Monday 27 June 2022

भारत का दिल,क्रिकेट का सिरमौर


                                                   (गूगल से साभार)

        जीवन बहुत बार एक ही मौका देता है। लेकिन कई बार किस्मत आप पर मेहरबान होती है और आपको दूसरा मौका भी देती है। अब ये व्यक्ति पर  निर्भर करता है कि वो इन मौकों को किस तरह से लेता है। किस्मत ने चंद्रकांत पंडित को एक दूसरा मौका दिया और इस बार उन्होंने चूक नहीं की। चंद्रकांत पंडित ने 1998-99 में कप्तान के रूप में पहली खिताबी जीत के जिस मौके को खो दिया था,उसे 2021-22 सत्र में एक कोच के रूप में पूरा कर रहे थे। 

आज बेंगलुरु के चिन्नास्वामी स्टेडियम में खेले गए फाइनल मैच में मध्यप्रदेश की टीम ने 41 बार की चैंपियन मुम्बई टीम को 6 विकेट से हराकर पहली बार रणजी ट्रॉफी जीत ली। आदित्य श्रीवास्तव इस टीम के कप्तान थे और चंद्रकांत पंडित कोच। 

1951 से रणजी खेल रही मध्य प्रदेश की टीम पहली बार 1998-99 सत्र में पहली बार फाइनल में पहुंची थी। तब चंद्रकांत पंडित मध्यप्रदेश टीम के कप्तान थे। उनका मुकाबला कर्नाटक से था। लेकिन टीम चूक गयी। शायद ये एक बेहतर और नामी गिरामी टीम कर्नाटक के सामने एक युवा टीम की अनुभवहीनता थी कि बेहतर स्थिति में होते हुए भी मध्यप्रदेश की टीम पहली बार चैंपियन नहीं बन सकी। उस बार मध्यप्रदेश की टीम ने पहली पारी में 75 रनों की बढ़त ले ली थी और अंतिम दिन उन्हें जीत के लिए केवल 249 रनों का लक्ष्य मिला। लेकिन टीम चूक गयी और पूरी टीम 150 रनों पर ढेर हो गयी।

इस बार मध्यप्रदेश की टीम ने शानदार प्रदर्शन कर एक बार फिर से फाइनल में प्रवेश किया। लेकिन फेवरिट पृथ्वी शॉ की कप्तानी वाली मुम्बई की टीम ही थी। 41 बार की चैंपियन टीम मुम्बई। पर इतिहास मध्यप्रदेश की टीम को बनाना था। 

टॉस मुम्बई ने जीता और पहले बल्लेबाजी करते हुए 374 रन बनाए। पिछले सत्र से ही शानदार बल्लेबाजी कर रहे सरफराज के 134 रनों और यशस्वी जायसवाल के 78 रनों की मदद से। जवाब में मध्यप्रदेश की टीम ने एक बड़ा स्कोर खड़ा किया। 536 रनों का। इसमें तीन शतक बने। यश दुबे ने 133,शुभम शर्मा ने 116 और रजत पाटीदार ने 122 रन बनाए। चौथे दिन की समाप्ति पर मुंबई के 2 विकेट पर 113 रन बने थे और अभी भी वो मध्यप्रदेश से 49 पीछे थी। मध्यप्रदेश की टीम बहुत बेहतर स्थिति में थी। लेकिन उन्हें कहीं ना कहीं 1998-99 की स्मृति हॉंट कर रही होगी। लेकिन उन्होंने शानदार गेंदबाजी की और मुम्बई को 249 रनों पर आउट कर दिया। उसने 108 रनों  के लक्ष्य को आसानी से 04 विकेट खोकर पा लिया।

अब मध्यप्रदेश की टीम पहली बार रणजी चैंपियन थी और प्रदेश के क्रिकेट इतिहास की नई इबारत  लिखी जा रही थी।

 आखरी ओवर इस सत्र के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी सरफराज़ कर रहे थे जिन्होंने इस सत्र में सर्वाधिक 983 रन बनाए थे। इस समय जीत के लिए टीम को केवल 05 रन चाहिए थे। सरफराज के सामने इस सत्र में दूसरे सर्वधिक 658 रन बनाने वाले रजत पाटीदार थे। टीम के कप्तान आदित्य श्रीवास्तव सामने के छोर पर अपनी कप्तानी में इस नए इतिहास के लिखे जाने के गवाह बन रहे थे। रजत ने सरफराज के इस ओवर की पहली ही गेंद पर चौका लगाया। अब स्कोर बराबर था। उसके बाद अगली दो गेंद डॉट बॉल थीं। उसके बाद रजत ने सामने की ओर बॉल को टैप किया और एक रन ले लिया।

टीम मध्यप्रदेश जीत चुकी थी। सारे खिलाड़ी दौड़ कर मैदान में आ गए। उनके पीछे धीरे धीरे चंद्रकांत पंडित आए और पूरी टीम ने उन्हें कंधों पर उठा लिया।

ये 1998-99 में होना था,नहीं हो सका था,अब हो रहा था। 1998-99 में अधूरा छूट गया सपना साकार रूप ले रहा था। एक टीम की अपने कोच को इससे बेहतर गुरु दक्षिणा और क्या हो सकती थी कि वे उसके अधूरे छूट गए कार्य को पूरा कर रहे थे। 

जीत के बाद पंडित भावुक थे। वे कह रहे थे'लोग कहते हैं जो पिता नहीं कर सका वो बेटे ने कर दिखाया। आदित्य श्रीवास्तव ने ये कर दिखाया।'

                                                      (गूगल से साभार)

अब मध्यप्रदेश की टीम राष्ट्रीय चैंपियन है। रणजी क्रिकेट की राष्ट्रीय प्रतियोगिता है। हर क्रिकेट खिलाड़ी का राष्ट्रीय टीम में खेलने का सपना रणजी ट्रॉफी से होकर ही गुज़रता है। आज भले ही इसकी अहमियत आईपीएल के चलते थोड़ी कम ज़रूर हुई है। लेकिन एक समय था जब इसमें किया गया खिलाड़ी का परफॉर्मेंस उसके राष्ट्रीय टीम में प्रवेश का टिकट हुआ करता था। आज भी है। हर खिलाड़ी का पहला सपना रणजी में खेलना होता था। जैसे आज आईपीएल खेलना है। आज उसकी अहमियत आधी आईपीएल ने बांट ली है। इसके बावजूद आज भी रणजी में खेलना कम गौरव की बात नहीं है और रणजी चैंपियन होना भी।

हर उस खिलाड़ी ने जिसने रणजी में परफॉर्म किया,भारत के लिए खेला। लेकिन इस सब के बावजूद क्या ही कमाल है कुछ ऐसे खिलाड़ी हैं जो रणजी के अद्भुत परफॉर्मर रहे हैं, वे रणजी के चमकते सितारे रहे,पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नहीं खेल सके और अगर एक आध मौका भी मिला तो चल ना सके। हांलाकि उनमें प्रतिभा कूट कूट कर भरी थी। वे क्रिकेट जीनियस थे। याद कीजिए राजेन्द्र गोयल, राजिंदर सिंह हंस, आशीष विंस्टन जैदी, पद्माकर शिवालकर, जलज सक्सेना, वसीम जाफर या फिर अमोल मजूमदार जैसे खिलाड़ियों को। यही नियति है।

वे सभी जिन्होंने 1983 से पहले क्रिकेट को फॉलो किया है,जानते हैं कि ये वो समय था जब रेडियो कमेंट्री क्रिकेट को धीरे धीरे लोकप्रिय बना रही थी। लेकिन अभी भी क्रिकेट बड़े नगरों तक सीमित था। तब क्रिकेट और रणजी विजेता का मतलब मुम्बई,दिल्ली और कर्नाटक हुआ करता था। और तब आता है साल 1983। क्रिकेट विश्व कप भारत क्या आता है,क्रिकेट भारत के हर छोटे बड़े शहर की गलियों तक पहुंच जाता है। अब  इन टीमों को जबरदस्त चुनौती मिलती है। अब उत्तर प्रदेश, हरयाणा,पंजाब से लेकर सौराष्ट्र गुजरात और बंगाल तक चैंपियन बनते हैं और कर्नाटक और दिल्ली के ही नहीं बल्कि मुम्बई के वर्चस्व को भी पूरी तरह समाप्त कर देते हैं।

क्रिकेट के तीन फॉर्मेट की टीम घरेलू प्रतियोगिताएं है- टेस्ट फॉर्मेट की रणजी ट्रॉफी,एक दिवसीय फॉर्मेट की विजय हज़ारे ट्रॉफी और टी-20 फॉर्मेट की मुश्ताक़ अली ट्रॉफी।  वर्तमान सत्र की रणजी चैंपियन मध्य प्रदेश की टीम है तो विजय हज़ारे चैंपियन हिमाचल प्रदेश और मुश्ताक़ अली ट्रॉफी चैंपियन तमिलनाडु है।  धुर उत्तर से सुदूर दक्षिण तक क्रिकेट के चैंपियन मौजूद हैं। दरअसल खेल की सबसे खूबसूरत बात यही वैरायटी और लोकप्रियता है।

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फिलहाल तो रणजी के नये चैंपियन को बहुत बधाई। एक ऐसी टीम को उसके खिलाड़ियों को बहुत बधाई, जिसमें कोई बड़ा नामी गिरामी खिलाड़ी नहीं, पर हर खिलाड़ी चैंपियन है।

Monday 20 June 2022

बॉलीवुड गीत_09


एक पल तुमको जो ना देखें

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सूरज दहक रहा है। ताप से सारी कायनात झुलसी जाती है।


लेकिन जीवन है सुर्ख हुआ पलाश में गमका जाता है। बासंती सा अमलतास पर खिलखिलाता जाता है। मुस्कान सा हरसिंगार से झरता जाता है।


वो इश्क़ से क्या मिला कि फूलों से उड़कर पर्वतों पर हिम सा बिखरने लगा । नदी में पिघलकर पानी सा बहने लगा। चांदनी सा कायनात पर फैलने लगा।


जीवन है कि हुलस हुलस जाता। पर मोहब्बत है कि कुछ उदास उदास हुई जाती है।


जीवन ने मोहब्बत को हौले से छुआ और खुद में समेट लिया। उसकी उदासी अब किसी जादू सी छूमंतर हुई जाती है।


जीवन ने मोहब्बत से कहा 'तेरे होने से कुछ ना होने का ग़म ज़रा सा लगे। कि घर भरा भरा सा लगे।'


जीवन और मोहब्बत हौले हौले एक दूसरे में घुल रहे हैं। वे कहे जाते हैं-'जो इक पल तुमको ना देंखे तो मर जाये हम'।


इरशाद कामिल अपने शब्दों से इक जीवन बुनते हैं और संदेश शांडिल्य संगीत से इश्क़ का इक दरिया बहाते हैं। श्रद्धा मिश्रा और पापोन अपने सुरों की किश्ती में जीवन को पनाह दे उसे इश्क़ के दरिया में क्या उतारते हैं कि लब गुनगुना उठते हैं-


'खो गई है तू मुझमें आ गई तू वहां

मिल रहे हैं जहां पे ख्वाब से दो जहां'



Sunday 5 June 2022

एक खबर:एक पाती

                                                    (गूगल से साभार)


खबर

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 ये 28 मई 2022 का दिन था। पेरिस के स्टेडियम फ्रांस में चैंपियंस ट्रॉफी का फाइनल लिवरपूल और रियाल मेड्रिड के बीच खेला जा रहा था। उस मैच में रियाल ने लिवरपूल को  1-0 से हराकर 14 वीं बार चैंपियंस ट्रॉफी जीती थी। रियाल राफेल नडाल की पसंदीदा टीम है और उस दिन राफा अपनी पसंदीदा टीम का समर्थन करने के लिए वो मैच देख रहे थे। ठीक आठ दिन बाद अपनी पसंदीदा टीम की तरह वे भी 14वीं बार मस्केटियर ट्रॉफी जीत रहे थे। संयोग ऐसे ही होते हैं।

आज शाम रोलां गैरों के फिलिप कार्टियर अरीना में  36 वर्षीय राफेल नडाल अपने से 13 साल छोटे 23 वर्षीय नॉर्वे के कैस्पर रड को बहुत आसानी से 6-3,6-3,6-0 से हराकर अपना 22वां ग्रैंड स्लैम खिताब जीत रहे थे। रड अपना पहला ग्रैंड स्लैम फाइनल खेल रहे थे। वे राफा की टेनिस अकादमी के पूर्व छात्र थे। यानी ये गुरु शिष्य के बीच मुकाबला था। और गुरु ने बताया कि गुरु गुरु ही होता है।

इस साल जब जनवरी में राफा ऑस्ट्रेलियाई ओपन खेल रहे थे तो 21 नंबर की चर्चा सबसे ज़्यादा थी। उन्होंने वो नंबर अविश्वसनीय ढंग से प्राप्त किया। लेकिन इस बार 22 से ज़्यादा 14 नंबर महत्वपूर्ण था। 2005 में उन्होंने पहला फ्रेंच ओपन जीता था और वे ग्रैंड स्लैम जीतने वाले सबसे कम उम्र के खिलाड़ी थे। इन 18 सालों में वे 14वां फ्रेंच ओपन जीत रहे थे तो वे सबसे अधिक उम्र फ्रेंच ओपन जीतने वाले खिलाड़ी बन रहे थे। ये अविश्वसनीय है। लेकिन महान खिलाड़ी वही होता है जो असंभव को इतना आसान बना देता है कि अविश्वसनीय उपलब्धि भी साधारण प्रतीत होने लगती है। 

दरअसल एक प्रतियोगिता को 18 में से 14 बार जीतना  उन्हें टेनिस का 'गोट'नहीं बनाई बल्कि सम्पूर्ण खेल जगत का 'गोट'भी बनाती है। ये असाधारण उपलब्धि है।

दरअसल लाल मिट्टी पर राफा खेलते नहीं बल्कि वे अपने खेल से किसी राग की बंदिश रचते है,कोई प्रेम में पगा पत्र लिखते है,जादू का कोई खेल दिखाते है और आप हैं कि उसके खेल के सम्मोहन में पड़ जाते हैं। 


आज राफा पर क्या लिखना बल्कि राफा को लिखना है। एक पत्र। राफा के नाम।

                                       (ट्विटर से साभार)

पाती

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प्रिय राफा,

      मैं जानता हूँ कि तुम 'मस्केटियर ट्रॉफी' के अनन्य प्रेम में हो। और मैं तुम्हारे खेल के प्रेम में आपादमस्तक डूबा हूँ।

शायद तुम जानते हो प्रेम में दो चीजें सबसे अनोखी और ज़रूरी होती हैं जिनकी वजह से प्रेम में सघनता और तरलता दोनों एक साथ बनी रहती है? 

एक प्रतीक्षा! 

और दूसरा प्रेम पत्र!

प्रेम में प्रतीक्षाएँ होती हैं। और खूब होती हैं। प्रतीक्षाएँ बेचैनियां पैदा करती हैं। और इन बेचैनियों में अलग सुख है। अपने यथार्थ को तसव्वुर में जीने का सुख। लोग जो प्रेम में हैं,वो समझते हैं कि तसव्वुर में जीना यथार्थ को कितना बेहतर,कोमल और खूबसूरत बना देता है। ये प्रेम को घनीभूत करता। सघन बनाता है।

और प्रेम में पत्र भावनाओं की अभिव्यक्ति को उड़ान देता है। प्रेम में पत्र मन की अंतरतम भावनाओं को जुबान देता है। पत्र जिसमें भावनाएं किसी नदी की तरह बह निकलती हैं, बारिश की तरह बरसने लगती हैं,खुशबू की तरह महकने लगती हैं,धूप की तरह चमकने लगती हैं। पत्र जो अंतर्मन को भिगो भिगो  देता है। प्रेम में पत्र प्रेम को सूखने से बचाते हैं। उसे बदरंग होने से बचाते हैं। दरअसल 'प्रेम पत्र' प्रेम को तरल बनाये रखते हैं।

हम जानते हैं , तुम चाहे दुनिया के किसी भी कोने में खेलते रहो, किसी भी मैदान पर अपने खेल सेसम्मोहित करते रहो, तुम प्रतीक्षारत रहते ही हो कि कब वो घड़ी आए कि तुम रोलां गैरों की लाल मिट्टी पर अपने प्रेम के सुर छेड़ सको,'मस्केटियर' को रिझा सको और उसका स्पर्श पा सको। अपने हाथों में उठाकर अपने अंक में समेट सको, उसको चूम सको,उसके प्रेम में रो सको,अपने आंसुओं से बहे प्रेम से उसे सराबोर कर सको। कितनी खूबसूरत होती है ना ऐसी प्रतीक्षाएं। तुमसे बेहतर और कौन जान सकता है।

और फिर प्रतीक्षा खत्म होती है। तुम किसी पागल दीवाने से रोलां गैरों चले आते हो, अपने रैकेट और बॉल से लाल माटी पर एक ऐसा खूबसूरत प्रेम में पगा पत्र लिखते हो कि उसे बांचने 'मस्केटियर' किसी दीवानी सी तुम्हारे पास चली आती है। यूं उसे  रिझाने तो ना जाने कितने चले आते हैं। पर तुम सा संगीत कौन छेड़ पाता है। तुम सा पत्र लिखने  की सलाहियत किसी में कहां आ पाती है। तुम सा प्रेमी कौन हो पाता है। साल दर साल यही चला होता चला आता है। हैं ना।

तुम्हारी तरह हम भी साल भर प्रतीक्षारत रहते हैं।  तुम्हारे खेल को जीने की प्रतीक्षा में, लाल मिट्टी पर तुम्हारे खेल के जादू से सम्मोहित होने प्रतीक्षा में, तुम्हारे रैकेट से निकले संगीत को सुनने की प्रतीक्षा में, तुम्हारे प्रेम पत्र को पढ़ने की प्रतीक्षा में, 'मस्केटियर' को तुम्हारे हाथों में देखने की प्रतीक्षा में,उसके मिलन से निकले खुशी के आंसुओं में डूब जाने की प्रतीक्षा में,तुम्हें उसे चूमता हुए देखने की प्रतीक्षा में। ये तुम्हारी जीत की गंध इतनी मादक होती है ना कि साल भर मदहोशी बनी रहती है।

तुम साल दर साल आते हो और एक प्रेम पत्र लिख जाते हो। तो तुम्हारे खेल के प्रेम में पड़कर इस बार मैंने भी एक चिट्ठी तुम्हारे नाम लिखी है। जानते हो पहली बार बचपन में पहले क्रश को लिखा था 'तुम बहुत ख़ूबसूरत हो'। दूसरी बार, जवानी में प्रेमिका को लिखा 'तुम मुझे खत लिखना'। तीसरा,जीवन के तीसरे पहर तुम्हारे खेल की दीवानगी में,तुम्हारे नाम 'तुम सा कोई नहीं'।

पर इस बार ये दीवानगी चार शब्दों में कहां समा पाएगी। और इस लंबी पाती में भी कहाँ समा पाएगी भला।

तुम जानते हो कितने ही लोग दुनिया भर में कितनी कितनी जगहों पर जाते हैं किसी खास मकसद से। राहुल सांकृत्यायन खोए ज्ञान को खोजने के लिए दुनिया भर की यात्रा करते हैं। असगर वजाहत अपनी जड़ों को खोजने और पांच सौ साल पहले भारत आए अपने पूर्वजों के निशान ढूंढने ईरान के दुर्गम इलाकों की यात्रा करते है। अमृत लाल बेगड़ भक्ति भाव से नर्मदा के सौंदर्य लोक में अवगाहन करने के लिए नर्मदा परिक्रमा करते हैं। ओमा शर्मा अपने अनन्य प्रेरणा स्रोत और गुरु स्टीफेन स्वाइग की आत्मा को महसूसने को ऑस्ट्रिया के चप्पे चप्पे को छान मारते हैं। मानव कौल खुद को ढूंढने यूरोप की खाक छानते हैं। उधर अनिल यादव पूर्वोत्तर भारत को पूर्वोत्तर भारत में खोजने में बरसों बिता देते हैं। एक अकेली लड़की अनुराधा बेनीवाल 'एकला चलो' की तर्ज़ पर बिना संसाधनों के यूरोप भर में भटकती है और  दुनिया भर की लड़कियों से घुमक्कड़ बन जाने का आह्वान करती है। 

जानते हो राफा ऐसे ही मैं भी दुनिया भर की अनेकानेक जगहों पर जाना चाहता हूँ,उन्हें महसूसना चाहता हूँ।  मैं हिसार की उन गलियों को देखना चाहता हूँ जिनमें साइना ने सारे बंधनों को तोड़कर आकाश में उन्मुक्त उड़ान सीखी।  पयोली की मिट्टी को छूकर धन्य होना चाहता हूँ जिसने उषा के पैरों को असीमित गति और शक्ति भरी। मणिपुर के गांव कंगथेई की उस हवा को महसूस करना चाहता हूँ जिसमें मैरी कॉम के मुक्कों को फौलादी ताकत मिली। मैं पाकिस्तान में लाहौर के उस ट्रैक को अपनी आंखों से देखने का सुख चाहता हूँ जहां मिल्खा 'उड़न सिख' बने थे।  

और इंग्लैंड में लॉर्ड्स के मैदान के पवेलियन में भी तो एक बार बैठना बनता है जिसमें 1983 जीत ने भारत में एक खेल को धर्म बना दिया और कुआलालंपुर के मरडेका स्टेडियम का एक चक्कर लगाकर दो आँसू भी तो बहाने हैं जहां भारत के राष्ट्रीय खेल हॉकी का सितारा अंतिम बार चमका। 

और जर्मनी में बर्लिन के ओलंपिक स्टेडियम जाकर एक बार गर्व करना चाहता हूँ जहां ध्यानचंद ने हिटलर के ऑफर को ठुकराया था।

मैं अर्जेंटीना के सांता फे प्रान्त में पारणा नदी के पश्चिमी तट के उस सौंदर्य को निहारना चाहता हूँ जहां मेस्सी और रोजुक्के कि प्रेम कथा ने जन्म लिया और अर्जेंटीना के शहर लानुस को भी तो देखे बिना कैसे रहा जाएगा जहां माराडोना जैसा खिलाड़ी जन्म लेता है। ब्राजील के साओ पाउलो प्रांत के कस्बे बोरु में चाय की चुस्कियों के साथ महसूस करना चाहता हूँ कि कैसे चाय की दुकान पर काम करते हुए पेले ने फुटबॉल के गुर सीखे और दुनिया का महानतम फुटबॉलर बना। और अमेरिका के कैलिफोर्निया के जंगलों में जाकर एक बार ज़ार ज़ार रोकर कोबे को श्रद्धांजलि देना चाहता हूँ।

दिल मे ऐसी ही हज़ारों ख्वाहिश हैं जिन्हें पूरा होना है। पर जानते हो राफा अगर ये ख्वाहिश ना भी पूरी हों तो बस एक ही ख्वाहिश रहेगी फ्रांस के शहर पेरिस को देखने की। इसलिए नहीं कि सीन नदी के किनारे बसा पेरिस दुनिया का सबसे सुंदर शहर है,कि वो दुनिया की फैशन राजधानी है,कि रोमन सभ्यता की विरासत के सबसे खूबसूरत अवशेष इस शहर में हैं,बल्कि इसलिए कि ये दो 'लिविंग लीजेंड' का शहर है। ये मेस्सी शहर है, राफा का शहर है। इस शहर में 'पार्क द प्रिंसेस'है इस शहर में 'रोलां गैरों' है। और इन दो जादू घरों में अनंत काल तक के लिए दो जादूगरों के जादू के तिलिस्म में खो जाने की ख्वाइश से इतर और कोई क्या ख्वाईश हो सकती है।

 और ये भी कि अगर इन दोनों में भी किसी एक को चुनना हो तो 'फिलिप कार्टियर अरीना' से खूबसूरत चयन क्या हो सकता है। फिलिप कार्टियर अरीना, मैं और तुम्हारे खेल का जादू। इससे बेहतर दुनिया में और क्या हो सकता है।

विंसेंट नवार्रो अपरिसिओ हो जाने की चाहत के अलावा और क्या चाहा जा सकता है।

नवार्रो, सुपर फैन नवार्रो। जानते हो ना। वही नवार्रो जो स्पेनिश फुटबॉल क्लब वेलेंसिया का अनोखा फ़ैन था। वेलेंसिया क्लब का मेम्बर नंबर 18,  जो  साठ के दशक से अपनी मृत्यु तक लगातार वेलेंसिया के हर मैच में उपस्थित रहा था। सबसे बड़ी बात तो यह कि 54 साल की उम्र में दृष्टिहीन हो जाने के बावजूद  उसने वेलेंसिया का कोई भी मैच नहीं छोड़ा। वेलेंसिया के घरेलू मैदान मेस्तला स्टेडियम के ट्रिब्यूना सेंट्रल सेक्शन की 15वीं पंक्ति की सीट न.164 पर बैठकर अपनी दृष्टिहीनता के बावजूद स्टेडियम के वातावरण और बेटे के आंखों देखे हाल से हर मैच का आनंद लेता। 2017 में वेलेंसिया के उसकी मृत्यु हुई।और तब क्लब ने उसके सम्मान में 2019 में उसकी उस सीट पर उसकी कांसे की मूर्ति स्थापित कर दी।

 दस मार्च 2020 को चैंपियंस लीग के प्री क्वार्टर फ़ाइनल मैच के दूसरे चरण के मैच में वेलेंसिया क्लब अतलांता क्लब को अपने घरेलू मैदान मेस्तला स्टेडियम में होस्ट किया। कोरोना के कारण ये मैच बिना दर्शकों के आयोजित करने का निर्णय लिया गया। लेकिन यह कैसे संभव हो सकता था कि मेस्तला स्टेडियम में नवार्रो उपस्थित न हो. सेंट्रल ट्रिब्यूना सेक्शन की 15वीं पंक्ति की सीट नंबर 164 पर वेलेंसिया टीम का अनोखा दीवाना नवार्रो  इस बार भी बैठा था। सच में क्या ही कमाल है उस मैच का नवार्रो एकमात्र दर्शक था, जो अकेले किसी राजा की तरह उस मैच का आनंद ले रहा था।

मैं भी नवार्रो की तरह एकांत में उस अद्भुत संगीत का आनंद लेना चाहता जो तुम अपने खेल से रचते हो। जब तुम लाल बजरी पर लय में खेलते हो तो वो किसी राग की बंदिश से कम कहाँ होता है। ऐसी बंदिश जिसके सम्मोहन में एक बार बंध जाएं तो फिर कभी मुक्त ही ना होना चाहें। कितनी बंदिशें तुमने उस अरीना में बिखरे दी है जो अब हमेशा के लिए रोलां गैरों में कोने कोने में व्याप गयी होंगी जिन्हें आने वाले अनंत काल तक सुना जा सकता है।

इस बार तुम यहाँ आये तो आये। आगे शायद तुम ना आ पाओ। समय हाथों से फिसल जो रहा है। जब तुम कहते हो कि 22वां खिताब कुर्बान करके तुम नया पैर लेना चाहोगे तो समझ में आता है तुम्हारी चोटों का क्या हाल है।

तुम्हें तुम्हारा ये प्यार मुबारक। ये जीत मुबारक।

राफा तुम खिलाड़ी कहां तुम तो कमाल हो।

                                              


                                                     तुम्हारा प्रशंसक

ये हार भारतीय क्रिकेट का 'माराकांजो' है।

आप चाहे जितना कहें कि खेल खेल होते हैं और खेल में हार जीत लगी रहती है। इसमें खुशी कैसी और ग़म कैसा। लेकिन सच ये हैं कि अपनी टीम की जीत आपको ...