Friday 25 September 2020

अलविदा प्रोफेसर डीनो!

 



पूर्व ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट खिलाड़ी डीन मर्विन जोंस उर्फ प्रोफेसर डीनो ने 59 साल की उम्र में आज इस संसार को अलविदा कह दिया। एकदम अचानक से। मानो अचानक से लोगों को चकित करना उनका शगल हो। याद कीजिए ऑस्ट्रेलिया टीम का 1994 का दक्षिण अफ्रीका का दौरा। आठ मैचों की सीरीज में ऑस्ट्रेलिया 3 मैचों के मुकाबले चार मैचों से पीछे थी। आखिरी मैच में डीन जोन्स को टीम में नहीं चुना गया। और इस सीरीज का सातवां मैच उनके करियर का अंतिम मैच सिद्ध हुआ। उन्होंने सफेद गेंद की अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट को अचानक से अलविदा कह इसी तरह दुनिया को चौंका दिया था।

यूं तो वे लाल गेंद से भी कम नहीं खेले। उन्होंने कुल 52 टेस्ट मैच खेले। पर वे सफेद गेंद के चैंपियन खिलाड़ी थे। वे उन खिलाड़ियों में शुमार हैं जिन्होंने अस्सी के दशक में सफेद गेंद के एकदिनी क्रिकेट की सूरत को बदल दिया। आजकल क्रिकेट खिलाड़ी मैदान में जो रंगीन चश्मा पहनते हैं वो दरअसल उनकी ही देन है। वे बहुत आक्रामक खिलाड़ी थे। गेंद पर ताबड़तोड़ प्रहार,विकेटों के बीच तीव्र गति से दौड़ और मैदान में शानदार फील्डिंग के लिए जाने जाते हैं। ऐसा करने वाले वे चुनिंदा प्रारंभिक खिलाड़ियों में से थे। वे 1989 से 1992 तक लगातार चार साल सफेद गेंद के नंबर एक खिलाड़ी रहे।
विक्टोरिया के कोबर्ग में 23 मार्च 1961 को जन्मे दांए हाथ के बल्लेबाज और ऑफ स्पिनर डीन जोन्स ने अपने अंतरराष्ट्रीय कैरियर का प्रारंभ एकदिनी क्रिकेट से जनवरी 1984 में पाकिस्तान के खिलाफ किया और कुछ ही दिन बाद मार्च 1984 में वेस्टइंडीज के विरुद्ध टेस्ट मैच में। टेस्ट मैच में कैरियर का समापन श्रीलंका के खिलाफ सितंबर 1992 में और एकदिनी क्रिकेट में दो साल बाद अप्रैल 1994 में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ। इस तरह 11 साल के अंतरराष्ट्रीय कैरियर के दौरान उन्होंने 52 टेस्ट मैच खेले जिनमें 11 शतक और 14 अर्द्ध शतकों की सहायता से 3631 रन बनाए और एक विकेट भी लिया। जबकि एकदिनी क्रिकेट में 164 मैचों में 7 शतक और 46 अर्द्ध शतकों की सहायता से 44.61 की औसत से 6068 रन बनाए और 3 विकेट भी लिए। टेस्ट मैच में उन्होंने दो शानदार मैराथन पारियों के लिए हमेशा याद किए जाएंगे। 1986 में चेन्नई में भारत के विरुद्ध अनिर्णीत मैच में भीषण गर्मी और उमस भरे वातावरण में 210 रनों की पारी और 1989 में एडिलेड में वेस्टइंडीज के विरुद्ध 216 रनों की कैरियर बेस्ट पारी।
खेल से सन्यास लेने के बाद उन्होंने कोचिंग और कमेंट्री में हाथ आजमाया। और कमेंट्री में तो उन्होंने बहुत नाम कमाया। वे इस समय भी मुम्बई में स्टार स्पोर्ट्स के लिए आईपीएल की ऑफ ट्यूब कमेंट्री के लिए ही थे। वे अपनी खरी खरी बातों के लिए जाने जाते थे। शायद इसीलिए वे अक्सर विवादों में रहते। वे दो विवादों के लिए बेहद चर्चित रहे। 1993 में वेस्टइंडीज के विरुद्ध सिडनी में कर्टली एम्ब्रोस से उन्होंने सफेद रिस्ट बैंड उतारने के लिए बोला। इससे क्रुद्ध होकर एम्ब्रोस ने पूरी सीरीज में जबरदस्त गेंदबाजी की। उस मैच में उन्होंने 32 रन पर 5 विकेट लिए। अगले एडिलेड मैच में 10 विकेट और आखरी पर्थ मैच में प्रसिद्ध स्पैल किया जिसमें 1 रन देकर सात विकेट लिए। इसके बाद 2006 में कमेंट्री करते हुए दक्षिण अफ़्रीकी बल्लेबाज़ हाशिम अमला को आतंकवादी कहने के कारण उनकी बहुत आलोचना हुई।
जो भी हो वे एक दिनी क्रिकेट के अपने समय के सबसे शानदार खिलाड़ी के रूप में, सफेद बॉल क्रिकेट में नए ट्रेंड्स लाने वाले खिलाड़ी के रूप में और एक शानदार व बिंदास कमेंटेटर के रूप में हमेशा याद किये जायेंगे।
----------------------
अलविदा प्रोफेसर डीनो!



Tuesday 15 September 2020

नए के आगमन आहट

 



बात अगस्त 2017 की है। ग्लासगो के एमिरेट्स एरीना में बैडमिंटन विश्व कप का फाइनल भारत की पीवी सिंधु और जापान की नोजोमी ओकुहारा के बीच खेला गया था। इस मैच में नोजोमी ने सिंधु को 21-19,20-22,22-20 से हरा दिया। लेकिन जो भी ये मैच देख रहा था उसे लगा था कि इसमें कोई हारा तो है ही नहीं,निर्णय हुआ ही कहाँ कि कौन श्रेष्ठ तो फिर ये ख़त्म क्यों हो गया,क्यों दो खिलाड़ी हाथ मिलाते हुए मैदान से विदा ले रहे हैं,एक मुस्कुराते चहरे और शहद से मीठे पानी से डबडबाई आँखों के साथ तो दूसरा उदास चहरे और खारे पानी में डूबी आँखें लिए। सच में,कुछ मैचों में कोई हारता नहीं है। ऐसे में या तो दोनों खिलाड़ी जीतते हैं या फिर खेल जीतता है।

बीते रविवार को फ्लशिंग मीडोज़ में बिली जीन किंग टेनिस सेंटर के आर्थर ऐश सेन्टर कोर्ट में यूएस ओपन 2020 के पुरुष एकल के फाइनल में 27 साल के ऑस्ट्रिया के डोमिनिक थियम ने जर्मनी के 23 वर्षीय अलेक्जेंडर ज्वेरेव को 2-6,4-6,6-4,6-3,7-6(8-6)से हरा कर अपना पहला ग्रैंड स्लैम जीत लिया। चार घंटे चार मिनट की हाड़तोड़ मेहनत के बाद दोनों की ही आंखों में पानी था। फर्क सिर्फ जीत की मिठास और हार के खारेपन का था। और जिसने ग्लासगो के बाद ये मैच देखा होगा उसने यही सोचा होगा ऐसे हार-जीत थोड़े ही ना होती है। और ऐसा दर्शक क्या खुद थियम भी बिल्कुल ऐसा ही सोच रहे थे। मैच पश्चात वक्तव्य में उन्होंने कहा 'काश दो विजेताओं का प्रावधान होता। दोनों ही जीत के हकदार थे।' दरअसल ये शानदार मैच उन लोगों के लिए एक झलक है जो यह बात जानना चाहते हैं कि 'अद्भुत तिकड़ी '(फेडरर,नडाल,जोकोविच) के बाद का विश्व टेनिस का परिदृश्य कैसा होगा।
एक स्पोर्ट्स न्यूज़ पोर्टल ने लिखा 1990 के बाद जन्मे खिलाड़ी द्वारा जीता गया ये पहला ग्रैंड स्लैम है। ये बताता है कि यह कितनी बड़ी बात है। दरअसल 21वीं शताब्दी के पहले दो दशकों का और विशेष रूप से पिछले 15 वर्षों का विश्व टेनिस का पुरुषों का इतिहास केवल तीन खिलाड़ियों-फेडरर,नडाल और जोकोविच के रैकेट से लिखा गया है। इनको विस्थापित करने खिलाड़ी आए और चले गए पर ये तीनों चट्टान की तरह जमे रहे। समय और उम्र से बेपरवाह कालजयी। इस समय फेडरर 39 साल के, राफा 34 साल के और नोवाक 33 साल के हैं। इस यूएस ओपन से पहले के 13 ग्रैंड स्लैम खिताब इन तीनों ने जीते हैं. यानी पिछले तीन साल से इन तीनों के अलावा कोई और ग्रैंड स्लैम नहीं जीत पाया है. यहां उल्लेखनीय ये भी है कि पिछले 67 ग्रैंड स्लैम ख़िताबों में से 56 इन तीनों ने जीते हैं. यह अद्भुत है,अविश्वसनीय है. थिएम,ज्वेरेव,सिटसिपास, मेदवेदेव,रुबलेव और किर्गियोस जैसे युवा खिलाड़ी लगातार हाथ पैर मार रहे हैं,छटपटा रहे हैं, पर इन तीनों से पार नहीं पा पा रहे हैं। यहां उल्लेखनीय यह भी है कि फेडरर ने अपना पहला ग्रैंड स्लैम केवल 22वें साल में,नडाल ने 19वें साल में और जोकोविच ने 21वें साल में जीत लिया था।
इस साल यूएस ओपन में फेडरर ने अपने घुटने के आपरेशन के कारण और नडाल ने कोरोना के चलते सुरक्षा कारणों से भाग नहीं लिया और ये लगभग तय माना जा रहा था कि जोकोविच के लिए यह वॉक ओवर जैसा है जो इसे जीतकर अपने ग्रैंड स्लैम खिताबों की संख्या 18 तक पहुंचा देंगे और ग्रैंड स्लैम की रेस को कड़ा और रोचक कर देंगे। पर नियति को यह मंज़ूर नहीं था। नहीं तो जोकोविच यूं प्रतियोगिता से बाहर ना होते। प्री क्वार्टर फाइनल में वे अनजाने में लाइन जज को गेंद मार बैठे और डिसक्वालिफाई हो गए। अब युवा खिलाड़ियों के लिए प्रतियोगिता पूरी तरह खुल गयी थी। कोई भी बाजी मार सकता था। बाज़ी मारी अलेक्जेंडर ज्वेरेव और डॉमिनिक थियम ने और दोनों फाइनल में पहुंचे।
जोकोविच के प्रतियोगिता से बाहर हो जाने के बाद युवा खिलाड़ियों का संघर्ष अलग स्तर पर पहुंच गया जिसका चरम फाइनल था। इससे पहले थियम तीन ग्रैंड स्लैम फाइनल खेलकर हार चुके थे,दो बार फ्रेंच ओपन में नडाल से और इस साल ऑस्ट्रेलिया ओपन में एक मैराथन मैच में जोकोविच से। थियम के पास ना केवल तीन ग्रैंड स्लैम फाइनल का अनुभव था बल्कि इस प्रतियोगिता में अब तक उनका शानदार खेल रिकॉर्ड भी था। वे अभी तक खेले गए 6 मैचों में केवल एक सेट हारे थे और उनके खेल में एक निरंतरता और स्थायित्व (consistency)था। दूसरी और ज्वेरेव का यह पहला ग्रैंड स्लैम था। शानदार सर्विस,पावरफुल और नियंत्रित बैकहैंड शॉट और लंबी रैली के लिए जाने जाने वाले 6फ़ीट 6इंच लंबे ज्वेरेव के खेल में खासा अस्थायित्व है। वे पैचेज में बहुत अच्छा खेलते हैं तो बहुत खराब भी। इसे उनके इस प्रतियोगिता में फाइनल तक के सफर को देखकर अच्छी तरह से समझा जा सकता है।
रविवार को अपने पहले ग्रैंड स्लैम फाइनल में अपनी बेहतर सर्विस के बूते ज्वेरेव ने शानदार शुरुआत की। पहला सेट 6-1 से और दूसरा 6-4 से जीत लिया। लगा उनका जितना महज़ औपचारिकता है। पर ऐसा था नहीं। जब स्कोर दूसरे सेट में 5-1 ज्वेरेव के पक्ष में था तब थियम ने वापसी की हालांकि उनकी वापसी देर से हुई और वे दूसरा सेट 4-6 से हार गए। लेकिन वे लय पा चुके थे और अगले दो सेट थियम ने 6-4 और 6-3 से जीत लिए। अब लगा थियम की जीत जाएंगे। पर असली संघर्ष अब होना था। एक बार फिर बढ़त ज्वेरेव ने लेली 5-3 से। और चैंपियनशिप के लिए सर्व कर रहे थे। लेकिन वे दबाव में अपनी सर्विस बरकरार नहीं रख सके। थियम ने सर्विस ब्रेक की और सेट अंततः टाईब्रेक में पहुंचा। दरअसल यहां ज्वेरेव की सर्विस भर ब्रेक नहीं हुई थी उनका सपना भी ब्रेक हुआ था और मंज़िल तक के सफर पर ब्रेक भी लगा था। थियम ने टाईब्रेक 8-6 से जीतकर ना केवल अपना पहला ग्रैंड स्लैम जीता बल्कि यूएस ओपन को एक नया चैंपियन दिया। यूएस ओपन को 2014 में क्रोशिया के मारिन सिलिच के 6 साल बाद थिएम के रूप में एक नया चैंपियन मिल रहा था।
तो क्या डोमिनिक थियम की इस जीत को टेनिस इतिहास में एक नए युग की शुरुआत मानी जाए, नए युग की दस्तक,उसकी आहट। जाने माने वरिष्ठ खेल पत्रकार मैथ्यू फुटरमैन लिखते है 'टेनिस में कभी कभी ऐसे अप्रत्याशित चैंपियन आते हैं,विशेष रूप से दो युगों के बीच के संक्रमण काल में जब महान खिलाड़ियों के एक समूह का अवसान हो रहा होता है और नए खिलाड़ियों के दूसरे समूह का उदय होना बाकी होता है। ऐसे में जो खिलाड़ी एक बार ग्रैंड स्लैम जीत लेता है वो दोबारा कभी नहीं जीत पाता। 2002 में ऑस्ट्रेलियन ओपन स्वीडन के थॉमस जॉनसन ने जीता था जब आंद्रे अगासी अवसान की ओर थे और फेडरर का आगमन नहीं हुआ था,नडाल के क्ले के बादशाह बनने से एकदम पहले अर्जेंटीना के गस्टोन गौडीओ ने फ्रेंच ओपन जीता था,फेडरर के लगातार 5 बार चैंपियन बनने से एकदम पहले 2001 में गोरान इवनोसेविच और 2002 में लेटिन हेविट ने विंबलडन जीता था और फेडरर द्वारा लगातार 5 बार जीतने से एकदम पहले 2003 में एंडी रोडिक ने यूएस ओपन जीता था। तो यह (थियम की जीत)नए के आगमन का प्रतीक भी हो सकती है और एक असामान्य वर्ष में फेडरर,नडाल व जोकोविच की अनुपस्थिति से उपजा महज एक संयोग भी। ये डोमिनिक थिएम बताएंगे।'
लेकिन निकट भविष्य में कुछ बदलेगा ,ऐसा लगता नहीं। 39 साल की उम्र में भी फेडरर युवाओं की तरह खेल रहे हैं। उनका सन्यास लेने का कोई मन अभी नहीं है। वे भले ही जोकोविच और नडाल को नहीं हरा पा रहे हो पर अभी भी नए खिलाड़ियों के लिए उनसे पार पा पाना टेढ़ी खीर साबित हो रहा है और वे किसी भी उदीयमान खिलाड़ी की पार्टी खराब करने का माद्दा रखते हैं। अगले दो ग्रैंड स्लैम हैं इस महीने के अंत में होने वाला फ्रेंच ओपन और जनवरी में ऑस्ट्रेलियन ओपन। इस समय नडाल लाल बजरी के बेताज बादशाह हैं और जोकोविच नीली सतह पर अजेय लगते हैं। ये दोनों प्रतियोगिता बहुत कुछ तय करेंगी टेनिस का आसन्न भविष्य।
-------------------------------------------
फिलहाल तो इंतज़ार कीजिए और नए चैंपियन को बधाई दीजिए। तो हमारी भी बहुत बधाई डोमिनिक थिएम को।

Monday 14 September 2020

चैम्पियन नाओमी ओसाका






       पत्रकार-साहित्यकार नीलाभ लिखते हैं कि ‘जैज संगीत एफ़्रो-अमेरिकंस के दुःख-दर्द से उपजा चट्टानी संगीत है’. फ्लशिंग मीडोज़ का बिली जीन किंग टेनिस सेंटर और विशेष रूप से आर्थर ऐश सेन्टर कोर्ट मुझे एक ऐसा स्थान लगता है, जहां ये संगीत नेपथ्य में हर समय बजता रहता है क्योंकि हर बार कोई एक अश्वेत खिलाड़ी मानो उस समुदाय के दुख-दर्द के किसी तार को हौले से छेड़ देता हो और फिर उसकी अनुगूंज बहुत दूर तक और बहुत देर तक सुनाई देती रहती है.

                ये एक ऐसा सेन्टर है जहां खेल के साथ-साथ इस समुदाय के लिए गौरव भरे क्षण उपस्थित होते रहते हैं. याद कीजिए, 2017 का महिला फ़ाइनल. ये दो एफ़्रो-अमेरिकन खिलाड़ियों के बीच मुक़ाबला था. स्लोअने स्टीफेंस ने मेडिसन कीज को 6-3, 6-0 से हराकर अपना पहला ग्रैंड स्लैम जीता और मैच पूरा होते ही ये दो प्रतिद्वंद्वी लेकिन दोस्त एक-दूसरे को इस तरह से जकड़े थीं मानो अब जुदा ही नहीं होना है और दोनों की आँखों से अश्रुओं की ऐसी अविरल धारा बह रही थी जैसे सावन बरस रहा हो. वह एक अद्भुत दृश्य भर नहीं था बल्कि टेनिस इतिहास की और एफ़्रो-अमेरिकन इतिहास के एक अविस्मरणीय क्षण की निर्मिति भी थी. उस दिन से ठीक साठ बरस पहले 1957 में पहली बार एफ़्रो-अमेरिकन महिला खिलाड़ी एल्थिया गिब्सन द्वारा यूएस ओपन जीतने की 60वीं वर्षगाँठ का पहले एफ़्रो-अमेरिकी पुरुष एकल यूएस ओपन विजेता आर्थर ऐश कोर्ट पर दो एफ़्रो-अमेरिकी खिलाड़ी फ़ाइनल खेल कर जश्न मना रही थीं.

                 अगले साल 2018 के फ़ाइनल में एकदम युवा खिलाड़ी ओसाका नाओमी और उनके सामने उनकी रोल मॉडल टेनिस इतिहास की महानतम खिलाड़ियों में से एक 37 वर्षीया सेरेना विलियम्स थीं. अम्पायर के एक फ़ैसले से नाराज़ होकर सेरेना ने वो मैच अधूरा छोड़ दिया था और अम्पायर पर भेदभाव करने का आरोप लगाया. उनका ये आक्रोश जितना अपनी सन्निकट आती हार से उपजा था, उतना ही अपने साथ हुए भेदभाव को लेकर बनी मनःस्थिति को लेकर भी था. अब टेनिस और खेल जगत में पुरुषों के बरक्स महिलाओं से भेदभाव को लेकर एक बहस शुरू हो गई थी. और टेनिस जगत को एक नई स्टार खिलाड़ी मिली थी जो न केवल उसी समुदाय से थी बल्कि हूबहू अपने आदर्श की तरह खेलती थी. बिल्कुल उसी की तरह का पावरफुल बेस लाइन खेल और सर्विस.

                          2019 में एक बार फिर सेरेना फ़ाइनल में थीं. अपना रिकॉर्ड 24वां ग्रैंड स्लैम जीतकर सर्वकालिक महिला खिलाड़ी बनने की राह पर. पर एक बार वे फिर चूक गईं. इस बार एक दूसरी टीनएजर कनाडा की एंड्रेस्क्यू ने उनका सपना तोड़ दिया. जैज संगीत फिर सुना गया पर कुछ ज़्यादा उदास था. सेरेना के खेल के आसन्न अवसान की ध्वनि से गूंजता ये संगीत कम कारुणिक नहीं था.

                       यूएस ओपन में साल दर साल यही होता आ रहा है. तो 2020 का यूएस ओपन अलग कैसे हो सकता था. कोरोना के साए में बड़े खिलाड़ियों और दर्शकों की अनुपस्थिति में शुरुआत कुछ नीरस-सी थी,पर प्रतियोगिता ज्यों-ज्यों आगे बढ़ती गयी, रोचक होती गई. इस बार यह प्रतियोगिता वैसे भी माओं के नाम रही. महिला वर्ग में नौ खिलाड़ी ऐसी थीं, जो मां बन चुकी थीं. इनमें से तीन सेरेना, अजारेंका और पिरेन्कोवा क्वार्टर फ़ाइनल तक पहुंची. दो सेरेना और अजारेंका सेमीफ़ाइनल तक पहुंची. यहां 39 वर्षीया सेरेना का 24 वां ग्रैंड स्लैम ख़िताब जीतने का सपना अजारेंका ने तोड़ा. और तब एक खिलाड़ी जो माँ थी, फ़ाइनल में पहुंची वो अजारेंका थीं. बेलारूस की अजारेंका अब 31 साल की हो चुकी थी और 2012 में नम्बर वन खिलाड़ी थीं और दो बार ऑस्ट्रेलियाई ओपन के साथ साथ 21 एटीपी ख़िताब जीत चुकी थीं. उनके पास पर्याप्त अनुभव था. वे गुलागोंग, मार्गरेट कोर्ट और किम क्लाइस्टर्स के बाद चौथी ऐसी खिलाड़ी बन एक इतिहास की निर्मिति के बिल्कुल क़रीब थीं, जिसने माँ बनने के बाद ग्रैंड स्लैम जीता हो.

                       दूसरे हॉफ से 2018 की चैंपियन हेतीयन पिता और जापानी माँ की संतान 22 वर्षीया नाओमी उनके सामने थीं. वे अदम्य ऊर्जा और जोश से लबरेज खिलाड़ी थीं. लेकिन उल्लेखनीय यह है कि वे खिलाड़ी भर नहीं हैं बल्कि सोशल एक्टिविस्ट भी हैं. उन्होंने अश्वेत समुदाय के विरुद्ध हिंसा के विरोध में हुए प्रदर्शनों में सक्रिय प्रतिभाग किया और यहां बिली जीन किंग टेनिस सेन्टर में भी वे मैदान में अपने प्रतिद्वंद्वियों से दो-दो हाथ नहीं कर रहीं थी बल्कि अश्वेत समुदाय के विरुद्ध हिंसा का प्रतिरोध भी कर रहीं थीं. इसके लिए हर मैच में हिंसा के शिकार एक अश्वेत का नाम लिखा मास्क पहन कर कोर्ट पर आतीं. फ़ाइनल में उनके मास्क पर 12 वर्षीय अश्वेत बालक तमीर राइस का नाम था, जो 2014 में क्लीवलैंड में एक श्वेत पुलिस अफ़सर के हाथों मारा गया था. उन्होंने सात मैच खेले और हर बार हिंसा के शिकार अश्वेत के नाम का मास्क लगाया. अन्य छह नाम थे – फिलैंडो कास्टिले ,जॉर्ज फ्लॉयड, ट्रेवॉन मार्टिन, अहमोद आरबेरी,एलिजाह मैक्लेन और ब्रेओना टेलर. नाओमी की स्मृति में 2018 का मुक़ाबला भी ज़रूर रहा होगा जब उनके पहले ख़िताब के जश्न और जीत को बीच में अधूरे छूटे मैच ने और दर्शकों की हूटिंग ने अधूरेपन के अहसास को भर दिया था. यहां वे एक मुक़म्मल जीत चाहती होंगी और अपने सामाजिक उद्देश्य के लिए भी जीतना चाहती होंगी. और निःसन्देह इन दोनों का ही उन पर अतिरिक्त दबाव रहा होगा.

                     जो भी हो, इसमें कोई शक नहीं कि मुक़ाबला नए और पुराने के बीच था, द्वंद्व, जोश और अनुभव का था, आमना-सामना युवा शरीर का अनुभवी दिमाग से था, उत्साह का संयम से मुक़ाबला था. मुक़ाबला कड़ा था, टक्कर बराबरी की थी. पर जीत अंततः नए की, जोश की, युवा शरीर की, उत्साह की हुई.

                     जीत नाओमी की हुई. नाओमी ने अजारेंका को 1-6, 6-3,6-3 से हरा दिया. पहले सेट में नाओमी दबाव में दिखी. उन्होंने बहुत सारी बेजा ग़लती की. और पहला सेट 1-6 से गंवा बैठीं. दरअसल अजारेंका ने पहले सेट में शानदार सर्विस की और बढ़िया फोरहैंड स्ट्रोक्स लगाए. उन्होंने पूरा दमख़म लगा दिया. एक युवा शक्तिशाली प्रतिद्वंद्वी के ख़िलाफ़ आपको उस समय तक स्टेमिना और ऊर्जा चाहिए होती है जब तक मैच न जीत जाएं. अपनी सीमित ऊर्जा का मैनेजमेंट चतुराई से करना होता है. यहीं पर अजारेंका चूक गईं. उन्होंने सारी ऊर्जा पहले सेट में लगा दी. नाओमी ने दूसरे सेट में कमबैक किया. अपनी पावरफुल सर्विस और बेसलाइन स्ट्रोक्स से न केवल दूसरा सेट 6-3 से जीत लिया बल्कि तीसरे और निर्णायक सेट में भी 4-1 से बढ़त बना ली. एक बार फिर अजारेंका ने ज़ोर लगाया और अपनी सर्विस जीतकर नाओमी की सर्विस ब्रेक भी की और स्कोर 3-4 कर दिया. लगा मुक़ाबला लंबा खींचेगा. पर ये छोटा-सा पैच दिए की लौ की अन्तिम भभक साबित हुआ. अगले दो गेम जीतकर अपना तीसरा ग्रैंड स्लैम नाओमी ने अपने नाम कर लिया. ये उनका तीसरा ग्रैंड स्लैम फ़ाइनल था और तीनों में जीत.

                       बड़े लोगों की बातें भी न्यारी होती हैं. खिलाड़ी जैसे ही अंतिम अंक जीतता है वो उस धरती का आभार प्रकट करने के लिए भी और उस जीत के पीछे की मेहनत को महसूसने के लिए अक्सर पीठ के बल मैदान पर लेट जाते हैं. नाओमी ने अपना अपना अंतिम अंक जीतकर अजारेंका को सान्त्वना देने के लिए रैकेट से रैकेट टकराया (नया सामान्य हाथ मिलाने या गले लगने की जगह) और उसके बाद आराम से मैदान पर लेट गईं और आसमान निहारने लगीं. उन्होंने मैच के बाद अपने वक्तव्य में में कहा कि ‘मैं देखना चाहती थी बड़े खिलाड़ी आख़िर आसमान में क्या देखते हैं’. ये तो पता नहीं कि उन्होंने क्या समझा होगा कि बड़े खिलाड़ी क्या देखते हैं,पर निश्चित ही उनकी आंखों ने आसमान की अनंत ऊंचाई को महसूस किया होगा और उनके इरादे भी उस ऊंचाई को छूने के लिए कुछ और बुलंद हुए होंगे.

                   हमारे समय के प्रख्यात पत्रकार प्रभाष जोशी की एक पुस्तक का नाम है – ‘खेल केवल खेल नहीं हैं’ और वे लिखते हैं कि ‘खेल के जरिए आप खेलने वाले के चरित्र, उसके लोगों की ताक़त और कमज़ोरियों को समझ सकते हैं’. तो इस बार नाओमी ने बिली जीन किंग टेनिस सेन्टर में अश्वेतों के दुख-दर्द के जिस तार को छेड़ा, उससे निःसृत संगीत की अनुगूंज अतिरिक्त दूरी और अतिरिक्त समय तय करेगी, ऐसी उम्मीद की जानी चाहिए. यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि यह साल अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव का साल भी है.

------------------------

नाओमी ओसाका को जीत मुबारक! 

ये हार भारतीय क्रिकेट का 'माराकांजो' है।

आप चाहे जितना कहें कि खेल खेल होते हैं और खेल में हार जीत लगी रहती है। इसमें खुशी कैसी और ग़म कैसा। लेकिन सच ये हैं कि अपनी टीम की जीत आपको ...