Sunday, 14 May 2017

माँ का दिन_मुख पुस्तिका का हासिल

माँ का दिन_मुख पुस्तिका का हासिल 
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1. स्केच_अपराजिता शर्मा / रंग_रोहित गुसिया 


 







































2 शब्द_हरिश्चंद्र पांडेय सर / चित्र_आशुतोष उपाध्याय 




























2. वसुंधरा पांडेय 

दुनिया को अंगूठा दिखाये थे

माँ की आँखों के ताल में
डुबकी लगाएं ,तैरना सीख जाये
घर ही नही ,माँ तो पूरा गाँव ठहरी

ढोलक की थाप थिरकेँ,मंगल गीत गायें
गाँव ही नही माँ तो पूरा देश ठहरी

इत-उत् जायें
गोद में लेट जायें ,रोधना पसारे
देश ही नही माँ ब्रम्हांड ठहरी... !


2 .विहाग वैभव 


हर जवान लड़के की याद में 
बचपन 
सर्दियों के मौसम में उठता

गर्म भाप सा नहीं होता
रेत की कार में बैठा हुआ लड़का
गुम गया मड़ई की हवेली में
हमारे प्रिय खेलों में
सबसे अजीब खेल था
माँ के सिंगारदान में
उलट-पलट , इधर-उधर
जिसमें रहती थी
कुछेक पत्ते टिकुलियाँ
सिन्दूर से सनी एक डिबिया
घिस चुकी दो-चार क्लिचें
सस्ता सा कोई पाउडर
एक आईना
और छोटी-बड़ी दो कंघी
हम माँ को हमेशा ही
खूबसूरत देखना चाहें
हम नाराज भी हुए माँ से
जैसे सजती थी
आस-पड़ोस की और औरतें
माँ नही सजी कभी उस तरह
माँ उम्र से बड़ी ही रही
हमने माँ को
थकते हुए देखा है
थककर बीमार पड़ते देखा है
पर माँ को हमने
कभी रोते हुए नहीं देखा
हमने माँ को कभी
जवान भी नहीं देखा
बूढ़ी तो बिल्कुल नहीं
मैंने सिंगारदान कहा
जाने आप क्या समझे
मगर अभी
लाइब्रेरी के कोने में
 एक लड़का सुबक उठ्ठा है
मेरी दवाइयों के डिब्बे में
सिमटकर रह गया
माँ का सिंगारदान ।


3. पंकज चतुर्वेदी 

माँ बच्चे के दोष
देखती भी है तो 
उसे अपनी ही

विफलता मानती है


अगर वह भी उसे
क़ुसूरवार ठहराती
तो दुनिया में मनुष्य की
कोई शरण न होती। 


4. अतुल शुक्ल ( भाई पुनीत मालवीय की दीवार से) 


मौजूं था कि माँ पर लिखी जाती एक कविता
मैनें इजाजत मांगी तो स्त्री ने मुंह पर उंगली रखकर चुप रहने का संकेत किया
उसका बच्चा सोने की कोशिश कर रहा था
मैं मुंह बांधे खटिया के पायताने खड़ा रहा
फिर एक वक्फे के बाद मैंने उसकी खिड़की में झांका
वो कटोरे में सानकर दाल-भात खिला रही थी
बच्चा चांद मांगने की जिद पर अड़ा था ,
उसने विनती की
और मैं उस रात चांद बनकर उनकी खिड़की पर टँगा रहा
आखिरी बार इजाजत मांगने की गरज से जब मैं उसके घर गया
उस दिन उसके पास सांस लेने की भी फुर्सत नही थी
उसका बेटा पहले दिन स्कूल जा रहा था और वो हवा के परों पर सवार थी
मेरे बगल से दोनों फुर्र से उड़ गये और बच रही एक सनसनाहट ...
फिर मैंने कविता के विचार को स्थगित किया
अब मेरी आत्मा लिपटी हुयी है एक अदृश्य गर्भनाल में
सीजेरियन का दर्द झेलकर मुस्कुराती हुई ममता ही मुझे छुड़ा सकेगी ....


5. मैं तुम्हें प्यार नहीं करता माँ_देवेंद्र आर्य (रीता नामदेव जी दीवार से) 

तुमने मुझे प्यार किया सिर्फ मुझे
या मेरे बेटे को
मेरी पत्नी को नहीं
उसे तुम घर आई पढ़ी-लिखी नौकरानी ही समझती रही
बिना मूछ का मर्द
जो मेरी अनुपस्थिति में
बाहर की ज़िम्मेदारी भी सम्हाल सकती है
मैं तुम्हें कैसे प्यार कर सकता हूँ माँ
कि तुम्हें उससे काम लेने का हक़ तो याद रहा
प्यार देने की ज़िम्मेदारी नहीं
तुम भूल गयी मां
कि वो भी तुम्हारी तरह एक मां है
मां ने मां को कभी प्यार नहीं किया
मैंने देखा है तुम बहन की रोटी में घी नहीं लगाती थी
और मुझे चपोड़ देती थी
सूखी ही सही
पहली रोटी उसे कभी नहीं मिली
तरस जाती थी बहन खेलने के लिए
मैं अगर कभी शौक में भी गोझिया गढ़वाने लगूँ
तो डांट पड़ती थी - चल हट मेहरकुल्ला
याद है माँ
जब बहन खटपट की खबर लिए घर आई थी
तुमने मुझे अकेले में कहा था
तुम्हारे पापा समझेंगे नहीं
जितनी जल्दी हो इसे वापस ससुराल पहुंचा दो
साम दाम दंड भेद
बहन का दर्द अभी आंसू बन बह भी नहीं पाया था
कि तुमने उसे वेद पुराण लोक-लाज
स्त्री-धर्म की चिता पर सुला दिया
सिर्फ पैदा करना मां होना नहीं होता माँ !
मैं तुम्हें कैसे प्यार कर सकता हूँ
मैंने तुम्हारी ममता को बेनकाब होते देखा है
कई कई स्तर कई कई रंग
झूठ है कि माँ वही जिसमें ममता हो
ममता-विहीन माएं भरी पड़ी हैं
हम उन्हें देखते भी हैं
पर सबके सामने कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाते
सामने तो माँ-छाप मुनव्वर के शेर ही दुहराते हैं
अपनी माँ का बोझ पत्नी पर डाल कर सुर्खरू बन जाते हैं
कभी खुद करना पड़े तो नरक याद आ जाये
मैं उसे कैसे प्यार करूँ माँ
जो मुझे सिर्फ इसलिए प्यार करे कि मैं मर्द जात हूँ
उसे सूद लौटने वाला मूल
उसके बुढ़ापे की लाठी
उसे कंधे पर घाट पहुँचाने वाला
सच यह है कि बुढ़ापे की लाठी तो बेटी ही बनती है
या बहू
ममता और खुदगर्जी में भेद करने के लिए
पढ़ा-लिखा होना ज़रूरी नहीं माँ
काश ! तुमने मेरे भीतर की स्त्री की हत्या न की होती
काश ! तुमने बहन के भीतर के पुरुष को
तिल तिल कर न मारा होता
काश ! तुमने आज़ादी का पगहा मुझे
और गुलामी का ज़ेवर उसे न दिया होता
मैं तुम्हें प्यार नहीं कर सकता माँ
तुमने दूध पिलाया
और दूध का क़र्ज़ मुझसे वसूला
बहू लाने के पहले
जब कभी लोगों को माँ के कसीदे पढ़ते सुनता हूँ
तो लगता है जैसे मैं साहित्य की दिल्ली में
बेगुसराय का निवासी हूँ
पुण्य आत्माओं के बीच पापी मैं
तुम्हें प्यार नहीं करता माँ ! 
6. माँ के लिए एक चप्पल_सुनील (अजय आनंद जी की दीवार से) 

माँ के लिए एक चप्पल लेनी है 
घर से पैरों की नाप लेना भूल गया हूँ 
अब बाज़ार में खड़े होकर 
माँ के पैरों को सोच रहा हूँ 
कल्पना में नहीं अट पा रहे है मेरी 
माँ के पैर। 


7. माँ_अनीता रघुवंशी 

माँ तू अंधेरो मे मुझे रोशनी सी लगती है
तुझसे मिलती हु जिन्दगी-२ सी लगती है
बनावट दिखावे चालाकी भरी दुनिया मे
आज भी तू मुझे ईमानदारी सी लगती है
बारिश हो तूफान हो जैसा भी हो मौसम
मुझे मेरी ओट लेती छतरी सी लगती है
कुछ भी मांगो तुझसे कभी ना नहीं होती
हर वक्त मुझे भरी तिजोरी सी लगती है
कितना भी भटको रिश्तो की दलदल मे
बस एक माँ तू ही तो अपनी सी लगती है
उम्रभर की यादे सिमेटे दरवाजे पर खड़ी
मुझे हर रोज इंतजार करती सी लगती है
चाहे जो भी तरक्की मिली हो इस शहर मे
पर तेरी गोद आज भी जन्नत सी लगती है




8.मोहन कुमार नागर 




शाम की काली चादर तनती जाए है
दिन के सिर !
चोंच में तिनके दाने दाबे लौट चली चिरैंये
सूखते पेड़ों के कोटर
जहां उनके चूजे चिकचिका रहे हैं !

मछलियाँ खोह में अपने अंडों की ओर
जानवर मांदों की ओर लपकते हुए
जहां उनके छौने भूखे अकेले !
शहर गया बेटा कब लौटेगा ?
शाम की काली चादर गहरा रही है
जीवन की शाम की ..
गांव गुठार छूटी बुढ़िया
आंख पर हाथ टिका
शहर की ओर चली एकतरफा
गांव की पगडंडियाँ ताकती है ..
उसकी बर्राहट में -
चिरैयों की चिकचिकाहट है
मछलियों की तड़प
दिन भर छूटे छौनों की अकुलाहट !
शाम की काली चादर तनती जाए है ...


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