Friday 30 December 2022

अलविदा 'द ओ री दो फ़ुतबाल'


  


अलविदा 'द ओ री दो फ़ुतबाल
००००

जिस व्यक्ति के बारे में हम कह सुन रहे हैं,इतना लिख पढ़ रहे हैं,दरअसल पहले जान तो लें वो है क्या!

पेले के समकालीन और दुनिया के महानतम फुटबॉलरों में शुमार हॉलैंड के जोहान क्रुयफ़ ने एक बार कहा था 'पेले एकमात्र ऐसे फुटबॉलर हैं जो तर्क की सारी सीमाओं को पार कर गए हैं।'

र्क की सीमा के पार मनुष्य होते हैं क्या! नहीं ना! तो क्या वे फुटबॉल के ईश्वर थे? शायद हाँ!

भी तो एक दूसरे महानतम फुटबॉलर हंगरी के फ्रेंक पुस्कास ने कहा था ' इतिहास का महानतम खिलाड़ी डी स्टिफानो था। मैं पेले को खिलाड़ी मानने से इनकार करता हूँ। वो इन सबसे ऊपर है।' 

क खिलाड़ी से ऊपर आखिर कौन हो सकता है! एक ईश्वर ही ना! यानी पेले एक ईश्वर ही थे ? 

1970 के विश्व कप फाइनल में ब्राज़ील ने इटली को 4-1 से हराया था। उस मैच में उन्हें मार्क कर रहे महान इतावली डिफेंडर तार्सीसिओ बर्गनिच कह रहे थे 'मैच से पहले मैंने स्वयं को समझाया आखिर है तो वो भी(पेले) औरों जैसा हाड़ मांस का बना व्यक्ति ही। पर मैं गलत था।'

यानी वो एक इंसान भी नहीं था। स्वाभाविक है ईश्वर ही होगा!

हां याद आया दो बार खुद पेले ने भी कुछ ऐसा ही कहा था। 1970 के विश्व कप के दौरान मेनचेस्टर यूनाइटेड के डिफेंडर पैडी क्रेरंद ने एक टीवी शो में पेले से पूछा कि 'पेले के हिज्जे (spelling)क्या हैं।' पेले ने कहा 'बहुत ही आसान। जी ओ डी(G O D)।' एक अन्य बार ये पूछे जाने पर कि क्या उनकी शोहरत ईसा जितनी ही है,उन्होंने कहा था कि 'दुनिया के कुछ हिस्सों में ईसा को उतनी अच्छी तरह से नहीं जाना जाता है।'

तो तय हुआ कि अगर वे तर्कातीत थे,एक खिलाड़ी से कहीं अधिक थे और हाड़ मास के इंसान भी नहीं थे,तो ईश्वर ही होंगे।

 आज तक मैं भी उसे देव तुल्य ही जानता समझता था। मेरे तईं फुटबॉल का कुल इतिहास दो देवताओं का इतिहास था। जो पेले से शुरू होकर मैस्सी पर खत्म हो जाता है। मुझे उन दोनों के बीच माराडोना ही एक ऐसा इंसान नज़र आता था जो उन देवताओं के सामने ताल ठोंकता,उन्हें चुनौती देता नज़र आता था।

लेकिन आज जब एडसन अरांतेस दो नेसीमेंतो नाम के शरीर ने पेले नाम की आत्मा को बेघर कर दिया है,तो कुछ अलग ही अहसास हुआ जाता है। दृष्टि है कि साफ हुई जाती है। मन का भ्रम है कि छंटा जाता है। मन  में बनी एक मूर्ति है जो टूट टूट जाती है। और?

र एक ईश्वर है कि जिसकी मौत हुई जाती है।

ब पेले नाम के किसी ईश्वर को मैं नहीं जानता। पेले हाड़ मांस का बना हम और आप जैसा ही एक व्यक्ति था,एक ऐसा व्यक्ति जिसकी मृत्यु भी होती है,जो खिलाड़ी था और जो फुटबॉल खेलता था। ऐसी फुटबॉल खेलता जैसी कोई दूसरा ना खेल पाता। एक ऐसा फुटबॉलर जैसा कोई दूसरा ना था। ठीक वैसा ही जैसे एक बीथोवन था,एक बाख था और  माईकेल एंजेलो। और ये सब ईश्वर की अनुपम देन ना थीं, तो क्या थीं।

रअसल ये इंसान की फितरत है कि वो इंसानी सीमाओं को पहचानता ही नहीं।  वो नहीं जानता इंसान की क्षमताएं क्या और कितनी हैं। एक इंसान के वे कार्य जो उसके लिए जब तर्क से परे हो जाते हैं,तो उसमें देवत्व को आरोपित कर देता है।

लेकिन इंसान की तर्कातीत उपलब्धियों में देवत्व का आरोपण मनुष्यता का और खुद मनुष्य का अपमान है। ये मनुष्य की उपलब्धियों को छोटा कर देना है। मनुष्य को रिड्यूस कर देना है। शायद पेले को देवता कहना, ईश्वर  बनाना उसकी असाधारण क्षमताओं को रिड्यूस कर देना है। 

पेले हाड़ मांस का बना एक खूबसूरत इंसान था, और है और रहेगा। वो एक ऐसा इंसान था जो मानवीय गरिमा से ओतप्रोत था और जिसका चेहरा मानवीय करुणा दीप्त होता था।

वो हाड़ मांस का बना एक ऐसा खिलाड़ी था जिसने 17 साल की उम्र में पहला विश्व कप जीत लिया था। जिसने एक नहीं, दो नहीं, तीन-तीन विश्व  विश्व कप जीते थे। जिसने एक,दो या सौ, दो सौ नहीं बल्कि कुल 1283 गोल किए थे। एक ऐसा खिलाड़ी, फुटबॉल का ऐसा जादूगर था जिसके पैरों का जादू देखने भर को नाइजीरिया के सिविल वार में लड़ते दो पक्ष 48 घंटों का युद्ध विराम कर दिया था। ऐसा खिलाड़ी था जिसने खेल कौशल को उस सीमा तक पहुँचा दिया था वो तर्कातीत हो जाती थी।

सने एक ऐसी  असाधारण उपलब्धि धारण की थी कि सिर्फ 29 साल की उम्र में 1000वां गोल कर सका और उसकी  इस उपलब्धि को चांद पर जाकर सेलिब्रेट किया गया। आखिर क्या ही संयोग विधि द्वारा गढ़े जाते हैं कि ऐन 19 नवंबर 1969 के दिन जब वो वास्को डी गामा के विरुद्ध सांतोस के लिए खेलते हुए  पेले अपना हजारवाँ गोल कर रहा था,तो मनुष्य अपोलो यान से चांद पर पहुंच कर इस क्षण को सेलिब्रेट करता है। ऐसा सम्मान और किसे मिल सकता था। आखिर कौन इसके काबिल हो सकता था।

वो क्या ही अद्भुत दृश्य रहा होगा जब उसने अपना हजारवाँ गोल किया तो कितने ही मिनटों तक खेल रोक दिया गया था और सांतोस और वास्को डी गामा,पक्ष और विपक्ष दोनों ही दलों के खिलाड़ी उस को अपने कांधे बिठाकर परेड कर रहे थे।

कितना खूबसूरत वो खिलाड़ी रहा होगा और कितना खूबसूरत उसका मन कि वो अपने एक हजारवें गोल का जश्न मनाने के बजाए ब्राजील के हज़ारों गरीब बच्चों और उनके भविष्य की चिंता कर रहा था। आखिरकार मदर टेरेसा की तरह दुनिया भर की करुणा से भीग रहे चेहरे को देखकर ही तो सन 1966 में पेले से मुलाकात करते हुए पोप पॉल ने कहा  होगा 'नर्वस मत होओ मेरे बेटे. मैं तुमसे ज्यादा नर्वस हूँ. बहुत लम्बे अरसे से ख़ुद तुम से मिलने का सपना देखता रहा हूँ।'

खिर कितने खुशकिस्मत रहे होंगे वे लोग जिन्होंने उनके पैरों से होते 1283 गोल देखे होंगे। 91 हैट्रिक बनती देखी होंगी। कितने खूबसूरत रहे होंगे उनके बाइसिकल गोल। कितना खूबसूरत रहा होगा वो शॉट जब चेकोस्लोवाकिया के खिलाफ़ मध्य रेखा से लगभग गोल कर ही दिया था।

कैसा अनोखा और मूल्यवान  रहा होगा वो खिलाड़ी जिसको खो देने के भय से राष्ट्रीय संपत्ति घोषित कर दिया गया हो।

सी खूबसूरत फुटबॉल जिसमें अद्भुत ड्रिबलिंग हो,शक्ति,गति और नियंत्रण हो,लय हो,देवताओं को कहां रुचती है। ये तो हाड़ मांस से बने मानुस को शोभती है, हां पेले को रुचती है। 

1957 से 1974 के मध्य फुटबॉल के मैदान में एक खिलाड़ी द्वारा जो जादू बिखेरा गया, जो कीर्तिमान बने, वे देवताओं के बस की बात थोड़े ही ना थी। ये उन सीमाओं की बानगी भर है, जिन्हें एक मानव अपनी योग्यता से विस्तारित करता है,जिन्हें हम देख नहीं पाते,कल्पना नहीं कर पाते,हमें तर्कातीत लगने लगती हैं। दरअसल ये वो खूबसूरत नैरेटिव है जो ये बयान देता है कि मानव  क्या कुछ कर सकता है। उसकी क्षमताओं की क्या सीमाएं हैं।  पेले की कहानी एक ऐसी कहानी है,जो कहती है दुनिया में क्या संभव है और आदमी क्या कर सकता है। बाइडेन के शब्दों में पेले 'स्टोरी ऑफ व्हाट इस पॉसिबल' है।

ज अब जब पेले नहीं रहे तो कितने स्टेडियम उदास हो गए होंगे। कितने मैदान होंगे जो मन मसोसकर कर खेद जता रहे होंगे। कितने गोलपोस्ट होंगे जो गहन वेदना से गल रहे होंगे।कितनी फुटबॉल होंगी जो आंसू बहा रही होंगी। कितनी व्हिस्ल होंगी जो शोक गीत गा रही होंगी।

र हम में से ना जाने कितने लोग होंगे जिनके दिल जार जार करके रो रहे होंगे। ठीक ऐसे ही जैसे मेरा दिल रो रहा है। आज मन शिद्दत से चाह रहा है कि एक बार उसके शरीर से लिपटकर रो सकता। काश कि उसे एक बार अपनी आंखों से खेलते हुए देख पाता। काश एक पत्रकार के रूप में उससे एक     साक्षात्कार ले पाता। उससे उसके खेल के संबंध में ढेर सारे प्रश्न पूछ पाता। एक दोस्त  की तरह उसके गले मे हाथ डालकर सड़कों पर आवारागर्दी कर सकता। किसी नुक्कड़ की दुकान पर बैठकर चाय पी सकता। उसके साथ फुटबॉल खेल सकता। और फिर उसके उम्दा खेल पर ईर्ष्या करते हुए उससे कह पाता 'अबे तुझसे अच्छा खेलता हूँ मैं।'

र ये सब  इच्छाएं कोई देवता पूरी कहां पर पाते।एक इंसान ही पूरी कर पाता ना। 

र हां पेले कभी कहां मर सकता है। वो हमारे दिलों में,मैदानों में ,फुटबॉल खेल में और हमारी बातों में,किस्से कहानियों में हमेशा ज़िंदा रहेगा। 

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र ये भी कि सुप्रसिद्ध फुटबॉलर बॉबी चार्लटन से खूबसूरत बात और कौन कह सकता है कि 'फुटबाल खेल का जन्म इसीलिए हुआ कि पेले खेल सके।'

लविदा द पेले। द ओरी। द ब्लैक पर्ल।



Thursday 22 December 2022

विश्व कप फुटबॉल डायरी_08

 



अस्सी मिनट बनाम चालीस मिनट बनाम पेनाल्टी शूट आउट

००००


              अगर मैं शिक्षक होता तो अपने विद्यार्थियों को सिखाता कि जीवन का एक पर्यायवाची 'फुटबॉल का खेल' होता है और एक फुटबॉल मैच वो बाइस्कोप होता है जिससे केवल उस जीवन को देखा भर नहीं जाता बल्कि उसे महसूस भी किया जाता है। हर वो आदमी जिसने कल लुसैल स्टेडियम में विश्व कप फुटबॉल का फाइनल देखा होगा,इस बात की ताईद करता पाया जाएगा।

          आखिर ऐसा कौन सा संवेग बच रहा होगा जो इस मैच में दौरान देह मन ने अनुभव ना किया होगा, ज़िंदगी के वे कौन से पाठ रहे होंगे, जो ये एक मैच ना सिखा पाया होगा या वो कौन सा रंग होगा जो इस एक मैच ना बिखरा होगा। जिसने भी कल का फाइनल मैच देखा होगा,इससे अलग क्या सोच पा रहा होगा।

           बीती रात फुटबॉल विश्व कप के बीच अर्जेंटीना और पिछली चैंपियन फ्रांस के बीच खेला गया मैच 120 मिनट के बाद भी 3-3 गोल की बराबरी पर छूटा,तो निर्णय पेनाल्टी शूट आउट से हुआ और अर्जेंटीना फ्रांस को 4-2 से हराकर विश्व चैंपियन बना। ये अर्जेंटीना का तीसरा विश्व खिताब था।

           दरअसल इस मैच को तीन भागों में अलग करके देखा जा सकता है। एक,पहले 80 मिनट। दो, 30 अतिरिक्त मिनट सहित अंतिम 40 मिनट। तीन,पेनाल्टी शूटआउट। ये तीन भाग इस मैच के आरंभ, उत्कर्ष और समापन थे। 

           ये मैच दो अलग फुटबॉल शैलियों और तीन महाद्वीपों के बीच का मुकाबला था। एक तरफ दक्षिण अमेरिकी फुटबॉल  की कलात्मकता थी। दूसरी तरफ यूरोप की गति और शक्ति थी। उस गति और शक्ति में अफ्रीकियों की किसी भी परिस्थिति से हार ना माने की अदम्य जिजीविषा और अंतिम समय तक संघर्ष करने के हौंसले का समावेश था।

          पहले भाग में अर्जेंटीना किसी विश्व चैंपियन की तरह खेला। इस भाग में अर्जेंटीना का खेल कौशल अपने उठान पर था, जिसने यूरोपीय गति और शक्ति को हतप्रभ कर दिया। ये अर्जेंटीना का इस प्रतियोगिता का सबसे शानदार प्रदर्शन था। उनके मूव और उनके पासेस का खेल देखना अदभुत अनुभव था। गेंद पर नियंत्रण और पासेस की दिशा कमाल की थी। ऐसा लग रहा था मानो अर्जेंटीनी खिलाड़ी एक दूसरे के मष्तिष्क को पढ़ ले रहे हैं। वे किसी धुन पर थिरकते प्रतीत होते। एक लय में। एक अन्विति में। सम्मोहन बिखेरते हुए। सम्मोहित करते हुए। इस दौरान अगर अर्जेंटीना का आक्रमण धुन पर थिरक रहा था तो डिफेंस किसी चट्टान की तरह अडिग खड़ा था जिससे टकरा कर फ्रांसीसी गति और ताकत बेबस हुई जाती थी। इस भाग में अधिकांश समय खेल फ्रांस के हाफ और उसके बॉक्स के आसपास सिमट गया था। उनका कमिटमेंट अविश्वसनीय था। मानो वे ये दृढ़ प्रतिज्ञा करके आएं हों कि फीफा ट्रॉफी का अगला गंतव्य केवल और केवल ब्यूनस आयर्स ही होना है।

             अर्जेंटीना के सामने फ्रांस की टीम दोयम दर्जे की प्रतीत हो रही थी। पहले 80 मिनट में एमबापे के केवल 11 टचेज जो अब तक का सबसे कम थे। वे खेल से अनुपस्थित से थे। फ्रांस की असहायता इस बात से समझी जा सकती हैं कि इन 80 मिनटों में फ्रांस की टीम केवल एक बार वो भी 71वें मिनट में गोल पर शॉट ले सकी और एमबापे का ये शॉट टारगेट से बहुत ऊपर से निकल गया।

             इस प्रतियोगिता में अब तक फ्रांसीसी जीत के कर्णधार रहे ग्रीजमान,देम्बेले और थियो हर्नांडेज इस समय तक बाहर जा चुके थे और उनकी जगह थुरम, कोमेन और कमाविन्गा ले चुके थे। ये बदलाव दरअसल कलात्मकता और गति व ताकत के द्वंद्व में तीसरे आयाम का जुडना था। अब अफ्रीकी जज्बा और संघर्ष करने की अदम्य लालसा भी फ्रांसीसी टीम में समाविष्ट हो चुकी थी। मृतप्राय गति व ताकत में सब्सिट्यूशन से फिर से प्राण फूंके जा चुके थे। अब मुकाबला दक्षिण अमेरिका बनाम यूरोप से आगे बढ़कर दक्षिण अमेरिका बनाम यूरोप व अफ्रीका हो चुका था।

           अंतिम 10 मिनट बचे थे। अर्जेंटीना दो गोल से आगे था। उस की जीत लगभग पक्की मानी जा रही थी कि समय चक्र ने पलटा खाया।  क्या पता उस समय फ्रांस के खिलाड़ियों में मष्तिष्क में अपने महानायक नेपोलियन के वे शब्द भी गूंज रहे हों कि   'असंभव जैसा शब्द उनकी डिक्शनरी में नहीं होता।' जो भी हो 79वें मिनट में एक मौका मिला फ्रांस को। मौनी अर्जेंटीना के बॉक्स में अकेले गेंद के साथ थे। अर्जेंटीना के ओटामेंदी के पास गोल बचाने का उन्हें गिराने के अलावा कोई चारा नहीं था। फ्रांस को पेनाल्टी मिली और एमबापे का गोल नंबर 06 आया। मैच में जान आ गयी। एक मिनट बीतते बीतते एमबापे का गोल नंबर 07 आया और स्कोर 2-2 से बराबर।

             गति और जोश ने अर्जेंटीना की लय को भंग कर दिया था। अगले 09 मिनट एक तरह से अफरा तफरी के थे। जो लय टूट चुकी थी,उसे फिर से बांधने में और गति ने जो लय पकड़ ली थी, उसे रोकने के लिए अर्जेंटीना को भी समय चाहिए था। इसी अफरा तफरी में रेगुलर समय समाप्त हुआ। दोनों टीमों को नए सिरे से रणनीति बनाने का मौका मिला।

              अतिरिक्त समय का खेल अर्जेंटीना ने ठीक वहीं से शुरू किया जहां उन्होंने उसे 80वें मिनट में छोड़ा था। वे एक बार फिर लय में थे और फ्रांसीसी गति और ताकत कुछ हद तक दिशाहीन। 109वें मिनट में एक बार फिर मैस्सी ने गोल गेंद के अंदर की। ये मेसी का मैच का गोल नबर दो और प्रतियोगिता का गोल नंबर 07 था। एक बार फिर लगा अर्जेंटीना जीत चुका है। अब केवल 05 मिनट शेष थे। खेल खत्म हुआ ही चाहता था। पर नियति को ये मंजूर ना था। ये फ्रांस की किस्मत थी कि बॉक्स के अंदर मोन्टीएल की कोहनी में गेंद लगी और एक और पेनाल्टी फ्रांस को। एमबापे की हैट्रिक गोल नंबर 08 के साथ आई। अब स्कोर 3-3 बराबरी पर था। अगर 80 मिनट का पहला भाग इस मैच की प्रस्तावना थी तो  40 मिनट का ये भाग मैच का उत्कर्ष था जिसमें खेल का रुख दोनों और झुकता रहा।

               अब इस मैच का उपसंहार लिखा जाना था। प्रस्तावना में पहले ही लिखा जा चुका था मैच अर्जेंटीना का है। निष्कर्ष इससे भिन्न कहां होना था। पेनाल्टी शूट आउट में एक बार फिर अर्जेंटीना ने फ्रांस को, उसके भाग्य को और फिर से चैंपियन बनने की उसकी किसी भी संभावना को शूटआउट कर दिया था। अब 4-2 जीतकर अर्जेंटीना नया चैंपियन था।

             याद कीजिए 2018 के विश्व कप को। प्री क्वार्टर फाइनल में अर्जेंटीना का फ्रांस से खेलना तय पाया गया था। वो शनिवार का दिन था। तातारिस्तान की राजधानी कज़ान का कज़ान एरिना था। ये क़यामत की शाम थी जिसमें लोगों ने एक क्लासिक मैच देखा था। उन्होंने उम्मीदों के उफान को देखा था और उसे बहते हुए भी देखा था। ये भी दो महाद्वीपों के बीच मुकाबला था। ये फुटबाल की दो अलग शैलियों के बीच मुकाबला था। ये उम्मीदों की विश्वास से टकराहट थी। उम्रदराज़ों का युवाओं से सामना था। अनुभव जोश के मुक़ाबिल था। कलात्मकता रफ़्तार और शक्ति से रूबरू थी। जो मुकाबला मैदान में दो टीमों के बीच हो रहा था वो लाखों लोगों के लिए मेस्सी का फ्रांस से मुकाबला बन गया था। अगर लोग अर्जेंटीना को मेस्सी के लिए जीतता देखना चाहते थे तो खुद मेस्सी अर्जेंटीना के लिए जीतना चाहता था। मेस्सी ने अपना सब कुछ झोंक दिया। उसने कुल मिला कर दो असिस्ट किये। लेकिन अर्जेंटीना और जीत के बीच 19 साल का नौजवान एमबापा आ खड़ा हुआ। उसने केवल दो गोल ही नहीं दागे बल्कि एक पेनाल्टी भी अर्जित की। उसकी गति के तूफ़ान में अर्जेंटीना का रक्षण तिनके सा उड़ गया। मेस्सी का अर्जेंटीना 4 के मुकाबले 3 गोल से हार गया। लोगों की उम्मीदें हार गई। हताश निराश मेस्सी मैदान से बाहर निकले तो एक बार भी पीछे मुड़कर नहीं देखा। मानो वे इस असफलता को पलटकर देखना ही नहीं चाहते थे। 

         लेकिन क्या ही स्वीट रिवेंज था ये। एक बार फिर मानो वही मुकाबला दोहराया जा रहा हो। बिल्कुल उस जगह से शुरू हो रहा हो,जहां कजान में खत्म हुआ था।  19 साल का टीनएजर अब 23 साल का गबरू जवान हो चुका था। एक बार फिर  वो फुटबॉल के देवता की राह  में रोडा बनने का दुस्साहस कर रहा था। उसने अपनी टीम के 05 में से 04 गोल किए। लेकिन इस बार देवता से,अनुभव से,अदम्य चाहना से वो हार गया। इस बार समय और नियति मैस्सी के साथ थी। हुनर के साथ थी। इस बार एमबापे उदास थे। और मैस्सी अपने हाथों में फीफा कप उठाए उसे चूमते जाते थे। दोनों किरदारों के रोल बदल गए थे।

              कला और क्लास के आगे ताकत और गति पस्त हो चुके थे। नियति अपना खेल दिखा चुकी थी। आप भले ही कहें नियति क्रूर होती है। लेकिन इतनी भी नहीं कि एक असाधारण प्रतिभा को, खेल के महानतम खिलाड़ी को और उसके जादूगर को उस सम्मान से,उस हक़ से महरूम रख सके जिस पर उसका हक बनता था। मैस्सी की झोली में अब एक विश्व कप ट्रॉफी थी। जिस कला का वो सर्वश्रेष्ठ व्याख्याता था,अब  वो उसके शिखर पर था। अधूरी इच्छाओं का एक देवता पूर्णत्व को प्राप्त हो चुका था। वे हाथों में फीफा कप लेकर उसे चूम रहे थे। वे कह रहे थे 'मैं इसे बेइंतेहा चाहता था। मैं जानता था कि ईश्वर ये मुझे देंगे। ये लम्हा मेरा है।' सच में वो मैस्सी का लम्हा था।

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दरअसल यही फुटबॉल है। यही खेल है। यही जीवन है। 

और हम हैं कि अर्जेंटीना के कुछ और ज़्यादा समर्थक हुए जाते हैं। कि मैस्सी को कुछ और ज़्यादा चाहने वाले हुए जाते हैं। कि फुटबॉल के कुछ और अधिक दीवाने हुए जाते हैं।


Tuesday 20 December 2022

फुटबॉल विश्व कप 2022 डायरी_07

                                 (साभार गूगल)
                       
अंतिम चार का द्वंद्व
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विश्व कप फुटबॉल के पहले सेमीफाइनल में अर्जेंटीना ने क्रोशिया को 3-0 से हराकर फाइनल में प्रवेश कर लिया है। निःसंदेह अर्जेंटीना की जीत महत्वपूर्ण है,लेकिन उससे भी महत्वपूर्ण मैच की स्कोरलाइन है।

स्कोर लाइन देखकर ऐसा लगता है कि अर्जेंटीना ने किसी नौसिखिया टीम को हराया है। जबकि सारी दुनिया जानती है,वास्तविकता ये नहीं है। क्रोशिया  की गणना फुटबॉल की दुनिया की सबसे ताकतवर टीमों में की जाती है। वो इस बार की संभावित विजेताओं में शुमार थी और पिछली बार की उपविजेता। जिस टीम का नेतृत्व दुनिया के सबसे शानदार मिडफील्डर लुका मोद्रीच कर रहे हों, जिसके पास दुनिया के सबसे बड़े डिफेंडरों में से एक, और प्रतियोगिता में सबसे शानदार खेल रहे जोस्को ग्वार्डिओल हों,और जिसके पास लिवकोविच जैसा बेहतरीन गोलकीपर हो जिसने इस विश्व कप में सबसे ज़्यादा 24 बचाव किए हों, वो टीम कमज़ोर हो भी कैसे सकती है।

निःसंदेह क्रोशिया की टीम एक बहुत मजबूत और शानदार टीम है जो दुनिया की किसी भी टीम को हराने का माद्दा रखती है। लेकिन खेल का परिणाम केवल एक टीम के खिलाड़ियों के मैदान में खेल कौशल भर से निर्धारित नहीं होते। ये विपक्षी टीम के खिलाड़ियों के खेल कौशल,उसकी रणनीति,उसके द्वारा अपने सामने वाली टीम की रणनीति को समझने और उसमें छिद्र ढूंढ लेने के साथ साथ रैफरी के निर्णयों और अंततः नियति द्वारा भी निर्धारित होते हैं। 

गर मैदान में कुछ अप्रत्याशित ना हो तो कवि केशव तिवारी  के शब्दों में कहा जा सकता है 'काहे का खेल और काहे की फुटबॉल'। यही खेल है और यही फुटबॉल। 

मैच के पहले हॉफ के आधे से अधिक समय तक गेंद पर नियंत्रण और खेल का नियंत्रण क्रोशिया के पास था। खेल अर्जेंटीना के हॉफ में खेला जा रहा था। पर मुकाबला फुटबॉल लीजेंड मैस्सी और चतुर रणनीतिकार लियोनेल स्कलोनी से था। वे खेल के इस क्रोशियाई अधिपत्य के बीच में अपनी टीम के लिए अवसर खोज रहे थे और वे उन्होंने ढूंढ निकाले। यही फुटबॉल की समझ है।फुटबॉल है।

गेंद पर पूरी तरह नियंत्रण के अपने खतरे हैं। ऐसे में जब आप गेंद पर से नियंत्रण खोते हैं तो आप रक्षण के लिए उस तरह एकबद्ध नहीं हो पाते जिस तरह से होना चाहिए। नियंत्रण छूटने से आपकी लय टूट जाती है। आप अपने रक्षण में गैप छोड़ देते हो। मैस्सी और उनके साथियों ने वे गैप ढूंढ लिए।उन गैप से उन्होंने प्रतिआक्रमण किए, अपनी टीम के लिए मौके बनाए और विपक्षी टीम को तहस नहस कर दिया। मैच समाप्ति के बाद मैस्सी ऐसा ही कुछ कह रहे थे।

 ई प्रतिआक्रमणों में से ऐसा ही एक प्रतिआक्रमण अर्जेंटीना ने 34वें मिनट में किया। मैनचेस्टर सिटी के लिए खेलने अर्जेंटीना के नवोदित स्टार जूलियन अल्वारेज ने इतना तेज आक्रमण किया कि बाकि एक रक्षक को मात दी,उसे पीछे छोड़ा। अब वे बॉक्स में अकेले गोलकीपर के सामने थे। गोलकीपर डॉमिनिक लिवकोविच अल्वारेज को टैकल करने के लिए मजबूर हुए। रैफरी ने इसे खतरनाक माना। अर्जेंटीना को पेनाल्टी मिली। अब मैस्सी के बाएं पैर का जादू था। सही दिशा में छलांग लगाने के बाद भी गोलकीपर गति और ऊंचाई से मात खा गए। अर्जेंटीना 1-0 से आगे हो गया। अब मैच का रुख अर्जेंटीना के पक्ष में झुक गया। उनके पक्ष में मोमेंटम बन चुका था और क्रोशिया के हाथ से मैच फिसलने लगा था।

पेनाल्टी का निर्णय रैफरी का था। बहुत से लोगों का मानना था ये टैकल इतना खतरनाक नहीं था कि पेनाल्टी दी जाती। लेकिन रैफरी का निर्णय अर्जेंटीना के पक्ष में गया। यही भाग्य था,नियति थी और फुटबॉल भी।

पांच मिनट बाद अर्जेंटीना ने एक और प्रतिआक्रमण किया। 39वें मिनट में एक बार फिर अल्वारेज ने काउंटर अटैक पर शानदार मूव बनाया और लगभग अकेले दम पर गोल कर टीम को 2-0 से आगे कर दिया। ये युवा अल्वारेज की स्किल और गति हैं जिसने वन मैन आर्मी मैस्सी के बोझ को ना केवल कम किया है,बल्कि उन्हें आक्रमण और रणनीति बनाने के अतिरिक्त अवसर भी दिए हैं।

क्रोशिया एक फाइटर टीम है। उसने 2-0 से पिछड़ने के बाद भी हिम्मत नहीं हारी थी। क्वार्टर फाइनल में नीदरलैंड भी अर्जेंटीना के विरुद्ध 0-2 से पीछे थी और वो मैच को पेनाल्टी शूट तक ले गई थी। दूसरे हॉफ में भी क्रोशिया ने गेंद पर अपना नियंत्रण बनाए रखा। कुछ अच्छे मूव भी बनाए। पर मूव बनाना और उसे फिनिश करना दो बातें हैं। वे फिनिश करने में असफल रहे। इधर अर्जेंटीना ने क्रोशिया डिफेंस में छिद्र ढूंढ लिए थे। वे प्रतिआक्रमण करते रहे। इस बीच मैच के 69वें मिनट में क्रोशिया के हॉफ में लगभग मध्य रेखा से बॉल मैस्सी को मिली। दुनिया का एक बेहतरीन डिफेंडर ग्वार्डिओल,मैस्सी को मार्क कर रहा था। लेकिन यहां मैस्सी था,मैस्सी की ड्रिब्लिंग थी,मैस्सी के पैरों का जादू था। ग्वार्डिओल की मार्किंग के साथ ही मेसी गेंद को बॉक्स में ले गए,उसके बाद वे एक क्षण के लिए रुके,फिर दाएं गए, फिर बाएं गए और फिर दाएं गए, ग्वार्डिओल को पूरी तरह युक्तिहीन और असहाय छोड़ गेंद अल्वारेज को सरका दी। अल्वारेज ने गेंद आगे गोल में सरका दी। स्कोर अब 3-0 था और इसने क्रोशिया की किसी भी संभावना को खत्म कर दिया था।

मैस्सी का ये असिस्ट इस विश्व कप की सबसे खूबसूरत मूव था। इस मूव को देखना किसी खूबसूरत कविता को देखना,किसी बेहतरीन नृत्य को देखना और किसी उम्दा संगीत को सुनने जैसा था। ये मैस्सी की स्किल थी। उनके पैरों का जादू था। ये फुटबॉल का खेल था। फुटबॉल था।

स विश्व कप में मैस्सी क्या ही कमाल खेल रहे हैं। पहले मैच में हार के बाद पांच मैच और पांचों में मैन ऑफ द मैच। अविश्वसनीय प्रदर्शन। मैस्सी का दूसरा फाइनल पक्का हुआ। अर्जेंटीना तीसरे विश्व खिताब की और बढ़ी और निसंदेह मैस्सी सार्वकालिक महानतम खिलाड़ी। मैं जानता हूँ ,आप जानते हैं,सारी दुनिया जानती है,आखिर 'गोट' कौन है।

तो तय हुआ कि खिलाड़ियों की प्रतिभा और खेल कौशल में जब भाग्य और अनिश्चितता का तड़का लगता है,तो फुटबॉल के खेल में रोमांच पैदा होता है। फुटबॉल का खेल बनता है। फुटबॉल बनता है।
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तो रविवार तक अनिश्चितता में झूलते रहिए और दिल को थामे रखिए। पिक्चर अभी बाकी है दोस्तों।

Tuesday 13 December 2022

फुटबॉल विश्व कप डायरी_06

 

                           (साभार गूगल)

सेमीफाइनल :टीमें जो यहां हो सकती थीं, पर हैं नहीं

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         खेल केवल खेल भर नहीं हैं। और फुटबॉल भी केवल खेल भर नहीं है। ये खिलाड़ियों का अथक परिश्रम भी है,उनका अदम्य होंसला भी है,उनका अद्भुत खेल कौशल और विस्फोटक प्रतिभा भी है,ये खेल मैनेजरों की नित नवीन रणनीतियां भी है,उनकी शतरंजी चालें भी हैं,विपक्षी टीम की चालबाजियों को समझने की उनकी गहन अंतर्दृष्टि और उसे भोथरा कर देने की अद्भुत समझ भी है। इतना ही नहीं,ये नियति भी है,भाग्य भी है और अनहोनियाँ भी हैं। इन सब के मिलने पर ही फुटबॉल जैसा खेल बनता है। और इसे समझना है तो फुटबॉल विश्व कप देखने से बेहतर और क्या हो सकता है।

            जी हां , क़तर फुटबॉल विश्व कप अब अपने अंतिम चरण में पहुंच चुका है। फुटबॉल का सरताज बनने के संघर्ष में अब केवल चार टीम बची हैं और तीन मैच। 

           और इस बार बात बची चार टीमों के बारे में नहीं बल्कि बात उन तमाम टीमों की,जिन्हें यहाँ होना चाहिए था या जो यहां हो सकती थीं,पर हैं नहीं। 

            सबसे पहली टीम जिसे इस विश्व कप में होना चाहिए था और जो यहां हो सकती थी, पर है नहीं, वो इटली की टीम है। ये हम हम टूर्नामेंट शुरू होने से पहले ही जान गए थे कि इटली यहां नहीं होगी। तमाम जद्दोजहद के बाद भी चार बार की विश्व चैंपियन और वर्तमान यूरो चैंपियन टीम लगातार दूसरी बार विश्व कप  में क्वालीफाई नहीं कर सकी। 'कैटेनेसियो' जैसी अभेद्य रक्षा पद्धति को ईजाद करने वाले और जीनो डोफ़ व बुफों जैसे गोलकीपर और बरेसी, पाओली माल्दिनी, फेबियो कैनावरो व चेलिनी जैसे डिफेंडर देने वाली इटली की टीम का यहां ना होना बहुत सारे खेल प्रेमियों के लिए गहन दुख का विषय हो सकता है और आश्चर्य का भी,पर ये बहुत पहले तय हो चुका था कि वो यहां नहीं ही होगी। यही नियति है। यही फुटबॉल है।

               दूसरी टीम जो यहां हो सकती थी और नहीं हैं वो जर्मनी की टीम है। चार बार की चैंपियन ये टीम सही मायने में यूरोपीय फुटबॉल का प्रतिनिधित्व करती है और अपनी शारीरिक श्रेष्ठता के बूते शारीरिक बल और गति से किसी भी टीम को मात देने की क्षमता रखने वाली टीम लगातार दूसरी बार पहले चरण से आगे बढ़ने में नाकामयाब रही है। पहले ही मैच में जापान ने हराकर उसके आगे बढ़ने की संभावना को क्षीण कर दिया था और स्पेन से ड्रा ने रही सही कसर पूरी कर दी। यही  दुर्भाग्य है। यही फुटबॉल है।

             एक और टीम जो यहां हो सकती थी और नहीं है वो स्पेन की टीम है। जिसे प्री क्वार्टर फाइनल में मोरक्को ने हराकर आगे बढ़ने से रोक दिया। छोटे छोटे पासों वाली टिकी - टाका तकनीक वाले खूबसूरत खेल पद्धति को इज़ाद करने वाली स्पेन की टीम ने अपने पहले ही मैच में कोस्टारिका को 7-0 से हराकर अपने इरादे जाहिर कर दिए थे। लेकिन टीम उम्मीदों पर खरी नहीं उतर पाई। स्पेन की जो टीम सेमीफाइनल में हो सकती थी, वो क्वार्टर फाइनल में भी नहीं पहुंच सकी। क्वार्टर फाइनल में पहुंचने वाली मोरक्को के अलावा बाकी सातों टीमें उम्मीद के अनुरूप ही पहुंची। यही किस्मत है। यही फुटबॉल है।

            इंग्लैंड की टीम भी सेमीफाइनल में हो सकती थी और होना चाहिए था,पर दुख की बात है कि वो भी यहां नहीं है। 2018 में वो सेमीफाइनल तक पहुंची थी जहां क्रोशिया ने 2-1 से हरा कर उसके सफर को रोक दिया था और 1966 के बाद दूसरे विश्व कप को जीतने से भी। इस बार फ्रांस उसके रास्ते में आया और उसका भाग्य भी। इस बार उसका सफर क्वार्टर फाइनल में समाप्त हुआ। इस बार उसने शानदार फुटबॉल खेली। दरअसल शनिवार 10 दिसंबर की रात फ्रांस और इंग्लैंड के बीच खेला गया क्वार्टर फाइनल मैच इस विश्व कप का सबसे शानदार मैच था। निसंदेह खेल के आधार पर इंग्लैंड को आगे बढ़ना चाहिए था, लेकिन भाग्य फ्रांस के साथ था। फ्रांस के 43 प्रतिशत बॉल पजेशन के मुकाबले इंग्लैंड का बॉल पजेशन 57 प्रतिशत था। फ्रांस के गोल पर 08 शॉट के मुकाबले इंग्लैंड ने 16 शॉट लगाए जिनमें से इंग्लैंड के 05 के मुकाबले 08 शॉट टारगेट पर थे। इंग्लैंड ने 02 के मुकाबले 05 कॉर्नर अर्जित किए। इस सब के बावजूद इंग्लैंड हार गया। दरअसल ये मौके चूक जाने का मामला था। हैरी केन ने दूसरी पेनाल्टी मिस की और बराबरी का मौका ही नहीं खोया बल्कि आगे बढ़ने का रास्ता भी बंद कर लिया। यही भाग्य है। यही फुटबॉल है।

            और निःसंदेह विश्व नंबर एक नेमार की टीम ब्राजील को सेमीफाइनल में होना ही चाहिए था,पर घोर निराशा का सबब है कि वो भी नहीं है। उसका सफर पिछली उपविजेता क्रोशिया ने क्वार्टर फाइनल में खत्म किया। ये दोनों टीमों द्वारा शिद्दत से खेला गया मैच था जिसने पहले 90 मिनट में दोनों टीम ने गोल करने के मौके खोए। उसके बाद जैसे ही अतिरिक्त समय शुरू हुआ नेमार का जादू देखने को मिला। उसने अपने बॉक्स के पास से गेंद ली और तीन क्रोशियाई खिलाड़ियों को छकाते हुए ब्राजील को 1-0  की बढ़त दिला दी। ये गोल ऐसा शानदार ही होना चाहिए था क्योंकि ये नेमार का 77वां अंतर्राष्ट्रीय गोल था और पेले के ब्राजील की और से सर्वाधिक गोल करने के रिकॉर्ड की बराबरी वाला गोल भी। अब ब्राजील जीत जाने ही वाला था और अतिरिक्त समय खत्म ही हुआ चाहता था कि स्थानापन्न खिलाड़ी ब्रूनो पेतकोविच ने 3 मिनट शेष रहते बराबरी का गोल दाग दिया। अब मैच शूट आउट में गया। क्रोशिया शूटआउट में एक बेहतरीन टीम है और ये उसने एक बार फिर सिद्ध किया। 2018 में भी उसने शूटआउट में शानदार खेल दिखाया था और यहां भी प्री क्वार्टर फाइनल मैच में भी वो जापान को शूट आउट में हराकर आगे बढ़ी थी। इस बार उसने ब्राजील को 4-2 से हराया और उसे सेमीफाइनल में जाने से रोक दिया। ये पिछले पांच विश्व कप में चौथा अवसर था कि उसकी क्वार्टर फाइनल से विदाई हो रही थी। ये लाखों फुटबॉल प्रेमियों का दिल टूट जाना था। विश्व कप का अचानक खत्म हो जाना था। ये कोई अनहोनी थी। कोई गहरा आघात था जी हां ये फुटबॉल था। ये खेल था।

         सीआर7 की टीम पुर्तगाल को भी सेमीफाइनल में होना चाहिए था और दुनिया ऐसी ख्वाहिश रखने वालों की कमी ना थी। अफसोस वे भी नहीं है। मोरक्को ने एक बार फिर असंभव को संभव कर दिखाया। इस बार पुर्तगाल शिकार बना। तीसरे क्वार्टर फाइनल में मोरक्को ने पुर्तगाल को 1-0 से हराकर बड़ा उलटफेर किया। पहले हाफ में खेल पुर्तगाल ने नियंत्रण अपने हाथ में रखा। जबकि मोरक्को कुछ काउंटर अटैक मूव ही बना सकने में समर्थ हुई। लेकिन मौका मोरक्को ने भुनाया और 44वें मिनट में डिफेंडर याह्या अत्तिअल्लाह के क्रॉस को सेविला के  लिए खेलने वाले फारवर्ड एन नसीरी ने हैडर से गेंद गोल में डालकर मोरक्को को 1-0 की बढ़त दिला दी। इसके बाद पुर्तगाल ने गोल करने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी। दूसरे हाफ के 45 मिनट और 8 अतिरिक्त मिनट में अधिकांश समय खेल मोरक्को के बॉक्स के इर्द गिर्द  हुआ। पर मोरक्को का डिफेंस और गोलकीपर बोनो की दीवार को पुर्तगाली खिलाड़ी नहीं भेद सके। यहां तक कि दूसरे हॉफ में बहुत जल्द ही सीआर7 को भी खिलाया गया। पर नतीजा वही ढाक के तीन पात। एक और बड़ा अपसेट हुआ। 2016 की यूरोपियन चैंपियन खेत रही। यही सपनों का टूट कर किरिच किरिच बिखर जाना था। इच्छाओं का गहन दुःख में विगलित हो जा एआ था। यही फुटबॉल है।

        हां, पिछली विजेता फ्रांस, पिछली उपविजेता क्रोशिया और दो बार की विश्व विजेता अर्जेंटीना की टीम को यहाँ होना था। और वो यहां हैं। लेकिन यहां मोरक्को भी है। तो क्या उसे यहाँ नहीं होना चाहिए था?

         निःसंदेह विश्व कप शुरू होने से पहले शायद ही किसी ने इस बात की कल्पना की होगी कि मोरक्को सेमीफाइनल खेलेगा। लेकिन वो खेल रहा है। यही खुशकिस्मती है। यही किसी सपने का यथार्थ में तब्दील हो जाना है। यही हकीकत है। यही खेल है। यही फुटबॉल है।

         मोरक्को इस बार का जॉइंट किलर है। उसने इस विश्व कप में शानदार शुरुआत की। अपने पहले ही मैच में पिछली उपविजेता क्रोशिया से 0-0 से ड्रा खेला। उसके बाद विश्व नंबर दो टीम  बेल्जियम को 2-0 से पीटा और फिर कनाडा को 2-1 से। प्री क्वार्टर फाइनल में स्पेन को शूटआउट में 3-0 और क्वार्टर फाइनल में पुर्तगाल को 1-0 से हराकर सेमीफाइनल में पहुंचने वाली पहली अफीकी टीम बनी। अपनी सेमी फाइनल तक की इस यात्रा में उसने तीन तीन बड़ी टीम को पराजित किया और एक बड़ी टीम को ड्रा के लिए मजबूर। उसने यूरोपीय दर्प का मानमर्दन किया और अफ़्रीकी गौरव को स्थापित भी। इस टीम का हीरो उनका गोलकीपर बोनो है। अफ्रीकी व अरब जगत का हीरो टीम मोरक्को।

       अभी तक जो भी हुआ वो भाग्य, नियति,और खेल के संयोग से बना फुटबॉल था,फुटबॉल का अद्भुत खेल था। आगे जो होगा वो भी नियति,भाग्य, होनी - अनहोनी के संयोग के आवरण में लिपटा और खिलाड़ियों के अद्भूत खेल कौशल व प्रतिभा और रणनीतियों से बना संवरा वो खेल होगा जिसके पीछे पूरी दुनिया दीवानी है, जिसे वो फुटबॉल के नाम से जानती है और जो उनके लिए खेल से बढ़कर जीवन मरण जैसी कोई भावना बन जाती है।

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हम उत्कर्ष देख चुके हैं। चर्मोत्कर्ष देखना बाकी है।


Monday 12 December 2022

अकारज _ 18

 


अकारज_18

दिन भर की भाग दौड़ के बाद वो थकी सी क्लांत बैठी थी। दिन था कि अब सांझ हो चला था।

कुछ देर बाद उसने जुम्हाई ली और नींद में गुम हो गई। सांझ गहरी रात में बदल गई।

सकी आँखों में कुछ सपने आए। आसमां में तारे टिमटिमाने लगे।

सने नींद में करवट बदली। आसमां में चांद उग आया और आसमां चांदनी से भर उठा।

वो जगने ही वाली थी। उसने अंगड़ाई ली। रात सुब्ह में तब्दील हो गई।

सने आंखें खोली। सूरज उसकी खिड़की पर हाज़िर हुआ।

सने अब धीमे से मुझे पुकारा 'कहां हो तुम'। चिड़िया चहचहा उठीं।

मैंने उसके माथे पर एक बोसा और हाथ पर चाय का प्याला धरा। स्मित मुस्कान उससे होंठों पर फैल गई। कमरा  गुलाबी रंग से भर उठा। 

वो थी। मैं था। मौन भंग करती चाय की चुस्कियां थीं।

गुलाबी रंग सुर्ख हुआ ही चाहता था कि उसके मन में दिन भर की जिम्मेदारियों का एक पहाड़ उग आया और उसका शरीर पहाड़ के बीच बहती नदी होने लगा।

कि मेरे मन की नीरवता उसके भीतर बहती नदी के शोर में घुल रही थी और उसके भीतर बहती नदी का शोर मेरी नीरवता में।

कि दो मन अब एक दूसरे में घुले जाते थे।


Sunday 4 December 2022

फुटबॉल_विश्व_कप डायरी_5


नॉक आउट की शुरुआत

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       तर फुटबॉल विश्व कप 2022 के दूसरे यानी नॉक आउट चरण का पहला दिन। पहला दिन और दो मैच। एक, नीदरलैंड बनाम अमेरिका। दो, अर्जेंटीना बनाम ऑस्ट्रेलिया। यानी चार देशों के फुटबॉल प्रशंसकों के सपने और उनकी उम्मीदें ही दांव पर नहीं थी बल्कि चार अलग अलग महाद्वीपों की फुटबॉल और उनकी प्रतिष्ठा भी दांव पर।

            हला मैच तीन बार की फाइनलिस्ट नीदरलैंड और 2002 के बाद पहली बार क्वार्टर फाइनल में प्रवेश के लिए प्रयासरत अमेरिका की टीमों के बीच था। इस मैच में एक और युवा शक्ति और जोश से लबरेज अमेरिका की टीम थी जो अपने ग्रुप में इंग्लैंड के बाद नंबर दो पर थी। उसने अपने ग्रुप में ईरान को 1-0 से हराया था और इंग्लैंड से 0-0 से और वेल्स से 1-1 से ड्रा खेला था। दूसरी और नीदरलैंड एक अनुभवी टीम थी जो पिछले  साल लुइस वान गाल के कोच बनने के बाद से 18 मैचों के अपराजित रिकॉर्ड के साथ मैदान में थी। 

          मैच में अनुभव जोश पर भारी पड़ा और अमेरिकी चपलता यूरोपीय शक्ति के सामने पस्त हो गई। नीदरलैंड ने अमेरिका को 3-1 से हरा दिया और विश्व कप के अंतिम आठ यानि क्वार्टर फाइनल में पहुंचने वाली पहली टीम बन गई।

           हावत है मिले मौकों को लपक लेना चाहिए,उन्हें गंवाना हमेशा भारी पड़ता है और उसका खामियाजा उठाना पड़ता है। इस बात को आज अमेरिका की टीम और उसके खिलाड़ियों से बेहतर कौन समझ सकता है।

            मेरिका ने 4-3-3 के फॉर्मेशन के साथ मैच में तेज शुरुआत की। जबकि हॉलैंड की टीम 3-4-1-2 के फार्मेशन से खेल रही थी। पहले 09 मिनट का खेल  हॉलैंड के हाफ में हुआ और तीसरे ही मिनट में अमेरिका को एक बहुत ही आसान मौका मिला मैच में बढ़त बनाने का। उसके शानदार फॉर्म में चल रहे फारवर्ड पुलिसिस को बॉक्स के अंदर केवल डच गोलकीपर को मात देनी थी। लेकिन वो शॉट सीधे गोली के हाथ में मार बैठे। इसके बाद भी कई अच्छे मूव अमेरिकी टीम ने बनाए लेकिन फिनिश नहीं कर पाए। 10वें मिनट में पहली बार हॉलैंड को मौका मिला। एक काउंटर अटैक किया और 20 पासों के बाद राइट विंग से देन्ज़ेल दम्फ्रीज़ ने एक शानदार क्रॉस दिया और एक ही टच में दीपे के बॉक्स के बाहर से शानदार शॉट से गेंद जाल में समा गई। मोमेंटम पाला बदलकर हॉलैंड के पक्ष में आ चुका था। अमेरिका ने मिले मौके को गंवाकर मोमेंटम खो दिया था।

       ब हॉलैंड सुरक्षात्मक होकर काउंटर अटैक कर सकती थी और उसने ऐसा ही किया। उधर अमेरिका ने खेल की गति को धीमा किया और गेंद पर नियंत्रण रखा। लेकिन वे अच्छे मूव बनाने और  फिनिश करने में सफल नहीं हुए। गेंद पर उनके नियंत्रण को इस बात से समझा जा सकता है कि उनका बॉल पजेशन पहले हॉफ में हॉलैंड के 37 प्रतिशत के मुकाबले 643 प्रतिशत रहा। अमेरिका ने एक अच्छा मूव 42वें मिनट में फिर बनाया और बॉक्स के बाहर से वेह ने एक करारा शॉट लगाया जिसे हॉलैंड के गोलकीपर ने आसानी से रोक लिया। पहला हाफ बहुत साफ सुथरे ढंग से खेला गया और केवल एक मिनट का अतिरिक्त समय दिया गया। इस एक मिनट में हॉलैंड की टीम ने एक बार फिर शानदार मूव बनाया। एक बार फिर राइट विंग से दम्फ्रीज़ ने क्रॉस दिया जिसे इस बार  देले बलिंद गोल में डालकर हॉलैंड की बढ़त 2-0 की कर दी।

        दूसरे हाफ में संघर्ष और सघन हो गया। अमेरिका ने दबाव बनाना शुरू किया और तीसरे मिनट में अमेरिका फिर आसान मौका चूका। हॉलैंड का गोलकीपर आगे आ चुका था और खाली गोल था,लेकिन दीपे ने गोल लाइन से गोल बचाया। 

           अंततः 76 वें मिनट में अमेरिका को पहला गोल करने में सफलता मिली जब हाजी राइट ने गेंद गोल में डाल कर स्कोर 1-2 कर दिया। मैच एक बार फिर खुल गया। लेकिन 81 वें मिनट पर देले बलिंद के क्रॉस पर इस बार दम्फ्रीज़ ने गोल किया और मैच व अमेरिकी भाग्य को बंद कर दिया। मैच इस स्कोर पर खत्म हुआ।

         निसंदेह ये दम्फ्रीज़ का मैच था जिसने दो असिस्ट और एक गोल किया। ये अमेरिका के लिए मिले अवसरों को गंवाने और हार जाने का मैच था। इस पूरे टूर्नामेंट में बार बार ये सिद्ध हुआ कि अवसर चूक जाने का मतलब हार है। आप अवसर चूक जाना नॉक आउट में अफोर्ड नहीं कर सकते।अमेरिका ने अवसर चूके,खामियाजा भुगता और विश्व कप 2022 से उसका सफर समाप्त हुआ।

          ज का दूसरा मैच दो बार के विश्व चैंपियन अर्जेंटीना और दूसरी बार क्वार्टर फाइनल में पहुंचने के लिए आतुर ऑस्ट्रेलिया के बीच था। अर्जेंटीना के पास मैस्सी था। फुटबॉल का जादूगर। वो आज अपना एक हजारवाँ मैच खेल रहा था। जिस के 999 मैचों में 788 गोल और 348 असिस्ट थे। उसके पास दुनिया जहान की 41 ट्राफियां थीं। आज उसका प्रतिद्वन्दी नौसिखिया सरीखा था। वे अंतिम दो मैचों में मेक्सिको और पोलैंड को 2-0 से हराकर अपने ग्रुप में पहले स्थान पर थे। दूसरी और ऑस्ट्रेलिया केवल एक बार इससे पहले विश्व कप के इस स्टेज पर खेला था और पहले ही नॉकआउट मैच में हार गया था। इस बार के विश्व कप में उसने अपनी शुरुआत फ्रांस के हाथों 1-4 से हार के साथ की थी। लेकिन अगले दो मैचों में  ट्यूनीशिया और डेनमार्क को 1-0 से हरा कर अगले चरण में प्रवेश किया था।

           ये विश्व रैंकिंग में नंबर तीन बनाम नंबर अड़तीस का मुकाबला था। अर्जेंटीना के साथ उनका इतिहास,उनका खेल कौशल और मैस्सी था। दोनों टीमों के बीच खेले गए सात मैचों में पांच अर्जेंटीना ने जीते थे और एक ड्रा हुआ था। ऑस्ट्रेलिया केवल एक मैच जीत पाई थी, वो भी अरसे पहले 1988 में। लेकिन ऑस्ट्रेलिया के पास शारीरिक डील डौल, दमखम और ताकत थी जिसके बल पर वे किसी को भी धूल चटाने का माद्दा रखते हैं। उन्होंने क्रिकेट से लेकर हॉकी तक तमाम खेलों में अपना दबदबा कायम कायम कर सिद्ध भी किया है। लेकिन उनके पास सबसे बड़ी उम्मीद की किरण वो विश्वास था कि हर बड़ी टीम को हराया जा सकता है। लीग चरण के तमाम उदाहरण उसके सामने थे और पहले ही मैच में 51वीं रैंक वाली सऊदी अरब से उसकी आज की विपक्षी टीम  अर्जेंटीना की 1-2 से हार का उदाहरण भी। बारीक ही सही उम्मीद की एक किरण उनके जेहन को रोशन कर रही होगी कि अर्जेंटीना की टीम में सेंध लगाई जा सकती है।

           र्जेंटीना ने 4-3-3 के फार्मेशन से और ऑस्ट्रेलिया ने 4-4-2 के फार्मेशन से खेल की शुरुआत की। आरंभ में ही लग गया था कि ये मैच पहले मैच की तुलना में अधिक इन्टेन्सिटी से खेला जाएगा और ऐसा ही हुआ भी। ऑस्ट्रेलिया ने मैस्सी को शुरू में बांधकर रखा। जब उसके पास बॉल आती दो तीन खिलाड़ी उसपर टूट पड़ते। लेकिन शेर को कितनी देर बांध कर रखा जा सकता है। मैस्सी अपनी पोजीशन से हटकर पूरे मैदान में खेले और शीघ्र ही लय में आ गए और 35वें मिनट में बॉक्स के अंदर मिले पास को तीन खिलाड़ियों के बीच से निकालकर गेंद जाल में उलझा दी। ये मैस्सी के एक हजारवें मैच का 789 वां गोल था। उसके बाद भी मेसी ने अनेक शानदार मूव बनाये पर हॉफ टाइम तक स्कोर लाइन 1-0 अर्जेंटीना के पक्ष में रही। दूसरे हॉफ में अर्जेंटीना ने 57 वें मिनट में जूलियन अल्वारेज के गोल से 2-0 की बढ़त बना ली। लेकिन औस्ट्रेलिया ने हार नहीं मानी। उसने अंतिम समय तक संघर्ष किया और अर्जेंटीना को आखिरी सीटी बजाने तक निश्चिंत नहीं होने दिया। दोनों टीमों ने अच्छे मूव बनाये पर गोल करने के मौके बनाए। 77वें मिनट में ऑस्ट्रेलिया का गोल आया जब स्थानापन्न खिलाड़ी क्रेग गुडविन ने बॉक्स के बाहर से एक तेज़ तर्रार शॉट गोल की और लगाया और गेंद अर्जेंटीना के डिफेंडर फर्नान्डीज के सिर से लग कर अपने ही गोल के जाल में जा उलझी। अंततः अर्जेंटीना ने 2-1 से जीत दर्ज की और क्वार्टर फाइनल में प्रवेश किया।

        ज के मैच दुनिया के दो गोलार्द्धों के अपने अपने मैच थे। पहला उत्तर बनाम उत्तर तो दूसरा दक्षिण बनाम दक्षिण। अपनी अपनी प्रकृति के हिसाब से ही मैच खेले गए। इस दोनों मैचों को देंखे तो लगेगा कि पहला मैच अपेक्षाकृत अधिक शांत,अनुशासित और कम इन्टेन्सिटी वाला था जबकि दूसरा अधिक फिजिकल,अधिक इन्टेन्सिटी, कड़े संघर्ष वाला और उग्र था। अर्जेंटीना के पास ऑस्ट्रेलिया के शारीरिक बल का बराबरी का और समुचित प्रत्युत्तर था।

         दि पहला मैच पूरी तरह से देन्ज़ेल दम्फ्रीज़ का था  तो दूसरा मैच मैस्सी का। उन्होंने विश्व कप का कुल मिलाकर नवां और नॉक आउट दौर का पहला गोल किया। कड़ी मार्किंग और रफ टफ टेकलिंग के बावजूद शानदार मूव बनाए। अफसोस इस बात का मैस्सी को दो आसान अवसर मिस करते देखा।

         दो क्षेत्रीय संघर्षों ने एक बड़े फलक अन्तरक्षेत्रीय संघर्ष की ज़मीन तैयार कर दी है। अब ये जो अगला संघर्ष होना है वो यूरोप बनाम दक्षिण अमेरिका का संघर्ष होगा। वो उत्तर बनाम दक्षिण का संघर्ष होगा। वो अर्जेंटीना बनाम नीदरलैंड का क्वार्टर फाइनल मैच होगा।

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पिक्चर अभी बाकी है दोस्तों।



फुटबॉल_विश्व_कप डायरी 04


विश्व कप का पहला भाग
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फुटबॉल विश्व कप किसी भी एकल खेल की सबसे बड़ी और निसंदेह सबसे लोकप्रिय खेल प्रतियोगिता है। कमाल ये है कि 1930 में शुरू हुई इस प्रतियोगिता को शुरुआती दौर में अधिकांश देशों ने और विशेष रूप से यूरोपीय देशों ने खास तवज्जो नहीं दी थी। आज उसी प्रतियोगिता में सबसे बड़ा प्रतिनिधित्व यूरोप महाद्वीप का ही है।

स प्रतियोगिता का 22वां संस्करण इस समय एक खाड़ी देश कतर में चल रहा है। मध्य पूर्व में ये प्रतियोगिता पहली बार खेली जा रही है और शनै शनै अपने चर्मोत्कर्ष की और अग्रसर है। 20 नवंबर से शुरू हुई इस प्रतियोगिता का पहला चरण जो कि राउंड रोबिन लीग के आधार पर खेला जाता है,अब समाप्त हो चुका है और प्री क्वार्टर फाइनल (राउंड ऑफ 16) के मुकाबले तय हो चुके हैं।

हां से रोमांच का एक नया दौर शुरू होने वाला है जिसमें दुनिया जहान डूब जाने वाली है। क्योंकि यहां सिर्फ एक ही नारा काम करता है 'करो या मरो'। यानि या तो जीतो और आगे बढ़ो या हारो और बाहर हो जाओ। यहां से कोई वापसी नहीं है। चूक की कोई गुंजाइश नहीं है।

राउंड रोबिन लीग में कम से कम वापसी की एक गुंजाइश होती है। टीमें कुछ हद तक रिलेक्स रहती हैं। ये राउंड रोबिन की मेहरबानी है कि अर्जेंटीना और मैस्सी अभी भी विश्व कप में बने हुए हैं और बहुतों के लिए विश्व कप में अभी भी रुचि बाकी है। 

बावजूद इसके कि पहले चरण में नॉक आउट चरण जैसा रोमांच नहीं होता,क़तर विश्व कप का पहला चरण भी कम रोमांचक नहीं रहा है। तमाम बड़ी टीमें पहले चरण में ही बाहर हो गईं। कुछ अदना टीमों ने असाधारण खेल सिखाया और आगे बढ़ गईं। खेल के परंपरागत पावर हाउस और मठ ढह गए और नए शिखर बन गए। कुछ चमकते सितारों की चमक फीकी पड़ गई और कुछ नए सितारे फुटबॉल आकाश में जगमगाने लग गए।

यूं तो कोई भी प्रतियोगिता और कोई भी फुटबॉल विश्व कप कम रोमांचक नहीं रहा है, लेकिन फुटबॉल इतिहास में इस विश्व कप को विशेष रूप से याद रखा जाना है,ये तय है। ना केवल इस बात के लिए कि इस बार पहले चरण में सबसे ज़्यादा अपसेट हुए बल्कि इस बात के लिए भी ये अब तक के सबसे विवादास्पद खेल भी रहे। उलटफेर हर बार होते हैं,विवाद हर बार होते हैं,पर इस बार जैसे पहले कब हुए और कहां हुए।

  रअसल इस प्रतियोगिता की बुनियाद ही विवाद पर रखी गई थी। 2010 में क़तर को इस प्रतियोगिता का आबंटन हुआ तो क़तर पर इसे रिश्वत देकर अपने नाम आबंटित कराने के आरोप लगे। तब से लेकर ये प्रतियोगिता और इसका आयोजन लगातार विवादों के घेरे में रहा। स्टेडियम निर्माण और इसकी तैयारियों में भारत,पाकिस्तान, श्रीलंका,बांग्लादेश के आप्रवासी मज़दूरों के साथ अमानवीय व्यवहार के आरोप लगे। पश्चिमी मीडिया में साढ़े छह हजार से ज़्यादा मजदूरों की मौत का आरोप लगाया गया। बाद में समलैंगिकों को मान्यता ना देने और स्टेडियमों में दर्शकों के बीयर पीने पर रोक लगाने जैसे नियमों के चलते विशेषतया पश्चिमी देशों में खासी आलोचना की गई। 

रअसल ये विवाद इतना बढ़ गया कि फीफा को भाग लेने वाले देशों से लिखित अपील करनी पड़ी कि 'विवादों के बजाय फुटबॉल को केंद्र में रहने दें'। ऐसा प्रयास किसी के द्वारा किया गया हो ये तो पता नहीं पर जब एक बार खेल शुरू हुआ तो खुद ब खुद फुटबॉल केंद्र में आ गया और सारे विवाद किनारे धरे रह गए। फुटबॉल का जादू सिर चढ़कर बोलने लगा। फुटबॉल का नशा दर्शकों पर चढ़ गया।

खेल के तीसरे दिन सऊदी अरब ने प्रतियोगिता की संभावित विजेता अर्जेंटीना को 2-1 से हराकर अविस्मरणीय जीत हासिल की। उसके बाद उलटफेर का ये सिलसिला उस समय तक नहीं थमा जब 02 दिसंबर को पहले चरण के अंतिम दिन  कैमरून ने ब्राजील को 1-0 से हरा नहीं दिया। चौथे दिन जापान ने जर्मनी को 2-1 हराकर प्रतियोगिता का दूसरा धमाका किया। फिर कोस्टारिका ने जापान को 1-0 से,विश्व नंबर दो बेल्जियम को मोरक्को ने 2-0 से,दक्षिण कोरिया ने पुर्तगाल को 2-1 से,ट्यूनीशिया ने फ्रांस को 1-0से,ऑस्ट्रेलिया ने डेनमार्क को 1-0 से हराकर पहले चरण को रोमांचक बनाने में कोई कसर ना छोड़ी। इस बार पहले चरण में  कुल 12 अपसेट हुए जो किसी भी अन्य विश्व कप से ज़्यादा हैं।

 स पहले चरण में पुराने सितारों का जादू भी खूब चला। रोनाल्डो ने जब घाना के विरुद्ध गोल किया तो वे पांच विश्व कप में गोल करने वाले विश्व के पहले खिलाड़ी बने। पोलैंड के लेवोन्दोस्की ने अपना विश्व कप का पहला गोल किया। लेकिन पुरनियों से ज़्यादा नए चमके। स्पेन के 17 साल के गावी पेले के बाद विश्व कप में गोल करने वाले सबसे कम उम्र के खिलाड़ी बने। नीदरलैंड के गकपो पहले चरण के तीनों मैचों में गोल करने वाले 2002 के बाद पहले यूरोपियन खिलाड़ी बने। कनाडा के अल्फांसो डेविस,घाना के मोहम्मद कुदुस,इंग्लैंड के फिल फोडेन और दक्षिण कोरिया के सोन हूएन मिन ने अपने खेल से सबको चमत्कृत किया।

स्पेन की कोस्टारिका पर 7-0 से और इंग्लैंड की ईरान पर 6-2 से जीत इस चरण की सबसे बड़ी जीत रहीं हालांकि इस बार पहली प्रतियोगिताओं की तुलना में इस चरण में कम गोल हुए। ये इस बार का संकेत भी माना जाना चाहिए कि यूरोप व दक्षिण अमेरिका और बाकी विश्व की टीमों के बीच खेल के स्तर का अंतर कम हो रहा है और ये भी कि खेल अधिक प्रतिस्पर्धात्मक हो रहा है। इस बार इस चरण की एक महत्वपूर्ण बात बहुत अधिक अतिरिक्त समय दिया जाना रहा। कई बार तो ये समय 13 मिनट तक पहुंच गया और इस बात की मांग उठने लगी कि इस अतिरिक्त समय की अधिकतम सीमा 10 मिनट से ज़्यादा ना रहे।


स विश्व कप का पहला चरण अफ्रीका और विशेष रूप से एशियाई फुटबॉल के उठान के रूप में भी देखा जाएगा। मोरक्को ने शानदार खेल दिखाया और अंतिम 16 में पहुंचे। अफ्रीका से नॉक आउट दौर में पहुचने वाली दूसरी टीम है सेनेगल। लेकिन सबसे शानदार खेल एशियाई टीमों ने दिखाया और एशिया आशियाना क्षेत्र की तीन टीमें-दक्षिण कोरिया,जापान और ऑस्ट्रेलिया पहली बार नॉक आउट चरण में पहुंची। सऊदी अरब ने अर्जेंटीना को हराकर बड़ा उलटफेर किया। उसने प्रतियोगिता में शानदार खेल दिखाया,हालांकि अगले दौर में नहीं पहुंच पाई। दक्षिण कोरिया एक रोमांचक मैच में घाना से 2-3 से हार गया,पर उरुग्वे से ड्रा खेला और पुर्तगाल पर 2-1 से शानदार जीत हासिल कर अगले दौर में प्रवेश किया। सबसे शानदार खेल जापान का रहा।  ये उसका लगातार सातवां विश्व कप था। उसने पहले ही मैच में जर्मनी को 2-1 से हराकर बड़ा उलटफेर किया। हालांकि जापान कोस्टारिका से 0-1 से हार गया परंतु एक और उलटफेर में स्पेन को 2-1 से हरा दिया और नॉक आउट में जगह बनाई।

हले चरण के  दो मुकाबले फुटबॉल के कारण नहीं बल्कि राजनीतिक कारणों के चलते महत्वपूर्ण बन गए। लेकिन कुछ अलग नहीं हुआ। अमेरिका ने ईरान को 1-0 से हरा दिया और इंग्लैंड ने वेल्स को 3-0 से।

बसे महत्वपूर्ण बात ईरान की टीम ने महासा अमिनी और हिजाब हटाने के आंदोलन के समर्थन में राष्ट्रगान गाने से इनकार कर दिया। ये पहला चरण और ये विश्व कप  स्टेडियम के अंदर ईरान सरकार के समर्थकों और विरोधियों के बीच झड़प के लिए,फिलिस्तीन के समर्थन में उसके झंडे लहराए जाने के साथ ही इजरायल के दर्शकों को क़तर में आने की अनुमति देने के लिए और क़तर के अमीर द्वारा अपने राजनीतिक विरोधी देश सऊदी अरब के मैच के दौरान सऊदी अरब के झंडे को पहनने के लिए भी याद किया जाएगा।

याद रखिए नॉक आउट में तीन एशियाई, दो दक्षिण अमेरिकी,दो अफ्रीकी और अमेरिका के अलावा आठ टीमें यानी आधी यूरोप की हैं। यूरोप का अभी भी दबदबा बना हुआ है। बावज़ूद इसके कि जर्मनी,बेल्जियम और डेनमार्क की टीमें पहले ही दौर में बाहर हो गई हैं और इटली जैसी टीम विश्व कप के लिए लगातार दूसरी बार क्वालीफाई करने में विफल रही है।

म्मीद की जानी चाहिए जिसका आगाज़ इतना तूफानी और इतना रोमांचक हो उसका समापन भी कम रोचक और रोमांचक नहीं ही होने जा रहा है। मैस्सी,एमबापे, रोनाल्डो,लेवोन्दोस्की, सोन, नेमार जैसे खिलाड़ी मैदान में हों, वहां भरपूर संघर्ष और रोमांच के अलावा और किसकी उम्मीद की जा सकती है। 

नीलसन द्वारा एक एप्प से किए गए विश्लेषण के अनुसार एक सेमीफाइनल अर्जेंटीना व ब्राजील और दूसरा फ्रांस व स्पेन के बीच खेला जा सकता है और फाइनल ब्राजील व स्पेन के बीच जिसमें विजेता ब्राजील को होना है। ये एक रोचक भविष्यवाणी है। इसे एक ड्रीम लाइनअप माना जा सकता है। एक सेमीफाइनल दक्षिण अमेरिकी कलात्मकता का और दूसरा यूरोपियन पावर का और उसके बाद यूरोप और दक्षिण अमेरिका पारंपरिक संघर्ष  वाला फाइनल। 

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स आप फिंगर क्रॉस कीजिये और दिल थामकर बैठ जाइए। जो कुछ होगा वो रोमांच और जादू का दूसरा नाम होना है।



फुटबॉल_विश्व_कप 2022 डायरी_03


 

                                                       (साभार गूगल)

खेलों के अनोखे रंग
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      बसे उद्दात और मानवीय चेहरे खेल मैदान में नज़र आते आते हैं और उन चेहरों से सबसे खूबसूरत चित्र भी खेल मैदानों में ही बनते हैं।सेनेगल के सदियो माने हो,ब्रिटेन के मार्कस रशफोर्ड हों या 'ब्लैक लाइव्स मैटर' अभियान के समर्थन में घुटने टेकते खिलाड़ी,सब मैदान से आते हैं।

         सा ही एक खूबसूरत दृश्य क़तर में चल रही विश्व कप प्रतियोगिता के दौरान मैदान में देखने को मिला।

       ये क़तर विश्व कप का उद्घाटन मैच था।  ग्रुप ए का मेजबान कतर और इक्वेडोर का मैच था। खेल अभी शुरू हुआ  ही था,ये मैच का तीसरा मिनट था, इक्वेडोर के कप्तान और फारवर्ड वेलेंसिया ने गेंद गोल में डाल दी। उस गोल को सेलिब्रेट करने के लिए इक्वेडोर के सभी खिलाड़ी एक घेरा बना कर घुटने के बल बैठ गए और उसके बाद उन्होंने आसमां की और अंगुली उठाई। लेकिन वीएआर के बाद ये गोल निरस्त कर दिया गया। लेकिन उसके बाद वेलेंसिया ने दो गोल किये और इक्वेडोर के खिलाड़ियों ने हर गोल वैसे ही गोल सेलिब्रेट किया। दरअसल वे अपने महरूम साथी खिलाड़ी क्रिश्चियन रोगेलिओ बेनिट्ज़ बेटनकोर्ट को याद कर रहे थे जिनकी 2013 में दोहा में ही खलीफा स्टेडियम के पास स्थित एक अस्पताल में हृदयाघात से 27 वर्ष की उम्र में मृत्यु हो गई थी। ये इक्वेडोर के खिलाड़ियों के मन में अपने साथ खिलाड़ी के प्रति सम्मान और प्रेम का मार्मिक मुज़ाहिरा था।

       बेनिट्ज़ 'चूचो' के नाम से जाने जाते थे और इक्वेडोर के सबसे बड़े फुटबॉल आइकॉन । उनकी अपने देश में क्या अहमियत थी, ये इस बात से जाना जा सकता है कि उनके अंतिम संस्कार  में एक लाख से ज़्यादा लोगों ने भाग लिया था। और उनकी 11 नंबर की जर्सी को रिटायर कर दिया गया। हालांकि 2014 के विश्व कप में फीफा के नियमों के चलते ये नंबर बहाल करना पड़ा। 

       बेनिट्ज़ ने अपने प्रोफेशनल कॅरियर की शुरुआत स्पेन के  विलररियल क्लब से की । उसके बाद वे मेक्सिको प्राइमा लीग में सांतोस लगुना से खेले और तीन सीजन में सर्वाधिक गोल करने वाले खिलाड़ी थे। उसके बाद वे इंग्लिश प्रीमियर लीग में बर्मिघम सिटी से खेले। 2013 में वे क़तर के अल जैश क्लब में शामिल हो गए। इस क्लब के लिए उन्होंने एक ही मैच खेला था कि उनकी मृत्यु हो गयी। 

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लेकिन खेल मैदान का ये कोई आखिरी मर्मस्पर्शी दृश्य नहीं बन रहा था। यकीन मानिए ऐसे दृश्य आगे भी आपके मन को छूते रहेंगे


अकाराज_17



अकाराज_17
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 हारा थका दिन सांझ हुआ उनींदा हुआ जाता है।

कि वो रात के सीने पर सर रख कर सो जाता है।

चांद-तारों की मद्धम रोशनी से अपना दामन सजा रात किसी प्रेमिका सी उसके जागने की प्रतीक्षा करती रहती है।

र प्रतीक्षा है कि बेचैनी का सबब हुई जाती हैं और अधूरी रहने को अभिशप्त भी।

ये जानते हुए भी कि एक का जीवन दूसरे की मृत्यु है,रात है कि खुद को प्रतीक्षा में गलाती जाती है या कि सुब्ह में विलीन हुई जाती है।

वो खुश थी कि खत्म भी हुई तो क्या हुआ उसने दिन को नया जीवन तो दिया।

धर सुब्ह हुआ दिन है कि रात को भूला जाता है।



विश्व कप फुटबॉल डायरी_02

 

                                                        (गूगल से साभार)

अर्जेंटीना की हार
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     जीवन में अनहोनी खाने में नमक की तरह है। नहोनी  जीवन में ठहराव नहीं लाती,बल्कि उसे कुछ और गतिशील बनाती है। खेल जीवन का एक हिस्सा है और इस नाते अनहोनी भी।

     क़तर में चल रहे फुटबॉल विश्व कप में सऊदी अरब की टीम मेस्सी की अर्जेंटीना को 2-1 से हरा दिया है। 'ग्री फॉलकन्स' ने 'ला अलबिसेलेस्टे' का शिकार कर विश्व कप के सबसे बड़े उलटफेर कर दिया है।

     अर्जेंटीना के समर्थकों और मेस्सी के चाहने वालों के लिए ये किसी गहरे सदमे सा है। किसी वज्रपात सा आघात है। लेकिन इस परिणाम ने अब ग्रुप सी को पूरी तरह ओपन कर दिया है और इस ग्रुप के मुकाबलों को और रोचक बना दिया है,ये भी सच है।

     बीती रात क़तर की राजधानी दोहा से लगभग 40 किलोमीटर दूर लुसैल स्टेडियम में इस बार विश्व कप जीतने के प्रमुख दावेदारों में एक अर्जेंटीना सऊदी अरब की टीम के विरुद्ध अपना विश्व कप पहला मैच खेल रही थी। दसवें मिनट में मेस्सी पेनाल्टी से गोल कर अर्जेंटीना को 1-0 की बढ़त दिला देता है। 1930 में उरुग्वे के विरुद्ध फाइनल मैच के बाद 'ला अलबिसेलेस्टे' पहले हॉफ में बढ़त बनाने के बाद कोई मैच नहीं हारा था। इतना ही नहीं वो पिछले 36 मैच से अजेय था और इटली के 37 मैचों में अजेय रहने के रिकॉर्ड से एक मैच कम। लेकिन विश्व की 51 वीं रैंकिंग वाली सऊदी अरब इतिहास बनाने मैदान में उतरी थी।

     पहले गोल के बाद भी अर्जेंटीना ने लगातार दबाव बनाए रखा और तीन बार गेंद गोल पोस्ट में अंदर डाली पर तीनों बार ऑफ साइड करार दिए गए एक बार मेस्सी और दो बार लोरेटो मार्टिनेज। लेकिन दूसरे हॉफ में कहानी बदल गयी। 4-1-4-1 के फार्मेशन से रक्षात्मक खेल रही सऊदी अरब ने अर्जेंटीना पर दबाव बनाया और 48वें मिनट सालेह अल शेहरी ने बराबरी का गोल किया और फिर 53वें मिनट में सालेम अल दौसरी ने बढ़त दिलाकर विश्व कप फुटबॉल के सबसे बड़े उलटफेर को अंजाम दिया।

     सऊदी अरब के लिए ये 1994 के इतिहास की पुनरावृत्ति थी जब उसने बेल्जियम को 1-0 से हराया था और अर्जेंटीना के लिए 1990 के इतिहास का जब माराडोना की टीम को कैमरून ने 1-0 से हराया था।

     याद कीजिए 2018 के विश्व कप के अर्जेंटीना और फ्रान्स के प्री क्वार्टर फाइनल मैच की। एमबापे के खेल ने मेस्सी और अर्जेंटीना के विश्व कप को जीतने का सपना तोड़ दिया था। मैच की अंतिम सीटी बजते ही मैस्सी धीमे धीमे कदमों से मैदान से बाहर चल दिए थे। उन्होंने एक बार भी पीछे मुड़कर नहीं देखा था। क्योंकि वे जानते थे कि कजान स्टेडियम में उनके विश्व कप का सफर खत्म हो चुका है।

      लेकिन लुसैल स्टेडियम में 103 मिनट बाद जब मैच की अंतिम सीटी बजी तो वे बीच मैदान में खड़े नीचे ज़मीन को निहार रहे थे। वे मैदान छोड़कर नहीं गए। क्योंकि वे जानते थे ये सफर का अंत नहीं है। कजान में नॉक आउट हो गए थे,यहां लीग मैच था। आगे बढ़ने और विश्व कप जीतने की उम्मीदें और अवसर अभी बरकरार हैं।

       मैच समाप्त होने के बाद मैस्सी मैदान को देख रहे थे तो शायद वे उन संभावनाओं को तलाश कर रहे होंगे कि क्या वे एक बार फिर 18 दिसंबर को वे वहां होंगे। फाइनल इसी मैदान पर 18 दिसंबर को जो होना है। वे उस हरी घास के नीचे के रेगिस्तानी रेत में पानी के कुछ कण देखने की कोशिश में रहे होंगे और उनमें विश्व कप जीतने की उम्मीदों का अक्स खोज रहे होंगे। 

                                                 (गूगल से साभार

     और उस रेगिस्तानी रेत में निश्चय ही उन्हें कुछ पानी की बूंदे दिखाई दी होंगी। और ये भी उन्हें अहसास हुआ होगा कि वे बूंदे विदाई के दुख से निकली बूंदे नहीं हैं,बल्कि मैस्सी के सपने के टूट जाने की आशंका से निकले स्वेद कण भर हैं।

      मैच के बाद एंजेल डि मारियो कह रहे थे 'विश्व कप शुरु होने से पहले ना हम सर्वश्रेष्ठ थे और ना है और ना हार के बाद हम निकृष्टम।' 

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म्मीद अभी कायम है - मैस्सी की भी,अर्जेंटीना की भी और उनके चाहने वालों की भी।



Wednesday 23 November 2022

हैय्या हैय्या फुटबॉल_ विश्व कप 2022 डायरी_01



व्यक्ति के हाथ भी कितने जादुई होते हैं! उनसे कितनी जादुई करामातें की जा सकती हैं,ये हम सब जानते हैं। आखिर यूँ ही उक्तियाँ थोड़े ही बनी हैं कि 'व्यक्ति के हाथ में उसकी किस्मत होती है' या फिर 'अपना हाथ जगन्नाथ'। लेकिन यकीन मानिए दोस्तों पैर भी कम जादुई नहीं होते हैं। उनसे भी जादुई संसार रचा जाता है।

जब पैर लय से थिरकते हैं तो नृत्य जैसी खूबसूरत मनमोहक कला का जन्म होता है। जब उन पैरों की लय को गति और घुंघरुओं का साथ मिलता है तो व्यक्ति केलुचरण महापात्र,पं बिरजू महाराज,मृणालिनी साराभाई,गोपी कृष्ण, लच्छू महाराज,सोनल मानसिंह या फिर माइकल जैक्सन, मिखाइल बेरिश्निकोव, मैडोना, शकीरा और मार्था ग्राहम जैसे अद्भुत कलाकारों के रूप में दुनिया में जाने जाते हैं।

जब इन पैरों को लय के साथ गति और शक्ति मिलती है तो दुनिया को अविस्मरणीय दौड़े मिलती हैं और मिलते हैं महान धावक। ये इन पैरों की करामात थी कि फेडीपिडिस मैराथन के युद्ध के मैदान से एथेंस तक एक ऐतिहासिक दौड़ दौड़ता है। इन्हीं पैरों की अदभुत करामात से पावो नूरमी,जेसी ओवेन्स,सेबेस्टियन को,बेन जॉनसन, उसैन बोल्ट,कार्ल लेविस, ग्रिफ्फिथ जॉयनर,मो फराह,हैली गैब्रेसिलासी, मिल्खा सिंह और पी टी उषा बनते हैं,जिनके पैरों की गति,लय और शक्ति मिलकर आपको विस्मय से भर देती हैं।


ठीक ऐसे ही, जब पैरों की गति और लय को एक अदद 60 सेंटीमीटर परिधि वाली और लगभग 300 ग्राम वजन वाली गेंद मिलती है तो फुटबॉल जैसा अनोखा खेल बनता है जिसे हमारी दुनिया के हर कोने में चाहने वाले लोग होते हैं। जो दुनिया की अधिकांश जनता का सबसे प्रिय खेल बन जाता है। जब 100 गज लंबे और 65 गज चौड़े मैदान में जब एक जोड़ी पैर इस गेंद के संपर्क में आते हैं तो पैर गति और लय से कलात्मकता का एक ऐसा जादुई संसार रचते हैं कि देखने वाले आनंद के सागर में डूब डूब जाते हैं। ये पैर फुटबॉल के उन जादूगरों के होते हैं जिन्हें हम और आप पेले,माराडोना,मेस्सी,रोनाल्डो,नेमार,बेंजीमा,

पाउलो रोसी,जोहान क्रुफ,जिनेदिन ज़िदाने,फ्रांज़ बेकनबाउर,अल्फ्रेडो डी स्टिफानो या ऐसे ही ना जाने कितने नामों से जानते हैं। 

यूं तो ये करामाती पैरों के जादूगर साल दर साल अपने जादू से दर्शकों को एक रोमानी दुनिया में ले जाते रहते हैं। पर हर 4 साल में एक बार दुनिया के किसी एक कोने में इन जादूगरों का एक मेला लगता है, जहां इनमें एक दूसरे को पछाड़ने की होड़ लगी रहती है। और इस होड़ में वे अपने चाहने वालों को चमत्कृत करते रहते हैं। वहां इन के पैरों की प्रतिभा की सीमा आकाश की अनंत ऊंचाई होती है। पैरों के इन जादूगरों के इस चार साला मेले को हम और आप फीफा विश्व कप के नाम से जानते हैं।


इस बार ये मेला  खाड़ी के देश क़तर में कल यानि 20 नवंबर से शुरू होने जा रहा है जो 18 दिसंबर तक चलेगा। लगभग एक महीने चलने वाली इस प्रतियोगिता में पांचों महाद्वीप की 32 सर्वश्रेष्ठ टीमें अपने अद्भुत खेल कौशल,रणनीति चातुर्य और तकनीकी श्रेष्ठता का सर्वोत्तम निदर्शन करेंगी और और फुटबॉल की दुनिया का सिरमौर बनने की कोशिश में अपना सबकुछ झोंक देने को तत्पर रहेंगी।

इस बार विश्व कप के लिए 5 कॉन्फेडरेशन से कुल 32 देशों ने अहर्ता प्राप्त की है। एशियन फुटबॉल एसोसिएशन से छह टीम,कॉन्फेडरेशन ऑफ अफ्रीकन फुटबॉल से पांच टीम,कॉन्फेडरेशन ऑफ नार्थ सेंट्रल अमेरिका एंड कैरेबियन एसोसिएशन फुटबॉल और साउथ अमेरिकन फुटबॉल असोसिएशन से चार-चार टीम और यूनियन ऑफ यूरोपियन फुटबॉल असोसिएशन से तेरह टीम शामिल हैं।

इन 32 टीमों से केवल 24 वे टीम हैं जो 2018 के विश्व कप में खेली थीं। इस बार मेज़बान क़तर की एकमात्र टीम जो विश्व कप फाइनल में पहली बार खेल रही है। वो मेजबान होने के नाते इसमें खेल रही है। अन्यथा ये पहला विश्व कप है जिसमें क्वालीफाई करने वाली टीमों में एक भी डेब्यू नहीं कर रही है। हॉलैंड,घाना,इक्वेडोर,कैमेरून और अमेरिका की पिछले विश्व कप में अनुपस्थिति के बाद फिर से वापसी कर रही हैं। कनाडा की टीम 36 साल बाद वापसी कर रही है तो वेल्स की टीम 64 साल बाद।

इस बार भी सबके ज़्यादा कमी चार बार की विश्व चैंपियन और वर्तमान यूरोपियन चैंपियन इटली की होगी। वो लगातार दूसरी बार विश्व कप के लिए क्वालीफाई करने में विफल रही है।

32 टीमों को कुल आठ ग्रुप में बांटा गया है। ये लीग काम नॉक आउट आधार पर खेला जाएगा।प्रत्येक ग्रुप से दो टीमें नॉक आउट चरण के लिए क्वालीफाई करेंगी। यूं तो इस बार किसी भी ग्रुप को 'ग्रुप ऑफ डेथ'नहीं कहा जा रहा है लेकिन बावजोइड इसके ग्रुप ई को सबसे कठिन ग्रुप माना जा रहा है। इसमें में पुर्तगाल,जर्मनी,कोस्टारिका और जापान।

इस बार विश्व रैंकिंग में नंबर एक टीम और पांच बार की चैंपियन ब्राजील सबसे फ़ेवरिट टीम मानी जा रही है। पिछली चैंपियन फ्रांस,अर्जेंटीना,पुर्तगाल  बेल्जियम भी इस बार के फ़ेवरिट हैं। इसके अलावा जर्मनी और क्रोशिया की टीम को भी कम नहीं आंका जा रहा है।

1930 में उरुग्वे से शुरू हुए फीफा विश्व कप का ये 22वां संस्करण है। क़तर को 2010 में मेजबानी सौंपी गई तब से ही उसकी मेजबानी लगातार विवादों के घेरे में रही है। ये कहा गया कि क़तर ने मेजबानी के लिए फीफा ऑफिशल्स को घूस दी थी और क़तर मेजबानी योग्य नहीं था। सामान्यतः विश्व कप जून जुलाई में होते हैं,जबकि उस समय क़तर में भीषण गर्मी पड़ती है। इसी वजह से इसका समय बदल कर नवंबर दिसंबर कर दिया गया। लेकिन ये समय अनेक बड़ी लीग का समय होता है। इसलिए के लीग को स्थगित करना पड़ा और पूरा फुटबॉल सीजन गड़बड़ा गया।

समलैंगिकों पर और शराब पर प्रतिबंध की भी पश्चिमी देशों की मीडिया में खूब आलोचना हुई। लेकिन सबसे बड़ी आलोचना स्टेडियमों और विश्व कप के अन्य निर्माण में लगे आप्रवासी मजदूरों के शोषण के लिए की जा रही है। कथित तौर पर इन निर्माण कार्यों के दौरान छह हजार से ज़्यादा मजदूरों की मौत हुई।

फिलहाल विश्व कप कुल आठ स्टेडियम में खेले जाएंगे। सबसे बड़ा स्टेडियम लुसैल स्टेडियम है जिसकी क्षमता 80 हज़ार दर्शकों की है। दूसरा बड़ा स्टेडियम अल खोर में स्थित अल बहत स्टेडियम है जिसकी क्षमता 60 हज़ार दर्शकों की है। इसके अलावा दोहा का स्टेडियम 974 और अल थमामा स्टेडियम,खलीफा इंटरनेशनल स्टेडियम,एजुकेशन सिटी स्टेडियम,अल जैनब स्टेडियम और अहमद बिन अली स्टेडियम हैं। उद्घाटन समारोह और उसके बाद प्रतियोगिता का पहला मैच मेजबान क़तर और इक्वेडोर के बीच अल बहत स्टेडियम में होगा और फाइनल मैच लुसैल स्टेडियम में। 

इस बार प्रतियोगिता का शुभंकर है लाईब(la'eeb) इस अरबी शब्द का अर्थ है 'सुपर कुशल खिलाड़ी'। ऑफिसियल बॉल है 'अल रिहला'जिसका अर्थ है 'यात्रा'। इस बार चार फीफा ने चार आधिकारिक गीत 'हैया हैया', 'हरबो', 'लाइट द स्काई' और 'तुको ताखा'जारी किए हैं।

ये विश्व कप प्रतियोगिता इस लिए भी महत्वपूर्ण है कि फुटबॉल इतिहास के दो सबसे बड़े खिलाड़ी - मैस्सी और रोनाल्डो का ये पांचवा और अंतिम विश्व कप है।

जो भी हो इस विश्व कप में विश्व के सबसे शानदार खिलाड़ियों की दक्षता और प्रतिभा का मुकाबला या फिर फुटबॉल की महारथी टीमों के बीच संघर्ष भर देखने को नहीं मिलेगा बल्कि विश्व के सबसे बड़े फुटबॉल मैनेजरों की रणनीतियों और व्यूह रचना कौशल के संघर्ष की आजमाइश भी होगी। विभिन्न खेल शैलियों की टकराहट और मुकाबले का निदर्शन भी होगा और खेल के पीछे अलग अलग महाद्वीपों की सामाजार्थिक और सांस्कृतिक मूल्यों बीच श्रेष्ठता का द्वंद भी।

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ये आनंद और रोमांच में डूब जाने का समय है। भले ही आप कतर में ना हों,बस कल से टीवी का स्विच ऑन कर लीजिए और टीवी का रिमोट हाथ में धारण।



एक कदम आगे



 एक कदम आगे

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बीसीसीआई के एक निर्णय के अनुसार 'अब से महिला क्रिकेटरों को भी पुरुषों के समान पारिश्रमिक मिलेगा'। 2006 में भारतीय महिला क्रिकेट एसोसिएशन के बीसीसीआई में विलय होने के बाद से बीसीसीआई द्वारा महिला क्रिकेट के लिए पहला बड़ा और ठोस कदम है। ये लड़कियों की कड़ी मेहनत और संघर्ष का नतीजा है। ये वही लड़कियां हैं जिन्हें कभी अपनी किट और दैनिक भत्तों तक के लिए संघर्ष करना पड़ता था।

मिताली राज,हरमनप्रीत कौर ,झूलन गोस्वामी, स्मृति मंधाना जैसी खिलाड़ियों ने अपने खेल के को उन ऊंचाइयों पर पहुंचा दिया कि वे 'क्रिकेटिंग आइकॉन' बन गईं। हाल के दिनों में भारतीय महिला क्रिकेट ने महत्वपूर्ण सफलताएं प्राप्त की हैं और क्रिकेट जगत में महत्वपूर्ण स्थान बनाया है। इसका दबाव भी इस निर्णय में ज़रूर रहा होगा।

सच बात तो ये है कि बीसीसीआई ने ये लड़कियों को सौगात खैरात में नहीं दी है। दरअसल अब उनकी उपेक्षा की ही नहीं जा सकती थी। उन्हें पता है कि अब महिला भारत में इतना लोकप्रिय हो गया है कि उसे बेचा जा सकता है। निसंदेह ये लड़कियों की कड़ी मेहनत का हासिल है। और बीसीसीआई इस महत्वपूर्ण अवसर को कैसे हाथ से जाने दे सकता था। 

ध्यान दीजिए अगले सीजन से महिला आईपीएल भी शुरू होने जा रहा है।

और हां ये समानता अभी अधूरी है। लड़ाई बाकी है। ये केवल फीस की समानता है। अनुबंध में अभी भी भारी अंतर है।

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फिर भी बहुत बधाई लड़कियों!

Sunday 25 September 2022

थम गई चकदाह एक्सप्रेस

 


शहर लंदन भी क्या शहर है। कितना खुशकिस्मत। कितना प्रिविलेज्ड। फुटबॉल का वेम्बले इस शहर में है। टेनिस का विंबलडन इस शहर में है। क्रिकेट का लॉर्ड्स इस शहर में है।

शायद ये इस शहर का आकर्षण ही है कि लंबे समय से अनवरत दौड़ रहीं दो खेल एक्सप्रेस यहां आकर ठहर जाती हैं हमेशा हमेशा के लिए। 

ये साल 2022 है। तारीख़ 24 सितंबर की है। खेल इतिहास में दो सफे लिखे जा रहे हैं। दो खेलों के दो महान खिलाड़ी अपने अपने खेल मैदान को अलविदा कह रहे हैं।

24 साल से निरंतर दौड़ रही टेनिस की 'फ़ेडेक्स'शहर के 'द ओ टू' एरीना में आकर ठहर जाती है।

उधर कोलकाता के ईडन गार्डन से एक क्रिकेट एक्सप्रेस 'चकदा एक्सप्रेस' 20 साल लंबी अनवरत यात्रा कर क्रिकेट के मक्का 'लॉर्ड्स'पहुंचती है और यहां आकर विश्राम की मुद्रा में ठहर जाती है।


महिला क्रिकेट की दुनिया की सबसे सफल और सबसे तेज गेंदबाज झूलन निशित गोस्वामी अपने बेहद सफल और 20 साल लंबे  कॅरियर के समापन की घोषणा करती हैं।

ये बीस साल लंबा जीवन हैरतअंगेज कर देने वाला है। इस दौरान वे 12 टेस्ट मैच, 204 एकदिवसीय मैच और 68 टी20 मैच खेलती हैं। वे एकदिवसीय क्रिकेट में सबसे ज़्यादा विकेट लेने वाली खिलाड़ी हैं। उन्होंने कुल 255 विकेट लिए हैं। दक्षिण अफ्रीका की शबनिम इस्माइल के 191 और ऑस्ट्रेलिया की फ्रिट्ज़पेट्रिक से मीलों आगे। इतना ही नहीं क्रिकेट के सभी फॉर्मेट में कुल मिलाकर सबसे ज़्यादा विकेट लेने वाली खिलाड़ी हैं। उनके नाम कुल 355 अंतरराष्ट्रीय विकेट हैं। उनके बाद कैथरीन ब्रन्ट (329),एलिस पेरी(313)शबनिम इस्माइल(309) और अनीसा मोहम्मद (305)  ही तीन सौ से अधिक विकेट लेने वाली गेंदबाज हैं।

झूलन एक बेहतरीन आल राउंडर खिलाड़ी हैं। मध्यम तेज गति की गेंदबाज और मध्यमक्रम की राइट हैंड बल्लेबाज़। गति उनकी बोलिंग का सबसे बड़ा हथियार है। वे निरंतर 120 किमी की गति से गेंद फेंकती रहीं है। तेज गति और अचूक लेंथ और लाइन उन्हें दुनिया की सबसे सफल गेंदबाज बनाती है।

झूलन साल 2002 में 19 साल की उम्र में चेन्नई में इंग्लैंड के खिलाफ एकदिवसीय मैच से अपने अंतरराष्ट्रीय कॅरियर की शुरुआत करती हैं। तीन महीने बाद इंग्लैंड के विरुद्ध ही वे अपना पहला टी20 मैच खेलती हैं। टेस्ट क्रिकेट का आगाज़ करने के लिए उन्हें चार साल और इंतज़ार करना पड़ता है। लेकिन इसकी शुरुआत भी होती इंग्लैंड के विरुद्ध ही है।

क्या ही संयोग है वे अपने कॅरियर की समाप्ति भी इंग्लैंड के खिलाफ ही मैच से करती हैं। कितनों के भाग्य में कॅरियर की समाप्ति लॉर्ड्स के मैदान में करना लिखा होता है। ये झूलन के भाग्य में था। ये उन्हें मिला नहीं। उन्होंने इसे अर्जित किया है।

भारतीय महिला क्रिकेट टीम इंग्लैंड के दौरे पर है। वो पहले दो मैच जीतकर 2-0 की बढ़त ले चुकी है। ऐसा पिछले 24 सालों में पहली बार हो रहा है।

फिर 24 सितंबर का दिन आता है। भारत इंग्लैंड के विरुद्ध सीरीज का तीसरा मैच होने जा रहा है। भारतीय बालाएं सीरीज जीत चुकी हैं। पर उनकी आंखें नम हैं। उनके हृदय मलिन हैं। लॉर्ड्स की फिजा में नमी उग आई है। सारा वातावरण सीला सीला सा है। उनकी अपनी पूर्व कप्तान, दुनिया की सबसे सफल गेंदबाज आज अंतिम बार जो मैदान पर उनके साथ उतरेगी।

झूलन गोस्वामी इस मैच के बाद क्रिकेट को विदा कह देंगी।

अब अद्भुत दृश्य आकार लेते जाते हैं।

मैच से पहले टॉस हो रहा है। भारतीय कप्तान टॉस के लिए अकेले नहीं जाती। उनके साथ झूलन जा रहीं हैं। इंग्लैंड की कप्तान एमी जोंस सिक्का उछालती हैं और झूलन 'हेड' कहती हैं। टॉस एमी जीतकर क्षेत्र रक्षण चुनती हैं। अब झूलन और एमी हाथ मिलाती हैं। झूलन के बराबर खड़ी हरमनप्रीत की आंखें डबडबा आई हैं।


अब भारतीय टीम बैटिंग कर रही है। भारत के सात विकेट आउट हो चुके हैं। पूजा वस्त्रकार आउट होकर वापस पैवेलियन लौट रही हैं और झूलन मैदान में प्रवेश कर रही हैं। सीमारेखा के अंदर इंग्लैंड की सभी खिलाड़ी दो समानांतर पंक्तियों में खड़ी हैं। वे झूलन को गार्ड ऑफ ऑनर दे रही हैं।

अब भारतीय टीम फील्डिंग के लिए मैदान में जा रही है। भारतीय खिलाड़ी कतारबद्ध खड़ी हैं और झूलन को 'गार्ड ऑफ ऑनर'दे रही हैं। वे झूलन को ऐसे ही पिच तक ले जाती हैं। 

ये इंग्लैंड की पारी का 36वां ओवर है। गेंद झूलन के हाथ में हैं। वे अपनी इस पारी का दसवां और अपने खेल कैरियर की आखिरी 6 गेंद फेंकने वाली हैं। 5 गेंद फेंक चुकी हैं। अब उन्होंने अपनी आखिरी गेंद फेंकी। ये एक डॉट बॉल थी। उनके जीवन की 10005वीं गेंद थी। अब तक किसी और गेंदबाज ने इतनी गेंद नहीं डाली हैं। पर झूलन औरों से जुदा हैं। वे ये कारनामा कर सकती हैं। उन्होंने कर दिखाया है।

आखिरी गेंद फेंकते ही हरमनप्रीत दौड़कर झूलन को बाहों में भर लेती हैं। उनकी आंखों से पानी बरस रहा है। इतने में सारे खिलाड़ी उनसे लिपट गए हैं। आंखें सबकी बरस रहीं हैं।

मैच समाप्त हो गया है। भारत ने ये मैच 16 रनों से जीतकर सीरीज क्लीन स्वीप कर ली है। खिलाड़ियों ने झूलन को कंधों पर उठा लिया है और कंधों पर झूलन को मैदान से बाहर जाए जाते हैं। ऐसी बिदाई झूलन के अलावा बस क्रिकेट के भगवान सचिन को ही नसीब हुई है।

दरअसल लॉर्ड्स के मैदान के ये अद्भुत दृश्य, अपने साथी को ऐसी विदाई, ऐसा सम्मान पाने के दृश्य ऐसे ही नहीं बनते। इसके पीछे घोर संघर्ष,कड़ी मेहनत, अदम्य इच्छाशक्ति और दृढ़ मनोबल की ज़रूरत पड़ती है। झूलन को ये सम्मान यूं ही नही मिल गया। ये उन्होंने अपने लिए अर्जित किया है।

ये सम्मान उनके द्वारा देखे गए सपने और उन सपनों को पूरा करने की उनकी लगन,उनकी कड़ी मेहनत,उनके असाधारण परिश्रम और अदम्य साहस का प्रतिफल है। ये क्रिकेट के लिए उनका जूनून था। टीन ऐज में रोजाना चकदाह से कोलकाता के विवेकानंद स्टेडियम तक का 80 किलोमीटर का फ़ासला झूलन जैसी जीवट की बालिका के बस की बात हो सकती है।

ये झूलन का जूनून, उनकी मेहनत और लगन ही थी कि चकदाह से कोलकाता का सफर चेन्नई से लॉर्ड्स लंदन तक के सफर में तब्दील हो जाता है। कि फुटबॉल की दीवानी एक लड़की विश्व की सबसे सफल गेंदबाज बन जाती है। कि वो अद्भुत सम्मान और अपूर्व प्रेम की हकदार बन जाती है।

झूलन का ये सम्मान दरअसल एक खिलाड़ी भर का सम्मान नहीं है। ये भारतीय महिला क्रिकेट का सम्मान है। झूलन का संघर्ष केवल एक खिलाड़ी का संघर्ष नहीं है,ये भारतीय महिला क्रिकेट का संघर्ष और विजयगाथा है।

भारतीय महिला क्रिकेट का सम्मान पाने और समान दर्जा पाने का संघर्ष पिछली शताब्दी में सत्तर के दशक में शांता रंगास्वामी जैसी ख़िलाडियों के साथ शुरू होता है। 2006 में महिला क्रिकेट का प्रबंधन बीसीसीआई अपने हाथों में ले लेता है। पर महिला खिलाड़ियों का संघर्ष जारी रहता है। उनकी स्थिति किस हद तक दयनीय थी इस बात का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि उन्हें अपनी किट तक के लिए लड़ाई लड़नी होती थी। उन्होंने हार नहीं मानी। अपनी योग्यता से उन्होंने विश्व क्रिकेट में अपनी हैसियत बनाई और वो सम्मान हासिल किया जो 24 सितंबर 2022 को लॉर्ड्स में झूलन को मिला।

झूलन  की असाधारण विदाई और सम्मान केवल झूलन का सम्मान नहीं है,ये भारतीय महिला क्रिकेट का सम्मान है,पूरी आधी आबादी का सम्मान है।

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झूलन को असाधारण क्रिकेट कॅरियर और उपलब्धियों के लिए बधाई और जीवन की नई पारी के लिए शुभकामनाएं।

खेल मैदान से अलविदा झूलन


ये हार भारतीय क्रिकेट का 'माराकांजो' है।

आप चाहे जितना कहें कि खेल खेल होते हैं और खेल में हार जीत लगी रहती है। इसमें खुशी कैसी और ग़म कैसा। लेकिन सच ये हैं कि अपनी टीम की जीत आपको ...