' हंसती हुई स्त्री '
और ' रोता हुआ पुरुष '
जीवन के दो सुंदर दृश्य हैं
जब स्त्री की दंतपंक्तियों से
पुरूषों की सी आजादी
और आदमी की आंखों से
स्त्री के से दुःख
झरते हैं।
उ से विरल होते गरम दिन रुचते। मैं सघन होती सर्द रातों में रमता। उसे चटकती धूप सुहाती। मुझे मद्धिम रोशनी। लेकिन इन तमाम असंगतियां के बीच एक स...
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