Monday 15 August 2022

खोखो से अल्टीमेट खो खो यानि माटी से मैट तक का सफर

 

                                  (गूगल से साभार)

             जब खो खो खेल मिट्टी से मैट पर स्थानांतरित हो रहा होता है,तो ये खेल अपनी प्रगति के एक नए चरण में प्रवेश कर रहा होता है। और इसे देखने के बाद आप दुविधा में भी पड़ सकते हैं कि क्या ये वही खेल है जिसे हमने अपने बचपन में खेला या देखा था।

       दरअसल मैट वाली जिस अल्टीमेट खो खो को कल से देखना शुरू किया है ना,ये वो खो खो नहीं है जिसे आपने दिन की खिली धूप में मिट्टी पर खिलाड़ियों को नंगे पैर या पीटी शूज में सेंडो बनियान और नेकर पहने खेलते देखा है। इसमें मिट्टी की जगह कृत्रिम सिंथेटिक सतह आ गई है जैसे की अन्य खेलों के साथ साथ कुश्ती और कबड्डी में आ गई है। इसमें साधारण जूते नहीं बल्कि विशेष रूप से इस खेल के लिए डिजाइन किए जूते हैं। डिजायनर कपड़े हैं। ये अब दिन में नहीं बल्कि गहराती रात में कृत्रिम प्रकाश में खेला जाता है।

      तो इसमें चकाचौंध होगी ही। जुनून, एक्शन, गति,उन्माद भी भरपूर होगा। उत्तेजना भी होगी। शोर शराबा भी होगा। दिखावा होगा, थोड़ा नकलीपन, थोड़ा बनावटीपन भी होगा। इसमें चारों तरफ ग्लैमर ही ग्लैमर पसरा होगा।  यानि कृत्रिम प्रसाधनों की तीव्र महक से आपके नथुने फड़फड़ा उठेंगे। बस कुछ नहीं होगा तो पुरानी खो खो के देसीपन की सौंधी खुशबू नहीं होगी।

        और सिर्फ खेल सतह,खिलाड़ी,कपड़े और उनसे निर्मित वातावरण ही नहीं बल्कि खेल का स्वरूप भी बदल बदला मिलेगा। अब एक पाला जिसे खो खो में टर्म कहा गया है, 09 मिनट का नहीं बल्कि 07 मिनट का हो गया है।  अब एक खिलाड़ी के आउट होने होने पर एक नहीं दो अंक मिलेंगे। और अगर आपने छलांग यह स्काई डाइव या पोल डाइव हो, लगाकर अगर खिलाड़ी टैग किया है यानी आउट किया है,तो 3 अंक मिलेंगे। सबसे बड़ी बात तो अब डिफेंस के लिए भी अंक मिल सकते हैं। यदि कोई डिफेंडर ढाई मिनट सरवाइव कर पाता है तो उसे भी दो अंक मिलेंगे और उसके बाद तो अगले हर 30 सेकंड पर वो दो अंक ले सकता है। 

     'पावर प्ले' अब क्रिकेट की बपौती नहीं रह गयी है अब इसमें भी पावर प्ले  होगा। दरअसल एक नया कांसेप्ट वज़ीर का है। चेजर यानी अटैकर टीम में अब एक वज़ीर होगा जो अलग रंग की ड्रेस में होगा जैसे वॉलीबॉल में लिबेरो होता है। ये चेजर टीम का ट्रम्प कार्ड की तरह है। कोई भी चेजर जिस दिशा में आगे बढ़ता है उसे बदल नहीं सकता। लेकिन वज़ीर के पास ये पॉवर होती है कि वो कभी भी कैसे भी किसी भी दिशा में मुड़कर रनर या डिफेंडर को टैग कर सकता है। और चेजर या अटैकर टीम डिफेंडर टीम के किसी भी एक बैच में दो वज़ीर का प्रयोग कर सकती है। यही समय पावर प्ले कहलाता है।

        अब बात कल के मैचों की। पहला मैच मुम्बई ख़िलाडीज और गुजरात जाइंट्स के बीच हुआ। पहली पाली यानी दो टर्म तक मुकाबला बारबरी का था लेकिन बाद में गुजरात  ने मुकाबले को एकतरफा बनाकर 69-44 अंकों से जीत लिया।

          गुजरात के कप्तान रंजन शेट्टी ने टॉस जीतकर डिफेंड करने का फैसला किया। पहले दो टर्म में मुम्बई 22-2 पर थी। दूसरे टर्म में गुजरात02 को की बढ़त के साथ 26-24 पर थी। तीसरे टर्म में स्कोर रहा44-30।.गुजरात को जीत के लिए केवल 15 अंक चाहिए थे। लेकिन उसने चौथे टर्म में 39 अंक जुटाकर एक मैच 69-44 अंकों से जीत लिया।

       दूसरा मैच तेलुगु योद्धाज और चेन्नई क्विक गन्स के बीच खेला गया। ये मुकाबला पहले के मुकाबले कम स्कोर और नजदीकी रहा। पहली पाली में स्कोर तेलुगु गन्स के पक्ष में 29 -15 रहा। दूसरी पाली में चेन्नई ने 23-19 अंकों के साथ वापसी करने की कोशिश की लेकिन मुकाबला48- 38 अंकों से योद्धाज के पक्ष में रहा।

        और चलते चलते ये कि आप राहुल चौधरी को जानते हैं ना। वही कबड्डी वाले। कबड्डी के पहले स्टार और फैशन स्टेटमेंट'। यानी कबड्डी के सचिन नहीं बल्कि विराट कोहली।हो सकता है इस सीजन के बाद आप गुजरात जायंट्स के अनिकेत पोटे को खो खो का राहुल चौधरी होते देखें। उनमें स्टार होने की काबिलियत है। खो खो में  ढाई मिनट सरवाइव करना बड़ी बात है। कल अनिकेत ने ये कारनामा दो बार किया और 04 डिफेंड अंक अर्जित किए। आगे आगे देखिए होता है क्या।



Saturday 13 August 2022

इंडिया मार छलांग



 'इंडिया मार छलांग' के उदघोष के साथ भारतीय खेल परिदृश्य पर एक नई लीग 'अल्टीमेट खो खो लीग' ही छलांग लगाने नहीं जा रही है, बल्कि एक और देसी खेल 'खो खो' आगे बढ़ने के लिए लंबी छलांग लगाने जा रहा है। आज यानी 14 अगस्त से ये नई लीग शुरू हो रही है जो 14 अगस्त से 04 सितंबर तक पुणे के श्री शिव छत्रपति स्टेडियम आयोजित की जाएगी। इसमें 06 टीमें भाग लेंगी और कुल 34 मैच खेले जाएंगे।

यूं तो विश्व की पहली प्रोफेशनल खेल लीग 1876 में खेलों का सम्राट(el rey de los deportes) कहे जाने वाले खेल बेसबॉल में शुरू हुई थी - मेजर लीग बेसबॉल यानि एमएलबी। उसके बाद विश्व के अनेक भागों में अनेक खेलों में लीग स्थपित हुईं। इनमें से कुछ बहुत ज़्यादा लोकप्रिय हुईं और आज भी हैं। फुटबॉल में 05 से भी ज़्यादा विश्व प्रसिद्ध लीग हैं। लेकिन भारत में लीग का विचार बहुत देर से आया। कहावत है 'देर आयद दुरुस्त आयद।'2008 में शुरू हुई आईपीएल विश्व की चौथी सबसे धनवान लीग है जिसने इंग्लैंड की सुप्रसिद्ध प्रीमियर फुटबॉल लीग को भी पीछे छोड़ दिया है। क्रिकेट की आईपीएल लीग 2008 में शुरू हुई। और केवल 14 सालों में इस लीग ने भारत में खेलों का पूरा परिदृश्य ही बदल दिया कि खेलों की लोकप्रियता और विकास के लिए लीग को एक आवश्यक शर्त बना दिया है। अब भारत में हर खेल में लीग बनने को तैयार है।

दरअसल भारत में लीग की स्थापना के प्रयास बहुत देर से पिछली सदी के अंतिम दशक में शुरू हो पाए। भारत में पहली लीग सन 1996 में  आल इंडिया फुटबॉल एसोसिएशन द्वारा 'नेशनल फुटबॉल लीग' की स्थापित की गई। ये एक सेमी प्रोफेशनल लीग थी। 2007-08 के सत्र में  फुटबॉल को और अधिक प्रतिस्पर्धात्मक बनाने के लिए एएआईएफ ने इसे 'आई-लीग' में रूपांतरित कर दिया। इस लीग की प्रथम विजेता टीम जेसीटी फगवाड़ा और 2006-07 सत्र की अंतिम विजेता टीम डेम्पो क्लब गोआ थी।

             2007-08 सत्र से आई-लीग की शुरुआत हुई जिसमें 12 क्लब खेलते हैं। 2010 में एएआईएफ की आईएमजी-रिलायंस से 15 वर्षों के लिए 700 करोड़ का कमर्शियल अधिकारों को लेकर अनुबंध हुआ और 2013 में एएआईएफ ने रिलायंस और स्टार स्पोर्ट्स के साथ मिलकर एक नई लीग 'इंडियन सुपर लीग' की स्थापना की।  शुरुआत में इसमें आठ क्लब थे । लेकिन अब बढ़कर 11 क्लब हो गए हैं। पहले तीन साल इस लीग को एएफसी और फीफा से मान्यता नहीं मिली। लेकिन इसकी लोकप्रियता बढ़ती रही। आई लीग और आईएसएल के बीच एक गतिरोध बना रहा। अंततः आई लीग के 12 फुटबॉल क्लबों के संगठन इंडियन प्रोफेशनल फुटबॉल क्लब एसोसिएशन,एएआईएफ और रिलायंस-आईएमजी के प्रतिनिधियों के बीच लगातार बातचीत और फीफा और एएफसी के बीच बचाव के बाद अब आईसीएल प्रीमियर लीग और आई-लीग सेकंड लीग के रूप में स्थापित हो गयी हैं जिनका एक साथ समानांतर आयोजन किया जाएगा। फिलहाल आईसीएल भारत की सबसे लोकप्रिय लीग में से एक है।

फुटबॉल के बाद हॉकी में लीग शुरू हुई। 2005 में इंडियन हॉकी फेडरेशन 'प्रीमियर हॉकी लीग' की शुरुआत की। पर 2008 में  हॉकी फेडरेशन को भ्रष्टाचार के आरोप में भंग कर दिया गया और लीग भी अपने आप खत्म हो गई। उसके बाद 06 टीमों के साथ हॉकी इंडिया ने 2013 में हॉकी इंडिया लीग शुरू की। जिसे 2017 में स्थगित कर दिया गया।

2008 में जब प्रीमियर हॉकी लीग बंद हो रही थी और नेशनल फुटबॉल लीग नए कलेवर के साथ आई-लीग के रूप में अवतरित हो रही थी,ठीक उसी समय क्रिकेट में भारत में इसकी नियामक संस्था बीसीसीआई 'इंडियन प्रीमियर लीग' की स्थापना कर रही थी। बीसीसीआई सबसे सुगठित और प्रोफेशनल खेल संस्था थी। इसके प्रोफेशनलिज्म और भारत में क्रिकेट की लोकप्रियता ने आईपीएल को प्रसिद्धि के चरम पर पहुंचा दिया। ये लीग 08 टीमों के साथ शुरू हुई थी और पिछले सीजन में इसकी संख्या 10 हो गयी है। ये ना केवल देश की सबसे लोकप्रिय लीग है बल्कि एनएफएल , एमएलबी और एनबीए के बाद विश्व की चौथी सर्वाधिक कमाई वाली लीग बन गयी है।

आईपीएल की सफलता ने अन्य खेलों में भी लीग की स्थापना को प्रेरित किया। लेकिन कबड्डी को छोड़ कर बाकी लीग एसोसिएशन के अपने अंतर्विरोधों और कोरोना काल के चलते बहुत लोकप्रिय या सफल नहीं हो सकीं।

 इनमें से 'प्रो वॉलीबॉल लीग' की स्थापना 06 टीमों के साथ वॉलीबॉल फेडरेशन ऑफ इंडिया और बेसलाइन वेंचर इंडिया ने 2019 में की। इसका पहला सीजन 2019 में और दूसरा सीजन फरवरी 2022 में हैदराबाद में खेला गया। 

'प्रीमियर बैडमिंटन लीग' की स्थापना 2016 में बैडमिंटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने स्पोर्टज़ एंड लाइव इंडिया लिमिटेड के साथ की। इसमें सात फ्रेंचाइजी टीमें है जिसमें दुनिया के श्रेष्ठ खिलाड़ी भाग लेते हैं और ये दुनिया की प्रमुख बैडमिंटन लीग में से है। इसके अब तक पांच सीजन हो चुके हैं। अंतिम सीजन 2020 में हुआ था।

'प्रो कुश्ती लीग' 2015 में 06 फ्रेंचाइजी टीमों के साथ शुरू हुई। इसे रेसलिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया ने प्रो स्पोर्टिफाई के साथ मिलकर शुरू किया। इसके अब तक चार सीजन में से 2015 का पहला सीजन मुम्बई गरुड़ और 2019 का अंतिम सीजन हरयाणा हैमर्स ने जीता था।

'अल्टीमेट टेनिस लीग' की स्थापना 2017 में इलेविन स्पोर्टस और टेबल टेनिस फेडरेशन ऑफ इंडिया ने 06 फ्रेंचाइजी टीमों के साथ शुरू की और 2017,2018 और 2019 में तीन सीजन हुए।

2014 में 'प्रो कबड्डी लीग' की स्थापना 08 टीमों के साथ हुई। 2017 में इसमें चार और टीमों को शामिल किया गया और अब कुल 12 टीमें हैं। कोरोना के चलते केवल इसका 8वां सीजन रद्द किया गया। 2022 के सीजन का ड्राफ्ट हो चुका है। 2014 में कबड्डी लीग शुरू करने का निर्णय कबड्डी के भाग्य को बदल देता है। ये आईपीएल के बाद सबसे लोकप्रिय लीग बन गयी है। पहले सीजन में  ही इसे 43.2 मिलियन दर्शक मिले जो अब 55 मिलियन से ज़्यादा पहुंच चुके हैं। लीग ने इसे केवल लोकप्रिय ही नहीं बनाया। बल्कि इसका चरित्र ही बदल दिया। किसी समय का ये गवईं खेल अब इलीट खेल के रूप में बदल गया है। किसी समय मिट्टी पर नंगे पैर खेले जाने वाला खेल अब शानदार मैट पर ब्रांडेड जूते पहनकर खेला जाने वाला खेल बन गया है। इसमें अब पैसा और ग्लैमर दोनों का समावेश हो गया है। अब इसमें खिलाड़ी करोड़ों रुपये कमा रहे हैं। 2022 के ड्राफ्ट में पवन कुमार सहरावत को 2 करोड़ 43 लाख मिले। उसने अब अपने खिलाड़ियों के करोड़पति बनने के सपने को हक़ीक़त में बदल दिया है। कम से कम 5 खिलाड़ी ऐसे हैं जिन्हें करोड़ से अधिक मिले। इसके  खिलाड़ी क्रिकेट या फिल्मी सितारों की तरह स्टारडम का स्टेटस पा रहे हैं। अब इसके खिलाड़ी शानदार हेयर और बेयर्ड कट में दिखाई देने लगे हैं। 


अब एक और देशी खेल खो खो की लीग शुरू हो रही है। इसका ड्राफ्ट जुलाई में पूरा हो गया था। और आज से मुकाबले शुरू हो रहे हैं। इस लीग को खो खो फेडरेशन ऑफ इंडिया द्वारा डाबर इंडिया के साथ 06 फ्रेंचाइजी टीमों के साथ शुरु किया गया है। ये टीमें हैं-केएलओ स्पोर्ट्स के स्वामित्व वाली चेन्नई क्विक गन्स,जी एम आर स्पोर्ट्स की तेलुगु योद्धाज,ओडिशा प्रदेश सरकार की ओडिशा जॉगरनॉट्स,कापरी ग्लोबल्स की राजस्थान वारियर्स और अडानी स्पोर्ट्सलाइन की गुजरात जायंट्स।

पिछले महीने हुई नीलामी में देश भर के कुल 240 खिलाड़ियों को चार ग्रुप में बांटा गया था। ग्रुप ए में सर्वश्रेष्ठ77 खिलाड़ियों को रखा गया था जिनका बेस प्राइज 5 लाख था। इनमें प्रमुख थे-वाइकर, आंध्र पदेश के पोथिरेड्डी सिवारेड्डी,तमिलनाडु के एम. विग्नेश,कर्नाटक के एम.के. गौतम। महाराष्ट्र के  महेश  शिंदे  ड्राफ्ट किए जाने वाले पहले खिलाड़ी थे जिन्हें क्विक गन्स चेन्नई ने लिया। कुल 143 खिलाड़ी  ड्राफ्ट किए गए हैं।

जब ये लीग शुरू होगी तो कुछ ख़िलाडियों पर सबकी विशेष नज़र रहेगी। देश के सर्वश्रेष्ठ आल राउंडर और पोल डाइवर सिवारेड्डी गुजरात टीम में हैं। वाइकर तेलुगू योद्धाज के पास हैं तो एम के गौतम ओडिशा के पास। विग्नेश चेन्नई टीम में हैं। इसके अलावा चेन्नई के अमित पाटिल,गुजरात जायंट्स के रंजन शेट्टी और अनिकेत पोटे, मुम्बई ख़िलाडीज के  विजय हज़ारे और राजेश कुमार, ओडिशा के दीपेश मोरे और मिलिंद,राजस्थान के अक्षय भारत मजहर जमादार और तेलुगु के प्रज्वल  का शानदार खेल भी आपको देखने को मिलेगा।

दरअसल खो खो खेल में भी कबड्डी की तरह सफल उर लोकप्रिय होने के सभी गुण है। इसमें गति है,एक्शन है और सबसे बड़ी बात एक्शन में एक कंटीन्यूटी है जिसमें विश्राम के लिए कोई जगह नहीं है। एक प्लस ये भी की ये एक बहुत ही कम समय में  खत्म होने वाला खेल है। जिसमें 9- 9 मिनट की दो दो पारियां होती हैं।

इस खेल को आसानी से फॉलो किया जा सकता है। उन लोगों द्वारा भी जिन्होंने इसको नहीं देखा है और इसके बारे में कुछ नहीं जानते हैं। प्रत्येक टीम में 9-9 खिलाड़ी होते हैं। एक टीम चेजर होती है और दूसरी रनर। चेजर टीम के 8 खिलाड़ी दो पोल के बीच निर्धारित समान दूरी पर पर बैठे होते हैं और नवां चेजर एक्टिव रहता है। रनर टीम के खिलाड़ी  तीन-तीन के ग्रुप में मैदान पर पर आते हैं। जब चेजर टीम द्वारा पहले ग्रुप के तीनों को आउट कर दिया जाता है तो दूसरा ग्रुप आता है।इस तरह ये क्रम चलता रहता है। मैच दो पारियों का होता है। प्रत्येक पारी नौ मिनट की होती है। जो टीम विपक्षी टीम के ज़्यादा खिलाड़ियों को आउट करता है,वो जीत जाती है।  

इस बार कुल 34 मैच होंगे। नॉक आउट चरण प्ले ऑफ प्रारूप में खेला जाएगा जिसमें क्वालीफ़ायर और एलिमिनेटर शामिल होंगे। 

मिट्टी पर खेला जाने वाले ये खेल भी अब विशेष रूप से विकसित कृत्रिम मैट पर और डिजायनर ड्रेस में खेला जाएगा। उम्मीद की जानी चाहिए जिस तरह से 'ले पंगा' के उदघोष के साथ कबड्डी अपने जलवे बिखेर रही है खो खो भी 'इंडिया मार छलांग'के उदघोष के साथ इतनी लंबी छलांग लगाएगा कि किसी के हाथ ना आएगा।


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Tuesday 9 August 2022

राष्ट्रमंडल खेल _03

                            (साभार गूगल)

 इंग्लैंड के बर्मिंघम शहर में 28 जुलाई से 08 अगस्त 2022 तक आयोजित 22वें राष्ट्रमंडल खेल सम्पन्न हुए। इसमें कुल 72 देशों के 5054 खिलाड़ियों ने 20 खेलों की 280 स्पर्द्धाओं में भाग लिया

इन खेलों में 67 स्वर्ण पदकों सहित कुल 178 पदकों के साथ ऑस्ट्रेलिया पहले स्थान पर, इंग्लैंड दूसरे और कनाडा तीसरे स्थान पर रहा। 

भारत की और से कुल 210 खिलाड़ियों ने 16 खेलों में भाग लिया जिनमें से  106 पुरुष और 104 महिला खिलाड़ी थे। भारत  कुल 61 पदकों के साथ चौथे स्थान पर रहा। इन 61 पदकों में 22 सोने के,16 चांदी के और 23 कांसे के पदक शामिल हैं।

आप किसी भी दृष्टि से देखें ये भारत का कमोवेश  वैसा ही प्रदर्शन है जैसा कि अब तक भारत करता आया है। इस बार भारत पदक तालिका में चौथे स्थान पर रहा। 2010 में दिल्ली में भारत दूसरे और 2018 में तीसरे स्थान पर था। 2002 में मैनचेस्टर में और 2006 में मेलबोर्न में चौथे स्थान पर रहा था। अगर कुल पदकों की दृष्टि से देखा जाए तो भारत ने 2010 दिल्ली में सर्वाधिक 101 पदक जीते थे। 2002 में मैनचेस्टर में 69 पदक, 2018 में गोल्डकॉस्ट में 66 और ग्लास्गो 2014 में 64 पदक। अगर केवल स्वर्ण पदकों की बात करें तो सर्वाधिक स्वर्ण पदक 2010 नई दिल्ली खेलों में कुल 38 पदक आए। 2002 मैनचेस्टर में 30 स्वर्ण,2006 मेलबोर्न में 22 और 20018 गोल्ड कॉस्ट में 26 स्वर्ण पदक आए थे।


लेकिन जब हम इस बार के प्रदर्शन की तुलना पिछले प्रदर्शनों से करते हैं तो निशानेबाजी को ध्यान में रखना चाहिए। ये केवल दूसरा अवसर था कि इन खेलों में निशानेबाजी को शामिल नहीं किया गया था। इन खेलों में सर्वाधिक पदक भारत ने निशानेबाजी में ही जीते हैं। गोल्ड कॉस्ट में निशानेबाजी में सात स्वर्ण सहित कुल 16 पदक जीते थे। दिल्ली में जीते गए 101 पदक में से 39 पदक उन खेलों से आए थे जो इस बार शामिल नहीं थे। निशानेबाजी में 30,ग्रीकोरोमन कुश्ती में 7,तीरंदाजी में 8 और टेनिस में 4 पदक। 


इस बार के खेलों का सबसे बड़ा हासिल एथलेटिक्स में प्रदर्शन रहा। यहाँ एथलेटिक्स में भारत ने 1 स्वर्ण,4 रजत और 3 कांस्य सहित कुल 8 पदक जीते। स्टीपलचेज में अविनाश मुकुंद साबले का प्रदर्शन विशेष कहा जा सकता है जिन्होंने इस स्पर्धा पर केन्याई वर्चस्व को तोड़ा। वे विश्व एथलेटिक्स  में भी फाइनल तक पहुंचे थे। दरअसल एथलेटिक्स के इस प्रदर्शन को  विश्व एथलेटिक्स में भारत के प्रदर्शन की अगली कड़ी के रूप में ही देखना चाहिए।इस बार अमेरिका के यूजीन में आयोजित विश्व एथलेटिक्स प्रतियोगिता में भारत ने एक रजत पदक जीता था और भारतीय एथलीट 6 स्पर्धाओं के फाइनल दौर में पहुंचे। और ये भी कि नीरज चोपड़ा यहां अनुपस्थित थे।  



राष्ट्रमंडल खेलों के औचित्य को लेकर अक्सर बात होती है। आलोचकों का मानना है कि ये खेल गुलामी का प्रतीक है। यहां ये बात जानना जरूरी है कि जितने भी खेल आयोजन होते हैं उनका स्वरूप भौगोलिक होता है। लेकिन ये ही एकमात्र ऐसे खेल हैं भौगोलिक सीमाओं के पार सभी महाद्वीपों के वे देश शामिल होते हैं जो कभी ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन रहे। सामान्यतः प्रयास यही होता है कि गुलामी के,उपनिवेशवाद के सारे चिह्न मिटा दिए जाएं,लेकिन बहुत से अवशेष उस समाज और राष्ट्र की ज़िंदगी में इतने घुलमिल जाते हैं कि उन्हें मिटाना या खत्म करना असंभव हो जाता है। ये माना जा सकता है कि  राष्ट्रमंडल खेल भी हमें उपनिवेशवाद और ग़ुलामी की याद दिलाते हैं। लेकिन ये हमारी खेल ज़िन्दगी का अब अहम हिस्सा बन चुके हैं। इसलिए ऐसी आलोचना बेमानी लगती है। फिर आलोचकों के इसी तर्क पर के आधार पर अपनी हर जीत को शासक राष्ट्र के ऊपर श्रेष्ठता भी तो मानी जा सकती है और उसका प्रतिकार भी।ये भी कहा जाता है कि इस खेल आयोजन में प्रतिस्पर्धा का स्तर ऊंचा नहीं है और इसमें अर्जित सफलता कोई मायने नहीं रखती। लेकिन यहां ये समझना ज़रूरी है कि इस तरह तो राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं को तो छोड़िए महाद्वीपीय प्रतियोगिताएं भी बेमानी हैं। दरअसल प्रतियोगिताओं का ,स्पर्द्धाओं का एक अनुक्रम होता है। खिलाड़ी सीढ़ी दर सीढ़ी आगे बढ़ता है और सबसे ऊंची पायदान पर पहुंचने का प्रयास करता है। हर प्रतियोगिता का खिलाड़ी के लिए समान महत्व होता है और उसमें मिली सफलता और असफलता का भी।


सच तो ये हैं कि प्रतियोगिताओं को किसी देश के प्रदर्शन और उसके स्तर और जीत हार की दृष्टि भर से नहीं देखा जा सकता। जीतने वाले खिलाड़ियों के चेहरे की खुशी और हारने वाले के चेहरे की उदासी को पढ़ेंगे तो पता चलेगा कि किसी खिलाड़ी के लिए इसमें प्रतिभाग का क्या महत्व है। वे सालों साल इसके लिए कड़ी मेहनत और परिश्रम करते हैं। उसके पीछे उनकी कठिन तपस्या और साधना है। उनके वर्षों से संजोए सपने है,उम्मीदें हैं। और सिर्फ उन्हीं के नहीं उनसे कहीं ज़्यादा उनके घरवालों के भी। देश और देशवासियों के तो हैं ही।

खिलाड़ियों की ज़िंदगी के पन्नों को पलटिए। उनके बीते समय को रिवाइंड कीजिए। उनकी पृष्टभूमि को खंगालिए। तब पता चलता है किसी संकेत महादेव के पिता पान की दुकान से गुज़र बसर करते हैं। किसी पी गुरुराजा के पिता ट्रक ड्राइवरी करते है। किसी प्रियंका के पिता मामूली से किसान हैं। किसी नवीन के पिता पूरा जीवन बेटे के लिए होम कर देते हैं। किसी ज़रीन का परिवार बेटी की ख़ातिर धर्म को दरकिनार कर देता है। हरियाणा की कोई साक्षी या विनेश या पूजा लड़की होने की विडंबना को सौभाग्य में तब्दील करने की जद्दोजहद करती पाई जाती हैं। कोई 14 साल की अनाहत और 19 साल का ललरिंनुगा अपने अंकुरित होते सपनों को विस्तृत फलक देने के प्रयास में रत मिलेंगे। तो उम्र को धता बताते 40 साल के सौरव घोषाल और 45 साल की पिंकी चौबे उम्र को सिर्फ एक अंक साबित करते मिलेंगे। पूर्वोत्तर भारत की कोई मीरा बाई चानू,बिदयादेवी,सुशीला देवी अपने अभावों से जूझने के अलावा देश मुख्यधारा में समझे जाने की आकुलता से भी दो चार हो रही होंगी। कोई भाविना पटेल या सोनलबेन पटेल हिम्मत और जिजीविषा से शारीरिक अक्षमता को बौना साबित कर रही होंगी। और तब ये भी पता चलेगा कि अमूमन ये सारे खिलाड़ी निम्न और निम्न मध्यम वर्ग से आते हैं जिनके लिए खेल केवल खेल नहीं हैं बल्कि ज़िन्दगी हैं।

यहां कठिन भौगोलिक और जातीय द्वन्दों से जुझता पूर्वोत्तर मिलेगा। दमदार हरयाणा और पंजाब सहित उत्तर मिलेगा। स्किलफूल दक्षिण मिलेगा और सपनों का सौदागर पश्चिम मिलेगा। यहां पूरा का पूरा भारत मिलेगा।

दरअसल इन खिलाड़ियों के लिए खेल केवल हार जीत नहीं है, पदकों को जीत लेना भर नहीं है बल्कि ज़िन्दगी से दो दो हाथ कर लेने का सवाल है। खेल और खेल में हार जीत उनके सपनों,उनकी आकांक्षाओं को उड़ान देने माध्यम है। खेल उनके अभावों और जीवन संघर्षों को धार देने का साधन हैं।

जब ये खिलाड़ी ट्रैक पर दौड़ लगाते हैं तो अपने दुखों और अभावों को पछाड़ कर आगे बढ़ते हैं।जब वे हवा में छलांग लगाते हैं तो वे नहीं उनके सपने उड़ान भरते हैं। वे फ्लोर पर केवल वजन भर नहीं उठाते,बल्कि अपने कंधों पर आन पड़ी जिम्मदारियों का गुरुतर भार भी उठाते हैं। रिंग में वे प्रतिपक्षी से कहीं अधिक सिस्टम को धाराशायी करते हैं। और मैट पर प्रतिद्वंदी को ही नहीं बल्कि रास्ते के हर अवरोध को चित करने का प्रयास करते हैं।

फिर परिणाम आते हैं। कुछ जीत कर आगे बढ़  जाते हैं कुछ हारकर या तो वहीं रुक जाते हैं या फिर से जद्दोजहद में लग जाते हैं। खेल ऐसे ही चलते रहते हैं और ज़िन्दगी भी।

बर्मिंघम एक पड़ाव भर है।

जो जीते उनको मुबारक। जो नहीं जीते उनको सुनहरे भविष्य के लिए शुभकामनाएं।

राष्ट्रमंडल खेल_2

 

                         (गूगल से साभार)


अजीब शै हैं ये आँसू। खुशी में भी निकले और ग़म में भी। कभी मीठे शहद से आँसू,कभी खारे नमक से आँसू।ये

 जो आसमानी ड्रेस में 'हॉकी खेलती लड़कियाँ' हैं ना आज उनकी आंखों से टपटपाती जाती हैं खुशियाँ और वे जो काली ड्रेस वाली 'हॉकी खेलती लड़कियां' हैं  उनकी आंखों उग आती हैं उदासियाँ।

यू तो ये आसमानी रंग पहने 'हॉकी खेलती लड़कियाँ' अपने माथे लगा चुकी हैं सोने और चांदी के भी तमगे। गर इस बार आया हाथ ताँबा तो ताँबा ही सही। क्या फर्क पड़ता है,खुद आसमां हुआ चाहती हैं ये लड़कियां।

पदक बहुत मुबारक लड़कियों।

ये हार भारतीय क्रिकेट का 'माराकांजो' है।

आप चाहे जितना कहें कि खेल खेल होते हैं और खेल में हार जीत लगी रहती है। इसमें खुशी कैसी और ग़म कैसा। लेकिन सच ये हैं कि अपनी टीम की जीत आपको ...