Tuesday 13 December 2022

फुटबॉल विश्व कप डायरी_06

 

                           (साभार गूगल)

सेमीफाइनल :टीमें जो यहां हो सकती थीं, पर हैं नहीं

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         खेल केवल खेल भर नहीं हैं। और फुटबॉल भी केवल खेल भर नहीं है। ये खिलाड़ियों का अथक परिश्रम भी है,उनका अदम्य होंसला भी है,उनका अद्भुत खेल कौशल और विस्फोटक प्रतिभा भी है,ये खेल मैनेजरों की नित नवीन रणनीतियां भी है,उनकी शतरंजी चालें भी हैं,विपक्षी टीम की चालबाजियों को समझने की उनकी गहन अंतर्दृष्टि और उसे भोथरा कर देने की अद्भुत समझ भी है। इतना ही नहीं,ये नियति भी है,भाग्य भी है और अनहोनियाँ भी हैं। इन सब के मिलने पर ही फुटबॉल जैसा खेल बनता है। और इसे समझना है तो फुटबॉल विश्व कप देखने से बेहतर और क्या हो सकता है।

            जी हां , क़तर फुटबॉल विश्व कप अब अपने अंतिम चरण में पहुंच चुका है। फुटबॉल का सरताज बनने के संघर्ष में अब केवल चार टीम बची हैं और तीन मैच। 

           और इस बार बात बची चार टीमों के बारे में नहीं बल्कि बात उन तमाम टीमों की,जिन्हें यहाँ होना चाहिए था या जो यहां हो सकती थीं,पर हैं नहीं। 

            सबसे पहली टीम जिसे इस विश्व कप में होना चाहिए था और जो यहां हो सकती थी, पर है नहीं, वो इटली की टीम है। ये हम हम टूर्नामेंट शुरू होने से पहले ही जान गए थे कि इटली यहां नहीं होगी। तमाम जद्दोजहद के बाद भी चार बार की विश्व चैंपियन और वर्तमान यूरो चैंपियन टीम लगातार दूसरी बार विश्व कप  में क्वालीफाई नहीं कर सकी। 'कैटेनेसियो' जैसी अभेद्य रक्षा पद्धति को ईजाद करने वाले और जीनो डोफ़ व बुफों जैसे गोलकीपर और बरेसी, पाओली माल्दिनी, फेबियो कैनावरो व चेलिनी जैसे डिफेंडर देने वाली इटली की टीम का यहां ना होना बहुत सारे खेल प्रेमियों के लिए गहन दुख का विषय हो सकता है और आश्चर्य का भी,पर ये बहुत पहले तय हो चुका था कि वो यहां नहीं ही होगी। यही नियति है। यही फुटबॉल है।

               दूसरी टीम जो यहां हो सकती थी और नहीं हैं वो जर्मनी की टीम है। चार बार की चैंपियन ये टीम सही मायने में यूरोपीय फुटबॉल का प्रतिनिधित्व करती है और अपनी शारीरिक श्रेष्ठता के बूते शारीरिक बल और गति से किसी भी टीम को मात देने की क्षमता रखने वाली टीम लगातार दूसरी बार पहले चरण से आगे बढ़ने में नाकामयाब रही है। पहले ही मैच में जापान ने हराकर उसके आगे बढ़ने की संभावना को क्षीण कर दिया था और स्पेन से ड्रा ने रही सही कसर पूरी कर दी। यही  दुर्भाग्य है। यही फुटबॉल है।

             एक और टीम जो यहां हो सकती थी और नहीं है वो स्पेन की टीम है। जिसे प्री क्वार्टर फाइनल में मोरक्को ने हराकर आगे बढ़ने से रोक दिया। छोटे छोटे पासों वाली टिकी - टाका तकनीक वाले खूबसूरत खेल पद्धति को इज़ाद करने वाली स्पेन की टीम ने अपने पहले ही मैच में कोस्टारिका को 7-0 से हराकर अपने इरादे जाहिर कर दिए थे। लेकिन टीम उम्मीदों पर खरी नहीं उतर पाई। स्पेन की जो टीम सेमीफाइनल में हो सकती थी, वो क्वार्टर फाइनल में भी नहीं पहुंच सकी। क्वार्टर फाइनल में पहुंचने वाली मोरक्को के अलावा बाकी सातों टीमें उम्मीद के अनुरूप ही पहुंची। यही किस्मत है। यही फुटबॉल है।

            इंग्लैंड की टीम भी सेमीफाइनल में हो सकती थी और होना चाहिए था,पर दुख की बात है कि वो भी यहां नहीं है। 2018 में वो सेमीफाइनल तक पहुंची थी जहां क्रोशिया ने 2-1 से हरा कर उसके सफर को रोक दिया था और 1966 के बाद दूसरे विश्व कप को जीतने से भी। इस बार फ्रांस उसके रास्ते में आया और उसका भाग्य भी। इस बार उसका सफर क्वार्टर फाइनल में समाप्त हुआ। इस बार उसने शानदार फुटबॉल खेली। दरअसल शनिवार 10 दिसंबर की रात फ्रांस और इंग्लैंड के बीच खेला गया क्वार्टर फाइनल मैच इस विश्व कप का सबसे शानदार मैच था। निसंदेह खेल के आधार पर इंग्लैंड को आगे बढ़ना चाहिए था, लेकिन भाग्य फ्रांस के साथ था। फ्रांस के 43 प्रतिशत बॉल पजेशन के मुकाबले इंग्लैंड का बॉल पजेशन 57 प्रतिशत था। फ्रांस के गोल पर 08 शॉट के मुकाबले इंग्लैंड ने 16 शॉट लगाए जिनमें से इंग्लैंड के 05 के मुकाबले 08 शॉट टारगेट पर थे। इंग्लैंड ने 02 के मुकाबले 05 कॉर्नर अर्जित किए। इस सब के बावजूद इंग्लैंड हार गया। दरअसल ये मौके चूक जाने का मामला था। हैरी केन ने दूसरी पेनाल्टी मिस की और बराबरी का मौका ही नहीं खोया बल्कि आगे बढ़ने का रास्ता भी बंद कर लिया। यही भाग्य है। यही फुटबॉल है।

            और निःसंदेह विश्व नंबर एक नेमार की टीम ब्राजील को सेमीफाइनल में होना ही चाहिए था,पर घोर निराशा का सबब है कि वो भी नहीं है। उसका सफर पिछली उपविजेता क्रोशिया ने क्वार्टर फाइनल में खत्म किया। ये दोनों टीमों द्वारा शिद्दत से खेला गया मैच था जिसने पहले 90 मिनट में दोनों टीम ने गोल करने के मौके खोए। उसके बाद जैसे ही अतिरिक्त समय शुरू हुआ नेमार का जादू देखने को मिला। उसने अपने बॉक्स के पास से गेंद ली और तीन क्रोशियाई खिलाड़ियों को छकाते हुए ब्राजील को 1-0  की बढ़त दिला दी। ये गोल ऐसा शानदार ही होना चाहिए था क्योंकि ये नेमार का 77वां अंतर्राष्ट्रीय गोल था और पेले के ब्राजील की और से सर्वाधिक गोल करने के रिकॉर्ड की बराबरी वाला गोल भी। अब ब्राजील जीत जाने ही वाला था और अतिरिक्त समय खत्म ही हुआ चाहता था कि स्थानापन्न खिलाड़ी ब्रूनो पेतकोविच ने 3 मिनट शेष रहते बराबरी का गोल दाग दिया। अब मैच शूट आउट में गया। क्रोशिया शूटआउट में एक बेहतरीन टीम है और ये उसने एक बार फिर सिद्ध किया। 2018 में भी उसने शूटआउट में शानदार खेल दिखाया था और यहां भी प्री क्वार्टर फाइनल मैच में भी वो जापान को शूट आउट में हराकर आगे बढ़ी थी। इस बार उसने ब्राजील को 4-2 से हराया और उसे सेमीफाइनल में जाने से रोक दिया। ये पिछले पांच विश्व कप में चौथा अवसर था कि उसकी क्वार्टर फाइनल से विदाई हो रही थी। ये लाखों फुटबॉल प्रेमियों का दिल टूट जाना था। विश्व कप का अचानक खत्म हो जाना था। ये कोई अनहोनी थी। कोई गहरा आघात था जी हां ये फुटबॉल था। ये खेल था।

         सीआर7 की टीम पुर्तगाल को भी सेमीफाइनल में होना चाहिए था और दुनिया ऐसी ख्वाहिश रखने वालों की कमी ना थी। अफसोस वे भी नहीं है। मोरक्को ने एक बार फिर असंभव को संभव कर दिखाया। इस बार पुर्तगाल शिकार बना। तीसरे क्वार्टर फाइनल में मोरक्को ने पुर्तगाल को 1-0 से हराकर बड़ा उलटफेर किया। पहले हाफ में खेल पुर्तगाल ने नियंत्रण अपने हाथ में रखा। जबकि मोरक्को कुछ काउंटर अटैक मूव ही बना सकने में समर्थ हुई। लेकिन मौका मोरक्को ने भुनाया और 44वें मिनट में डिफेंडर याह्या अत्तिअल्लाह के क्रॉस को सेविला के  लिए खेलने वाले फारवर्ड एन नसीरी ने हैडर से गेंद गोल में डालकर मोरक्को को 1-0 की बढ़त दिला दी। इसके बाद पुर्तगाल ने गोल करने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी। दूसरे हाफ के 45 मिनट और 8 अतिरिक्त मिनट में अधिकांश समय खेल मोरक्को के बॉक्स के इर्द गिर्द  हुआ। पर मोरक्को का डिफेंस और गोलकीपर बोनो की दीवार को पुर्तगाली खिलाड़ी नहीं भेद सके। यहां तक कि दूसरे हॉफ में बहुत जल्द ही सीआर7 को भी खिलाया गया। पर नतीजा वही ढाक के तीन पात। एक और बड़ा अपसेट हुआ। 2016 की यूरोपियन चैंपियन खेत रही। यही सपनों का टूट कर किरिच किरिच बिखर जाना था। इच्छाओं का गहन दुःख में विगलित हो जा एआ था। यही फुटबॉल है।

        हां, पिछली विजेता फ्रांस, पिछली उपविजेता क्रोशिया और दो बार की विश्व विजेता अर्जेंटीना की टीम को यहाँ होना था। और वो यहां हैं। लेकिन यहां मोरक्को भी है। तो क्या उसे यहाँ नहीं होना चाहिए था?

         निःसंदेह विश्व कप शुरू होने से पहले शायद ही किसी ने इस बात की कल्पना की होगी कि मोरक्को सेमीफाइनल खेलेगा। लेकिन वो खेल रहा है। यही खुशकिस्मती है। यही किसी सपने का यथार्थ में तब्दील हो जाना है। यही हकीकत है। यही खेल है। यही फुटबॉल है।

         मोरक्को इस बार का जॉइंट किलर है। उसने इस विश्व कप में शानदार शुरुआत की। अपने पहले ही मैच में पिछली उपविजेता क्रोशिया से 0-0 से ड्रा खेला। उसके बाद विश्व नंबर दो टीम  बेल्जियम को 2-0 से पीटा और फिर कनाडा को 2-1 से। प्री क्वार्टर फाइनल में स्पेन को शूटआउट में 3-0 और क्वार्टर फाइनल में पुर्तगाल को 1-0 से हराकर सेमीफाइनल में पहुंचने वाली पहली अफीकी टीम बनी। अपनी सेमी फाइनल तक की इस यात्रा में उसने तीन तीन बड़ी टीम को पराजित किया और एक बड़ी टीम को ड्रा के लिए मजबूर। उसने यूरोपीय दर्प का मानमर्दन किया और अफ़्रीकी गौरव को स्थापित भी। इस टीम का हीरो उनका गोलकीपर बोनो है। अफ्रीकी व अरब जगत का हीरो टीम मोरक्को।

       अभी तक जो भी हुआ वो भाग्य, नियति,और खेल के संयोग से बना फुटबॉल था,फुटबॉल का अद्भुत खेल था। आगे जो होगा वो भी नियति,भाग्य, होनी - अनहोनी के संयोग के आवरण में लिपटा और खिलाड़ियों के अद्भूत खेल कौशल व प्रतिभा और रणनीतियों से बना संवरा वो खेल होगा जिसके पीछे पूरी दुनिया दीवानी है, जिसे वो फुटबॉल के नाम से जानती है और जो उनके लिए खेल से बढ़कर जीवन मरण जैसी कोई भावना बन जाती है।

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हम उत्कर्ष देख चुके हैं। चर्मोत्कर्ष देखना बाकी है।


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