Sunday 28 May 2017

प्रतिद्वंदिता के ताप की आंच

           

 प्रतिद्वंदिता के ताप की आंच 
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          इन गर्मियों मई में ताप को जिस शिद्दत से महसूस कर रहे हैं,जून मेँ उससे कहीं अधिक ताप महसूस करेंगे, ये तय है। और ये ताप प्राकृतिक कारणों के साथ साथ मानवीय कारणों से भी उतना ही बढ़ेगा। दरअसल ये ताप आगामी 01 जून से 18 जून तक चलने वाली तीन बड़ी खेल प्रतियोगिताओं में वैयक्तिक,दलगत और राष्ट्रगत चिर प्रतिद्वंदियों के बीच आपसी टकराहट से निकला ताप होगा। इन टकराहटों से निकली चिंगारियों की आंच आपको वैसे ही उद्वेलित करेगी जैसे रौद्र सूरज का ताप।
                        क्रिकेट की अपनी जन्मभूमि इंग्लैंड में 8 राष्ट्र सीमित ओवरों के खेल में गेंद बल्ले से लैस विकटों के बीच दौड़ लगाकर और चौकों छक्कों की बरसात से खेल में अपनी श्रेष्ठता साबित करने के लिए संघर्ष कर रहे होंगे। भारत-पाकिस्तान,भारत-ऑस्ट्रेलिया,ऑस्ट्रेलिया-इंग्लैंड,इंग्लैंड-दक्षिण अफ्रीका के बीच पारम्परिक प्रतिद्वंदिता को श्रीलंका,न्यूज़ीलैंड और बांग्लादेश की टीमें हवा दे रही होंगी। उधर इंग्लैंड के पड़ोसी देश फ्रांस की खूबसूरत राजधानी रोलां गैरों मैदान की लाल बजरी पर खींचे नेट के आर पार खड़े होकर एक और जहाँ नडाल,जोकोविच और मरे जैसे परिपक्व खिलाड़ी आपस से श्रेष्ठता के लिए तलवार भांज रहे होंगे तो अलेक्ज़ेंडर ज्वेरेव और डोमिनिक थीएम जैसे नए युवा खिलाड़ी संघर्ष को और तीव्र कर रहे होंगे तो वीनस बहनों का कर्बर और अमांडा अनीसिमोवा के बीच टकराहट की चिंगारियों के ताप को सिद्दत से महसूस करेंगे। और फिर सात समंदर पार अमेरिका में ओरेकल एरीना और क्वीकेँ लोन्स एरीना में एनबीए फाइनल्स में गोल्डन स्टेट वारियर्स और क्लीवलैंड कैवेलियर्स की टीमें आपसी प्रतिद्वंदिता को और खेल को भी नयी ऊँचाइयाँ प्रदान कर रहे होंगे। एनबीए का ये लगातार तीसरा सीज़न है कि ये दोनों टीमें फाइनल्स में आमने सामने हैं। 2014-15 में जीएसडब्लू ने 4-2 से जीत हासिल की तो 2015-16 में कैवेलियर्स ने 1-3  से पिछड़ने के बाद 4-3 से जीत दर्ज़ की। 
                             तो दोस्तों यूरोप आपके हवाले और अमेरिका का मोर्चा मेरे हवाले। मेरी रूचि 'पोएट्री इन मोशन' स्टीफन करी और 'सुपर ज्वायंट' लेब्रोन जेम्स के बीच संघर्ष की आंच महसूसने में ज़्यादा है। वैसे बीच बीच में यूरोप में भी आवाजाही लगी रहेगी। विराट कोहली,राफेल नडाल और स्टीफेन करी सबसे पसंदीदा खिलाड़ी हैं और इनकी जीत इस भीषण ताप में मानसून की पहली बौछार का सा आनंद प्रदान करेगी। 










Friday 19 May 2017

घरौंदा


घरौंदा 
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समय रुका हुआ
अठखेलियां कर रहा है 
धूप के शामियाने में 
छाँव चांदनी सी बिछी है 
ओस  है  कि दूब के श्रृंगार में मग्न  है  
गुलाब अधखिले से बहके है 
सूरज की किरणें पत्तों के बीच से 
झाँक रही हैं बच्चों की शैतानियों सी 
सरसराती सी हवा  है कि महका रही है फ़िज़ां 
मस्ती में झूम रही  है  डाल 
और पत्तों ने छेड़ी हुई है तान 
चिड़ियाँ कर रही  है  मंगल गान
तितलियाँ बिखेर रहीं  है रंग
कि शब्द 
तैर रहे हैं फुसफुसाते से 
कि कुछ सपने बस अभी अभी जन्मे है  
कभी बिलखते कभी खिलखिलाते 
किसी नवजात से 
हाथ पैर चला रहे हैं 
कि बस अभी दौड़ पड़ेंगे 

दरअसल यहां एक घरौंदा है 

और उसमें प्यार रहता है। 
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ये तेरा घर ये मेरा घर 
घर बहुत हसीं है. 





Wednesday 17 May 2017

वो












वो 
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जिस पल देखा उसे 
एक कतरा मुझसे अलग हुआ  
कतरा बढ़ते बढ़ते 'वो' हुआ 
मैं घटते घटते 'कतरा' . 

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अपना ही अपना ना रहा 




Sunday 14 May 2017

कम ऑन राफा !



                           

                           यूँ कहने को तो ये मैच साल भर चलने वाले एटीपी मास्टर्स टूर्नामेंट्स में से एक और साल के दूसरे ग्रैंड स्लैम फ्रेंच ओपन से ऐन पहले होने वाले मेड्रिड ओपन टेनिस प्रतियोगिता का रूटीन सेमीफाइनल मैच भर था।  उस लिहाज़ से कोई बड़ा मैच नहीं था। लेकिन किसी मैच को बड़ा कोई इवेंट नहीं बल्कि प्रतिद्वंदी खिलाड़ियों का कद और उनकी प्रतिद्वंदिता की इंटेंसिटी बनाती है। कल मेड्रिड ओपन का पहला सेमीफाइनल मैच हमारे समय के दो महान खिलाड़ियों नोवाक जोकोविच और राफेल नडाल के बीच था। दरअसल ये इन दोनों के बीच होने वाला 50वां मैच था जो टेनिस इतिहास में ओपन युग का किन्ही दो खिलाड़ियों की आपसी प्रतिद्वंदिता के मैचों का पहला पचासा था।आधुनिक टेनिस का इतिहास फेबुलस फोर-फेडरर/नडाल/जोकोविच/मरे-का इतिहास है और उनके बीच प्रतिद्वंदिता का इतिहास है।ये चारों मिलकर 48 ग्रैंड स्लैम ख़िताब जीत चुके हैं। हमारे समय की टेनिस पर इन चारों के प्रभुत्व का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि पहली चार प्रतिद्वंद्विताएं आपस में इन चारों के नाम हैं यानी जोकोविच बनाम नडाल 50 मैच,जोकोविच बनाम फेडरर 45 मैच,फेडरर बनाम नडाल 37 मैच,जोकोविच बनाम मरे 36 मैच। तब जाकर पांचवें नम्बर पर इवान लैंडल बनाम मैकनरो (36 मैच) की प्रतिद्वंदिता आती है। 
                          इन चार 'फेबुलस फोर 'को पसंद करने के अपने अपने कारण हो सकते हैं। पहले आप इन चारों के रंग रूप,कद काठी,चहरे मोहरे,उनके अंदाज़,मैदान पर उनके व्यवहार को ध्यान से देखिए। जहां फेडरर,मरे और जोकोविच अभिजात्य से लगते हैं वहीं नडाल अकेले ऐसे हैं जो मध्यम वर्ग के प्रतीत होते हैं। अब चारों के खेलने की शैली को बूझिए। पहले तीनों को कृत्रिम तेज सतह रास आती हैं। ये तीनों तेज सर्व एंड वॉली के पॉवर गेम में अपने को कम्फर्टेबल महसूस करते हैं। वे खेल के दौरान पूरी प्रोसीडिंग पर नियंत्रण रखने में माहिर हैं। इन तीनों को ही धीमी सतह रास नहीं आती। तभी तो फेडरर 18 और जोकोविच अपने 13 ग्रैंड स्लैम में से धीमी मिट्टी की सतह वाले फ्रेंच ओपन को केवल बमुश्किल एक एक बार जीत पाए हैं। जबकि मरे को अभी इसे जीतना बाकी है। इसके विपरीत नडाल को धीमी सतह रास आती है। वे बेसलाइन से टॉप स्पिन से प्रतिद्वंदी को छकाते हैं। फील्ड में हद से ज़्यादा चपल दीखते हैं और ज़्यादा भागदौड़ भी। वे मिट्टी की सतह पर लगभग अपराजेय हैं। उन्होंने अपने 14 ग्रैंड स्लैम खिताबों में से 9 फ्रेंच ओपन की लाल बजरी वाली सतह पर जीते हैं। शायद अपनी पूरी आभा में मध्यम वर्ग के से प्रतीत होने के कारण ही वे ज़मीन के अधिक करीब प्रतीत होते हैं और शायद मिट्टी भी उनको ज़्यादा अपना समझती है और खुद पर उनको अपराजेय बना देती है। और अपनी इसी मध्यमवर्गीय आभा मंडल के कारण अधिक आकर्षित करते हैं और ज़्यादा अपने लगते हैं। 
                                    फिलहाल जोकोविच के विरुद्ध अपने इस ऐतिहासिक 50वे मैच में उन्होंने शानदार खेल दिखाया और सीधे सेटों में 6-2 ,6-4 से हरा कर 2014 में फ्रेंच ओपन के बाद से लगातार सात मैचों के हारने के क्रम को ही नही तोड़ा बल्कि इस साल मिट्टी की सतह पर अपने रिकार्ड को 14-0 कर इस सात मिट्टी की सतह पर तीसरे खिताब को जीतने की तरफ मज़बूती से कदम बढ़ा दिए हैं।  इस समय वे अपनी पुरानी लय में  लौट चुके हैं। जोकोविच के खिलाफ नडाल किस तरह हावी थे ये इस बात से जाना जा सकता है कि पहले सेट के चार गेम में जोकोविच केवल चार पॉइंट जीत सके।  
                 जिस तरह नडाल खेल रहे हैं और जिस तरह की फॉर्म में वे हैं यकीन मानिए 11 जून को रोलां गैरों के मैदान पर एक नया इतिहास लिखा जा रहा होगा। वे कोई एक ग्रैंड स्लैम को दो अंकों में जीतने वाले पहले खिलाड़ी बन रहे होंगे औरपूरी दुनिया उन्हें अपने असाध्य श्रम के बूते दोनों हाथों के बीच फंसी 'कूप दे मस्केटियर'ट्रॉफी को अपने होठों से चूमते देख रही होगी।  
                                                                   कम ऑन राफा !

माँ का दिन_मुख पुस्तिका का हासिल

माँ का दिन_मुख पुस्तिका का हासिल 
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1. स्केच_अपराजिता शर्मा / रंग_रोहित गुसिया 


 







































2 शब्द_हरिश्चंद्र पांडेय सर / चित्र_आशुतोष उपाध्याय 




























2. वसुंधरा पांडेय 

दुनिया को अंगूठा दिखाये थे

माँ की आँखों के ताल में
डुबकी लगाएं ,तैरना सीख जाये
घर ही नही ,माँ तो पूरा गाँव ठहरी

ढोलक की थाप थिरकेँ,मंगल गीत गायें
गाँव ही नही माँ तो पूरा देश ठहरी

इत-उत् जायें
गोद में लेट जायें ,रोधना पसारे
देश ही नही माँ ब्रम्हांड ठहरी... !


2 .विहाग वैभव 


हर जवान लड़के की याद में 
बचपन 
सर्दियों के मौसम में उठता

गर्म भाप सा नहीं होता
रेत की कार में बैठा हुआ लड़का
गुम गया मड़ई की हवेली में
हमारे प्रिय खेलों में
सबसे अजीब खेल था
माँ के सिंगारदान में
उलट-पलट , इधर-उधर
जिसमें रहती थी
कुछेक पत्ते टिकुलियाँ
सिन्दूर से सनी एक डिबिया
घिस चुकी दो-चार क्लिचें
सस्ता सा कोई पाउडर
एक आईना
और छोटी-बड़ी दो कंघी
हम माँ को हमेशा ही
खूबसूरत देखना चाहें
हम नाराज भी हुए माँ से
जैसे सजती थी
आस-पड़ोस की और औरतें
माँ नही सजी कभी उस तरह
माँ उम्र से बड़ी ही रही
हमने माँ को
थकते हुए देखा है
थककर बीमार पड़ते देखा है
पर माँ को हमने
कभी रोते हुए नहीं देखा
हमने माँ को कभी
जवान भी नहीं देखा
बूढ़ी तो बिल्कुल नहीं
मैंने सिंगारदान कहा
जाने आप क्या समझे
मगर अभी
लाइब्रेरी के कोने में
 एक लड़का सुबक उठ्ठा है
मेरी दवाइयों के डिब्बे में
सिमटकर रह गया
माँ का सिंगारदान ।


3. पंकज चतुर्वेदी 

माँ बच्चे के दोष
देखती भी है तो 
उसे अपनी ही

विफलता मानती है


अगर वह भी उसे
क़ुसूरवार ठहराती
तो दुनिया में मनुष्य की
कोई शरण न होती। 


4. अतुल शुक्ल ( भाई पुनीत मालवीय की दीवार से) 


मौजूं था कि माँ पर लिखी जाती एक कविता
मैनें इजाजत मांगी तो स्त्री ने मुंह पर उंगली रखकर चुप रहने का संकेत किया
उसका बच्चा सोने की कोशिश कर रहा था
मैं मुंह बांधे खटिया के पायताने खड़ा रहा
फिर एक वक्फे के बाद मैंने उसकी खिड़की में झांका
वो कटोरे में सानकर दाल-भात खिला रही थी
बच्चा चांद मांगने की जिद पर अड़ा था ,
उसने विनती की
और मैं उस रात चांद बनकर उनकी खिड़की पर टँगा रहा
आखिरी बार इजाजत मांगने की गरज से जब मैं उसके घर गया
उस दिन उसके पास सांस लेने की भी फुर्सत नही थी
उसका बेटा पहले दिन स्कूल जा रहा था और वो हवा के परों पर सवार थी
मेरे बगल से दोनों फुर्र से उड़ गये और बच रही एक सनसनाहट ...
फिर मैंने कविता के विचार को स्थगित किया
अब मेरी आत्मा लिपटी हुयी है एक अदृश्य गर्भनाल में
सीजेरियन का दर्द झेलकर मुस्कुराती हुई ममता ही मुझे छुड़ा सकेगी ....


5. मैं तुम्हें प्यार नहीं करता माँ_देवेंद्र आर्य (रीता नामदेव जी दीवार से) 

तुमने मुझे प्यार किया सिर्फ मुझे
या मेरे बेटे को
मेरी पत्नी को नहीं
उसे तुम घर आई पढ़ी-लिखी नौकरानी ही समझती रही
बिना मूछ का मर्द
जो मेरी अनुपस्थिति में
बाहर की ज़िम्मेदारी भी सम्हाल सकती है
मैं तुम्हें कैसे प्यार कर सकता हूँ माँ
कि तुम्हें उससे काम लेने का हक़ तो याद रहा
प्यार देने की ज़िम्मेदारी नहीं
तुम भूल गयी मां
कि वो भी तुम्हारी तरह एक मां है
मां ने मां को कभी प्यार नहीं किया
मैंने देखा है तुम बहन की रोटी में घी नहीं लगाती थी
और मुझे चपोड़ देती थी
सूखी ही सही
पहली रोटी उसे कभी नहीं मिली
तरस जाती थी बहन खेलने के लिए
मैं अगर कभी शौक में भी गोझिया गढ़वाने लगूँ
तो डांट पड़ती थी - चल हट मेहरकुल्ला
याद है माँ
जब बहन खटपट की खबर लिए घर आई थी
तुमने मुझे अकेले में कहा था
तुम्हारे पापा समझेंगे नहीं
जितनी जल्दी हो इसे वापस ससुराल पहुंचा दो
साम दाम दंड भेद
बहन का दर्द अभी आंसू बन बह भी नहीं पाया था
कि तुमने उसे वेद पुराण लोक-लाज
स्त्री-धर्म की चिता पर सुला दिया
सिर्फ पैदा करना मां होना नहीं होता माँ !
मैं तुम्हें कैसे प्यार कर सकता हूँ
मैंने तुम्हारी ममता को बेनकाब होते देखा है
कई कई स्तर कई कई रंग
झूठ है कि माँ वही जिसमें ममता हो
ममता-विहीन माएं भरी पड़ी हैं
हम उन्हें देखते भी हैं
पर सबके सामने कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाते
सामने तो माँ-छाप मुनव्वर के शेर ही दुहराते हैं
अपनी माँ का बोझ पत्नी पर डाल कर सुर्खरू बन जाते हैं
कभी खुद करना पड़े तो नरक याद आ जाये
मैं उसे कैसे प्यार करूँ माँ
जो मुझे सिर्फ इसलिए प्यार करे कि मैं मर्द जात हूँ
उसे सूद लौटने वाला मूल
उसके बुढ़ापे की लाठी
उसे कंधे पर घाट पहुँचाने वाला
सच यह है कि बुढ़ापे की लाठी तो बेटी ही बनती है
या बहू
ममता और खुदगर्जी में भेद करने के लिए
पढ़ा-लिखा होना ज़रूरी नहीं माँ
काश ! तुमने मेरे भीतर की स्त्री की हत्या न की होती
काश ! तुमने बहन के भीतर के पुरुष को
तिल तिल कर न मारा होता
काश ! तुमने आज़ादी का पगहा मुझे
और गुलामी का ज़ेवर उसे न दिया होता
मैं तुम्हें प्यार नहीं कर सकता माँ
तुमने दूध पिलाया
और दूध का क़र्ज़ मुझसे वसूला
बहू लाने के पहले
जब कभी लोगों को माँ के कसीदे पढ़ते सुनता हूँ
तो लगता है जैसे मैं साहित्य की दिल्ली में
बेगुसराय का निवासी हूँ
पुण्य आत्माओं के बीच पापी मैं
तुम्हें प्यार नहीं करता माँ ! 
6. माँ के लिए एक चप्पल_सुनील (अजय आनंद जी की दीवार से) 

माँ के लिए एक चप्पल लेनी है 
घर से पैरों की नाप लेना भूल गया हूँ 
अब बाज़ार में खड़े होकर 
माँ के पैरों को सोच रहा हूँ 
कल्पना में नहीं अट पा रहे है मेरी 
माँ के पैर। 


7. माँ_अनीता रघुवंशी 

माँ तू अंधेरो मे मुझे रोशनी सी लगती है
तुझसे मिलती हु जिन्दगी-२ सी लगती है
बनावट दिखावे चालाकी भरी दुनिया मे
आज भी तू मुझे ईमानदारी सी लगती है
बारिश हो तूफान हो जैसा भी हो मौसम
मुझे मेरी ओट लेती छतरी सी लगती है
कुछ भी मांगो तुझसे कभी ना नहीं होती
हर वक्त मुझे भरी तिजोरी सी लगती है
कितना भी भटको रिश्तो की दलदल मे
बस एक माँ तू ही तो अपनी सी लगती है
उम्रभर की यादे सिमेटे दरवाजे पर खड़ी
मुझे हर रोज इंतजार करती सी लगती है
चाहे जो भी तरक्की मिली हो इस शहर मे
पर तेरी गोद आज भी जन्नत सी लगती है




8.मोहन कुमार नागर 




शाम की काली चादर तनती जाए है
दिन के सिर !
चोंच में तिनके दाने दाबे लौट चली चिरैंये
सूखते पेड़ों के कोटर
जहां उनके चूजे चिकचिका रहे हैं !

मछलियाँ खोह में अपने अंडों की ओर
जानवर मांदों की ओर लपकते हुए
जहां उनके छौने भूखे अकेले !
शहर गया बेटा कब लौटेगा ?
शाम की काली चादर गहरा रही है
जीवन की शाम की ..
गांव गुठार छूटी बुढ़िया
आंख पर हाथ टिका
शहर की ओर चली एकतरफा
गांव की पगडंडियाँ ताकती है ..
उसकी बर्राहट में -
चिरैयों की चिकचिकाहट है
मछलियों की तड़प
दिन भर छूटे छौनों की अकुलाहट !
शाम की काली चादर तनती जाए है ...


Friday 12 May 2017

बुद्ध हो जाना


बुद्ध हो जाना 


अक्सर

कुछ ख्वाब 
जो तुम्हारे भीतर
जगते हैं हक़ीक़त की तरह 

फिर वे


होठों से

आग आग दहकते हैं
पलाश की तरह
बसंत बसंत खिलते हैं
अमलतास की तरह
प्यार प्यार महकते हैं
गुलाब की तरह
शब्द शब्द झरते हैं
हरसिंगार की तरह

फिर कोई 


ओक ओक पीता है 

अमृत की तरह 
स्वर स्वर सुनता है 
संगीत की तरह
आग आग जलता है 
परवाने की तरह  

फिर कोई 


तप तप निर्वाण पाता है 

बुद्ध की तरह। 
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तो जीवन की पराकाष्ठा  बुद्ध हो जाना है ?

Sunday 7 May 2017

आओगे ना


आओगे ना


सुनो 
तुम जानते हो 
वो एक पल जो बचा के रखा था 
तुम्हें सौंप देने के लिए 

पता नहीं 

कब 
कैसे 
छिटक कर आ गिरा था 
दिल के किसी कोने में 
और फिर 
तुम्हारी यादों के मौसम में 
तुम्हारे सौंदर्य की खाद और 
अदाओं की वर्षा से 
अंकुरित हो गया गया एक पौधा 
प्रेम का
जो तुम्हारे स्नेह की धूप पाकर 
फ़ैल गया 
विशाल वट वृक्ष सा। 

सुनो 

जब भी ज़िंदगी के ताप से झुलसो  
और मन हो 
तो आना इस वृक्ष की सघन छाँव में 
रुको ना रुको 
कुछ पल ठहरना 
सुस्ताना  
और पूर्ण करना तुम एक अनंत प्रतीक्षा को  
तुम जानते हो 
वृक्ष  
अनजाने यात्रियों के बिना कितने अधूरे होते हैं 

आओगे ना। 

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क्या प्रतीक्षाएँ अपूर्ण होने के  लिए अभिशप्त होती हैं। 





Monday 1 May 2017

आइज़ोल एफसी








                                            ये केवल रंगों का फ़र्क़ था।जो अविस्मरणीय इबारत पिछले साल (सत्र 2015-2016) 'मैन इन ब्लू' लिख रहे थे उसी इबारत को हज़ारों किलोमीटर की दूरी पर इस साल (2016-2017) 'मैन इन रेड' लिख रहे थे।इंग्लिश प्रीमियर  लीग में लीसेस्टर की टीम अगर 2014-15 में अपने आखरी नौ मैचों में से सात ना जीतती तो 2015 -16 में रेलीगेट हो जाती। और उसके बाद उसने अपने क्लब के 132 सालों के इतिहास में पहली बार इंग्लिश प्रीमियर लीग जीत कर इतिहास रचा था। बिलकुल वही आज आइजोल एफसी ने कर दिखाया।पिछले साल रेलीगेट हो जाने के बाद भाग्य से खेलने के मौके पर चौका लगाया और आई लीग जीतने वाला पहला पूर्वोत्तर क्लब बन गया। आज शाम जब आइज़ोल एफसी की टीम ने शिलोंग में  स्थानीय शिलोंग लाजोंग से 1-1 से ड्रा खेला तो आइज़ोल के लाल रंग की जर्सी में खिलाड़ी अपने खुद के और अपने समर्थकों के चेहरों पर ही रक्तिम आभा नहीं बिखेर रहे थे बल्कि मोहन बागान एफसी और उनके समर्थकों के सपने को तोड़ कर उनकी उम्मीदों को लहूलुहान भी कर रहे थे। निश्चय ही जब पूर्वोत्तर में आज सुबह सूरज उग रहा होगा तो उसमे आइज़ोल के लाल रंग की जर्सी की रक्तिम आभा का भी कुछ रंग मिला होगा। 
                             आज आई लीग के अंतिम लेकिन दो महत्वपूर्ण मैच खेले जाने थे जिनके परिणाम के आधार पर इस साल के लीग विजेता का निर्धारण होना था। मोहन बागान की टीम चेन्नई एफसी से खेल रही थी और आइज़ोल एफसी शिलॉन्ग लाजोंग की टीम से। आइज़ोल की टीम को लीग विजेता बनने के लिए केवल बराबरी की दरकार थी जबकि मोहन बागान को चैम्पियन बनने के लिए ना केवल अपना मैच जीतना था बल्कि आइज़ोल का हारना भी ज़रूरी था। मोहन बागान ने चेन्नई को 2-1 हरा दिया पर आइज़ोल ने अपना मैच शिलोंग लाजोंग से ड्रा खेला और चैम्पियन बना। 
                                   आइज़ोल के लिए आज का मैच आसान नहीं था। इस मैच के रैफरी बंगाल से ताल्लुक रखते थे जिसका आइज़ोल ने विरोध किया।दूसरी ओर उनके दो मुख्य खिलाड़ी कप्तान अल्फ्रेड जरयान और आशुतोष मेहता नहीं खेल रहे थे। दूसरे उनका मुकाबला स्थानीय और जोशीली युवा टीम लाजोंग से था जिसमें सभी खिलाड़ी अंडर 22 टीम के थे जिन्होंने पूरे सीजन में शानदार खेल दिखाया और अपने टीम के लिए पांचवां स्थान हासिल किया। युवा लाजोंग टीम ने शुरू से ही आक्रामक खेल दिखाया और शुरू में ही दो कार्नर अर्जित किये जिसका परिणाम हुआ कि नवें मिनट में ही लाजोंग ने ए.पैरिक दीपांदा ने हैडर से गोल कर आइज़ोल समर्थकों को सकते में डाल दिया। दीपांदा का ये इस सीजन का 11वां गोल था। इस के बाद आइज़ोल की टीम ने अपने को संगठित किया और जवाबी हमले बोले। अंततः आइज़ोल को सफलता मिली 67 मिनट में जब लालनुनफेला ने बराबरी का गोल किया। 
                                    आइज़ोल की टीम का आई लीग में ये दूसरा साल था और दूसरे साल ही आई लीग जीतने वाली नार्थ ईस्ट की पहली टीम बनी। पिछले साल अपने पहले सत्र में आठवें स्थान पर थी और रेलीगेट हो गयी थी लेकिन अंतिम समय में गोआ की टीम के हट जाने के कारण उन्हें खेलने का मौक़ा मिला और मौके को चूके नहीं और खिताब जीत इतिहास बना दिया। दरअसल ये जीत उनके नए कोच खालिद जमील की जीत है। जब सात साल बाद मुम्बई एफसी ने खालिद को हटा दिया तो वे आइज़ोल से जुड़ गए। उन्होंने टीम का पुनर्गठन किया और लीग की सबसे कमज़ोर मानी जाने वाली टीम को खिताबी जीत दिला दी। 
                                याद कीजिये सत्तर और अस्सी का दशक जब फुटबाल पर बंगाल की बादशाहत थी और मोहन बागान,ईस्ट बंगाल और मोहम्डन स्पोर्टिंग इन तीन बंगाली क्लबों का बोलबाला था। थोड़ी बहुत चुनौती जेसीटी मिल फगवाड़ा और डेम्पो स्पोर्टिंग क्लब से मिलती थी। ठीक वैसे ही जैसे क्रिकेट में मुम्बई दिल्ली और कर्नाटक का बोलबाला था। अगर क्रिकेट में परिदृश्य 1983 में विश्व कप जीतने के बाद बदला तो फ़ुटबाल में 90 के बाद लीग सिस्टम शुरू होने के बाद। अब बंगाल का वर्चस्व टूटने लगा। पंजाब और गोआ के अलावा केरल,महाराष्ट्र,सर्विसेज की टीमों के साथ साथ पूर्वोत्तर राज्यों से भी चुनौती मिलने लगी। फिलहाल देश के सुदूर क्षेत्रों में भी फ़ुटबाल की लोकप्रियता अच्छा लक्षण है और भारतीय फ़ुटबाल के अच्छे भविष्य की और संकेत भी। 
                                     आइज़ोल एफसी को बहुत बहुत बधाई।  









दीपा करमाकर,एक लाजवाब जिमनास्ट

  अ पनी बात इलाहाबाद की एक स्टोरी से शुरू करता हूँ। वहां एक शख़्स हुआ करते थे डॉ यू के मिश्र। वे आबकारी विभाग में उच्चाधिकारी थे। लेकिन जिस व...