Tuesday, 2 July 2024

ये जीत भी कमतर तो नहीं


तीव्र गूंजती आवाजों के नेपथ्य में कुछ मद्धम स्वर इस गूंज में विलीन हो जाते हैं, चाहे वे कितने ही मधुर क्यूं ना हों। 

जिस समय भारतीय लड़के क्रिकेट में अपनी विजय का डंका बजा रहे थे,ऐन उसी समय भारतीय लड़कियां क्रिकेट में ही अपनी सफलता के तराने लिख रही थीं। लेकिन उनकी जीत के गिद्दा की लय लड़कों की विश्व कप की जीत के भांगड़ा की लय में रल मिल कर खो गई।

स समय दक्षिण अफ्रीका की महिला क्रिकेट टीम भारतीय दौरे पर है। भारतीय बालाएं अपने खेल की उच्चतर सीमा पर हैं। अभी तक उन्होंने दक्षिण अफ्रीका का सफाया कर दिया है। पहले  एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय मैचों की सीरीज 3-0 से जीत ली। दक्षिण अफ्रीका दूसरे अंतरराष्ट्रीय मैच को छोड़कर कहीं मुकाबले में भी नहीं दिखी। भारत ने करीबी मैच 143 रनों से जीता। हां, दूसरे मैच में भारत द्वारा रखे गए 325 रनों के लक्ष्य को दक्षिण अफ्रीका ने पा ही लिया था कि 4 रन कम रह गए। तीसरा मैच 56 गेंदे शेष रहते 6 विकेट से भारत ने आसानी से जीता। इस वन डे सीरीज में स्मृति मंधाना ने शानदार बल्लेबाजी की और दो शतक लगाए और एक इनिंग 90 रनों की खेली।













सके बाद एकमात्र टेस्ट में भी भारत ने 10 विकेट से जीत दर्ज़ की। शेफाली वर्मा ने इसमें सबसे तेज दोहरा शतक लगा
या तो स्नेहा राना ने मैच में 10 विकेट लेकर भारत की जीत सुनिश्चित की। अब 3 टी-20 मैच और खेले जाने बाकी हैं।

भारतीय लडकियों ने क्रिकेट जगत में अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज़ कराई है। लेकिन अभी भी महिला क्रिकेट उतना लोकप्रिय नहीं हो पाया है, जितना पुरुष क्रिकेट है जो जुनून की तरह लोगों के सिर चढ़कर बोलता है। क्रिकेट के ठीक विपरीत बैडमिंटन और टेनिस से लेकर शूटिंग,आर्चरी,एथलेटिक्स यहां तक कि कुश्ती और मुक्केबाजी में महिला खिलाड़ियों को कहीं अधिक दर्शक और प्रशंसक मिल रहे हैं।
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ये एक विडंबना ही है और इसके कारणों की तहकीकात की जानी चाहिए जिस तरह महिला बैडमिंटन या टेनिस जैसे खेल दर्शकों को अपील करते हैं उस तरह महिला क्रिकेट क्यों नहीं




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