Friday 18 March 2022

अकारज_18

 

उसे रंगों से प्यार था। वो रंगों से खेला करती। ज़हीन चित्रकार जो ठहरी।

मैंने उसके गालों पर गुलाल लगाया और कहा 'रंग मुबारक'।

उसने प्यार से मुझे देखा कि गुलाबी रंग मेरे मन पर बिखर गया।

फिर वो हौले से मुस्कराई कि बासंती रंग फ़िज़ा में घुल गया।

अब उसने दिलकश आवाज में मुझसे कहा कि आत्मा का रंग सुर्ख हो चला।

उसने मुझसे कहा 'ये जो रंग तुम देख रहे हो ना ये तो फीके पड़ जाते हैं। असल रंग तो वही होते हैं जो तुम महसूस रहे हो।'

मैंने उसकी और देखा।

वो बोली 'जानते हो सुख का रंग इतना चमकीला होता है कि आपके मन की आखों को बंद कर देता है और आप सिर्फ अपने स्वार्थ के काले रंग में रंग जाते हो।'

'और दुख का' मैंने पूछा।

'दुख से निर्मल रंग किसका होगा जो आत्मा को निष्कलुष कर देता है। जैसे मिलन का रंग इतना सुर्ख होता है कि सभी संवेगों के रंग उसमें घुलकर विलीन हो जाते हैं। और...'

अचानक वो चुप हो गई। मैंने पूछा 'और क्या'

'जानते हो सबसे कारुणिक लेकिन गहरा रंग जुदाई का होता है। समय का कोई भी रंग जुदाई की स्मृति के इस रंग को नहीं फीका कहाँ कर पाता है। उलट रंग और गहराता जाता है।

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अब मौन का सुफेद रंग वातावरण में फैल गया था। अनगिनत संवेगों के मिश्रित रंग से दो मन भीज रहे थे




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