व्यक्ति चाहे जितना बड़ा हो जाए उसके भीतर एक बच्चा हमेशा रहता है। ये शायद जोकोविच के भीतर का वो बच्चा ही है जो उन्हें 37 साल की उम्र में भी सर्वोच्च स्तर पर टेनिस खेलने को प्रेरित करता है। उन्होंने अपने कैरियर की सर्वश्रेष्ठ टेनिस 30 के बाद ही खेली।
उन्होंने दुनिया जहान की सारी छोटी बड़ी प्रतियोगिता जीत ली थी। लेकिन ओलंपिक गोल्ड मेडल उनसे बार बार छिटका जा रहा था। पर इस बार उन्होंने उसे छिटकने नहीं दिया। पेरिस में स्पेन के 22 साल के युवा अलकाराज को हराकर इस बार ओलंपिक स्वर्ण पदक जीत ही लिया। ये उनके भीतर के बच्चे की जिद की वजह से ही है। जिसे किसी चांद की तरह ओलंपिक गोल्ड चाहिए था। उन्होंने चांद मुट्ठी में कर ही लिया।
ये भी उनके भीतर का वो मासूम बच्चा ही है जो उन्हें कई बार गलत हरकत करने को मजबूर करता है। वे किसी बदमाश बालक की तरह बदनाम होते है। पर दुनिया जानती है कि बच्चा शरीर है पर ज़हीन और काबिल भी तो है।
क्या कीजै 'दिल तो बच्चा है जी'।
उनकी ये तस्वीर पेरिस ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीत लेने के बाद की है। एक बच्चा दूसरे के रोने पर हंस रहा है। ये पेरिस ओलंपिक की ही नहीं शायद खेलों की सबसे सुंदर तस्वीरों में से होगी।
लव यू जोकोविच। तुमसा कोई नहीं।
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