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86.48 मीटर की एक छोटी सी उड़ान आपको आसमां पर बिठा सकती है। वो एक उड़ान आपकी ज़िंदगी की सबसे बड़ी उड़ान हो सकती है। वो उड़ान आपको वो सब दे सकती है जिसकी कि आपने सिर्फ और सिर्फ कल्पना की हो। द्वितीय विश्व युद्ध की विभीषिका और नाज़ियों के अत्याचारों के मूक दर्शक उत्तरी पोलैंड के एक छोटे से खूबसूरत से शहर बिदुगोष्ट में 23 जुलाई की रात में हरयाणा के पानीपत जिले के एक छोटे से गाँव के एक दुबले पतले लेकिन मज़बूत कन्धों वाले 18 साल के नीरज चोपड़ा ने जब अपनी पहली थ्रो में 79.66 मीटर जेवलिन फेंका तो ये दक्षिण अफ्रीका के जोहान ग्रोबलर की 80.59 से एक मीटर कम दूरी थी। उस समय नीरज सहित किसी को ये अनुमान नहीे होगा कि उसकी अगली थ्रो एक नया इतिहास बनाने जा रही है।अपनी दूसरी थ्रो के लिए लगभग ढाई मीटर लम्बे और 800 ग्राम वजन वाले फाइबर के जेवलिन को जब नीरज के मज़बूत कंधे हवा में उड़ान भरने के लिए फेंक रहे थे तो वे केवल एक जेवलिन नहीं फेंक रहे थे बल्कि उस प्रतियोगिता के नए विश्व रेकॉर्ड को भी उड़ान दे रहे थे जिस पर खुद नीरज के गौरव का और साथ साथ देश के गौरव का परचम लहरा रहा था।जब उनके भाले की नोक ने ज़मीन को छुआ तो स्कोर बोर्ड पर 86.48 अंकों के साथ नया 'विश्व रिकॉर्ड' शब्द चमक रहे थे। उन्होंने दो मीटर से 2011 में लातविया के सिरमेस द्वारा 84.69 मीटर के रिकॉर्ड को ध्वस्त किया।
वे किसी भी आयु वर्ग में ट्रैक एंड फील्ड प्रतियोगिता को जीतने वाले और विश्व रिकॉर्ड बनाने वाले पहले भारतीय एथलीट बन गए। इस प्रदर्शन की अहमियत को इस बात से समझा जा सकता कि ये इस वर्ष का आठवां सबसे अच्छा प्रदर्शन है और ये ओलम्पिक स्वर्ण पदक विजेता त्रिनिदाद के वाल्कोट के इस साल के 86.35 मीटर से भी बेहतर है और 2012 के लन्दन ओलम्पिक में वाल्कोट द्वारा स्वर्ण जीतने वाली 84.58 मीटर फेंक से कहीं अधिक है। भले ही उनकी ये उपलब्धि अंडर 20 में हो और वे मिल्खा सिंह,पीटी उषा,अंजू बॉबी जॉर्ज,श्रीराम जैसे एथलीटों वाली ऊंचाईयों पर अभी नहीं पहुंचे हो पर उनकी ये उपलब्धि आश्वस्तकारी ज़रूर है।