क्रिकेट अब जेंटलमैन गेम रह गया है या नहीं, इस पर बहस की जा सकती है। लेकिन 1983 में जब भारत ने पहली बार विश्व कप जीता, तो निश्चित ही उस समय ये जेंटलमैन गेम रहा होगा। उस समय एक अम्पायर टेलेंडर को बाउंसर फेंकने पर बॉलर को डांट सकता था। जाने माने पत्रकार और ब्रॉडकास्टर रेहान फज़ल बीबीसी डॉट कॉम में अपने एक लेख में भारत और वेस्टइंडीज के बीच खेले गए फाइनल मैच की एक घटना का जिक्र करते हैं-
'तेज़ गेंदबाज़ मैल्कम मार्शल किरमानी और बलविंदर सिंह संधु की साझेदारी से इतने खिसिया गए कि उन्होंने नंबर 11 खिलाड़ी संधू को बाउंसर फेंका जो उनके हेलमेट से टकराया। संधू को दिन में तारे नज़र आ गए। अंपायर डिकी बर्ड ने मार्शल को टेलएंडर पर बाउंसर फेंकने के लिए बुरी तरह डाँटा. उन्होंने मार्शल से ये भी कहा कि तुम संधू से माफ़ी माँगो।
मार्शल उनके पास आकर बोले, ‘मैन आई डिड नॉट मीन टु हर्ट यू. आईएम सॉरी.’(मेरा मतलब तुम्हें घायल करने का नहीं था. मुझे माफ़ कर दो).
संधू बोले, ‘मैल्कम, डू यू थिंक माई ब्रेन इज़ इन माई हेड, नो इट इज़ इन माई नी.’(मैल्कम क्या तुम समझते हो, मेरा दिमाग़ मेरे सिर में है? नहीं ये मेरे घुटनों में है)।
ये सुनते ही मार्शल को हँसी आ गई और माहौल हल्का हो गया।'
दरअसल खेल मैदान में केवल प्रतिद्वंदिता ही नहीं होती बल्कि दोस्ताना माहौल भी साथ साथ चलता है। सिर्फ तनाव ही व्याप्त नहीं रहता बल्कि सहजता और जीवंतता भी व्याप्ति है।
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सच तो ये है खेल जीवन का ही एक हिस्सा है और खेल मैदान में सिर्फ खेल और प्रतिद्वंदिता ही नहीं रहती बल्कि जीवन भी साथ साथ चलता है।
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