Friday, 23 August 2024

सुनो जोगी व अन्य कविताएं




आकाशवाणी में काम करते हुए कुछ बहुत ही जीनियस और होनहार युवाओं के साथ काम करने का अवसर मिला। ऐसे युवा जिन्हें आगे चलकर अपने-अपने क्षेत्रों में बेहतरीन काम करना था और एक मकाम हासिल करना था। 

उनमें एक नाम संध्या नवोदिता है।

संध्या की पहली पहचान एक बहुत ही 'आत्मविश्वास से भरी लड़की' है जिसे अपने होने और अपनी काबिलियत पर पूरा भरोसा है।

दूसरी पहचान एक बेहतरीन रेडियो ' कार्यक्रम प्रस्तुतकर्ता ' की है। वो रेडियो से पहले पहल  युववाणी कॉम्पियर के रूप में  जुड़ीं। वे इस कार्यक्रम की शानदार स्क्रिप्टिंग करती और बेहतरीन तरीके से पेश करतीं। रेडियो में नई होने के बावजूद उनमें आत्मविश्वास झलकता। शायद वे पहले से ही मंच संचालन में दक्ष थीं। और ये आत्मविश्वास रेडियो पर कार्यक्रम प्रस्तुत करते हुए झलकता।

तीसरी पहचान एक 'एक्टिविस्ट' की है।  इलाहाबाद में कहीं भी कोई महत्वपूर्ण कार्यक्रम हो या धरना-प्रदर्शन हो,एक चेहरा हमेशा मौजूद होता। और वो चेहरा  संध्या का होता। वे हर जगह मौजूद होतीं। अगर मैं गलत नहीं हूँ तो उन्होंने सोनभद्र जिले में कन्हर नदी पर बनने वाले बांध के लिए भूमि अधिग्रहण के विरुद्ध आंदोलन में भी सक्रिय भाग लिया और वहां के हालातों पर एक महत्वपूर्ण  रपट भी जारी की। 

चौथी पहचान एक बहुत ही संवेदनशील और आला दर्ज़े की युवा 'कवयित्री' की है। 

संध्या की जो बात सबसे ज़्यादा मुत्तासिर करती हैं वे छोटे से छोटे मनोभावों को बड़ी आसानी से पकड़ती हैं। खासकर विसंगतियों को। और फिर उसको बहुत सॉफ्ट से लहज़े में लेकिन मारक जुमलों में ज़ाहिर भी कर देती हैं।

क्योंकि वे एक्टिविस्ट हैं तो जाहिर सी बात है उनकी कविता में  राजनीतिक स्वर होना स्वाभाविक है। उनकी कविता है 'बाश्शा'। कविता जो सन 14/15 के आसपास पढ़ी गई होगी। लेकिन आज भी स्मृति में ताज़ा है। दस सालों बाद भी ये कविता उतनी ही मारक है। इतने सालों में  मानो कुछ भी ना बदला हों। इसमें बादशाह के लिए स्लैंग शब्द 'बाश्शा' का प्रयोग जिस तरह से किया गया है, वो अद्भुत है। इस एक शब्द ने कविता को बेहद मारक बना दिया है।

'....मुलुक बाश्शा का , हुकुम बाश्शा का/ 

सो बस रौंदने चला आ रहा है बाश्शा/ 

इतिहास को, भूगोल को, पूरी कायनात को../

बाश्शा के शौक अजीब हैं/ 

बाश्शा की भूख अजीब है/ 

बाश्शा की प्यास अजीब है।'


लेकिन राजनीतिक स्वर उनकी कविताओं का मुख्य स्वर नहीं है। उसका फलक विशाल है। वे देश, समाज और अपने समय से गुजरती हुई प्रेम तक जाती हैं और एक बहुत ही कोमल संसार की निर्मिति करती हैं।

इस बात को उनके अभी हाल ही में प्रकाशित कविता संग्रह 'सुनो जोगी और अन्य कविताएं' में लक्षित किया जा सकता है। संग्रह में दो भाग हैं। पहले भाग 'एक दिन हमने खेल किया था' में विविध विषयों पर 55 कविताएं हैं। जबकि दूसरे  भाग 'सुनो जोगी' में इसी नाम की कविता श्रृंखला की बहुत  ही चर्चित 45 कविताएं हैं।

उनकी कविताओं में समय किसी इतिहास की तरह दर्ज़ होता चलता है। 'देश-देश' का अंश देखिए-


'यह देश जो अपने खेतों में झूमता रहा/ 

जंगलों में,बीहड़ों में,गॉवों में पलता रहा/ 

कब उग आया कंक्रीट के कैक्टसों में/ 

और डेढ़ सौ खम्बों वाली एक विशालकाय गोल इमारत में कैद हो गया/ 

यह देश/ 

क्रिकेट के भगवानों/ 

सदी के महानायकों/ 

आइडलों और आइकनों के चक्रव्यूह में/ 

मासूम बच्चे सा फँसा लिया गया।'


अफ्रीका के सुप्रसिद्ध साहित्यकार चिनुआ अचेबे का एक प्रसिद्ध कथन है 'जब तक हिरण अपना इतिहास खुद नहीं लिखेंगे, तब तक हिरणों के इतिहास में शिकारियों की बहादुरी के किस्से गाए जाते रहेंगे'। ये एक सर्वकालिक और सार्वभौमिक सत्य है। संध्या इस कथन को भारतीय संदर्भ में कितनी ख़ूबसूरती विस्तारित करती हैं अपनी कविता 'चिनुआ अचेबे के नाम' में कि

'हिरण जाएंगे जान से

ठगे जाएंगे

घायल किए जाएंगे पीढ़ियों से

इतिहास में साबित होंगे सर्वोत्तम शिकार

मुलायम मांस और अलबेली खाल वाले

मासूम,सुंदर,चितचोर

अपनी हत्या के लिए खुद ही दोषी

 करार दिए जायेंगे

हिरण जब भी दायर करेंगे मुकदमा शिकारियों के खिलाफ

 बदतमीज,नाकारा,विकास विरोधी कहे जाएंगे। 


वे समसामयिक घटनाओं पर केवल पैनी नज़र ही नहीं रखतीं, बल्कि बेहद मार्मिक संवेदना से उसे दर्ज़ भी करती हैं-

'आरे के पेड़ कटते हैं

अमेज़न के जंगल जलते हैं

....एक पेड़ कटता है/

 सौ बरस का इतिहास कटता है/ 

पानी कटता है/ 

शर्म कटती है/ 

विवेक कटता है/

 प्यार कटता है...'


 स्त्री विमर्श उनकी कविताओं का एक मुख्य स्वर है। लेकिन वे स्त्री विमर्श के बने बनाए रूढ़ ढांचे को तोड़ती हैं और स्त्री के दुःख दर्द को,सवालों को तरल संवेदना के साथ प्रस्तुत करती हैं-

'औरतों ने अपने तन का/ 

सारा नामक और रक्त/ 

इकट्ठा किया अपनी आंखों में/ 

और हर दुख को दिया/ 

उसमें हिस्सा/ 

हज़ारों साल में बनाया एक मृत सागर/ 

आंसुओं ने कतरा कतरा जुड़कर/

 कुछ नहीं डूबा जिसमें/

औरतों के सपनों और उम्मीदों/ 

के सिवाय।'


वे इस संग्रह की पहली ही कविता में ही लिखती हैं 'सबसे ज़्यादा मुखर हो जाऊंगी मैं आपके मौन में'। उनकी कविताएं मुखर मौन की तरह ही आती हैं। उनकी कविताएं कहीं भी लाऊड नहीं होती। वे बहुत सहजता और धीमे स्वर में अपनी बात कहती हैं लेकिन अधिकतम बेधक क्षमता के साथ।

 वे बहुत ही सहज और कम शब्दों में गंभीर से गंभीर बात कह जाती हैं। देश की,समाज की, उनकी विसंगतियों की, विडंबनाओं की। कमाल ये है कि परिस्थितियां चाहे जितनी विषम हों, निराश करने वाली हों, उनकी कविता एक आशा में खत्म होती हैं-

'ऊष्मा से भरा हुआ दिन हुआ जा सकता है/

ठंड की नरम भाप भी/ 

सवेरे की मीठी ओस भी/

आदमी को भरोसे की आवाज होना चाहिए।'


संग्रह के दूसरे भाग 'सुनो जोगी' में इसी नाम की श्रृंखला की 45 प्रेम कविताएं  हैं।

ये अद्भुत प्रेम कविताएं हैं। ये कविताएं बाकी सभी प्रेम कविताओं से इस  मायने में अलग हैं कि दैहिक और भौतिक प्रेम की कविताएं ना होकर प्रेम के उच्चतर स्तर की कविताएं हैं। ऐसी कविताएं जहां  व्यष्टि में समिष्ट समाहित हो जाता है। वैयक्तिक कामनाओं में विश्व कल्याण समाहित हो जाता है।

भारतीय संस्कृति में जोगी की अवधारणा एक ऐसे सिद्ध पुरुष की है जो सांसारिक रागद्वेष से ऊपर उठ गया है। सामान्य जन से ऊपर। सिद्ध। ईश्वर प्रेम में अनुरक्त। कबीर के जोगी सा। 'सुनो जोगी' का जोगी भी ऐसा ही है -

 'कबीर के रास्ते आते हो तुम/ 

सांवरिया को खोजते/ 

राग बरसाते हो / 

जादू जगाते हो/ 

जोगी दीवाना किए जाते हो।


उनकी भाषा में ताजगी हैं। उन्होंने कमाल के बिंब और मेटाफर प्रयोग किए हैं। एक दम नए। एकदम अनूठे। ऐसे जैसे अब तक किसी ने ना किए। ऐसे जो अब तक कवियों की नज़र से ओझल थे। उनकी कल्पना से परे कि

 'लंबी परछाइयाँ,लंबे डग/ 

पलक झपकते धरती  नापते हो/ 

जो है तुम्हारे गुरुत्व से ढकी/

 पखावज बजाते हो/ 

जादू जगाते हो/ 

मल्हार गाते हो/ 

सारी चेतना पर फूंक देते हो मंतर/'


उनकी कविताओं में कमाल की लय है। कुछ कविताओं को पढ़ कर संगीत का सुख मिलता जैसे आप केदारनाथ अग्रवाल को पढ़कर पाते हैं 'मांझी ने बजाओ बंशी/ मेरा मन डोलता/ जैसे मेरा तन डोलता'। संध्या की कविता देखिए- 

'एक कहानी मैंने लिखी एक कहानी तू भी पढ़/

आंसू आंसू मैंने लिखी पानी पानी तू भी पढ़/'


सुनो जोगी कविताएं प्रेम की अद्भुत अभिव्यक्ति हैं

'आंखों की तरलता,तुम बहो/ 

मुस्कान,तुम खिलो/

हँसी,तुम छा जाओ/ 

स्पर्श,तुम जादू बन जाओ/

उंगलियों,तुम वाद्य पर बारिश बन बजना/

आवाज, तुम झरने सी होना/

आत्मा तुम अरुणोदय बनना..... 

सुनो मन रंगना।'


तो आपको भी प्रेम के रंग में मन को रंगना है। आपको भी प्रेम में डूब जाना है। तो एक बार 'सुनो जोगी और अन्य कविताओं' से होकर ज़रूर गुज़रना चाहिए।




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