आओगे ना
सुनो
तुम जानते हो
वो एक पल जो बचा के रखा था
तुम्हें सौंप देने के लिए
पता नहीं
कब
कैसे
छिटक कर आ गिरा था
दिल के किसी कोने में
और फिर
तुम्हारी यादों के मौसम में
तुम्हारे सौंदर्य की खाद और
अदाओं की वर्षा से
अंकुरित हो गया गया एक पौधा
प्रेम का
जो तुम्हारे स्नेह की धूप पाकर
फ़ैल गया
विशाल वट वृक्ष सा।
सुनो
जब भी ज़िंदगी के ताप से झुलसो
और मन हो
तो आना इस वृक्ष की सघन छाँव में
रुको ना रुको
कुछ पल ठहरना
सुस्ताना
और पूर्ण करना तुम एक अनंत प्रतीक्षा को
तुम जानते हो
वृक्ष
अनजाने यात्रियों के बिना कितने अधूरे होते हैं
आओगे ना।
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क्या प्रतीक्षाएँ अपूर्ण होने के लिए अभिशप्त होती हैं।
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