Tuesday, 16 July 2024

ये रोमांच से भरा खेल रविवार था





14 जुलाई 2024, रविवार का दिन। एक ऐसा दिन जिसे नियति ने मानो खेल और केवल खेल के लिए निर्धारित किया हो। मानो उसने कहा हो इस दिन बस खेल होंगे और कुछ नहीं। यूरोप से लेकर अमेरिका तक खेल थे,खिलाड़ी थे और रोमांच में डूबते उतराते दुनिया भर में फैले लाखों या फिर करोड़ों दर्शक थे। कहां और कब ऐसा संयोग हुआ होगा जब दुनिया की तीन इतनी बड़ी और लोकप्रिय प्रतियोगिताओं के फाइनल आधे दिन के भीतर सम्पन्न होने जा रहे हों। ये दिन जीत-हार और बनते टूटते रिकॉर्डों के अलावा इसलिए भी याद रखा जाना चाहिए और खेल इतिहास में दर्ज़ होना चाहिए।

ये दो खेलों की तीन प्रतियोगिताएं थीं और उनके फाइनल थे। दुनिया के दो सबसे लोकप्रिय खेल-टेनिस और फुटबॉल।

टेनिस-सबसे एलीट खेलों में एक। अभी भी बहुत कुछ सामंती हनक लिए हुए। और उसकी सबसे प्रतिनिधि प्रतियोगिता विंबलडन। एक ऐसी प्रतियोगिता जिसे देखने के लिए दुनिया भर के सितारे दर्शक दीर्घाओं में दिखाई देते हैं। प्रतियोगिता जो अभी भी अपनी परम्पराओं को संजोए हुए। प्रतियोगिता जिसका अपना ड्रेस कोड है। और जिसका पूरी कड़ाई और निष्ठा से पालन होता है। खिलाड़ी केवल और केवल सफेद पोशाक पहनेंगे। पिछले साल लड़कियों को केवल इतनी छूट की वे रंगीन इनरवियर पहन सकती हैं। शाही संरक्षण प्राप्त। कल इस प्रतियोगिता का पुरूष एकल फाइनल खेला गया। 

दूसरा खेल था फुटबॉल। टेनिस के एकदम विपरीत आम जन का खेल। दुनिया का सबसे लोकप्रिय खेल। ये टेनिस की तरह सिर्फ शौकिया खेल भर नहीं है। ये बहुतेरों की दुनिया है,उनका जीवन है। उनके दुखों और संघर्षों में समय की आश्रयस्थली है। टेनिस का ऐसा कौन सा खिलाड़ी आपको याद है जिसने गुरबत में रहते हुए दुनिया में नाम कमाया। लेकिन फुटबॉल तो ऐसे ही लोगों से बना है। ये ऐसे लोगों की ही दुनिया है। ऐसे लोगों की भी दुनिया है। पेले और माराडोना से लेकर सदियो माने,एम बापे, निको विलियम्स और लामीने यमाल तक ऐसे ही खिलाड़ी हैं जिन्होंने घोर अभावों और गुरबत की गलियों से लाखों करोड़ों लोगों के दिल तक का लंबा रास्ता तय किया है। स्लम्स में खेलते खेलते दुनिया के विश्व प्रसिद्ध खेल मैदानों तक पहुंचते हैं और दुनिया की आंख के तारे बन जाते हैं।

कल ऐसे ही दुनिया के लोकप्रिय खेल फुटबॉल की दो सबसे लोकप्रिय प्रतियोगिताओं के फाइनल भी खेले गए। एक, विश्व कप फुटबॉल के बाद दूसरी सबसे लोकप्रिय प्रतियोगिता यूरो कप का फाइनल और दो, कोपा कप प्रतियोगिता का फाइनल। यूरो कप का फाइनल जर्मनी की राजधानी बर्लिन के ओलम्पियास्टडियन मैदान पर खेला गया तो कोपा कप का फाइनल अमेरिका में मियामी के हार्ड रॉक स्टेडियम में।

यूं तो ये फुटबॉल की दो सबसे बड़ी और लोकप्रिय प्रतिगोगिता थीं। लेकिन ये दोनों अलग अलग मिज़ाज की,अलग अलग शैली की फुटबॉल है। एक गति,शक्ति,लंबे पास,हिट एंड रन वाली परिणामोन्मुखी तो दूसरी छोटे छोटे पास,ड्रिबल और कलात्मकता लिए आनंदोन्मुखी फुटबॉल। नितांत विपरीत शैली की दो फुटबॉल और उनकी प्रतियोगिताएं हैं ये।

आखिर ये विभाजन आता कहां से है। ज़ाहिरा तौर पर जातीय और नस्लीय विशेषताओं, भौगोलिक संरचनाओं के प्रभाव और सामजिक व सांस्कृतिक विशेषताओं की विभिन्नताओं और स्थानिकता के आधार पर। खेलों का एक बहुत ही प्रचलित सिद्धांत है जो कहता है कि टीमों की विशेषता उनके राष्ट्रीय चरित्र के अनुरूप ही होती हैं। 

लेकिन आज के इस आधुनिक युग में विश्व एक ग्लोबल विलेज बन गया है। माइग्रेशन की प्रकिया चरम पर है। किसी एक देश की टीम में अनेक देशों के और अलग अलग नस्लों के खिलाड़ी शामिल होते हैं। इस हद तक विभिन्न पहचान वाले खिलाड़ी कि वे एक राष्ट्रीय टीम न होकर सार्वभौमिक टीम लगती है। फ्रांस और स्पेन सहित यूरोप के अनेक देशों में अलग-अलग राष्ट्रीय पहचान वाले और नस्ल के खिलाड़ी खेलते हैं। ऐसे में क्षेत्रीय या स्थानीयता के आधार पर खेल शैली का विभाजन मायने नहीं रखता। खेल शैली और टेक्नीक का अधिक तार्तिक आधार कोच और उसकी प्रबंधन टीम की रणनीति है। उदाहरण के तौर पर शक्ति और गति के लिए जाने जाने वाले यूरोप के ही देश स्पेन छोटे छोटे पासों वाला कलात्मक खेल की रणनीति अपनाता है।


रविवार के इन तीन फाइनल्स में सबसे पहले शुरू हुआ विम्बलडन। ये सर्बिया के 24 ग्रैंड स्लैम विजेता 37 वर्षीय अनुभवी नोवाक जोकोविच और स्पेन के 21 वर्षीय युवा कार्लोस अलकराज के बीच था। दरअसल 2023 का फाइनल एक बार फिर अपने को दोहरा रहा था। पिछली बार 5 सेटों के संघर्षपूर्ण मुकाबले में कार्लोस अलकराज ने नोवाक को हराकर उनकी जीत के अश्वमेध यज्ञ के अश्व को थाम लिया था। 

पिछली बार की तरह द्वंद्व का स्थान भी वही था, पात्र भी वही थे और नतीजा भी वही रहा। अलकराज ने नोवाक को 6-2,6-2,7-6(7-4) हरा  दिया। बस मैच की गति बदल गई थी। पिछले साल का एक संघर्षपूर्ण मुकाबला एकतरफा मुकाबले में बदल गया था। एक बढ़ते बिरवै ने विशाल वट वृक्ष की छाया से निकलकर अपना स्वतंत्र आकार ग्रहण कर लिया था। इतना बड़ा कि वो वट वृक्ष के अस्तित्व को सफलतापूर्वक चुनौती दे सके।

इस फाइनल मैच में नोवाक के बस दो मौके थे। एक, मैच का पहला गेम। टॉस जीतकर अलकराज ने अप्रत्याशित रूप से सर्विस रिसीव करना चुना। नोवाक की सर्विस वाला ये गेम लगभग 14 मिनट तक चला और और सात बार ड्यूस हुआ। इस गेम में अंततः अलकराज ने नोवाक की सर्विस ब्रेक कर मैच की टोन सेट कर दी थी। 

नोवाक का एक महीने पहले ही टखने का ऑपरेशन हुआ था और शायद वे सौ फीसदी फिट नहीं थे। वे अलकराज के बेसलाइन के खेल का मुकाबला करने में खुद को असमर्थ पा रहे थे। इसमें उन्हें अधिक कोर्ट कवर करना पड़ रहा था और अधिक परिश्रम भी। उन्होंने रैलीज को छोटा करना चाहा और इसके लिए उन्होंने नेट पर खेलने का प्रयास किया। लेकिन अलकराज ने शानदार पासिंग शॉट्स से उनकी रणनीति असफल कर दी। नोवाक ने पहले दो सेट आसानी से गंवा दिए।

दो,उनका एक और मोमेंट तीसरे सेट में तब आया जब अलकराज 5-4 की बढ़त और 40-0 पर तीन पर तीन चैंपियनशिप पॉइंट के साथ सर्विस कर रहे थे तो नोवाक ने ना केवल ड्यूस किया बल्कि अलकराज की सर्विस ब्रेक भी की। सेट टाई ब्रेक में गया और अलकराज ने अपना संतुलन बनाये रखकर नोवाक को कोई मौका नहीं दिया। उन्होंने टाई ब्रेक 7-4 से जीतकर एक और ऐतिहासिक जीत अपने नाम की।

पिछले एक साल में अलकराज कुछ अधिक अनुभवी हो चुके थे। और फ्रेंच ओपन की जीत का उत्साह उनके साथ था। अपनी गति,शक्ति और मानसिक दृढ़ता,शानदार सर्विस और शक्तिशाली पासिंग और ग्राउंड स्ट्रोक्स के बल पर अर्जित की गई ये जीत उम्रदराज होते नोवाक पर शायद ये उनकी निर्णायक जीत साबित हो। 

ये युवा जोश की अनुभव पर जीत थी। अलजराज की ये जीत फेबुलस फोर के युग की समाप्ति की घोषणा भी सिद्ध हो सकती है। फेबुलॉस फोर के वे एकमात्र स्तंभ बचे हैं जो अभी भी चुनौती पेश कर रहे हैं। अपने कंधे पर ये बोझ कब तक उठा पाएंगे,ये देखना निसंदेह रोचक होगा। वे नए के आगमन का रास्ता आखिर कब तक रोक पाएंगे। नया पानी की तरह अपना रास्ता बना ही लेता है। शायद उसने बना लिया है।

स्पेन के अलकराज मेड्रिड फुटबॉल क्लब के दीवाने हैं। प्रेजेंटेशन सेरेमनी के उद्बोधन में जब उनसे पूछा गया कि यूरो कप के फाइनल में आप किसी जीतते देखना चाहेंगे,तो उनका स्वाभाविक उत्तर स्पेन था।

अब यूरो कप का फाइनल उनका इंतजार कर रहा था।


यूरो कप का ये फाइनल बर्लिन में स्पेन और इंग्लैंड के मध्य खेला जाना था। इस मैच में स्पेन की साख दांव पर थीं तो इंग्लैंड की उम्मीदें दान। स्पेन चौथी बार जीतकर एक नए रिकॉर्ड के साथ अपनी साख बनाए रखना चाहता था,तो इंग्लैंड पिछले यूरो के फाइनल की हार को जीत में बदलकर ना केवल 1966 के गौरव को पुनरप्रतिष्ठित करना चाहता था जब उसने विश्व कप जीता था,बल्कि 58 साल के जीत के सूखे को भी खत्म करना चाहता था। ये मुकाबला अलग अलग शैली और रणनीति का भी था। स्पेन ने पूरी प्रतियोगिता के दौरान छोटे छोटे वन टच पासों के साथ कलात्मक और सुंदर फुटबॉल खेली थी,जबकि इंग्लैंड ने नीरस लेकिन शक्तिशाली फुटबॉल का प्रदर्शन किया था।

ये मैच भी बिल्कुल ऐसे ही खेला गया। स्पेन ने शानदार और सुंदर खेल दिखाया और मैच 2-1 से जीत लिया। इसमें कोई शक नहीं है कि इंग्लैंड बहुत ही प्रतिभाशाली खिलाड़ियों वाली टीम है जो साउथगेरेट  के निर्देशन में बेहतरीन करती रही है। वे बैक टू बैक दो यूरो कप के फाइनल में पहुंचे। इसके अलावा एक विश्व कप के क्वार्टर फाइनल और एक के सेमीफाइनल में पहुंची। इंग्लैंड की टीम के साथ समस्या ये है कि वो प्रतिभाशाली खिलाड़ियों का एक ऐसा समूह है जिसे एक टीम के रूप में संगठित होना बाकी है। जिस दिन ऐसा होगा वो एक अजेय टीम बन सकती है।

लेकिन स्पेन ने इस पूरी प्रतियोगिता में शानदार और सुंदर खेल का प्रदर्शन किया। वे जीत के हकदार थे और जीते।



जिस समय यूरोप में फुटबॉल की ताकतों की ज़ोर आजमाइश खत्म हुई,उसके कुछ समय बाद ही वहां से दूर एक दूसरे महाद्वीप की धरती पर एक और फाइनल खेला जाने वाला था। ये कोपा कप का फाइनल था। यहां मुकाबला केवल कोलंबिया और अर्जेंटीना के बीच भर नहीं था बल्कि अर्जेंटीना के मार्टिनेज और अकेले अपने दम पर अपने देश कोलंबिया को फाइनल तक पहुंचाने वाले के जेम्स रोड्रिग्स के बीच मुकाबला भी था।

मैच रेगुलर समय में गोलरहित रहने पर अतिरिक्त समय मे गया। जब ये लगा कि मैच पेनाल्टी शूट आउट में जाने वाला है तभी मार्टिनेज के बूट से एक और गोल आया। अर्जेंटीना रिकॉर्ड 16 वीं बार कोपा कप जीत रही थी।

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खेलों की सबसे खूबसूरती उसकी अनिश्चितता में है। कमजोर पक्ष के या जिनकी जीतने की कम संभावना होती है वे भी जीत सकते हैं। इन तीनों फाइनल में एक बात समान थी कि जिनके पहले से जीतने की संभावना अधिक थी,जो बेहतर पक्ष थे,वे ही जीते। वे चाहे अलकराज हों, स्पेन हो या अर्जेंटीना। ऐसा नहीं है कि नोवाक या इंग्लैंड या कोलंबिया नहीं जीत सकते थे। वे भी जीत दर्ज़ करने में सक्षम थे। लेकिन ऐसा हो ना सका। जो भी हो तीनों ही फाइनल में बेहतर पक्ष की जीत हुई।

अलकराज,टीम स्पेन और टीम अर्जेंटीना को जीत मुबारक।




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