नीलाभ सर का यूं चले जाना अप्रत्याशित भी है और दुखद भी।उनका बहुआयामी व्यक्तित्व था।वे बेहतरीन अनुवादक थे,कवि थे,आलोचक थे,संपादक थे और इन सबसे ऊपर बिंदास जीवन जीने वाले जिंदादिल इंसान थे।लेकिन मेरे मन में उनकी जो पहली और सबसे बड़ी तथा महत्वपूर्ण छवि थी वो एक आला दर्जे के रेडियो प्रसारणकर्ता की थी।बात 1984 में इलाहाबाद आने से तीन चार साल पहले की है।उस समय बीबीसी पर कैलाश बुधवार,रमा पांडेय,अचला नागर की आवाज़ गूँजा करती थीं।अचानक एक दिन एक नई आवाज़ सुनाई दी।धीर गंभीर सी,ठहराव वाली,साफ़ शफ्फाक।मानो लय ताल में निबद्ध हो।कानों से होकर दिल में उतर जाने वाली।ये नीलाभ की आवाज़ थी।ये नीलाभ से पहला परिचय था।विवेचना हो,पत्रोत्तर हो,बच्चों का कार्यक्रम हो,खेल कार्यक्रम हो,वे हर कार्यक्रम को बड़ी संजीदगी से करते थे ।उन्होंने बीबीसी के लिए बहुत से बेहतरीन कार्यक्रम किए ।पर जैज संगीत पर किया गया उनका श्रृंखलाबद्ध कार्यक्रम अद्भुत था जिसमें जैज संगीत के उद्भव से लेकरउस समय तक के उसके विकास के बहाने अफ्रीकी अमेरिकनों के दुख दर्दको बड़ीही बारीकीऔर मार्मिकता से रेखांकित किया था।उसके बाद तो मैं उनके कार्यक्रमों का मुरीद हो गया।इलाहाबाद आने के बाद पता चला वे यहीं के हैं और अश्क जी के पुत्र हैं।लेकिन उनसे मिलना 1994 में आकाशवाणी में आने के बाद हुआ।वे स्वरबेला कार्यक्रम के लिए कविता पाठ करने आए थे।उनसे बीबीसी पर बात हुई।उसके बाद वे जब भी आकाशवाणी आते रेडियो प्रसारण पर बातें होती रहती।उन्होंने आकाशवाणी में कार्य नहीं किया पर उन्हें प्रसार भारती की कार्य प्रणाली की गहरी समझ थी।अभी कुछ दिन पहले अपने ब्लॉग पर लघु उपन्यास हिचकी में प्रसार भारती पर छोटी लेकिन अर्थपूर्ण टिप्पणी की थी।उनसे अंतिम मुलाकात दो ढाई साल पहले हुई थी जब वे आकाशवाणी इलाहाबाद द्वारा आयोजित 'शहर और शख्सियतें' विषयक संगोष्ठी में भाग लेने आए थे।अपने लेक्चर में उन्होंने अपने इलाहाबाद प्रवास के दिनों को और शहर को शिद्दत से याद किया।वेकाफी नोस्टेल्जिक हो गए थे।वो याद मन में कहीं अटकी है।पर बीबीसी स्टूडियो से निकल कर ट्रांज़िस्टर सेट से हम तक पहुँचीउनकी सदाबहार आवाज़ और कार्यक्रम सदैव उनकी याद दिलाती रहेंगी।अपने सबसे पसंदीदा ब्रॅाडकास्टर को विनम्र श्रृद्धांजलि।
Sunday, 24 July 2016
अलविदा नीलाभ सर
नीलाभ सर का यूं चले जाना अप्रत्याशित भी है और दुखद भी।उनका बहुआयामी व्यक्तित्व था।वे बेहतरीन अनुवादक थे,कवि थे,आलोचक थे,संपादक थे और इन सबसे ऊपर बिंदास जीवन जीने वाले जिंदादिल इंसान थे।लेकिन मेरे मन में उनकी जो पहली और सबसे बड़ी तथा महत्वपूर्ण छवि थी वो एक आला दर्जे के रेडियो प्रसारणकर्ता की थी।बात 1984 में इलाहाबाद आने से तीन चार साल पहले की है।उस समय बीबीसी पर कैलाश बुधवार,रमा पांडेय,अचला नागर की आवाज़ गूँजा करती थीं।अचानक एक दिन एक नई आवाज़ सुनाई दी।धीर गंभीर सी,ठहराव वाली,साफ़ शफ्फाक।मानो लय ताल में निबद्ध हो।कानों से होकर दिल में उतर जाने वाली।ये नीलाभ की आवाज़ थी।ये नीलाभ से पहला परिचय था।विवेचना हो,पत्रोत्तर हो,बच्चों का कार्यक्रम हो,खेल कार्यक्रम हो,वे हर कार्यक्रम को बड़ी संजीदगी से करते थे ।उन्होंने बीबीसी के लिए बहुत से बेहतरीन कार्यक्रम किए ।पर जैज संगीत पर किया गया उनका श्रृंखलाबद्ध कार्यक्रम अद्भुत था जिसमें जैज संगीत के उद्भव से लेकरउस समय तक के उसके विकास के बहाने अफ्रीकी अमेरिकनों के दुख दर्दको बड़ीही बारीकीऔर मार्मिकता से रेखांकित किया था।उसके बाद तो मैं उनके कार्यक्रमों का मुरीद हो गया।इलाहाबाद आने के बाद पता चला वे यहीं के हैं और अश्क जी के पुत्र हैं।लेकिन उनसे मिलना 1994 में आकाशवाणी में आने के बाद हुआ।वे स्वरबेला कार्यक्रम के लिए कविता पाठ करने आए थे।उनसे बीबीसी पर बात हुई।उसके बाद वे जब भी आकाशवाणी आते रेडियो प्रसारण पर बातें होती रहती।उन्होंने आकाशवाणी में कार्य नहीं किया पर उन्हें प्रसार भारती की कार्य प्रणाली की गहरी समझ थी।अभी कुछ दिन पहले अपने ब्लॉग पर लघु उपन्यास हिचकी में प्रसार भारती पर छोटी लेकिन अर्थपूर्ण टिप्पणी की थी।उनसे अंतिम मुलाकात दो ढाई साल पहले हुई थी जब वे आकाशवाणी इलाहाबाद द्वारा आयोजित 'शहर और शख्सियतें' विषयक संगोष्ठी में भाग लेने आए थे।अपने लेक्चर में उन्होंने अपने इलाहाबाद प्रवास के दिनों को और शहर को शिद्दत से याद किया।वेकाफी नोस्टेल्जिक हो गए थे।वो याद मन में कहीं अटकी है।पर बीबीसी स्टूडियो से निकल कर ट्रांज़िस्टर सेट से हम तक पहुँचीउनकी सदाबहार आवाज़ और कार्यक्रम सदैव उनकी याद दिलाती रहेंगी।अपने सबसे पसंदीदा ब्रॅाडकास्टर को विनम्र श्रृद्धांजलि।
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अकारज 23
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