ये 24 सितंबर 2023 का दिन था। दुनिया के तमाम हिस्सों में अलग-अलग देश और खिलाड़ी खेलों में अपना परचम लहरा रहे थे या उसका प्रयास कर रहे थे।
हांगजू में एशियाई खेलों के पहले ही दिन 12 स्वर्ण पदक जीतकर चीन एशिया में अपनी श्रेष्ठता सिद्ध कर रहा था और भारत 5 पदक जीतकर अपने को उभरती खेल शक्ति के रूप में स्थापित करने का प्रयास कर रहा था।
उधर एशिया कप जीतने के बाद भारत पहले दो एकदिवसीय मैचों में ऑस्ट्रेलिया को लगभग रौंद कर क्रिकेट के तीनों फॉरमेट में सिरमौर होने दुंदुभी बजा रहा था।
इंग्लैंड में प्रीमियर लीग में मेनचेस्टर सिटी नॉटिंघम फारेस्ट को 2-0 से हराकर शीर्ष पर थी और पिछले साल अपने ट्रेबल का औचित्य सिद्ध कर रही थी।
जबकि फ्रांस में फुटबॉल के ही दूसरे रूप रग्बी में विश्व की 20 सर्वश्रेष्ठ टीमें विश्व खिताब जीतने के लिए होड़ कर रही थीं।
और
और ऐन उसी दिन बर्लिन जर्मनी में अफ्रीका के धावक अपने पैरों की कलम और पसीने की स्याही से खेलों के मैराथन दौड़ वाले पन्ने पर नया इतिहास लिख रहे थे।
पुरुष वर्ग में केन्या के 38 वर्षीय एलिउद किपचोगे बर्लिन मैराथन पांचवी बार जीत रहे थे और इथियोपिया के महान धावक हैले गब्रेसिलासी के चार बार जीत के रिकॉर्ड को तोड़ रहे थे। साल 2022 में यहीं बर्लिन में किपचोगे ने 02 घंटे 01 मिनट और 09 सेकंड का विश्व रिकॉर्ड बनाया था। 5 फुट 4 इंच लंबाई और 54 किलोग्राम वजन वाला 38 साल का ये दुबला पतला धावक मैराथन का महानतम धावक है जिसने 11 से ज़्यादा मैराथन जीती हैं। वे पिछले दो ओलंपिक में मैराथन जीत चुके हैं और पेरिस में जीतकर ओलंपिक मैराथन जीत की तिकड़ी बनाना उनका सपना है।
वे दुनिया के एकमात्र ऐसे मैराथन धावक हैं जिन्होंने 2 घंटे का बैरियर तोड़कर पूरी दुनिया को आश्चर्य में डाल दिया था। साल 2019 में विएना में उन्होंने मैराथन 01 घंटे 59 मिनट और 03 सेकंड में पूरी की। हालांकि तकनीकी कारणों से इस समय को मान्यता नहीं मिली।
किपचोगे की ये असाधारण उपलब्धि उन्हें बैनिस्टर जैसे महान एथलीट के समकक्ष रखती है। याद कीजिए रोजर बैनिस्टर को जिन्होंने एक मील की दौड़ 1954 में पहली बार 4 मिनट से कम समय में पूरी कर दुनिया को अचंभित कर दिया था।
लेकिन किपचोगे की रिकॉर्ड पांचवीं बार बर्लिन मैराथन जीत भी नेपथ्य में चली जाए तो सोच सकते हैं कि निश्चित ही कुछ बहुत बड़ा हुआ होगा। उस दिन सच में बहुत बड़ा हुआ था और ये कमाल किया था इथियोपिया की मैराथन धाविका तिजिस्त आसेफा ने। वे बर्लिन में अपने कॅरियर की तीसरी मैराथन दौड़ रहीं थीं। यहाँ उन्होंने 2 घंटे 11 मिनट और 53 सेकंड का नया विश्व रिकॉर्ड बनाया। उन्होंने 2019 में ब्रिजिड कोसेगे के पुराने रिकॉर्ड को 02 मिनट और 11 सेकंड से बेहतर किया और साथ ही 02 घंटे 12 मिनट के असंभव से बैरियर को भी तोड़ा। कमाल की बात ये है 37 किलोमीटर तक उनकी गति पुरुष मैराथन विजेता किपचोगे से केवल 03 सेकंड प्रति किलोमीटर कम थी।
यहां उल्लेखनीय बात ये भी है कि पुरुष और महिला मैराथन दौड़ के समय में अंतर अब लगभग दस मिनट का रहा गया है। 1900 के आसपास ये अंतर लगभग 90 मिनट का था।
कमाल की बात तो ये भी है कि महिला पुरुष दोनों वर्गों में पहले आठ स्थान पर केन्या,इथियोपिया और तंजानिया के धावक थे। अगर कहीं से भी हिटलर की आत्मा इस दौड़ को देख रही होगी तो उसके 'आर्यन श्रेष्ठता के सिद्धांत' को एक बार फिर कलर्ड लोगों द्वारा ध्वस्त होते देख जार जार रो रही होगी।
क्या ही अद्भुत दृश्य होते हैं वे जहां कि लगभग बिना मांस मज्जा के काले चमड़ी वाले पसीने से सराबोर अफ्रीकी धावकों के शरीर सूर्य की रोशनी में काले संगमरमर से चमक रहे होते हैं। उनके शरीर में भले ही सुविधाओं और संपन्नता के मांस का अभाव हो, पर अभावों और गरीबी की आग में तपी और साहस, हिम्मत और कड़ी मेहनत के हथौड़ों के प्रहारों से बनी वज्र सी हड्डियां उनके शरीर में विद्यमान होती हैं। जो उन्हें संघर्ष करने का होंसला देती हैं और उन्हें अजेय बना देती हैं।
अफ्रीका के इन काले चमड़ी वाले खिलाड़ियों को और विशेष रूप से लंबी दौड़ के धावकों को ध्यान से देखिए। ये दौड़े उनके लिए जीने मरने का प्रश्न होती हैं। जीत जीवन और हार मृत्यु। जीत सुनहरे भविष्य का आश्वासन और हार बीते नारकीय जीवन की बाध्यता। उनकी आंखों में झांकिए। उसमें जीतने की अदम्य लालसा के अलावा और कुछ नहीं दिखाई देगा।
आखिर उनमें संघर्ष का ये जज़्बा और हौंसला आता कहां से है। निश्चित ही ये उनके परिवेश से ही आता होगा। वे दुनिया की सबसे कठिन और दुरूह भौगोलिक परिवेश से आते हैं। वे प्राकृतिक संसाधन जो उनके लिए होने चाहिए, पश्चिम की बहुराष्ट्रीय कंपनी के लालच की भेंट चढ़ जाते हैं और उनके हिस्से आते हैं बचे खुचे संसाधनों पर अधिकार जमाने के लिए सबसे भयानक,कठिन और कभी ना खत्म होने वाले गृह युद्ध और उसके परिणामस्वरूप घोर गरीबी और अभावों भरा जीवन। ऐसे में उनके भीतर अदम्य जिजीविषा पैदा होती है और उससे पैदा होता है कड़ा संघर्ष करने हौंसला और कभी ना हार मानने का जज़्बा।
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और हां कुछ कुछ यही हौंसला और जज़्बा तीसरी दुनिया के देशों के खिलाड़ियों में भी होता है जो निम्न मध्यम वर्ग से आते हैं। ये दूसरी बात है वे अफ्रीका के इन खिलाड़ियों से संघर्ष में पिछड़ जाते हैं।
तो अफ्रीकी देशों के मध्यम और लंबी दूरी के धावकों के हौंसलों और अद्भुत सफलता को सलाम करना तो बनता हैं ना।
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