इस जून आसमान से तो ठीक वैसी ही आग बरस रही है जैसी उम्मीद थी। पर ज़मीन से जिस आग के निकलने की उम्मीद थी,वैसी निकली नहीं। खेल के मैदान में खिलाड़ियों के कौशल,हुनर,जोश और ज़ज्बे की टकराहटों से निकली आग में वो तपिश महसूस ही नहीं हुई। अगर पेरिस के रोलां गैरों की लाल मिट्टी पर नडाल केवल एक सेट की कीमत पर फाइनल में पहुँच गए तो एनबीए का फाइनल 'एंटी क्लाईमैक्स' का और दो देसी कहावतों 'अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता' तथा 'संगठन में ही शक्ति है' का महज़ एक नैरेटिव बन कर रह गया।
आज सुबह जब क्वीकें लॉन्स एरिना के सेंटर कोर्ट में लेब्रोन जेम्स की अगुआई में क्लीवलैंड कैवेलियर्स की टीम बेस्ट ऑफ़ सेवन के फाइनल्स के चौथे गेम में खेलने उतरी होगी तो उसके दिमाग में लैरी ओ ब्रायन ट्रॉफी से ज़्यादा अपना सम्मान बचाने की चिंता रही होगी। वे सीरीज में 3-0 से पिछड़ रहे थे।दूसरी और वारियर्स ये गेम जीत कर ट्रॉफी पर पिछले चार सालों में तीसरी बार और लगातार दूसरी बार अपने नाम कर लेने को बेताब होंगे। अंततः बाज़ी वारियर्स ने मारी और 108-85 से जीत कर लगभग एकतरफा मुक़ाबले में कैवेलियर्स को 4-0 से हरा दिया।पिछले चार सालों से एनबीए फाइनल्स का ठिकाना क्वीकें लॉन्स और ओरेकल एरिना के सेंटर कोर्ट ही होते आये हैं। 2014-15 और 2015-16 के पहले दो मुकाबले जहाँ इन दो टीमों के साथ साथ स्टीफन करी और लेब्रोन जेम्स के मध्य प्रतिद्वंदिता के लिए भी याद किये जाते हैं तो 2016-17 का मुकाबला केविन डुरंट और लेब्रोन जेम्स की ऐतिहासिक प्रतिद्वंदिता के लिए याद किया जाता है। लेकिन 2017-18 के इस सीजन में ये मुकाबला एनबीए के समकालीन इतिहास की सबसे शानदार टीम गोल्डन स्टेट वारियर्स और महानतम खिलाड़ी लेब्रोन जेम्स के बीच तब्दील हो गया था।
जेम्स का ये लगातार आठवां और कुल मिलाकर नवां फाइनल्स था। उन्होंने अकेले अपने डैम पर कैवेलियर्स को ईस्टर्न कांफेरेंस के फाइनल में ही नहीं पहुँचाया बल्कि उसे जीता कर एक बार फिर फाइनल्स में वारियर्स के मुक़ाबिल कैवेलियर्स को खड़ा कर दिया। फाइनल्स के पहले ही मुकाबले में जब खेल अतिरिक्त समय तक पहुंचा तो लगा मुकाबले की तपिश बहुतों को झुलसा देने वाली है। लेकिन यहां एंटी क्लाइमेक्स होता है और अगले तीन तीन गेम में कैवेलियर्स आत्म समर्पण कर देती है। ऐसा लगने लगा टीम का बोझ अकेले ढ़ोते ढ़ोते मानो लेब्रोन की सांस फूल गयी हो। उनका मुकाबला करी,थॉम्पसन,डुरंट और ड्रेमोन्ड ग्रीन की अभेद्य दीवार से था और इस दीवार को भेद पाना उनके अकेले के बस की बात नहीं था। वारियर्स ने कैवेलियर्स को हराकर बताया कि टीम गेम में कोई एक खिलाड़ी मायने नहीं रखती बल्कि पूरी टीम का प्रयास मायने रखता है।
फिलहाल इस सुनहरी टीम को सुनहरी सफलता की सुनहरी बधाई।
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और हाँ, नियति बेजाँ क्रूर भी होती है। 2012 में लेब्रोन मियामी हीट्स के लिए खेल रहे थे और डुरंट ओकलाहामा सिटी थंडर्स के लिए।उस समय लेब्रोन ने डुरंट को अपनी पहली रिंग से वंचित कर दिया था। समय बदला।डुरंट 2016-17 में वारियर्स की टीम में शामिल हुए और एक बार फिर फाइनल्स में लेब्रोन के मुक़ाबिल हुए। बार नियति डुरंट के साथ थी। उसने रिंग ही नहीं जीती बल्कि फाइनल्स के एमवीपी भी बने।नियति यहीं नहीं रुकी।डुरंट ने पिछले साल वाला कारनामा फिर दोहराया।लेब्रोन के मुक़ाबिल एक और रिंग जीती,एक बार फिर फाइनल्स के एमवीपी करार दिए गए।
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पर ! आह,ये क्या ! रोलां गैरों के फिलिप कार्टियर मैदान पर स्लोअने स्टीफेंस की हार ! इस हार ने तो मानो वारियर्स की जीत की तपिश को मंद ही कर दिया। पर विश्वास है कल नडाल की जीत इस कमी की भरपाई कर पाएगी। और विशवास मानिये नडाल की लाल बजरी पर 11वीं जीत के बाद कल फिर यहीं आपसे मुलाक़ात होगी।
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