतम टेनिस खिलाड़ियों की त्रयी बनाते है। तीनों ही खिलाड़ी 20-20 ग्रैंड स्लैम जीत चुके हैं और 'गोट' (GOAT- सार्वकालिक महानतम खिलाड़ी) के सबसे बड़े दावेदार हैं। 21वीं सदी के पहले 21 साल का पुरुषों का टेनिस इतिहास दरअसल इन तीनों के बीच की स्पर्धा का इतिहास है। टेनिस के ये तीन दिग्गज तीन अलग अलग खेल पट्टियों के महारथी खिलाड़ी हैं। अगर फेडरर विम्बलडन की हरी सतह पर बेजोड़ हैं,तो नोवाक मेलबोर्न पार्क की नीली सतह पर असाधारण और राफा रोलां गैरों की लाल सतह पर अपराजेय।

             यूं तो तीनों के अलग अलग लाखों-करोड़ों प्रशंसक हैं। लेकिन ऐसे भी लोगों की संख्या कम नहीं है जो एक साथ इन तीनों को पसंद करते हों। इनको पसंद करने और इनका फैन होने के हर व्यक्ति के अलग अलग कारण हो सकते हैं।

           मेरे तईं तीनों ही खिलाड़ी अपने खेल में ही नहीं बल्कि अपने रूप रंग,अपने व्यवहार और पूरे व्यक्तित्व में एक दूसरे से बहुत ही अलहदा हैं।

            टेनिस सबसे एलीट खेलों में से एक है और फेडरर उसके सबसे प्रतिनिधि खिलाड़ी हैं। वे बहुत ही शालीन, गंभीर और अनुशासित व्यक्तित्व हैं। वे टेनिस में एलीट क्लास का प्रतिनिधित्व करते हैं। जबकि राफा ना केवल चेहरे मोहरे और हाव भाव में बल्कि अपने पूरे व्यक्तित्व से मिडिल क्लास का प्रतिनिधित्व करते प्रतीत होते हैं। लेकिन ये अंतर बहुत बारीक है और दोनों-राफा और फेड एक दूसरे के बहुत निकट हैं और दोनों टेनिस के 'गुड बॉय'की जोड़ी बनाते हैं। इन दोनों के विपरीत नोवाक गुस्सैल स्वभाव के हैं और बहुत अधीर भी। वे टेनिस के 'बिगड़ैल बालक' की तरह हैं। या यूं कहें कि वे टेनिस के 'एंग्री यंगमैन' हैं। उनका व्यवहार अक्सर एलीट टेनिस खेल की गरिमानुरूप नहीं होता या कहें तो नहीं माना जाता। दरअसल वे एलीट टेनिस वर्ल्ड में अवांछित हैं। लेकिन वे हार नहीं मानते और लगातार संघर्ष करते हैं। वे अपने व्यवहार से टेनिस के एलीट जगत के तौर तरीकों को चुनौती देते हैं। वे पीछे से आगे आते हैं और अपना विशिष्ट स्थान बनाते हैं। दरअसल अपने मनोभावों के प्रकटीकरण में और अपने व्यवहार में उतने संयत और शालीन नहीं हैं जितना कि एक एलीट टेनिस दुनिया में अपेक्षित है और इसीलिए यहां वे 'मास' का प्रतिनिधित्व करते प्रतीत होते हैं। 

              बात 2020 के यूएस ओपन की है। नोवाक खिताब के सबसे प्रबल दावेदार थे। 07 सितंबर,2020 को स्पेन के पाब्लो करेन बुस्ता के विरुद्ध प्री क्वार्टर फाइनल मैच खेल रहे थे। पहले ही सेट में सर्विस गंवाकर 5-6 से पिछड़े कि उन्होंने गुस्से में गेंद को जोर से दे मारा जो लाइन रेफरी को लगी। इसे नियमानुसार गलत माना गया और उन्हें प्रतियोगिता से बाहर कर दिया गया। उन्होंने गेंद जान बूझकर रैफरी को नहीं मारी थी। ये दुर्योग ही था कि उनको लग गई। उस समय दुनिया जहान की सहानुभूति उनके साथ हो गयी थी। उनके  प्रशंसकों के अलावा बहुत सारे लोगों को लगा था कि उन्हें बाहर करने का निर्णय कठोर था और न केवल एक ग्रैंड स्लैम खिताब से उन्हें वंचित कर दिया गया और ग्रैंड स्लैम खिताब की दौड़ में उन्हें राफा और फेड से पीछे धकेल दिया गया।

             लेकिन नोवाक चैंपियन खिलाड़ी हैं। इससे वे हतोत्साहित नहीं हुए और 2021 में तीन ग्रैड स्लैम खिताब जीतकर राफा और फेड के साथ टाई पर आ गए। अब उन्हें एक टाई ब्रेकर खिताब की ज़रूरत थी जिसे वे ऑस्ट्रेलिया ओपन में कर सकते थे। ये यहां के बेताज बादशाह हैं और अभी तक 09 खिताब जीत चुके हैं। लेकिन कई बार आप अपने अहंकार या नादानी में भस्मासुर बन जाते हैं,अपनी उपलब्धियों पर,अपनी ताकत पर इतने सम्मोहित हो जाते हैं कि खुद को नष्ट कर लेते हैं। इस बार नोवाक ऐसा ही करते दिखते हैं।

            बहुत बार आप अपनी शोहरत,अपनी ऊंचाई को संभाल नहीं पाते। सितंबर 2020 की सहानुभूति और समर्थन जनवरी 2022 तक आते आते खो देते हैं। वे अपने विचारों में कई बार रूढ़िवादी और प्रतिगामी लगते हैं। विचार निजी हो सकते हैं और उनका सम्मान किया जाना चाहिए। लेकिन जब आप बहुतों के लिए रोल मॉडल होते हैं तो आपसे अधिक संतुलित होने की अपेक्षा की जाती है। इन दो सालों में बहुत कुछ ऐसा हुआ जिससे उन्होंने अपने बहुत से समर्थकों को खोया होगा। 

          वे अपनी सोच में काफी अतार्तिक और अवैज्ञानिक हैं और उन्हें स्थानों पर प्रकट करते रहे हैं। जैसे एक जगह वे कहते हैं कि 'प्रदूषित पानी सकारात्मक सोच से साफ किया जा सकता है'। अपनी एक किताब में उन्होंने लिखा कि एक हाथ मे ब्रेड पकड़ने भर से उन्हें पता चल गया कि वे ग्लूटेन सहन नहीं कर सकते।

इतना ही नहीं उन्होंने कोरोना से बचने के लिए टीकाकरण का विरोध किया। लेकिन बाद में  स्पष्टीकरण देते हुए कहा कि उनका आशय सिर्फ इतना था कि टीका लगवाना हर व्यक्ति का अपना निर्णय होना चाहिए। उन्होंने कहा उन्हें ये पसंद नहीं कि 'यात्रा करने और प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए कोई उन पर टीका लगवाने का दबाव डाले।'

                 अपने इन्हीं विचारों के चलते उन्होंने टीकाकरण नहीं कराया जबकि ऑस्ट्रेलियन ओपन ने काफी पहले ये घोषित कर दिया था कि इसमें भाग लेने के लिए दोनों टीकों का लगा होना जरूरी है। वे ऑस्ट्रेलिया ओपन में भाग लेना चाहते हैं और अपने टीका न लगवाने की स्वतंत्रता के अधिकार को भी सुरक्षित रखना चाहते हैं। वे इसके लिए  मेडिकल छूट का सहारा लेते हैं। यहां उनका दुचित्तापन ये है कि वे अपने टीका ना लगवाने के अधिकार का सम्मान तो करवाना चाहते हैं लेकिन दूसरों के टीका लगवाने के अधिकार को भूल जाते हैं। यदि वे अपने टीका ना लगवाने के अधिकार का सम्मान करवाना चाहते थे तो लगवाने वालों के अधिकार का सम्मान करते हुए ऑस्ट्रेलियन ओपन से स्वयं हटने का निर्णय लेना चाहिए था। उन्होंने बैक डोर एंट्री लेनी चाही। उन्होंने ऑस्ट्रेलिया के आव्रजन अधिकारियों को गलत सूचनाएं मुहैय्या कराईं। मेडिकल छूट के लिए आवेदन किया और और अंततः कोर्ट का सहारा लिया। 

               इतना ही नहीं उन्होंने इन दो सालों में कोविड अनुरूप व्यवहार नहीं किया। वे पहली बार जब कोविड पॉज़िटिव हुए तो उन्होंने अद्रिया का दौरा किया और सामाजिक दूरी का कोई पालन किए बैगर समारोहों में शामिल हुए। उसके बाद दूसरी बार दिसम्बर 21 में पॉजिटिव होने के बाद भी यही गलती दोहराई।

              साथ ही एक गुस्सैल खिलाड़ी होने के अलावा जो मैदान में रैकेट तोड़ने के लिए बदनाम हो,उन पर मैचों में निर्णायक मौकों पर मेडिकल ब्रेक की छूट का दुरुपयोग करने का आरोप भी लगता रहा है। 

                  यूं तो वे गोट की रेस में अपने प्रतिद्वंदियों से आगे हैं। उम्र और समय उनके साथ है। पर वे इस रेस को जीतने के लिए अधीर हैं। दरअसल उनके प्रतिद्वंदी दूसरे खिलाड़ी नहीं बल्कि वे खुद अपने प्रतिद्वंदी हैं। उन्हें खुद से लड़ना है। वे अपनी अधीरता में अपनी सबसे पसंदीदा सतह पर जीत का मौका खो चुके हैं शायद हमेशा के लिए। उनपर तीन साल का प्रतिबंध लगा है। तीन साल बाद वे यहां जीत पाने की स्थिति में नहीं ही होंगे।

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जो भी हो ऑस्ट्रेलियन ओपन का ये 'नोवाक प्रकरण' एक ट्रेजिक कॉमेडी है जो अनावश्यक और अवांछित थी और ये भी कि ये नोवाक की महानता की अभेद्य दीवार में एक छेद सरीखी भी।



प्रो कबड्डी लीग 03

 



 कबड्डी मैच का 'सुपर 10'क्रिकेट मैच का शतक है। 'सुपर 10' मने एक मैच में 10 रेड पॉइंट बनाना। टेस्ट क्रिकेट में वेस्टइंडीज के एवर्टन वीक्स ने लगातार 05 शतक (1948-49) और ओडीआई में कुमार संगकारा ने  04 शतक (2015) लगाए हैं। लेकिन नवीन कुमार ने आज जब यूपी योद्धा के खिलाफ जब 18 रेड अंक बनाये तो ये उनका लगातार 28 वां 'सुपर 10' था।

वे 'नवीन एक्सप्रेस'यूं ही नहीं कहलाते। वे सबसे कम उम्र और सबसे कम 46 मैचों में 500 रेड पॉइंट अर्जित करने वाले खिलाड़ी बने। इस सीजन वे अब तक सबसे ज़्यादा रेड पॉइंट बनाने वाले खिलाड़ी हैं। उनके 07 मैचों में 123 रेड अंक है।

2018 में सीजन 6 से शुरू करने वाले सबसे कम उम्र के खिलाड़ी थे जिनका जन्म सन 2000 में हुआ था। 6.6लाख की फीस से शुरू करने वाले इस खिलाड़ी को इस बार दिल्ली दबंग ने 90 लाख की फीस के साथ रिटेन किया है।

सीजन 7 में 23 मैचों में से 22 में 'सुपर 10'लगाने वाले इस खिलाड़ी ने कुल 301 अंक अर्जित कर टीम को फाइनल में पहुंचाया। पर फाइनल में 18 अंकों के शानदार प्रदर्शन के बाद भी टीम को नही जीता पाए थे। हार के बाद जार जार रोने की उनकी मासूम तस्वीरें सीजन 7 की सबसे आइकोनिक तस्वीरें थी। शायद वे वो हार भुला नहीं पाए और जब 29 दिसम्बर 2021 को एक बार फिर सीजन 08 में बंगाल वारियर्स के सामने थे तो इमोशन्स बहुत हावी थे। इस मैच में उन्होंने अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर ना केवल 24 रेड पॉइंट बनाए बल्कि वारियर्स को 52-35 से लगभग रौंद ही दिया।


'रनिंग टच'सिग्नेचर वाले इस खिलाड़ी को रेड करते देखना किसी ट्रीट से कम नहीं है। दरअसल वे 'छल कबड्डी' को 'एक्सप्रेस कबड्डी'में बदलने वाले खिलाड़ी हैं और सीजन 8 के सबसे शानदार खिलाड़ी भी।




प्रो कबड्डी लीग 02




            डुबकियां आपको सिर्फ डुबाती ही नहीं है बल्कि शोहरत की बलंदियों पर भी पहुंचाती हैं। और आपके ऊपर पैसों की बरसात भी कराती है। आखिर 'डुबकी किंग' प्रदीप नरवाल को 'यू पी योद्धा' टीम ने एक करोड़ पैंसठ लाख में यूहीं नहीं खरीदा है। प्रदीप जब विपक्षी डिफेंडर्स की मजबूत चेन के नीचे से 'डुबकी' लगाकर अपने पाले में पहुंचते हैं तो विपक्षी खेमा हतप्रभ रह जाता है।

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प्रदीप नरवाल प्रो कबड्डी लीग के सबसे सफल रेडर हैं और 1200 रेडर अंक बटोरने वाले पहले खिलाड़ी भी। तमिल थलाइवा के खिलाफ उन्होंने अपना  12सौवां अंक लिया। फिलहाल उनके 1256 रेड अंक हैं। उनके सर्वाधिक 61 सुपर टेन भी हैं। वे बाकी खिलाड़ियों से मीलों आगे हैं। दूसरे नंबर पर राहुल चौधरी हैं जो एक हज़ार के आंकड़े पर भी नहीं पहुंचे हैं।

००

हाँ,सीजन 08 में प्रदीप अभी पूरी तरह से फॉर्म में नहीं आए हैं। और ये भी कि इस बार नवीन गोयत और पवन सेहरावत के सामने 'ऑफ कलर' से  दीख रहे हैं। लेकिन धीरे धीरे प्रदीप रंग में आ रहे हैं।

तो आप भी डुबकी लगाइए कबड्डी की रिकॉर्ड डुबकियों

 में।

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और हाँ याद रखिए रिकॉर्ड केवल क्रिकेट में  ही नहीं बनते और खेलों में भी बनते हैं। कबड्डी के रिकॉर्ड भी रोचक होते हैं।




प्रो कबड्डी लीग 01



 जिस तरह से क्रिकेट मुख्यतः बल्लेबाजों का खेल है,वैसे ही कबड्डी रेडर्स का खेल है। अनूप कुमार से राहुल चौधरी तक रेडर्स ही कबड्डी का चेहरा हैं। प्रो कबड्डी सीजन_8 में नवीन कुमार,पवन सेहरावत, अर्जुन देसवाल, सिद्धार्थ देसाई,मनिंदर सिंह,वी अजीथ कुमार,विकास कंडोला और अभिषेक सिंह रोमांच के पर्याय बन गए हैं।

क्रिकेट प्रेमी कबड्डी को भी फॉलो कर सकते हैं।

अकारज 14

 

वो आज अपने घर जा रही थी।

मैंने विदा करते हुए हुए कहा- 'घर पहुंचकर फोन करना।'

उसका चेहरा प्रेम से प्रदीप्त हो उठा। उसने शोख नज़रों से देखा और बोली- 'ज़रूर, गर पहुंच सकी तो।'

मैंने प्रश्नवाचक नज़रों से उसकी ओर देखा।

उसने कहा-'जबसे तुम्हारे साथ हूँ,कहां कहीं जा पाती हूँ। सारी की सारी तो तुम्हारे पास रह जाती हूँ।'


अब

सारे शब्द अर्थहीन हो रहे थे।

ध्वनियां मौन में घुल रही थीं।

और जज़्बात थे कि मौन के सागर में ज्वार भाटे से मचले  जा रहे थे।

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समय भी जो हमारे साथ हो लेता है वो कहां हमसे विदा लेता है। 

फिर भी औपचारिकताऐं तो निभानी ही पड़ती है ना। 

अलविदा 2021 !


अकारज 13

 

ये एक बेहद सर्द सुबह थी। वो अब भी सोई हुई थी। रोज की तरह मैंने हौले से उसे छुआ और कहा-

'चाय'

उनींदी सी अधखुली आंखों से उसने मेरी ओर देखा। फिर बोली-

'तुम्हारी चाय पर सारी अपनी नींद वारी'

मुस्कुराहट ने मेरे होठों का विस्तार किया और आंखों का भी। वो हर सुबह कुछ ऐसा कहती रही है। फिर भी मैंने प्रश्नवाचक नज़रों से उसकी ओर देखा।

उसकी आँखें में सुकून घुल आया था। 

अब उसने मेरा हाथ अपनी ओर खींचा और अपने सर के नीचे रख कर आंखें बंद कर ली। उसके चेहरे पर असीम निश्चिंतता पसर  गई थी और सुकून की रोशनी से चेहरा दमक उठा।

उसे देख खिड़की से झांकता सूरज शर्म से लाल हो चला।  

चाय का प्याला उसके होंठों के स्पर्श के लिए बेचैन हो उठा।

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और उस ठहरे हुए समय में दो दिल थे 

कि धड़कनें उनमें संगीत सी प्रवाहित हो रही थीं।







ये हार भारतीय क्रिकेट का 'माराकांजो' है।

आप चाहे जितना कहें कि खेल खेल होते हैं और खेल में हार जीत लगी रहती है। इसमें खुशी कैसी और ग़म कैसा। लेकिन सच ये हैं कि अपनी टीम की जीत आपको ...