इंग्लिस्तान की राजधानी लंदन को तीन विश्व प्रसिद्ध खेल स्टेडियमों - वेम्बले, लॉर्ड्स और विम्बलडन के कारण फुटबॉल,क्रिकेट और टेनिस का मक्का माना जाता है। ये तीन खेल ब्रिटेन के सबसे लोकप्रिय खेल हैं।
क्या ही संयोग है कि एक सप्ताह के भीतर इन तीनों ही खेलों में इंग्लिस्तान के खेल इतिहास की तीन अविस्मरणीय घटनाएं घट रही थीं,जो सिर्फ इंग्लिस्तान के लिए ही नहीं बल्कि विश्व के खेल जगत के लिए भी उतनी ही महत्वपूर्ण मानी जा सकती हैं।
एक,सर एंड्रयू बैरन मारे का टेनिस से सन्यास,इंग्लिश फुटबॉल टीम का यूरो कपके फाइनल में प्रवेश और सर जेम्स एंडरसन का आखिरी टेस्ट मैच खेलना।
6 जुलाई को विम्बलडन अरीना टेनिस स्टार एंडी मरे,जिसने ना केवल इंग्लिस्तान की टेनिस को बदल दिया बल्कि वर्तमान सदी के पहले ढाई दशक के टेनिस इतिहास में महत्वपूर्ण हस्तक्षेप किया,को टेनिस कोर्ट से विदा कर रहा था।
उधर 10 जुलाई को जर्मनी के शहर डॉर्टमंड के सिग्नल एडुना पार्क में हैरी केन की अगुआई में इंग्लिस्तान की टीम नीदरलैंड को 2-1 से हराकर यूरो कप के फाइनल में ही नहीं पहुंच रही थी बल्कि 1966 में वेम्बले मैदान में अर्जित प्रतिष्ठा को पुनर्स्थापित करने के प्रयास में अंतिम पायदान पर भी पहुंच रही थी।
और इस बीच लॉर्ड्स का मैदान 12 जुलाई को इंगलिस्तान ही नहीं बल्कि दुनिया के महानतम तेज गेंदबाजों में एक जेम्स एंडरसन को गार्ड ऑफ ऑनर के साथ मैदान से भावभीनी विदाई दे रहा था। उसके साथी खिलाड़ी मैच के तीसरे दिन ही वेस्टइंडीज पर पारी और 114 रनों की जीत से शानदार तोहफा और क्या दे सकते थे।
जी हां ये जेम्स एंडरसन हैं जो क्रिकेट मैदान को अब अलविदा कह रहे हैं। ये किसी अजूबे से कमतर कैसे हो सकता है कि क्रिकेट में एक तेज गेंदबाज लगातार 21 साल तक 188 टेस्ट मैच खेलकर 42 साल में चंद दिन कम की उम्र में खेल मैदान से विदा ले।
आप जानते हैं ना 21 साल क्रिकेट के तेज गेंदबाज के लिए कितना बड़ा वक़्फा होता है। उन्होंने इसी लॉर्ड्स के मैदान से 2003 में ज़िम्बाब्वे के ख़िलाफ़ अपने कैरियर की शुरुआत की थी। तब से लेकर आज तक उनकी अपनी टीम के आठ कप्तान बदले। उनके देश के आठ प्रधानमंत्री बदले और उनके साथ कुल 109 खिलाड़ी खेले।और इनमें से कुछ तो उनके डेब्यू के समय जन्मे भी नहीं थे।
इस बीच टेम्स नदी से ना जाने कितना पानी बह गया होगा। बस अगर इन सबके के बीच कुछ नहीं बदला तो जेम्स एंडरसन,उनकी लाजवाब गेंदबाजी और क्रिकेट के लिए उनकी दीवानगी नहीं बदली।
इस दौरान उन्होंने टेस्ट मैच में चालीस हजार से ज़्यादा गेंदे फेंकी और 704 विकेट लिए। ये एक तेज गेंदबाज द्वारा फेंकी गई सब से अधिक गेंदे हैं और, लिए गए सबसे अधिक विकेट और कुल मिलाकर मुरलीधरन और शेन वार्न के बाद सबसे अधिक।
आखिर उन्होंने इन 21 सालों के लंबे करियर से क्रिकेट को क्या दिया?
निसंदेह इंग्लैंड को अनेक यादगार जीत दीं जिसमें दो एशेज भी शामिल हैं और विशेष रूप से 2010/11 की एशेज जो 24 सालों के लंबे अंतराल के बाद इंग्लैंड को नसीब हुई थी। ऐसा नहीं है कि उनके हिस्से सब जीत ही आईं। असफताएँ भी उनके भाग्य का हिस्सा रहीं। उनके पहले कप्तान नासिर हुसैन सही ही कह रहे थे 'आप सबसे अच्छे समय में भी हमारे साथ रहे और सबसे बुरे वक्त में भी।'
लेकिन देश के लिए जीतना और उसमें योगदान तो हर खिलाड़ी करता है। सही मायने में तो वे क्रिकेटर्स को और विशेष रूप से गेंदबाजों को अपनी फिटनेस से अचंभित कर रहे थे। वे अपने इतने लंबे कैरियर में शायद ही कभी चोटिल हुए हों। और ये फिटनेस उनकी कठोर अनुशासन और स्वयं पर नियंत्रण से आती है। उनके लंबे करियर का राज ही उनकी फिटनेस में छुपा है। ये उनकी फिटनेस और उनका अनुशासित जीवन है जिस के लिए उनका अनंत काल तक अनुकरण किया जा सकता है।
उनका उससे भी बड़ा योगदान क्रिकेट के क्लासिक फॉर्म के प्रति उनका प्रेम है। जिस समय वे अपने करियर की शुरुआत कर रहे थे,उस समय टी-20 फॉर्मेट आकार ग्रहण कर रहा था। हर खिलाड़ी इस फॉर्मेट का दीवाना हुआ जाता था। खिलाड़ी उसकी तरफ भाग रहे थे। टेस्ट क्रिकेट से मोहभंग का काल था ये। सभी उसे छोड़ एक दिवसीय और टी-20 को अपना रहे थे। बहुत से खिलाड़ियों ने तो अपनी खेल लाइफ बढ़ाने के लिए टेस्ट मैच छोड़ छोटे फॉर्मेट को वरीयता दी। लेकिन जेम्स एंडरसन को ये छोटे और विशेष रूप से टी-20 फॉर्मेट रास नहीं आया। उन्होंने केवल 21 टी-20 मैच खेले और 2009 में ही इस फॉर्मेट को विदा कह दिया।
एक दिवसीय मैच ज़रूर 172 खेले और फिर 2015 के मार्च में उससे भी किनारा कर लिया। लेकिन टेस्ट मैच के लिए उनका लगाव,उनकी दीवानगी शिद्दत से साथ बनी रही। क्रिकेट के मूल फॉर्मेट के प्रति ये उनका लगाव ही था कि एक दिवसीय क्रिकेट को विदा कहने के बाद नौ साल तक वे टेस्ट क्रिकेट खेलते रहे।
और उससे भी बड़ी बात ये कि तेज गेंदबाजी का उन्होंने एक अलग मुकाम बनाया। उसको एक अलग पहचान दी। जो तेज गेंदबाजी की परंपरागत छवि से अलग थी। उन्होंने अपने लिए एक अलग छवि गढ़ी,जो कई स्थापित छवियों को तोड़ती थी। उन्होंने अपनी तेज गेंदबाजी से खौफनाक और संहारक तिलिस्म नहीं बनाया, बल्कि तेज गेंदबाजी का एक लयात्मक संसार निर्मित किया। उनकी गेंदबाजी में रफ्तार थी,पैनापन था,मारक क्षमता थी,वो सब कुछ था जो एक तेज गेंदबाज में होता है, ना था तो बस ख़ौफ़ ना था। बल्लेबाजों में उनकी गेंदबाजी की तेजी का ख़ौफ़ ना था बल्कि उसके हुनर का ख़ौफ़ था। उनकी सीम,उनकी स्विंग,उनकी गेंद की लंबाई को एडजस्ट करने की क्षमता और चमकती गेंद से लेकर धूसर होती गेंद तक के ख़ूबसूरत इस्तेमाल का भय था।
उनका बोलिंग एक्शन बहुत ही सहज, सरल और आकर्षक था। इतना सहज कि लगता ही नहीं कि एक तेज गेंदबाज बोलिंग कर रहा है। वे 140 किमी प्रति घंटा या उससे भी अधिक की गति से गेंद फेंकते। पर उन्हें देखते कभी ये आभास होता ही नहीं कि वे ज़रा भी शक्ति का प्रयोग कर रहे हैं। इस मामले में सिर्फ एक ही खिलाड़ी उनसे प्रतिस्पर्धा कर सकता है। वे हैं मोहिंदर अमरनाथ। लेकिन यहां उल्लेखनीय है कि मोहिंदर माध्यम गति के गेंदबाज थे।
एंडरसन का खूबसूरत चेहरा,एक जेंटलमैन छवि,आकर्षक और सहज बॉलिंग एक्शन सब के सब एकाग्र होकर उनकी बॉलिंग को परले दर्ज़े का लयात्मक और आकर्षक बनाते थे। उनकी गेंदबाजी तेज गेंदबाजी की सिहरन पैदा नहीं करती,बल्कि स्पिन गेंदबाजी जैसी कलात्मक लगती, उसी की तरह आंखों को सुकून से भर देती।
आप जानते हैं खेलों में सबसे ज़्यादा लय आइस हॉकी में होती है। उससे अधिक लय आइस स्केटिंग में होती है और लयात्मक जिम्नास्टिक में उससे भी ज़्यादा। उनकी गेंदबाजी अपनी लयात्मकता में इन सब प्रतिस्पर्धा करती प्रतीत होती है।
दरअसल वे तेज गेंदबाजी की एक नई भाषा गढ़ते हैं। उसे एक नई परिभाषा देते हैं और एक अलहदा छवि निर्मित करते हैं। यही उनका क्रिकेट को सबसे बड़ा दाय है।
जेम्स एंडरसन की टेस्ट क्रिकेट से इस विदाई को उनके पहले कप्तान नासिर हुसैन से अधिक सुंदर और सटीक शब्दों के ज़्यादा क्या ही कहा जा सकता है कि 'आप (एंडरसन) सही मायने में इंग्लिश क्रिकेट हो'।
क्रिकेट मैदान से विदा एंडरसन।
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