Sunday, 16 January 2022

अकारज 13

 

ये एक बेहद सर्द सुबह थी। वो अब भी सोई हुई थी। रोज की तरह मैंने हौले से उसे छुआ और कहा-

'चाय'

उनींदी सी अधखुली आंखों से उसने मेरी ओर देखा। फिर बोली-

'तुम्हारी चाय पर सारी अपनी नींद वारी'

मुस्कुराहट ने मेरे होठों का विस्तार किया और आंखों का भी। वो हर सुबह कुछ ऐसा कहती रही है। फिर भी मैंने प्रश्नवाचक नज़रों से उसकी ओर देखा।

उसकी आँखें में सुकून घुल आया था। 

अब उसने मेरा हाथ अपनी ओर खींचा और अपने सर के नीचे रख कर आंखें बंद कर ली। उसके चेहरे पर असीम निश्चिंतता पसर  गई थी और सुकून की रोशनी से चेहरा दमक उठा।

उसे देख खिड़की से झांकता सूरज शर्म से लाल हो चला।  

चाय का प्याला उसके होंठों के स्पर्श के लिए बेचैन हो उठा।

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और उस ठहरे हुए समय में दो दिल थे 

कि धड़कनें उनमें संगीत सी प्रवाहित हो रही थीं।







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