खेलों पर कितना भी बाजार का प्रभाव हो, उनमें कितनी ही राजनीति हो और खेल कितने भी टेक्निकल हो गए हो,लेकिन खेल अभी भी अपने मूल स्वरूप में मानवीय मूल्यों और मानवीय गरिमा के सबसे बड़े पहरुए हैं। और फिर एक नेक काम के लिए खेल को राजनीति के टूल के रूप में उपयोग किया भी जाए तो किसी को क्या आपत्ति हो सकती है।
हम जानते हैं कि विस्थापन कितनी बड़ी त्रासदी है। और ये भी कि दुनिया में ना जाने कितने लोग गृह युद्धों और आतंकवाद के कारण अपनी मातृभूमि से बेदखल हो शरणार्थियों के रूप में घोर यातनापूर्ण जीवन व्यतीत कर रहे हैं।
2016 में ओलंपिक खेल समिति ने सौ मिलियन से भी अधिक ऐसे ही अभागे शरणार्थियों में उम्मीद की एक किरण जगाने के लिए पहली बार रियो ओलंपिक में एक अलहदा टीम के निर्माण और उसके प्रतिभाग की घोषणा की। और तब पहली बार शरणार्थी ओलंपिक टीम ने ओलंपिक ध्वज तले इन रियो ओलंपिक 2016 में भाग लिया। उस बार कुल 10 एथलीटों ने भाग लिया था।
उसके बाद टोक्यो ओलंपिक में कुल 20 एथलीटों ने भाग लिया। हालांकि इनमें से कोई भी पदक नहीं जीत सका है। लेकिन ये ओलंपिक मोटो है कि ' जीतने से महत्वपूर्ण भाग लेना है'।
इस बार पेरिस ओलंपिक में इस टीम में 11 देशों से संबंधित कुल 37 खिलाड़ी 12 खेलों में प्रतिभाग करेंगे। इनमें सबसे अधिक 14 ईरान के हैं। अफगानिस्तान में जन्मी मासोमा अली ज़ादा इस दल की चीफ द मिशन होंगी। वे टोक्यो ओलंपिक में साइकिलिंग में इस टीम के सदस्य के रूप में प्रतिभाग कर चुकी हैं।
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तो अगले हफ्ते से जब आप अपनी टीम और अपने चहेते खिलाड़ियों का समर्थन कर रहे होंगे तो इन खिलाड़ियों पर, इनके प्रदर्शन पर और इनके हौंसलो व ज़ज्बे पर भी नज़र रखियेगा।
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