Tuesday 29 May 2018

तेरे काँधे का जो तिल है

    
 तेरे काँधे का जो तिल है 
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त्रयी मिल कर ख्वाबों का एक अम्बर रचती है।जिसमें यूँ तो हर युवा चाहतों की उड़ान भरता है पर निम्न मध्यम वर्ग का युवा तो अपना अक्स ही खोजने लगता है।मोहब्बत का हर उपमान है इसमें। खुशियां हैं,ग़म हैं। अम्बर है,समंदर है।तिल है,दिल है। सर्दियाँ है,गर्मियां है,बरसात है।सावन भी है और नदिया भी। कुमकुम हैं, बाली है, जुड़ा है। फूल है और भूल भी। सूरज,चाँद और तारे तो होंगे ही।हाँ, बड़े बड़े सपने और वादें नहीं हैं,बल्कि छोटी छोटी चाहतें हैं, खुशियां हैं। सर्दियों में अम्बिया की और गरमियों में मूंगफलियों की चाहत है। बरसात में धूप की इच्छा है,चेहरे पर मुस्कान की तमन्ना है और मालपुए की चाहत है।
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कलम मोहब्बत की जो रागिनी रचती है उसमें शहनाई,ढोलक और करतल लोकवाद्य उल्लास और उमंग की बारिश करते हैं तो सुर गा उठते हैं --
       'आज से मेरी सारी खुशियाँ तेरी हो गईं 
        आज से तेरे सारे ग़म मेरे हो गए.....' 
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मुनीर कौसर अपनी कलम से जिस दिल को आकार देती हैं उसे अमित त्रिवेदी अपने साज़ों से धड़कना सिखाते हैं और फिर अरिजीत उसे अपने सुरों से खुशियों के समन्दर में डुबो देते हैं।
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बॉलीवुड गीत _5 




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