Sunday, 4 December 2022

अकाराज_17



अकाराज_17
०००

 हारा थका दिन सांझ हुआ उनींदा हुआ जाता है।

कि वो रात के सीने पर सर रख कर सो जाता है।

चांद-तारों की मद्धम रोशनी से अपना दामन सजा रात किसी प्रेमिका सी उसके जागने की प्रतीक्षा करती रहती है।

र प्रतीक्षा है कि बेचैनी का सबब हुई जाती हैं और अधूरी रहने को अभिशप्त भी।

ये जानते हुए भी कि एक का जीवन दूसरे की मृत्यु है,रात है कि खुद को प्रतीक्षा में गलाती जाती है या कि सुब्ह में विलीन हुई जाती है।

वो खुश थी कि खत्म भी हुई तो क्या हुआ उसने दिन को नया जीवन तो दिया।

धर सुब्ह हुआ दिन है कि रात को भूला जाता है।



No comments:

Post a Comment

अकारज_22

उ से विरल होते गरम दिन रुचते। मैं सघन होती सर्द रातों में रमता। उसे चटकती धूप सुहाती। मुझे मद्धिम रोशनी। लेकिन इन तमाम असंगतियां के बीच एक स...