मैंने शिव को देखा है
गली, चौराहों, सड़को और घरों में
यहाँ तक कि लोगों की जेबों में देखा है।
कभी सर्जक
तो कभी विध्वंसक होते देखा है।
कभी जमींदारों का हथियार
और पूंजीपतियों का कारखाना होते देखा है
तो कभी मजदूरों की बंदूक होते देखा है।
कभी सभ्यताओं को विकसित करते
और आज उन्हें विनाश के मुहाने खडा करते देखा है
मैंने आदमी को देखा है।
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