Saturday 16 June 2018

विश्व कप फुटबॉल 2018_3

कम ऑन मेस्सी!अब तुम्हारी बारी है!हम जानते हैं तुम कर सकते हो! 
-------------------------------------------------------------------------------



फीफा वर्ल्ड 2018 की और विशेष तौर पर एक मेज़बान लिए इससे बेहतर शुरुआत और कुछ नहीं  हो सकती थी। संक्षिप्त  लेकिन शानदार उद्घाटन समारोह के बाद जिस तरह से विश्व रैंकिंग में 70वीं पायदान वाली और इस कप की सबसे निचली रैंकिंग वाली रूस की टीम ने अपने से ऊँची रैंकिंग वाली (67वीं) टीम सऊदी अरब  खिलाफ गोलों की जैसी आतिशबाज़ी की वो ये बताने के लिए पर्याप्त था कि ये विश्व कप कैसा होने जा रहा है। उसने सऊदी अरब को 5-0 से रौंद कर उन आलोचकों को भी करारा जवाब दिया जो कह रहे थे कि ये रूस की अब तक की सबसे कमज़ोर टीम है। लेव याशिन जैसे महानतम गोलकीपर वाली इस टीम में अभी भी बहुत कुछ बचा है। स्थानापन्न चेरीशेव ने दो शानदार गोल कर बताया कि वे चोटिल स्टार प्लेमेकर जागोेव के विकल्प हो सकते हैं,तो गोलोविन ने अंतिम क्षणों में फ्री किक से गोल  चमत्कृत कर डेविड बेकहम और मेस्सी की याद दिला दी। पहले दिन के इस मैच ने जो मोमेंटम बनाया वो अगले दिन उरुग्वे-मिस्र और ईरान-मोरक्को मैच में बना रहा। पर इसका चरम स्पेन-पुर्तगाल मैच में आकर मानो ठहर गया हो। ये एक क्लासिक मैच था जिसमें वैसा फुटबॉल था जिसके लिए वर्ल्ड कप जाना जाता है,जिसके लिए दुनिया दीवानी है। 3-3 की बराबरी पर छूटे इस मैच में वो सब कुछ था जो फुटबॉल में होता है या हो सकता है । 90 मिनट में 6 गोल। वाओ औसतन हर 15 मिनट में गोल। और 4 मैचों में 13 गोल। वाह ये भी शानदार। 
             दरअसल 3-2 से 88वें मिनट तक बढ़त लिए हुए स्पेन की टीम और उसकी जीत के बीच में क्रिश्चियानो रोनाल्डो थे।  उस समय उन्होंने फ्री किक से शानदार गोल करके पुर्तगाल को बराबरी पर ला दिया।रोनाल्डो ने हैट्रिक की। ये उनके अंतर्राष्ट्रीय मैच में 46वें किक पर गोल था। इससे पहले 45 किक जाया गए थे। 
                रोनाल्डो ने तो कर दिखाया। कम ऑन मेस्सी। हम रोनाल्डो से नहीं तुमसे चाहते है वो सब जो और कोई भी कर सकता है और वो भी जो और कोई भी  नहीं कर सकता। जो अब तक बार्सिलोना के लिए किया है वो भी और वो भी जो अभी तक अर्जेंटीना के लिए नहीं कर सके हो। तुम्हारे हाथ में फीफा वर्ल्ड कप ट्रॉफी देखने सुन्दर दृश्य इस वर्ल्ड कप नहीं तो नहीं हो सकता। समय हाथ रेत की तरह फिसल रहा है।  अंतिम मौक़ा है। कम ऑन मेस्सी ! हम जानते हैं तुम कर सकते हो ! 
---------------------------------------------------
विश्व कप फुटबॉल 2018_2 

Tuesday 12 June 2018

लाल बजरी के चक्रवर्ती सम्राट का अश्वमेध यज्ञ जारी है







              लाल बजरी के चक्रवर्ती सम्राट का अश्वमेध यज्ञ जारी है 
             --------------------------------------------------------------

                         कई बार किसी व्यक्तित्व और उसकी उपलब्धियों के लिए बड़े शब्द भी अपूर्ण से लगने लगते हैं। जब आप राफेल नडाल को 'किंग ऑफ़ क्ले' कहकर सम्बोधित करते हो तो किंग शब्द ही छोटा महसूस होने लगता है।खेल की दुनिया में और खासकर टेनिस की दुनिया में 'राफा' और 'क्ले' एक दूसरे के पूरक हैं। एक है तो दूसरा है। एक के बिना मानो दूसरे का कोई अस्तित्व ही नहीं।  मोंटे कार्लो से लेकर पेरिस के रोलां गैरों तक लाल /भूरी मिट्टी पर खेल का जो साम्राज्य है,दरअसल राफेल नडाल उसके चक्रवर्ती सम्राट है। एक ऐसा अपराजेय सम्राट जिसकी कीर्ति चारों दिशाओं में फ़ैली है और जिसने अपनी इस कीर्ति को अनंत समय तक बनाये रखने के लिए एक अश्वमेध यज्ञ शुरू किया हुआ है। इस यज्ञ का अश्व यानी उनका खेल निर्मुक्त निर्द्वन्द समय की सीमाओं को लाँघता चला जा रहा है जिसे बांधने की शक्ति या हुनर किसी में है ही नहीं।
                          11 फ्रेंच ओपन,11मोंटे कार्लो ओपन,11 बार्सेलोना,8 रोम मास्टर्स और डेविस कप के क्ले पर खेले हर मैच में जीत। ये आंकड़े अपने आप में अविश्वसनीय लगते हैं। फ्रेंच में उनका रिकॉर्ड 86-2  का है यानी यहां खेले 86 में से केवल 2 मैच हारे। इस रविवार जब वे फिलिप कार्टियर कोर्ट में डोमिनिक थिएम के खिलाफ फाइनल खेलने उतरे तो ये उम्मीद थी कि ये एक ज़ोरदार मुक़ाबला होगा क्योंकि पिछले दो सालों में क्ले कोर्ट में जिस खिलाड़ी से दो बार हारे वो और कोई नहीं थीएम ही थे। पिछले साल रोम मास्टर्स में और इस बार मेड्रिड ओपन में। लेकिन अपने 11वे फ्रेंच आपने ग्रैंड स्लैम के लिए उन्होंने थीएम को 64,6-3,6-2 से लगभग रौंद ही डाला। 

                स्पेन एक ऐसा देश है जिसमें एक लाख से भी ज़्यादा क्ले कोर्ट हैं।वे बचपन से उस पर खेलते आये हैं। आखिर मिट्टी पर खेल नडाल के खून में जो है। वे उस मिट्टी के कण कण से वाक़िफ़ हैं।वे उसमें और मिट्टी उनमे रच बस गयी है। इसीलिए उसके मिज़ाज़ को उनसे बेहतर कौन समझ सकता है। उसका व्यवहार ही उन्हें और उनके खेल को रास आता है। मिट्टी की सतह पर घास या कृत्रिम सतह की तुलना में रूक कर थोड़ा धीमी आती है। जिससे उनकी चपलता और फुर्ती को गेंद पर नियंत्रण बनाने में आसानी होती है और उसके बाद वे अपने ट्रेडमार्क मारक टॉप स्पिन फोरहैंड शॉट खेलते हैं। टॉप स्पिन गेंद टप्पा खाने के बाद तेजी से आगे की ओर स्किट करती है और थोड़ा ज़्यादा ऊंची भी आती है जिसका कोई जवाब विपक्षी खिलाड़ी के पास नहीं होता। वे ना गेंद को और ना खेल को नियंत्रित कर पाते हैं। लाल सतह पर राफा के नियंत्रण को इस तथ्य से समझा जा सकता है कि 17 और 18  में फ्रेंच ओपन में केवल एक सेट खोया इस साल के क्वार्टर फाइनल में स्वार्त्ज़मान के खिलाफ। दरअसल उनका खेल इतना लयबद्ध होता है मानो अपने इस कभी ना ख़त्म होने वाले अश्वमेध यज्ञ में मंत्रोचार कर रहे हों। उनके खेल की आभा सूरज की तरह इतनी दीप्त होती है कि उसकी रोशनी में बाकी कुछ नहीं सूझता।  
    











Saturday 9 June 2018

वारियर्स




इस जून आसमान से तो ठीक वैसी ही आग बरस रही है जैसी उम्मीद थी। पर ज़मीन से जिस आग के निकलने की उम्मीद थी,वैसी निकली नहीं। खेल के मैदान में खिलाड़ियों के कौशल,हुनर,जोश और ज़ज्बे की टकराहटों से निकली आग में वो तपिश महसूस ही नहीं हुई। अगर पेरिस के रोलां गैरों की लाल मिट्टी पर नडाल केवल एक सेट की कीमत पर फाइनल में पहुँच गए तो एनबीए का फाइनल 'एंटी क्लाईमैक्स' का और दो देसी कहावतों 'अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता' तथा 'संगठन में ही शक्ति है' का महज़ एक नैरेटिव बन कर रह गया।


                                                      आज सुबह जब क्वीकें लॉन्स एरिना के सेंटर कोर्ट में लेब्रोन जेम्स की अगुआई में क्लीवलैंड कैवेलियर्स की टीम बेस्ट ऑफ़ सेवन के फाइनल्स के चौथे गेम में खेलने उतरी होगी तो उसके दिमाग में लैरी ओ ब्रायन ट्रॉफी से ज़्यादा अपना सम्मान बचाने की चिंता रही होगी। वे सीरीज में 3-0 से पिछड़ रहे थे।दूसरी और वारियर्स ये गेम जीत कर ट्रॉफी पर पिछले चार सालों में तीसरी बार और लगातार दूसरी बार अपने नाम कर लेने को बेताब होंगे। अंततः बाज़ी वारियर्स ने मारी और 108-85 से जीत कर लगभग एकतरफा मुक़ाबले में कैवेलियर्स को 4-0  से हरा दिया।पिछले चार सालों से एनबीए फाइनल्स का ठिकाना क्वीकें  लॉन्स और ओरेकल एरिना के सेंटर कोर्ट ही होते आये हैं। 2014-15 और 2015-16 के पहले दो मुकाबले जहाँ इन दो टीमों के साथ साथ स्टीफन करी और लेब्रोन जेम्स के मध्य प्रतिद्वंदिता के लिए भी याद किये जाते हैं तो 2016-17 का मुकाबला केविन डुरंट  और लेब्रोन जेम्स की ऐतिहासिक प्रतिद्वंदिता के लिए याद किया जाता है। लेकिन 2017-18 के इस सीजन में ये मुकाबला एनबीए के समकालीन इतिहास की सबसे शानदार टीम गोल्डन स्टेट वारियर्स और महानतम खिलाड़ी लेब्रोन जेम्स के बीच तब्दील हो गया था। 


                             जेम्स का ये लगातार आठवां और कुल मिलाकर नवां फाइनल्स था। उन्होंने अकेले अपने डैम पर कैवेलियर्स को ईस्टर्न कांफेरेंस के फाइनल में ही नहीं पहुँचाया बल्कि उसे जीता कर एक बार फिर फाइनल्स में वारियर्स के मुक़ाबिल कैवेलियर्स को खड़ा कर दिया। फाइनल्स के पहले ही मुकाबले में जब खेल अतिरिक्त समय तक पहुंचा तो लगा मुकाबले की तपिश बहुतों को झुलसा देने वाली है। लेकिन यहां एंटी क्लाइमेक्स होता है और अगले तीन तीन गेम में कैवेलियर्स आत्म समर्पण कर देती है। ऐसा लगने लगा टीम का बोझ अकेले ढ़ोते ढ़ोते मानो लेब्रोन की सांस फूल गयी हो। उनका मुकाबला  करी,थॉम्पसन,डुरंट और ड्रेमोन्ड ग्रीन की अभेद्य दीवार से था और इस दीवार को भेद पाना उनके अकेले के बस की बात नहीं था। वारियर्स ने कैवेलियर्स को हराकर बताया कि टीम गेम में कोई एक खिलाड़ी मायने नहीं रखती बल्कि पूरी टीम का प्रयास मायने रखता है।
फिलहाल इस सुनहरी टीम को सुनहरी सफलता की सुनहरी बधाई।

----------------------------------------------------------------------------
 और हाँ, नियति बेजाँ क्रूर भी होती है। 2012 में लेब्रोन मियामी हीट्स के लिए खेल रहे थे और डुरंट ओकलाहामा सिटी थंडर्स के लिए।उस समय लेब्रोन ने डुरंट को अपनी पहली रिंग से वंचित कर दिया था। समय बदला।डुरंट  2016-17 में वारियर्स  की टीम में शामिल हुए और एक बार फिर फाइनल्स में लेब्रोन के मुक़ाबिल हुए। बार नियति डुरंट के साथ थी। उसने रिंग ही नहीं जीती बल्कि फाइनल्स के एमवीपी भी बने।नियति यहीं नहीं रुकी।डुरंट ने पिछले साल वाला कारनामा फिर दोहराया।लेब्रोन के मुक़ाबिल एक और रिंग जीती,एक बार फिर फाइनल्स के एमवीपी करार दिए गए। 
---------------------------------------------------------------------------
पर ! आह,ये क्या ! रोलां गैरों के फिलिप कार्टियर मैदान पर स्लोअने स्टीफेंस की हार ! इस हार ने तो मानो वारियर्स की जीत की तपिश को मंद ही कर दिया। पर विश्वास है कल नडाल की जीत इस कमी की भरपाई कर पाएगी। और विशवास मानिये नडाल की लाल बजरी पर 11वीं जीत के बाद कल फिर यहीं आपसे मुलाक़ात होगी। 

ये हार भारतीय क्रिकेट का 'माराकांजो' है।

आप चाहे जितना कहें कि खेल खेल होते हैं और खेल में हार जीत लगी रहती है। इसमें खुशी कैसी और ग़म कैसा। लेकिन सच ये हैं कि अपनी टीम की जीत आपको ...