Saturday, 11 January 2025

अकारज 23




वे दो एकदम जुदा। 

क गति में रमता,दूजा स्थिरता में बसता। एक को आसमान भाता,दूजे को धरती सुहाती। एक भविष्य के कल्पना लोक में सपने देखता,दूजा वर्तमान की धरती पर यथार्थ के चित्र उकेरता। एक बाल सुलभ चंचलता से चहकता, दूजे अनुशासन की डोर से हनकता। 

क बसंत की बहार,दूजा शिशिर का ठहराव। एक अमावस की सांवली रात, दूजा पूर्णिमा का उजला चांद।

वे दो एक दूजे का प्रतिपक्ष।

लेकिन ये जो वैभिन्य है ना,दरअसल यही दोनों के बीच संबंधों का सबसे मजबूत पुल है। सबसे जरूरी संवाद सूत्र।

वे दो जैसे दो धड़कते दिलों की एक धड़कन।❤️❤️


No comments:

Post a Comment

अकारज 23

वे दो एकदम जुदा।  ए क गति में रमता,दूजा स्थिरता में बसता। एक को आसमान भाता,दूजे को धरती सुहाती। एक भविष्य के कल्पना लोक में सपने देखता,दूजा...