Friday 30 December 2022

अलविदा 'द ओ री दो फ़ुतबाल'


  


अलविदा 'द ओ री दो फ़ुतबाल
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जिस व्यक्ति के बारे में हम कह सुन रहे हैं,इतना लिख पढ़ रहे हैं,दरअसल पहले जान तो लें वो है क्या!

पेले के समकालीन और दुनिया के महानतम फुटबॉलरों में शुमार हॉलैंड के जोहान क्रुयफ़ ने एक बार कहा था 'पेले एकमात्र ऐसे फुटबॉलर हैं जो तर्क की सारी सीमाओं को पार कर गए हैं।'

र्क की सीमा के पार मनुष्य होते हैं क्या! नहीं ना! तो क्या वे फुटबॉल के ईश्वर थे? शायद हाँ!

भी तो एक दूसरे महानतम फुटबॉलर हंगरी के फ्रेंक पुस्कास ने कहा था ' इतिहास का महानतम खिलाड़ी डी स्टिफानो था। मैं पेले को खिलाड़ी मानने से इनकार करता हूँ। वो इन सबसे ऊपर है।' 

क खिलाड़ी से ऊपर आखिर कौन हो सकता है! एक ईश्वर ही ना! यानी पेले एक ईश्वर ही थे ? 

1970 के विश्व कप फाइनल में ब्राज़ील ने इटली को 4-1 से हराया था। उस मैच में उन्हें मार्क कर रहे महान इतावली डिफेंडर तार्सीसिओ बर्गनिच कह रहे थे 'मैच से पहले मैंने स्वयं को समझाया आखिर है तो वो भी(पेले) औरों जैसा हाड़ मांस का बना व्यक्ति ही। पर मैं गलत था।'

यानी वो एक इंसान भी नहीं था। स्वाभाविक है ईश्वर ही होगा!

हां याद आया दो बार खुद पेले ने भी कुछ ऐसा ही कहा था। 1970 के विश्व कप के दौरान मेनचेस्टर यूनाइटेड के डिफेंडर पैडी क्रेरंद ने एक टीवी शो में पेले से पूछा कि 'पेले के हिज्जे (spelling)क्या हैं।' पेले ने कहा 'बहुत ही आसान। जी ओ डी(G O D)।' एक अन्य बार ये पूछे जाने पर कि क्या उनकी शोहरत ईसा जितनी ही है,उन्होंने कहा था कि 'दुनिया के कुछ हिस्सों में ईसा को उतनी अच्छी तरह से नहीं जाना जाता है।'

तो तय हुआ कि अगर वे तर्कातीत थे,एक खिलाड़ी से कहीं अधिक थे और हाड़ मास के इंसान भी नहीं थे,तो ईश्वर ही होंगे।

 आज तक मैं भी उसे देव तुल्य ही जानता समझता था। मेरे तईं फुटबॉल का कुल इतिहास दो देवताओं का इतिहास था। जो पेले से शुरू होकर मैस्सी पर खत्म हो जाता है। मुझे उन दोनों के बीच माराडोना ही एक ऐसा इंसान नज़र आता था जो उन देवताओं के सामने ताल ठोंकता,उन्हें चुनौती देता नज़र आता था।

लेकिन आज जब एडसन अरांतेस दो नेसीमेंतो नाम के शरीर ने पेले नाम की आत्मा को बेघर कर दिया है,तो कुछ अलग ही अहसास हुआ जाता है। दृष्टि है कि साफ हुई जाती है। मन का भ्रम है कि छंटा जाता है। मन  में बनी एक मूर्ति है जो टूट टूट जाती है। और?

र एक ईश्वर है कि जिसकी मौत हुई जाती है।

ब पेले नाम के किसी ईश्वर को मैं नहीं जानता। पेले हाड़ मांस का बना हम और आप जैसा ही एक व्यक्ति था,एक ऐसा व्यक्ति जिसकी मृत्यु भी होती है,जो खिलाड़ी था और जो फुटबॉल खेलता था। ऐसी फुटबॉल खेलता जैसी कोई दूसरा ना खेल पाता। एक ऐसा फुटबॉलर जैसा कोई दूसरा ना था। ठीक वैसा ही जैसे एक बीथोवन था,एक बाख था और  माईकेल एंजेलो। और ये सब ईश्वर की अनुपम देन ना थीं, तो क्या थीं।

रअसल ये इंसान की फितरत है कि वो इंसानी सीमाओं को पहचानता ही नहीं।  वो नहीं जानता इंसान की क्षमताएं क्या और कितनी हैं। एक इंसान के वे कार्य जो उसके लिए जब तर्क से परे हो जाते हैं,तो उसमें देवत्व को आरोपित कर देता है।

लेकिन इंसान की तर्कातीत उपलब्धियों में देवत्व का आरोपण मनुष्यता का और खुद मनुष्य का अपमान है। ये मनुष्य की उपलब्धियों को छोटा कर देना है। मनुष्य को रिड्यूस कर देना है। शायद पेले को देवता कहना, ईश्वर  बनाना उसकी असाधारण क्षमताओं को रिड्यूस कर देना है। 

पेले हाड़ मांस का बना एक खूबसूरत इंसान था, और है और रहेगा। वो एक ऐसा इंसान था जो मानवीय गरिमा से ओतप्रोत था और जिसका चेहरा मानवीय करुणा दीप्त होता था।

वो हाड़ मांस का बना एक ऐसा खिलाड़ी था जिसने 17 साल की उम्र में पहला विश्व कप जीत लिया था। जिसने एक नहीं, दो नहीं, तीन-तीन विश्व  विश्व कप जीते थे। जिसने एक,दो या सौ, दो सौ नहीं बल्कि कुल 1283 गोल किए थे। एक ऐसा खिलाड़ी, फुटबॉल का ऐसा जादूगर था जिसके पैरों का जादू देखने भर को नाइजीरिया के सिविल वार में लड़ते दो पक्ष 48 घंटों का युद्ध विराम कर दिया था। ऐसा खिलाड़ी था जिसने खेल कौशल को उस सीमा तक पहुँचा दिया था वो तर्कातीत हो जाती थी।

सने एक ऐसी  असाधारण उपलब्धि धारण की थी कि सिर्फ 29 साल की उम्र में 1000वां गोल कर सका और उसकी  इस उपलब्धि को चांद पर जाकर सेलिब्रेट किया गया। आखिर क्या ही संयोग विधि द्वारा गढ़े जाते हैं कि ऐन 19 नवंबर 1969 के दिन जब वो वास्को डी गामा के विरुद्ध सांतोस के लिए खेलते हुए  पेले अपना हजारवाँ गोल कर रहा था,तो मनुष्य अपोलो यान से चांद पर पहुंच कर इस क्षण को सेलिब्रेट करता है। ऐसा सम्मान और किसे मिल सकता था। आखिर कौन इसके काबिल हो सकता था।

वो क्या ही अद्भुत दृश्य रहा होगा जब उसने अपना हजारवाँ गोल किया तो कितने ही मिनटों तक खेल रोक दिया गया था और सांतोस और वास्को डी गामा,पक्ष और विपक्ष दोनों ही दलों के खिलाड़ी उस को अपने कांधे बिठाकर परेड कर रहे थे।

कितना खूबसूरत वो खिलाड़ी रहा होगा और कितना खूबसूरत उसका मन कि वो अपने एक हजारवें गोल का जश्न मनाने के बजाए ब्राजील के हज़ारों गरीब बच्चों और उनके भविष्य की चिंता कर रहा था। आखिरकार मदर टेरेसा की तरह दुनिया भर की करुणा से भीग रहे चेहरे को देखकर ही तो सन 1966 में पेले से मुलाकात करते हुए पोप पॉल ने कहा  होगा 'नर्वस मत होओ मेरे बेटे. मैं तुमसे ज्यादा नर्वस हूँ. बहुत लम्बे अरसे से ख़ुद तुम से मिलने का सपना देखता रहा हूँ।'

खिर कितने खुशकिस्मत रहे होंगे वे लोग जिन्होंने उनके पैरों से होते 1283 गोल देखे होंगे। 91 हैट्रिक बनती देखी होंगी। कितने खूबसूरत रहे होंगे उनके बाइसिकल गोल। कितना खूबसूरत रहा होगा वो शॉट जब चेकोस्लोवाकिया के खिलाफ़ मध्य रेखा से लगभग गोल कर ही दिया था।

कैसा अनोखा और मूल्यवान  रहा होगा वो खिलाड़ी जिसको खो देने के भय से राष्ट्रीय संपत्ति घोषित कर दिया गया हो।

सी खूबसूरत फुटबॉल जिसमें अद्भुत ड्रिबलिंग हो,शक्ति,गति और नियंत्रण हो,लय हो,देवताओं को कहां रुचती है। ये तो हाड़ मांस से बने मानुस को शोभती है, हां पेले को रुचती है। 

1957 से 1974 के मध्य फुटबॉल के मैदान में एक खिलाड़ी द्वारा जो जादू बिखेरा गया, जो कीर्तिमान बने, वे देवताओं के बस की बात थोड़े ही ना थी। ये उन सीमाओं की बानगी भर है, जिन्हें एक मानव अपनी योग्यता से विस्तारित करता है,जिन्हें हम देख नहीं पाते,कल्पना नहीं कर पाते,हमें तर्कातीत लगने लगती हैं। दरअसल ये वो खूबसूरत नैरेटिव है जो ये बयान देता है कि मानव  क्या कुछ कर सकता है। उसकी क्षमताओं की क्या सीमाएं हैं।  पेले की कहानी एक ऐसी कहानी है,जो कहती है दुनिया में क्या संभव है और आदमी क्या कर सकता है। बाइडेन के शब्दों में पेले 'स्टोरी ऑफ व्हाट इस पॉसिबल' है।

ज अब जब पेले नहीं रहे तो कितने स्टेडियम उदास हो गए होंगे। कितने मैदान होंगे जो मन मसोसकर कर खेद जता रहे होंगे। कितने गोलपोस्ट होंगे जो गहन वेदना से गल रहे होंगे।कितनी फुटबॉल होंगी जो आंसू बहा रही होंगी। कितनी व्हिस्ल होंगी जो शोक गीत गा रही होंगी।

र हम में से ना जाने कितने लोग होंगे जिनके दिल जार जार करके रो रहे होंगे। ठीक ऐसे ही जैसे मेरा दिल रो रहा है। आज मन शिद्दत से चाह रहा है कि एक बार उसके शरीर से लिपटकर रो सकता। काश कि उसे एक बार अपनी आंखों से खेलते हुए देख पाता। काश एक पत्रकार के रूप में उससे एक     साक्षात्कार ले पाता। उससे उसके खेल के संबंध में ढेर सारे प्रश्न पूछ पाता। एक दोस्त  की तरह उसके गले मे हाथ डालकर सड़कों पर आवारागर्दी कर सकता। किसी नुक्कड़ की दुकान पर बैठकर चाय पी सकता। उसके साथ फुटबॉल खेल सकता। और फिर उसके उम्दा खेल पर ईर्ष्या करते हुए उससे कह पाता 'अबे तुझसे अच्छा खेलता हूँ मैं।'

र ये सब  इच्छाएं कोई देवता पूरी कहां पर पाते।एक इंसान ही पूरी कर पाता ना। 

र हां पेले कभी कहां मर सकता है। वो हमारे दिलों में,मैदानों में ,फुटबॉल खेल में और हमारी बातों में,किस्से कहानियों में हमेशा ज़िंदा रहेगा। 

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र ये भी कि सुप्रसिद्ध फुटबॉलर बॉबी चार्लटन से खूबसूरत बात और कौन कह सकता है कि 'फुटबाल खेल का जन्म इसीलिए हुआ कि पेले खेल सके।'

लविदा द पेले। द ओरी। द ब्लैक पर्ल।



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