जिन लोगों की खेलों में जरा भी रुचि रही है और उनकी स्मृति के किसी भी कोने में दिल्ली में 1982 में आयोजित एशियाड खेल विश्राम कर रहे होंगे,उनकी स्मृति में रंग बिरंगा गोल मटोल हाथी का बच्चा 'अप्पू' भी जरूर जगमग जगमग कर रहा होगा। ये दिल्ली एशियाड खेलों का शुभंकर था। जो अत्यधिक लोकप्रिय हुआ था।
सभी खेल आयोजनों में शुभंकर जारी किया जाना अब इन खेलों का एक अनिवार्य हिस्सा है। ये इन खेलों की जरूरी रवायत बन गई है। ओलंपिक खेलों में भी इसका प्रयोग ओलंपिक ब्रांड के एक अनिवार्य तत्व के रूप में उसके प्रचार प्रसार और इसे लोकप्रिय बनाने के लिए किया जाने लगा है। विशेष रूप से शुभंकर को बच्चों व युवाओं को ओलंपिक खेलों और उसकी भावना के प्रति जागरूक करने और उनमें रुचि जगाने के माध्यम के तौर पर किया जाता है।
विभिन्न आकार और रूपों वाले ये शुभंकर ना केवल ओलंपिक खेलों की थीम को अभिव्यक्त करते हैं,बल्कि मेजबान देश और शहर की सांस्कृतिक,ऐतिहासिक और भौगोलिक विशिष्टताओं के वाहक भी होते हैं।
ओलंपिक खेल आयोजन अपनी जिन कुछ खास विशेषताओं के लिए जाने जाते हैं,उनमें एक शुभंकर भी है। पेरिस ओलंपिक अन्य बातों के अलावा अपने शुभंकर की विशिष्टता के लिए याद किया जाएगा।
इस बार पेरिस ओलंपिक का शुभंकर फ्रीज़ (phryge)को बनाया गया है। फ्रीजियन टोपी दरअसल फ्रांस की एक पारंपरिक टोपी है। ये शुभंकर लाल,नीले और सफेद रंग की टोपी है जिस के सीने पर सुनहरे रंग का पेरिस ओलंपिक को लोगो अंकित है। ये तीन रंग फ्रांस के राष्ट्रीय ध्वज के रंग भी हैं। इस टोपी में पैर लगाकर इसे सजीव आकार दिया गया है। ओलंपिक और पैरालंपिक दोनों के लिए यही फ्रीज़ शुभंकर है। बस पैरालंपिक शुभंकर में प्रोस्थेटिक पैर लगाए गए हैं।
फ्रीजियन कैप फ्रांस में प्राचीन काल से प्रयोग में लायी जा रही है। पूरे फांसीसी इतिहास के दौरान ये 'स्वतंत्रता' का प्रतीक रही है। शुभंकर को जारी करते समय कहा गया कि इसके 'नाम और डिजायन को स्वतंत्रता के प्रतीक के रूप में और फ्रांसीसी गणराज्य के प्रतीकात्मक आंकड़ों का प्रतिनिधित्व करने के लिए चुना गया है'।
इस शुभंकर की सबसे विशिष्ट बात ये है कि पहली बार शुभंकर किसी वस्तु (टोपी) को बनाया गया है। इससे पहले तक ये शुभंकर जानवर या मानव होते थे। यही इस बार के शुभंकर की विशिष्टता है।
मस्कट या शुभंकर के प्रचलन का श्रेय खेलों को ही दिया जाता है। उन्नीसवीं सदी के अंतिम दो दशकों में खेल आयोजनों के दौरान टीमें लोगों को आकर्षित करने और 'लकी चार्म' के रूप में सजीव जानवरों का शुभंकरों के रूप प्रयोग करते थे। टीमों द्वारा सजीव शुभंकरों के प्रयोग की ये परंपरा बीसवीं सदी के आरंभिक दो दशकों में उस समय तक जारी रही जब तक कि तक पशुप्रेमियों द्वारा इसके प्रयोग पर आपत्ति करना शुरू नहीं कर दिया गया।
इसके बाद सजीव शुभंकरों की परंपरा भले ही खत्म हो गई हो लेकिन उसके बाद कपड़ों के तथा अन्य रूपों में शुभंकर बनाए जाने लगे। सजीव शुभंकरों से लेकर आज के आभासी शुभंकरों तक का शुभंकरों का लम्बा इतिहास रहा है।
जहां तक महाद्वीपीय या वैश्विक खेल आयोजनों के शुभंकर की बात है तो 1966 में इंग्लैंड में आयोजित विश्व कप फुटबॉल प्रतियोगिता में पहली बार शुभंकर जारी किया गया माना जाता है। ये स्थानीय शेर 'विली' था जो यूनियन जैक वाली जर्सी पहने था और उस पर 'वर्ल्ड कप' लिखा था। इसको बच्चों की पुस्तकों के रेखाचित्र तैयार करने वाले एक फ्रीलांस कलाकार रेगे होए ने तैयार किया था। बहुत से लोग इसे अब तक का सर्वश्रेष्ठ शुभंकर मानते हैं।
जहां तक ओलंपिक खेलों की बात है तो 1972 के म्यूनिख ओलंपिक में पहली बार आधिकारिक रूप से शुभंकर बनाया गया था। इसका नाम 'वाल्डी' था जर्मनी के कुत्ते की लोकप्रिय नस्ल 'देश्चु' (dachshund) था। ये एक एथलीट के लिए आवश्यक दृढ़ता,चपलता और प्रतिरोध जैसे गुणों का प्रतिनिधित्व करता है।
लेकिन यहां ये उल्लेखनीय है कि अनौपचारिक रूप से सबसे पहला शुभंकर 1968 में फ्रांस के ग्रेनोबल में आयोजित शीतकालीन ओलंपिक के लिए जारी किया गया था जिसका नाम 'शुस' (shuss) था। 1968 में मैक्सिको में आयोजित ग्रीष्मकालीन ओलंपिक में भी शुभंकर बनाया गया था 'जगुआर'।
सामान्यतया एक खेल आयोजन में एक ही शुभंकर जारी किया जाता है। लेकिन 1998 के नागानो शीतकालीन ओलंपिक में चार शुभंकर थे,2000 के सिडनी ओलंपिक में तीन,2004 के एथेंस ओलंपिक में दो और 2008 के बीजिंग ओलंपिक में पांच शुभंकर थे। लेकिन 2012 के लंदन में एक ही शुभंकर जारी किया गया था।
अस्तु।
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