बुद्ध हो जाना
अक्सर
कुछ ख्वाब
जो तुम्हारे भीतर
जगते हैं हक़ीक़त की तरह
फिर वे
होठों से
आग आग दहकते हैं
पलाश की तरह
बसंत बसंत खिलते हैं
अमलतास की तरह
प्यार प्यार महकते हैं
गुलाब की तरह
शब्द शब्द झरते हैं
हरसिंगार की तरह
फिर कोई
ओक ओक पीता है
अमृत की तरह
स्वर स्वर सुनता है
संगीत की तरह
आग आग जलता है
परवाने की तरह
फिर कोई
तप तप निर्वाण पाता है
बुद्ध की तरह।
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तो जीवन की पराकाष्ठा बुद्ध हो जाना है ?
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