'...कोई ऐसा जो मेरे झरते हुए जीवन में वसंत की तरह था...'
एक किताब के भीतर की यात्रा के दौरान जो भी सहायक उपकरण होते हैं,उनमें बुकमार्क मुझे सबसे अहम और आकर्षक लगता है।
मेरे जाने ये एक अभिनव प्रयोग है। जब आप 'मारीना' पढ़ते हैं तो आपको कहीं बाहर से बुकमार्क नहीं जुगाड़ना पड़ता। ये कहन में 'इन बिल्ट' हैं। ऐसे खूबसूरत बुकमार्क जो पढ़ते हुए शायद ही कभी आपके हाथ लगे हों। ये मारीना की जीवन यात्रा से होकर गुजरने वाले पाठक के लिए ठहरने के ठिकाने हैं। अगले पड़ाव के प्रस्थान स्थल हैं। ये आपको यात्रा के एक हिस्से को पूरा करने का सुकून ही नहीं देते, बल्कि एक व्यग्रता, एक बेचैनी,छटपटाहट भी पैदा करते हैं और आगे जाने की,ज़ियादा और ज़ियादा जानने की। ये दिमाग को मथते जाते हैं और दिल को सहलाते भी चलते हैं, एक साथ।
अगर इस किताब में सिर्फ और सिर्फ बुकमार्क होते और कुछ भी ना होता तो भी ये अपने आप में मुकम्मल किताब होती।
आप पूछेंगे ऐसे खूबसूरत बुकमार्क भी होते हैं क्या?
मैं कहूंगा मारीना पढ़ो ना।
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एक बुकमार्क की इबारत है-
'वापसी शब्द अजीब है। वापसी देह की संभव है,लेकिन वापसी पर सब कुछ वैसा ही हो-जैसा हम छोड़कर गए थे,ऐसा कहां होता है।' मारीना ने अपने कटे हुए बालों की लटों को कान के पीछे अटकाते हुए कहा।
'हां, जीवन की तरह।'बेसाख्ता मेरे मुंह से निकला।
'बिल्कुल।' उसने मेरी और देखते हुए कहा
'जीवन की ही तरह। हम आते हैं एक तरह से ही दुनिया में,लेकिन वापसी तक सबकी अलग अलग यात्रा होती है। जीवन यात्रा।'
'निर्वासन भी यात्रा ही थी।' मैं कहती हूँ। इस कहन में सवाल भी है।
'हां, निर्वासन भी यात्रा रही,कठिन बीहड़ यात्रा,बचपन से निर्वासन,देश से निर्वासन,जीवन से निर्वासन।'
हम दोनों खामोश हो गए। सूरज हमारे सामने ढल रहा था। ढल रहा था हमारे भीतर भी बहुत कुछ।
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