Thursday, 7 November 2013

प्रेम



आओ साथी आओ
डाले हाथ में हाथ
चले साथ
और प्रेम के विरोधियो को
सिखाएं प्रेम का पाठ


आओ चलें चाँद पर
समेट कर वहाँ से लाएँ
ढेर सारी शीतलता
और उससे कर दें शांत
प्रेम विरोधियों की सारी घृणा


 आओ चले सूरज के पास
 माँग कर वहाँ से लाएँ
 ढेर सारी ऊष्मा
 और भर दे
 प्रेम विरोधियों में प्रेम की गर्मी


आओ चले बृहस्पति के पास
बटोर कर वहाँ से लाएँ
ज्ञान का भण्डार
और सिखा दे
प्रेम विरोधियों को प्रेम के मायने

आओ चलें शुक्र के पास
उतार ले आएं वहाँ से
प्यार की गंगा
और तर्पण कर दे
प्रेम विरोधियों के सारे पूर्वाग्रह और कुंठाएं


आओ चले शनि के पास
सीख कर आएं वहाँ से
थोड़ा सा जादू
और दूर कर दे
प्रेम विरोधियों के मन की सारी कलुषता


आओ चलें तारों के पास
भर कर लाएं वहाँ से
रोशनी की झोली
और उतार दे उसको
प्रेम विरोधियों के दिमाग में
(ताकि देख सकें प्रेम को साफ़ साफ़ )


आओ सिखा दे
प्रेम विरोधियों को
स्वयं सैनिकों को
धर्म विद्यार्थियों को
खाप पंचायतों को
प्रेम करना


और बता दे उन्हें
कि वे भी तो किसी के प्यार की उपज हैं।








No comments:

Post a Comment

अकारज_22

उ से विरल होते गरम दिन रुचते। मैं सघन होती सर्द रातों में रमता। उसे चटकती धूप सुहाती। मुझे मद्धिम रोशनी। लेकिन इन तमाम असंगतियां के बीच एक स...