पूरा होने का समय कभी एक सा नहीं रहता। ये बदलता रहता है। चीजें फिर फिर लौट कर जीवन में आती हैं। अगर ऐसा ना होता तो अंग्रेजी का सुप्रसिद्ध कवि पी बी शैली क्योंकर लिखता कि 'अगर सर्दियां आईं हैं तो बसंत भी जरूर खिलेगा'। जीवन का ये सच खेल का भी सच है। खेल व्यक्ति की जिंदगी का ही हिस्सा तो है। तो फिर जिंदगी के खेल और खेलों की जिंदगी क्योंकर ना एक सी होगी।
इस लड़की की कहानी कुछ ऐसा ही खेल तो करती है।
ये साल 2021 था। 19 साल की एक लड़की के भाग्य का सूरज उगते हुए सूरज के देश में उगने से पहले डूब जाता है। जिस जगह वो सूरज डूबा वो जगह टोक्यो कहलाती है। वहां एक टीन ऐजर की प्रसिद्धि के सूरज के उगने की राह बन पाती कि उस राह को बनाने का उसका औजार ही रहस्यमय ढंग से भोंथरा गया। अब उसके जीवन में निराशा और अवसाद की गहरी रात थी।
लेकिन जरूर उसने अपनी जिंदगी में उस अंग्रेज कवि को पढ़ा होगा,गुना होगा। उसने अपने अंधेरों में ही अपने सपनों को फिर से बुनना शुरू किया। वे सपने जो उगते सूरज के देश में टूट चुके थे,वे सपने अब सपनों के शहर में पूरे होने थे। वे सपने जो उन्हीं हथियारों से पूरे होने थे जिन्होंने उसके सपनों को तोड़ा था। उसने उन हथियारों पर फिर से सान चढ़ानी शुरू की क्योंकि वो जानती थी कि डूबा सूरज फिर उगेगा। उसे उगना ही है।
फिर एक और सुबह आई। उसने खुली आंखों से सपने देखे और उन्हें सच किया! आखिर ये सपनों का शहर जो था। यहां वो सपने ना देखती तो क्या करती! ये प्रेम का शहर भी तो था ना। यहां उन सपनों से प्रेम ना करती तो क्या करती! ये उम्मीदों को पूरा करने का शहर भी तो था। यहां उसके सपने पूरे ना होते तो फिर कहां होते! प्रेम के शहर में सपने भी कहीं टूटा करते हैं क्या!
वो अब सीन नदी के किनारे खड़े हो खूबसूरत सूरज को उगते देख रही थी। उस सूरज को जो आज से तीन साल पहले टोक्यो के क्षितिज पर कहीं डूब गया था।
उसकी आंखों में पानी उस दिन भी था। उसकी आंखों में पानी आज भी है। तब उसने अपने भीतर की सारी मिठास उन आंसुओं में भर दी थी कि वो सारे अहंकार,अहम और अव्यवस्थाओं के खारेपन को कम कर सके। और आज उसने उन आंसुओं में सारी कड़वाहटों के खारेपन को बहा दिया,जो उसे मिली थी कि वो अपनी आंखों में भरे सपनों का मीठापन बचा सके।
उसने केवल अपने अरमानों को ही पूरा नहीं किया था बल्कि अपने देश के ना जाने कितने युवाओं के अरमानों को पंख दे दिए। समय का एक चक्र पूरा हो रहा था।
टोक्यो की 19 साल की टीन ऐजर पेरिस में 22 साल की युवा है। उसके ख्वाब अब पक कर पदकों के सच में तब्दील हो गए हैं। उसने भारत के लिए दो पदक जीते हैं। उन पदकों का रंग भले ही धूसर हो। पर उनसे ऐसी आभा फूटती है कि आंखें चौधिया जाती हैं। सपनों को पदकों में बदलने वाली उस लड़की को हम मनु भाकर के नाम से जानते हैं।
मनु भाकर ने 1.4 बिलियन लोगों को गर्व से भरा है। अब ये 1.4 बिलियन लोग मनु पर गर्व करते हैं।
आपको सलाम मनु।
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