Wednesday 27 September 2023

अफ्रीका के धावक

 

ये 24 सितंबर 2023 का दिन था। दुनिया के तमाम हिस्सों में अलग-अलग देश और खिलाड़ी खेलों में अपना परचम लहरा रहे थे या उसका प्रयास कर रहे थे। 

हांगजू में एशियाई खेलों के पहले ही दिन 12 स्वर्ण पदक जीतकर चीन एशिया में अपनी श्रेष्ठता सिद्ध कर रहा था और भारत 5 पदक जीतकर अपने को उभरती खेल शक्ति के रूप में स्थापित करने का प्रयास कर रहा था।

उधर एशिया कप जीतने के बाद भारत पहले दो एकदिवसीय मैचों में ऑस्ट्रेलिया को लगभग रौंद कर क्रिकेट के तीनों फॉरमेट में सिरमौर होने दुंदुभी बजा रहा था।

इंग्लैंड में प्रीमियर लीग में मेनचेस्टर सिटी नॉटिंघम फारेस्ट को 2-0 से हराकर शीर्ष पर थी और पिछले साल अपने ट्रेबल का औचित्य सिद्ध कर रही थी।

जबकि फ्रांस में फुटबॉल के ही दूसरे रूप रग्बी में विश्व की 20 सर्वश्रेष्ठ टीमें विश्व खिताब जीतने के लिए होड़ कर रही थीं।

और

और ऐन उसी दिन बर्लिन जर्मनी में अफ्रीका के धावक अपने पैरों की कलम और पसीने की स्याही से खेलों के मैराथन दौड़ वाले पन्ने पर नया इतिहास लिख रहे थे।

 पुरुष वर्ग में केन्या के 38 वर्षीय एलिउद किपचोगे बर्लिन मैराथन पांचवी बार जीत रहे थे और  इथियोपिया के महान धावक हैले गब्रेसिलासी के चार बार जीत के रिकॉर्ड को तोड़ रहे थे। साल 2022 में यहीं बर्लिन में किपचोगे ने 02 घंटे 01 मिनट और 09 सेकंड  का विश्व रिकॉर्ड बनाया था। 5 फुट 4 इंच लंबाई और 54 किलोग्राम वजन वाला 38 साल का ये दुबला पतला धावक मैराथन का महानतम धावक है जिसने 11 से ज़्यादा मैराथन जीती हैं। वे पिछले दो ओलंपिक में मैराथन जीत चुके हैं और पेरिस में जीतकर ओलंपिक मैराथन जीत की तिकड़ी बनाना उनका सपना है। 


वे दुनिया के एकमात्र ऐसे मैराथन धावक हैं जिन्होंने 2 घंटे का बैरियर तोड़कर पूरी दुनिया को आश्चर्य में डाल दिया था। साल 2019 में विएना में उन्होंने मैराथन  01 घंटे 59 मिनट और 03 सेकंड में पूरी की। हालांकि तकनीकी कारणों से इस समय को मान्यता नहीं मिली।

किपचोगे की ये असाधारण उपलब्धि उन्हें बैनिस्टर जैसे महान एथलीट के समकक्ष रखती है। याद कीजिए रोजर बैनिस्टर को जिन्होंने एक मील की दौड़ 1954 में पहली बार 4 मिनट से कम समय में पूरी कर दुनिया को अचंभित कर दिया था।


लेकिन किपचोगे की रिकॉर्ड पांचवीं बार बर्लिन मैराथन जीत भी नेपथ्य में चली जाए तो सोच सकते हैं कि निश्चित ही कुछ बहुत बड़ा हुआ होगा। उस दिन सच में बहुत बड़ा हुआ था और ये कमाल किया था इथियोपिया की मैराथन धाविका तिजिस्त आसेफा ने। वे बर्लिन में अपने कॅरियर की  तीसरी मैराथन दौड़ रहीं थीं। यहाँ उन्होंने 2 घंटे 11 मिनट और 53 सेकंड का नया विश्व रिकॉर्ड बनाया। उन्होंने 2019 में ब्रिजिड कोसेगे के पुराने रिकॉर्ड  को 02 मिनट और 11 सेकंड से बेहतर किया और साथ ही 02 घंटे 12 मिनट के असंभव से बैरियर को भी तोड़ा। कमाल की बात ये है 37 किलोमीटर तक उनकी गति पुरुष मैराथन विजेता किपचोगे से केवल 03 सेकंड प्रति  किलोमीटर कम थी।

 यहां उल्लेखनीय बात ये भी है कि पुरुष और  महिला मैराथन दौड़ के समय में अंतर अब लगभग दस मिनट का रहा गया है। 1900 के आसपास ये अंतर लगभग 90 मिनट का था।

कमाल की बात तो ये भी है कि महिला पुरुष दोनों वर्गों में पहले आठ स्थान पर केन्या,इथियोपिया और तंजानिया के धावक थे। अगर कहीं से भी हिटलर की आत्मा इस दौड़ को देख रही होगी तो उसके 'आर्यन श्रेष्ठता के सिद्धांत' को एक बार फिर कलर्ड लोगों द्वारा ध्वस्त होते देख जार जार रो रही होगी।

क्या ही अद्भुत दृश्य होते हैं वे जहां कि लगभग बिना मांस मज्जा के काले चमड़ी वाले पसीने से सराबोर अफ्रीकी धावकों के शरीर सूर्य की रोशनी में काले संगमरमर से चमक रहे होते हैं। उनके शरीर में भले ही सुविधाओं और संपन्नता के मांस का अभाव हो, पर अभावों और गरीबी की आग में तपी और साहस, हिम्मत और कड़ी मेहनत के हथौड़ों के प्रहारों से बनी वज्र सी हड्डियां उनके शरीर में विद्यमान होती हैं। जो उन्हें संघर्ष करने का होंसला देती हैं और उन्हें अजेय बना देती हैं।

अफ्रीका के इन काले चमड़ी वाले खिलाड़ियों को  और विशेष रूप से लंबी दौड़ के धावकों को ध्यान से देखिए। ये दौड़े उनके लिए जीने मरने का प्रश्न होती हैं। जीत जीवन और हार मृत्यु। जीत सुनहरे भविष्य  का आश्वासन और हार बीते नारकीय जीवन की बाध्यता। उनकी आंखों में झांकिए। उसमें जीतने की अदम्य लालसा के अलावा और कुछ नहीं दिखाई देगा।

आखिर उनमें संघर्ष का ये जज़्बा और हौंसला आता कहां से है। निश्चित ही ये उनके परिवेश से ही आता होगा। वे दुनिया की सबसे कठिन और दुरूह भौगोलिक परिवेश से आते हैं। वे प्राकृतिक संसाधन जो उनके लिए होने चाहिए, पश्चिम की बहुराष्ट्रीय कंपनी के लालच की भेंट चढ़ जाते हैं और उनके हिस्से आते हैं बचे खुचे संसाधनों पर अधिकार जमाने के लिए सबसे भयानक,कठिन और कभी ना खत्म होने वाले गृह युद्ध और उसके परिणामस्वरूप घोर गरीबी और अभावों भरा जीवन। ऐसे में उनके भीतर अदम्य जिजीविषा पैदा होती है और उससे पैदा होता है कड़ा संघर्ष करने हौंसला और कभी ना हार मानने का जज़्बा।

°°°°°

और हां कुछ कुछ यही हौंसला और जज़्बा तीसरी दुनिया के देशों के खिलाड़ियों में भी होता है जो निम्न मध्यम वर्ग से आते हैं। ये दूसरी बात है वे अफ्रीका के इन खिलाड़ियों से संघर्ष में पिछड़ जाते हैं।

तो अफ्रीकी देशों के मध्यम और लंबी दूरी के धावकों के हौंसलों और अद्भुत सफलता को सलाम करना तो बनता हैं ना।



Thursday 21 September 2023

जेंटलमैन गेम क्रिकेट



 क्रिकेट अब जेंटलमैन गेम रह गया है या नहीं, इस पर बहस की जा सकती है। लेकिन 1983 में जब भारत ने पहली बार विश्व कप जीता, तो निश्चित ही उस समय ये जेंटलमैन गेम रहा होगा। उस समय एक अम्पायर टेलेंडर को बाउंसर फेंकने पर बॉलर को डांट सकता था। जाने माने पत्रकार और ब्रॉडकास्टर रेहान फज़ल बीबीसी डॉट कॉम में अपने एक लेख में भारत और वेस्टइंडीज के बीच खेले गए फाइनल मैच की एक घटना का जिक्र करते हैं-

'तेज़ गेंदबाज़ मैल्कम मार्शल किरमानी और बलविंदर सिंह संधु की साझेदारी से इतने खिसिया गए कि उन्होंने नंबर 11 खिलाड़ी संधू को बाउंसर फेंका जो उनके हेलमेट से टकराया। संधू को दिन में तारे नज़र आ गए। अंपायर डिकी बर्ड ने मार्शल को टेलएंडर पर बाउंसर फेंकने के लिए बुरी तरह डाँटा. उन्होंने मार्शल से ये भी कहा कि तुम संधू से माफ़ी माँगो।

मार्शल उनके पास आकर बोले, ‘मैन आई डिड नॉट मीन टु हर्ट यू. आईएम सॉरी.’(मेरा मतलब तुम्हें घायल करने का नहीं था. मुझे माफ़ कर दो).

संधू बोले, ‘मैल्कम, डू यू थिंक माई ब्रेन इज़ इन माई हेड, नो इट इज़ इन माई नी.’(मैल्कम क्या तुम समझते हो, मेरा दिमाग़ मेरे सिर में है? नहीं ये मेरे घुटनों में है)।

ये सुनते ही मार्शल को हँसी आ गई और माहौल हल्का हो गया।'

रअसल खेल मैदान में केवल प्रतिद्वंदिता ही नहीं होती बल्कि दोस्ताना माहौल भी साथ साथ चलता  है। सिर्फ तनाव ही व्याप्त नहीं रहता बल्कि सहजता और जीवंतता भी व्याप्ति है।

.............

च तो ये है खेल जीवन का ही एक हिस्सा है और खेल मैदान में सिर्फ खेल और प्रतिद्वंदिता ही नहीं रहती बल्कि जीवन भी साथ साथ चलता है।



खेल भावना


 

यूं देखा जाए तो रविवार की रात विश्व एथलेटिक्स प्रतियोगिता की जैवलिन थ्रो स्पर्धा का फाइनल भारत और पाकिस्तान के बीच फाइनल भी था। ये भारत के नीरज चोपड़ा और पाकिस्तान के अरशद नदीम के बीच स्पर्धा थी। इस स्पर्धा में नीरज ने स्वर्ण और नदीम ने रजत जीता। यहां यह बात ध्यान देने वाली है कि नदीम बेहद प्रतिभावान हैं और उनका व्यक्तिगत सर्वश्रेष्ठ 90+ मीटर है जो नीरज के व्यक्तिगत सर्वश्रेष्ठ से अधिक है।

लेकिन क्या ही कमाल है कि बेलग्रेड के नेशनल एथलेटिक्स सेंटर पर  क्रिकेट और हॉकी की स्पर्धाओं के उन्मादी माहौल के बरक्स सहयोग,अपनेपन और प्यार के खूबसूरत दृश्य थे। फाइनल थ्रो के बाद वे दोनों प्यार से गले मिले और एक दूसरे के प्रति सम्मान प्रदर्शित किया। उसके बाद जब फोटो सेशन में नदीम बिना राष्ट्रीय झंडे के अलग खड़े थे,तब नीरज उन्हें अपने साथ लेकर आए और फोटो सेशन पूरा किया। इससे पहले टोक्यो ओलंपिक में नीरज के जैवलिन से नदीम अभ्यास कर रहे थे।

क्या ये कारण है कि सामूहिकता और भीड़ ही उन्माद पैदा करती है जबकि एक अकेला व्यक्ति अधिक विवेकशील होता है। इसीलिए टीम खेल और उनके समर्थक उन्माद फैलाते हैं,जबकि व्यक्तिगत प्रतियोगिताओं में उस तरह का उन्माद नहीं होता। या फिर एथलेटिक्स जैसे खेलों में जहां विश्व स्तर पर भारत और पाक का कम या बहुत कम प्रतिनिधित्व होता है, वहां वो अकेलेपन का भाव आपस में एक जुड़ाव पैदा करता है। या फिर हर व्यक्ति का एक अलग मानसिक गठन होता है जो उसके परिवेश और परिवार से आता है।

नीरज इस जीत के बाद भारत के महानतम एथलीट कहे जा सकते हैं। और इसलिए उनमें  एक 'एटीट्यूड'पैदा हो सकता है। लेकिन ऐसा है नहीं। वे बेहद विनम्र,ज़मीन से जुड़े फोकस्ड खिलाड़ी हैं। जब उनसे पूछा गया कि क्या वे गोट (आल टाइम ग्रेटेस्ट एथलीट) हैं तो उन्होंने बेहद विनम्रता से कहा 'मुझे नहीं लगता कि मैं महानतम खिलाड़ी हूं। हमेशा कुछ ना कुछ कसर रह जाती है। अभी और ज्यादा इम्प्रूवमेंट करने हैं और काफ़ी कुछ करना है। फिलहाल उसी पर फ़ोकस करूंगा।'

आईपीएल के सट्टेबाजी के चार पैसे आने पर जहां नए से नया क्रिकेटर भी सीना खोले,गले में मोटी मोटी चैन, अंगुलियों में अंगूठी,हाथों में कड़े और पूरे शरीर पर टैटू खुदवाए दंभी 'छक्का छैला' बना फिरता है,वहीं नीरज चोपड़ा जैसे खिलाड़ी अपनी एक सफलता के बाद अपने अगले लक्ष्य की और नज़र गड़ाए होते हैं। 

दरअसल महान व्यक्तित्व ऐसे ही विनम्र, सरल और प्यार से भरे होते हैं। नीरज भी ऐसे ही हैं। वे चैंपियन हैं, खिलाड़ी भी और व्यक्ति भी।

---------------

नीरज को मोहब्बत पहुंचे।



एथलेटिक्स



 दरअसल यही असली भारत है और असली खेल हैं। जिस समय क्रिकेटर धोनी और कोहली अमीर खिलाड़ियों की सूची में शुमार हो रहे थे,ठीक उसी समय कुछ नॉन सेलिब्रिटी खिलाड़ी हमें गर्व करने के कई मौके दे रहे थे। 

एच एस प्रनॉय विश्व नं एक विक्टर एक्सेलसन को हराकर विश्व बैडमिंटन प्रतियोगिता के सेमीफ़ाइनल में पहुंचकर कांस्य पदक पक्का कर रहे थे, तो प्रज्ञान नंदा विश्व नं दो हिकारू नाकामुरा और विश्व नं तीन खिलाड़ी फैबियानो कारूआना को हराकर विश्व शतरंज प्रतियोगिता के फाइनल में पहुंच कर उपविजेता बन रहे थे।

और फिर कल रात बुडापेस्ट हंगरी में नीरज चोपड़ा 88.17 मीटर की भाले की उड़ान के साथ भारत के सार्वकालिक महानतम एथलीट ही नहीं बल्कि भारत के महानतम खिलाड़ियों में शुमार हो रहे थे।

विश्व एथलेटिक्स में भाला फेंक में नीरज स्वर्ण पदक जीतकर ओलंपिक स्वर्ण के साथ अपना डबल पूरा कर भारतीय खेल जगत के आसमान में जो स्वर्णिम आभा बिखेर रहे थे, उस आभा को निःसंदेह 4×400 मीटर में पांचवां स्थान प्राप्त कर मो अनस,अमोज जैकब,मो अजमल और राजेश रमेश और चमकदार बना रहे थे। 

वे पदक भले ही ना जीत पाएं हो,वे हमारे दिलों को रोशन कर रहे थे और भारतीय एथलेटिक्स के लिए संभावनाओं के नए द्वार भी खोल रहे थे।

------------

बिला शक ये प्रदर्शन  आश्वस्तकारी हैं। शानदार प्रदर्शन के लिए खिलाड़ियों को बधाई।



ये हार भारतीय क्रिकेट का 'माराकांजो' है।

आप चाहे जितना कहें कि खेल खेल होते हैं और खेल में हार जीत लगी रहती है। इसमें खुशी कैसी और ग़म कैसा। लेकिन सच ये हैं कि अपनी टीम की जीत आपको ...