विस्थापन मानव जीवन में किसी भयानक त्रासदी की तरह आता है। विशेष रूप से तब जब ये विस्थापन जबरन कराया गया हो या मजबूरी में करना पड़ा हो। ये किसी अभिशाप की तरह जीवन को दुख देता है। अपनी जड़ ज़मीन से अलग हुआ विस्थापित पेड़ से टूटे पत्ते की तरह समय के थपेड़ों के हाथों पिटता हुआ अपने अस्तित्व और गरिमा की तलाश में भटकता रहता है। दुनिया में इस समय सौ मिलियन से अधिक लोग जबरन विस्थापित हैं जो जीवन यापन और मानवीय गरिमा से रहने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
ये साल 2016 था। रियो ओलंपिक के आयोजन का साल। अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक कमेटी के अध्यक्ष थॉमस बॉक ने एक पहल की। संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी की मदद से ओलंपिक कमेटी और ओलंपिक शरणार्थी फाउंडेशन द्वारा एक शरणार्थी ओलंपिक टीम का गठन किया गया ताकि दुनिया भर में शरणार्थियों की तरह रह रहे लोगों में से खेल प्रतिभाओं को अपनी प्रतिभा के प्रदर्शन हेतु खेल का उच्चतम मंच प्राप्त हो सके।
तब पहली 2016 के रियो ओलंपिक में पहली बार शरणार्थी ओलंपिक दल ने भाग लिया। इसमें कुल 10 खिलाड़ी शामिल थे। इसके बाद 2021 के टोक्यो ओलंपिक में कुल 29 खिलाड़ियों ने भाग लिया। लेकिन वहां ये एक भी पदक नहीं जीत सके थे। इस बार पेरिस ओलंपिक में इस दल के कुल 37 लोगों ने भाग लिया और शानदार प्रदर्शन किया।
इसमें सबसे शानदार प्रदर्शन सिंडी एनगाम्बा का था। 75 किग्रा भार वर्ग की मुक्केबाज़ी स्पर्धा में 25 वर्षीय सिंडी एनगाम्बा ने एक कांस्य पदक जीत कर इतिहास रचा। उन्होंने क्वार्टर फाइनल में मेजबान फ्रांस की डेविना मिचेल को सर्व सम्मति से 5-0 से हराकर सेमीफ़ाइनल में प्रवेश कर अपना कांस्य पदक पक्का कर लिया था। ये शरणार्थी ओलंपिक दल का इन खेलों में पहला पदक था। हालांकि वे सेमीफ़ाइनल में अपना मैच पनामा की एथीना बैलोन से हार गईं लेकिन तब तक पोडियम पर खड़े होने का हक़ प्राप्त कर इतिहास रच चुकी थीं।
सिंडी का जन्म 1998 में कैमरून में हुआ था। 11 वर्ष की अवस्था में वे एक आव्रजक के रूप में ग्रेट ब्रिटेन आईं। लेकिन जब उनके चाचा वापस कैमरून जाने लगे तो उनके वैध दस्तावेज चाचा द्वारा खो दिए गए। समस्या तब आईं जब स्कूल से कॉलेज में भर्ती होने का समय आया। उस समय उनके वीसा का नवीनीकरण होना था। लेकिन उनके पास वैध दस्तावेज नहीं होने के कारण उन्हें देश में अवैध शरणार्थी माना गया। तब से कानूनी लड़ाई लड़ रहीं हैं। वे लेस्बियन हैं और इसीलिए वे अपने देश वापस नहीं जाना चाहती हैं क्योंकि कैमरून में समलैंगिकता अपराध की श्रेणी में आता है और उन्हें पांच साल की सजा हो सकती है। उनका कहना है वे ब्रिटेन में बचपन से रह रही हैं और उन्हें कभी नहीं लगा कि वे यहां आव्रजक हैं।
उन्होंने अपने खेल कैरियर की शुरुआत फुटबॉल से की। लेकिन जल्द ही उन्हें ये लग गया कि उनका सच्चा पैशन फुटबॉल नहीं बॉक्सिंग है। फिर 15 वर्ष की उम्र में बॉक्सिंग शुरू की। वे तीन अलग अलग भार वर्ग में ब्रिटेन की राष्ट्रीय चैंपियन हैं और ब्रिटिश बॉक्सिंग टीम के साथ अभ्यास करती हैं। वे ब्रिटिश टीम की और से ही भाग लेना चाहती थीं। लेकिन उनके पास ना तो ब्रिटेन का पासपोर्ट है और ना दीर्घकालीन वीसा। इन्हीं प्रपत्रों के अभाव में उन्हें उनके भाई के साथ एक बार अवैध प्रवासी होने की बिना पर गिरफ्तार करके डिटेंशन सेन्टर भेज दिया गया और वापस कैमरून भेजे जाने का खतरा भी उन पर मंडराने लगा। लेकिन इसी बीच उनके अंकल जो वहीं काम कर राजे हैं,के हस्तक्षेप से उन्हें 2021 में शरणार्थी का दर्जा प्राप्त हो गया।अभी भी ब्रिटेन में उनका दर्जा शरणार्थी का है। इसलिए उन्होंने शरणार्थी ओलंपिक टीम के लिए आवेदन किया और उन्हें टीम में चुन लिया गया।
उन्होंने पदक जीतकर दिखाया कि विस्थापित लोगों को अगर अवसर मिले तो वे अपने को सिद्ध कर सकते हैं और अपनी काबिलियत भी।
हालांकि शरणार्थी टीम से पदक जीतने वाली वे अकेली खिलाड़ी हैं, लेकिन उनके साथियों ने भी इस ओलंपिक में शानदार और उम्मीद जगाने वाला प्रदर्शन किया है। एथलेटिक्स में डोमिनिक लोकिन्योमो लोबालू पुरुषों की 5,000 मीटर दौड़ स्पर्धा के फ़ाइनल में सेकेंड के शतांश से भी कम अंतर से पदक से चूक गए और चौथे स्थान पर रहे।
इसके अलावा पेरिना लोकुरे नाकांग ने महिलाओं की 800 मीटर दौड़ स्पर्धा में और जमाल अब्देलमाजी पुरुषों की 10,000 मीटर दौड़ में व्यक्तिगत सर्वश्रेष्ठ समय निकाला। साथ ही तीन खिलाड़ी फर्नांडो दयान और जॉर्ज एनरिकेज़ की टीम व सईद फज़लौला, समन सोलतानी कैनो स्प्रिंटर्स क्वार्टर फाइनल में पहुंचे।
ये प्रदर्शन इस मामले में असाधारण और विशिष्ट कहे जा सकते हैं कि ये उन खिलाड़ियों द्वारा किए गए हैं जो अपने जीवन यापन के लिए संघर्ष कर रहे हैं। वे न्यूनतम मानवीय सुविधाओं के साथ रहकर, केवल अपने दृढ़ संकल्प, अपने साहस, अपनी कड़ी मेहनत और अपनी प्रतिभा के बल पर ऐसा कर पा रहे हैं।
ये शरणार्थी ओलंपिक दल के सदस्यों द्वारा किए गए ये चमकीले प्रदर्शन मानवीय जिजीविषा और साहस के उच्चतर बिंदु है। ये इस बात का प्रमाण हैं कि अगर व्यक्ति ने ठान लिया है तो तमाम बाधाओं और त्रासदियों से गुजर कर भी जीवन में बहुत कुछ हासिल किया जा सकता है।मानव जीवन में किसी भयानक त्रासदी की तरह आता है। विशेष रूप से तब जब ये विस्थापन जबरन कराया गया हो या मजबूरी में करना पड़ा हो। ये किसी अभिशाप की तरह जीवन को दुख देता है। अपनी जड़ ज़मीन से अलग हुआ विस्थापित पेड़ से टूटे पत्ते की तरह समय के थपेड़ों के हाथों पिटता हुआ अपने अस्तित्व और गरिमा की तलाश में भटकता रहता है। दुनिया में इस समय सौ मिलियन से अधिक लोग जबरन विस्थापित हैं जो जीवन यापन और मानवीय गरिमा से रहने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
ये साल 2016 था। रियो ओलंपिक के आयोजन का साल। अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक कमेटी के अध्यक्ष थॉमस बॉक ने एक पहल की। संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी की मदद से ओलंपिक कमेटी और ओलंपिक शरणार्थी फाउंडेशन द्वारा एक शरणार्थी ओलंपिक टीम का गठन किया गया ताकि दुनिया भर में शरणार्थियों की तरह रह रहे लोगों में से खेल प्रतिभाओं को अपनी प्रतिभा के प्रदर्शन हेतु खेल का उच्चतम मंच प्राप्त हो सके।
तब पहली 2016 के रियो ओलंपिक में पहली बार शरणार्थी ओलंपिक दल ने भाग लिया। इसमें कुल 10 खिलाड़ी शामिल थे। इसके बाद 2021 के टोक्यो ओलंपिक में कुल 29 खिलाड़ियों ने भाग लिया। लेकिन वहां ये एक भी पदक नहीं जीत सके थे। इस बार पेरिस ओलंपिक में इस दल के कुल 37 लोगों ने भाग लिया और शानदार प्रदर्शन किया।
इसमें सबसे शानदार प्रदर्शन सिंडी एनगाम्बा का था। 75 किग्रा भार वर्ग की मुक्केबाज़ी स्पर्धा में 25 वर्षीय सिंडी एनगाम्बा ने एक कांस्य पदक जीत कर इतिहास रचा। उन्होंने क्वार्टर फाइनल में मेजबान फ्रांस की डेविना मिचेल को सर्व सम्मति से 5-0 से हराकर सेमीफ़ाइनल में प्रवेश कर अपना कांस्य पदक पक्का कर लिया था। ये शरणार्थी ओलंपिक दल का इन खेलों में पहला पदक था। हालांकि वे सेमीफ़ाइनल में अपना मैच पनामा की एथीना बैलोन से हार गईं लेकिन तब तक पोडियम पर खड़े होने का हक़ प्राप्त कर इतिहास रच चुकी थीं।
सिंडी का जन्म 1998 में कैमरून में हुआ था। 11 वर्ष की अवस्था में वे एक आव्रजक के रूप में ग्रेट ब्रिटेन आईं। लेकिन जब उनके चाचा वापस कैमरून जाने लगे तो उनके वैध दस्तावेज चाचा द्वारा खो दिए गए। समस्या तब आईं जब स्कूल से कॉलेज में भर्ती होने का समय आया। उस समय उनके वीसा का नवीनीकरण होना था। लेकिन उनके पास वैध दस्तावेज नहीं होने के कारण उन्हें देश में अवैध शरणार्थी माना गया। तब से कानूनी लड़ाई लड़ रहीं हैं। वे लेस्बियन हैं और इसीलिए वे अपने देश वापस नहीं जाना चाहती हैं क्योंकि कैमरून में समलैंगिकता अपराध की श्रेणी में आता है और उन्हें पांच साल की सजा हो सकती है। उनका कहना है वे ब्रिटेन में बचपन से रह रही हैं और उन्हें कभी नहीं लगा कि वे यहां आव्रजक हैं।
उन्होंने अपने खेल कैरियर की शुरुआत फुटबॉल से की। लेकिन जल्द ही उन्हें ये लग गया कि उनका सच्चा पैशन फुटबॉल नहीं बॉक्सिंग है। फिर 15 वर्ष की उम्र में बॉक्सिंग शुरू की। वे तीन अलग अलग भार वर्ग में ब्रिटेन की राष्ट्रीय चैंपियन हैं और ब्रिटिश बॉक्सिंग टीम के साथ अभ्यास करती हैं। वे ब्रिटिश टीम की और से ही भाग लेना चाहती थीं। लेकिन उनके पास ना तो ब्रिटेन का पासपोर्ट है और ना दीर्घकालीन वीसा। इन्हीं प्रपत्रों के अभाव में उन्हें उनके भाई के साथ एक बार अवैध प्रवासी होने की बिना पर गिरफ्तार करके डिटेंशन सेन्टर भेज दिया गया और वापस कैमरून भेजे जाने का खतरा भी उन पर मंडराने लगा। लेकिन इसी बीच उनके अंकल जो वहीं काम कर राजे हैं,के हस्तक्षेप से उन्हें 2021 में शरणार्थी का दर्जा प्राप्त हो गया।अभी भी ब्रिटेन में उनका दर्जा शरणार्थी का है। इसलिए उन्होंने शरणार्थी ओलंपिक टीम के लिए आवेदन किया और उन्हें टीम में चुन लिया गया।
उन्होंने पदक जीतकर दिखाया कि विस्थापित लोगों को अगर अवसर मिले तो वे अपने को सिद्ध कर सकते हैं और अपनी काबिलियत भी। हालांकि शरणार्थी टीम से पदक जीतने वाली वे अकेली खिलाड़ी हैं, लेकिन उनके साथियों ने भी इस ओलंपिक में शानदार और उम्मीद जगाने वाला प्रदर्शन किया है।
एथलेटिक्स में डोमिनिक लोकिन्योमो लोबालू पुरुषों की 5,000 मीटर दौड़ स्पर्धा के फ़ाइनल में सेकेंड के शतांश से भी कम अंतर से पदक से चूक गए और चौथे स्थान पर रहे।
इसके अलावा पेरिना लोकुरे नाकांग ने महिलाओं की 800 मीटर दौड़ स्पर्धा में और जमाल अब्देलमाजी पुरुषों की 10,000 मीटर दौड़ में व्यक्तिगत सर्वश्रेष्ठ समय निकाला। साथ ही तीन खिलाड़ी फर्नांडो दयान और जॉर्ज एनरिकेज़ की टीम व सईद फज़लौला, समन सोलतानी कैनो स्प्रिंटर्स क्वार्टर फाइनल में पहुंचे।
ये प्रदर्शन इस मामले में असाधारण और विशिष्ट कहे जा सकते हैं कि ये उन खिलाड़ियों द्वारा किए गए हैं जो अपने जीवन यापन के लिए संघर्ष कर रहे हैं। वे न्यूनतम मानवीय सुविधाओं के साथ रहकर, केवल अपने दृढ़ संकल्प, अपने साहस, अपनी कड़ी मेहनत और अपनी प्रतिभा के बल पर ऐसा कर पा रहे हैं।
ये शरणार्थी ओलंपिक दल के सदस्यों द्वारा किए गए ये चमकीले प्रदर्शन मानवीय जिजीविषा और साहस के उच्चतर बिंदु है। ये इस बात का प्रमाण हैं कि अगर व्यक्ति ने ठान लिया है तो तमाम बाधाओं और त्रासदियों से गुजर कर भी जीवन में बहुत कुछ हासिल किया जा सकता है।
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