ऐसा माना जाता है कि मानव का उद्भव अफ्रीका महाद्वीप में हुआ और वहां से दुनिया भर में उसका संचरण हुआ। ये संचरण आज तक जारी है। पूर्व काल में अफ्रीका से बाकी दुनिया तक का संचरण बहुत ही सहज और स्वाभाविक रहा होगा,लेकिन आज के दौर में ये पलायन में तब्दील हो गया है और बहुत ही त्रासद भी।
अफ्रीका एक बहुत ही दुर्गम भौगोलिक पहचान है और प्रचुर प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर भी।लेकिन संसाधनों का दोहन पश्चिमी विश्व ने किया और यहां के मूल निवासियों के हिस्से आई घोर निराशा, अवसाद,गरीबी और उससे निजात पाने के रूप में कड़े जीवन संघर्ष। इस सबकी परिणति हुई थोड़े से बचे संसाधनों पर अधिकार के लिए होने वाले अनवरत गृहयुद्ध और भीषण संघर्षों में।
यहां की कठिन परिस्थितियों ने यहां के निवासियों में अदम्य साहस और संघर्ष करने का ज़ज़्बा और हौंसला तो भरा ही लेकिन साथ ही इन परिस्थितियों से छुटकारा पाने की अदम्य लालसा भी भरी। इस लालसा के कारण सैकड़ों हजारों लोग इस महाद्वीप के अलग अलग हिस्सों से विश्व भर में पलायन करते है और इस पलायन से जन्म लेती हैं बेशुमार प्रेरणादायी कहानियां।
ये कहानी भी एक ऐसी ही कहानी है जो अफ्रीका के पूर्वी हिस्से में स्थित छोटे से निर्धन देश इरिट्रिया के एक गांव से शुरू होती है और वाया इथियोपिया, सुडान, मिस्र और सिनाई प्रायद्वीप होती हुई इजरायल के तेलअवीव में जाकर ठहरती है। एक ऐसी कहानी जो मृत्यु के भय से शुरू होती है और दुनिया जीत लेने के जज्बे पर आकर रुकती है। एक ऐसी कहानी जो नाउम्मीदी व आंसुओं से शुरू होती है और उम्मीद पर जाकर खत्म होती है। ये कहानी लंबी दूरी के ऐसे धावक की है जो केवल रहने के लिए मानवीय परिस्थितियों कीभखोज में घर से भाग निकलता है और दौड़ते दौड़ते प्रसिद्धि को पा लेता है।
ये साल 2010 था। अफ्रीका के पूर्वी हिस्से में स्थित आंतरिक अव्यवस्था और अशांति से जूझ रहे देश इरिट्रिया में हथियारबंद सैनिक घर घर जाते हैं और युवाओं को जबरिया सेना में शामिल करते हैं। एक बारह साल का युवा इससे बेतरह डर जाता है। वो सेना में भर्ती नहीं होना चाहता और ना लड़ना चाहता है। उसकी आंखों में कुछ और सपने थे और मन में कुछ चाहतें। वो अपने एक साथी के साथ देश छोड़कर भाग निकलता है।
उसके पास कुछ नहीं होता है। बस होता है तो बहुत थोड़ा सा धन और एक बेहतर भविष्य का सपना और कुछ कर गुजरने की इच्छा।
इन्हीं संसाधनों के सहारे वो बालक कई दिन की यात्रा के बाद पहले इथियोपिया पहुंचता है और अपनी एक रिश्तेदार जो पहले से ही इजरायल में शरण ले चुकी है,के निर्देश पर वहां से सुदान पहुंचता है इजरायल जाने के लिए। यहां वो बेदु मानव तस्करों के संपर्क करता है और इजरायल के लिए यात्रा शुरू होती है। दरअसल ये एक दुस्वप्न की शुरुआत थी। वे बेदु मानव तस्करों के अत्याचार और यात्रा की कठिनाइयों के बाद मिस्र पहुंचता है। उसके बाद कई दिनों की कठिन यात्रा के बाद सिनाई रेगिस्तान को पारकर इजरायल बॉर्डर पर पहुंचता है।
एक दुस्वप्न का अंत होता है। एक नया सवेरा आता है। उस 12 साल के बालक को इजरायल में शरण मिल जाती है और तेलअवीव के हादसाह नेरीम (hadassah neurim) बोर्डिंग स्कूल में जगह मिलती है। ये ऐसे ही बालको के लिए बना है।
यहां उसकी स्कूली शिक्षा पूरी होती है और खेलों और विशेष रूप से दौड़ में रुचि देखते हुए 'रनिंग प्रोग्राम' में शामिल किया जाता है। यहां उसके कोच बनते हैं अलेमायु फ्लोरो जो उस बालक को एक बेहतरीन लंबी दूरी के धावक में तब्दील कर देता है।
ये बालक कोई और नहीं इस बार के पेरिस खेलों के लिए ओलंपिक शरणार्थी टीम का सदस्य तचलोविनी मेलाके गैब्रिएसोस हैं जो मैराथन दौड़ में हिस्सा लेंगे।
वे पहली बार चर्चा में तब आए जब उन्हें 2019 में दोहा में आयोजित विश्व चैंपियनशिप एथलेटिक रिफ्यूजी टीम में चुना गया। यहां उन्हें पांच हजार मीटर दौड़ में भाग लेना था। उसके बाद उन्होंने एथलेटिक रिफ्यूजी टीम के सदस्य के रूप में 2020 में पोलैंड में आयोजित हॉफ मैराथन में हिस्सा लिया। फिर 2021में टोक्यो ओलंपिक खेल आए। वे एक टोक्यो ओलंपिक रिफ्यूजी टीम के लिए चुने गए और यहां पर 106 प्रतिभागियों में वे 16वें स्थान पर रहे। साथ ही ओपनिंग सेरेमनी में टीम के ध्वज वाहक होने का सम्मान भी मिला।
वे इस बार फिर पेरिस ओलंपिक शरणार्थी टीम के सदस्य हैं और मैराथन में भाग लेंगे।
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एक दौड़ जो उन्होंने 12 साल की उम्र में एक 'बेहतर जिंदगी के लिए शुरू की थी जहां वे मानवीय परिस्थितियों में रह सकें',उनके हौसलों जज्बे और सफलता की दौड़ में तब्दील हो गई है। लेकिन वे अपने अतीत को भूले नहीं हैं। वे कहते हैं 'उन्हें उस अतीत से हिम्मत मिलती है और शक्ति भी'।
जब आप पेरिस ओलंपिक में अपने प्रिय खिलाड़ियों के प्रदर्शन पर नजर गड़ाए हुए होंगे तो इस पर से भी अपनी दृष्टि ओझल मत होने दीजिएगा।
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