Sunday, 30 June 2024

टी-20क्रिकेट विश्व कप और भारत की जीत





कल रात खेल मैदान के दो सबसे पसंदीदा युग्म टूट रहे थे। एक दुःख का बायस दूसरा सुख का। एनबीए की गोल्डन स्टेट वॉरियर्स टीम सबसे पसंदीदा और स्टीफन करी व क्ले थॉमसन का युग्म सबसे प्रिय। क्ले थॉम्पसन अब वॉरियर्स छोड़ रहे हैं। एक शानदार जोड़ी टूट रही है। एक जादू खत्म हो रहा है। वॉरियर्स के लिए एक युग का समापन हो रहा है। इस जोड़ी ने बीते सालों में वॉरियर्स को चार बार चैंपियन बनाने में अहम भूमिका अदा की।

 लेकिन सुख की इस बेला में दुःख की बात क्यों। आज बात सबसे पहले विराट और रोहित के युग्म की,लेकिन अलग अलग। क्योंकि ये दोनों दो अलग अलग शैली और अप्रोच वाले खिलाड़ी हैं जो मिलकर एक असाधारण योग्यता वाला युग्म बनाते हैं। 

एक, कहावत है 'फॉर्म अस्थायी होती है, स्थायी होती है क्लास'। ये विराट ने एक बार फिर सिद्ध किया। विराट ने कल विश्व कप के फाइनल में एक शानदार पारी खेली। ये परिस्थिति के अनुरूप खेली गई अव्वल दरजे की पारी थी। दी गई परिस्थिति में इससे बेहतर पारी हो ही नहीं सकती थी। चाहे कितना भी टी-20 का खेल हो,आप हर बार दो सौ की स्ट्राइक रेट से रन नहीं बना सकते। खेल में गेंदबाज भी होते हैं और वे 'मिट्टी के माधो' तो नहीं ना होते। 












दरअसल विराट की ये पारी इसलिए भी हमेशा याद रखी जाएगी कि उन्होंने कोई लप्पेबाजी नहीं की,बल्कि शानदार क्लासिक क्रिकेटिंग शॉट्स खेल कर पूरी की। उनकी इस पारी ने बताया कि टी-20 के खेल में भी क्रिकेटिंग शॉट्स लगाकर पारी बिल्ट अप की जा सकती है और मैच जिताए जा सकते हैं। 

बेतरतीब लप्पेबाज़ी और हिटिंग से मरते क्रिकेट खेल वाले समय में विराट की क्रिकेटिंग शॉट्स और सेंस से बनी ये पारी किसी मधुर संगीत की तरह आने वाले लंबे समय तक कानों में गूंजती रहेगी और किसी शास्त्रीय नृत्य की तरह आंखों और मन को तृप्त करती रहेगी। भले ही आज के टी-20 फॉर्मेट के लिहाज से विराट का खेल अप्रासंगिक हो गया हो लेकिन इस फॉर्मेट में भी क्रिकेट की शास्त्रीयता और कलात्मकता बचाने के लिए विराट को लंबे समय तक याद किया जा सकता है।

और उनका टी 20 को विदा कहने का इससे शानदार अवसर और क्या हो सकता था। वे एक विश्व कप के फाइनल में जिताऊ मैन ऑफ मैच पारी खेलकर टी 20 को विदा कह रहे थे। ऐसा सौभाग्य कितने खिलाड़ियों के भाग्य में होता है। कितने खिलाड़ियों पर ईश्वर की ऐसी इनायत होती है। 

अब हम भी अब इस फॉर्मेट में विराट रखी गईं अपनी अपेक्षाओं को विदा करते हैं। लेकिन हमारी अपेक्षाएं जानती हैं और इसलिए सलामत भी हैं कि क्रिकेट के बाकी फॉर्मेट में विराट के बल्ले से अभी भी बहुत कुछ चमकीला,सरस,दर्शनीय और यादगार आना बाकी है।


दो, कहावत है पैसे से बहुत कुछ खरीदा जा सकता है लेकिन सब कुछ नहीं खरीदा जा सकता। पैसे से क्रिकेट टीम खरीदी जा सकती है,लेकिन क्रिकेटिंग सेंस नहीं खरीदा जा सकता। योग्यता का सम्मान करना नहीं सीखा जा सकता। सद्व्यवहार नहीं खरीदा जा सकता। दरअसल जिंदगी में कुछ चीजें खरीदी नहीं जाती बल्कि अर्जित की जाती हैं। और अर्जित करना हर के बूते की बात कहां होती है।

रोहित ने बताया वे एक शानदार नेतृत्वकर्ता करता हैं,लीडर हैं,नायक हैं। वे खुद आगे बढ़कर जिम्मेदारी लेते हैं और खिलाड़ियों को प्रेरित करते हैं। आइपीएल में भी वे मुंबई इंडियंस को चेन्नई सुपर किंग के समानांतर सबसे सफल टीम के रूप में खड़ा करते हैं और धोनी जैसे महान कप्तान की आंखों में आंखें डालकर बात करने का माद्दा रखते हैं। इसके बावजूद उन्हें कप्तानी से हटाने की बात मायोपिक सोच रखने वाला धनपशु ही सोच सकता है। दरअसल पैसा अक्ल की आंख पर पड़ी कैटरेक्ट की वो झिल्ली है जिससे लोगों को बड़े बड़े अक्षरों में लिखी इबारत भी साफ नहीं दीखती।

रोहित को कप्तानी से हटाकर उन्हीं के नायब को कप्तान बनाकर उन्हें बेइज्जत करने की कोशिश करने वाले रोहित को विश्व कप हाथ में उठाए देखकर अपने दुष्कर्म पर पानी-पानी जरूर हो रहे होंगे। और अगर नहीं हो रहे होंगे तो उन्हें होना चाहिए।

इस जीत ने रोहित को भी कपिल पाजी और धोनी भाई जैसे लीजेंड्स की श्रेणी में ला खड़ा किया है। ऐसी जीत किसी को भी अविस्मरणीय बना देती है। रोहित भी अब इतिहास के पन्नों पर सजे मिलेंगे। इस जीत के लिए उन्हें हमेशा याद किया जाएगा। वे टीम के खिलाड़ी हैं। टीम के लिए खेलते हैं। हर स्वार्थ से परे। ये उन्हें औरों से अलगाती है। विशिष्ट बनाती है। सुंदर बनाती है। 

रोहित को एक विश्व विजेता टीम के कप्तान के रूप में तो याद किया ही जाना है। लेकिन इससे अधिक उन्हें एक दूसरी वजह से याद किया जाना चाहिए। उनके खिलंदड़ेपन के लिए। उनकी एमेच्योर अप्रोच के लिए। आज के खेल इस कदर फिटनेस फ्रीक, सिस्टेमेटिक, वैज्ञानिक अप्रोच वाले और तकनीकी हो गए हैं कि रोहित जैसे शरीर वाले खिलाड़ी अजूबे लगते हैं। 

 रोहित और उनके खेल की यही खूबसूरती है कि खेलों के प्रोफेशनल युग में एमेच्योर खिलाड़ी की तरह खेलते हैं। उनकी स्मित मुस्कान और खिलंदड़ापन ताजी हवा के झोंके का अहसास देती है। उनकी प्रयास रहित और स्वाभाविक बल्लेबाजी आंखों और मन के लिए किसी ट्रीट के कम नहीं। उनका एमेच्योर लुक और एफर्टलेस खेल सिक्स पैक वाली फिटनेस फ्रीक और शुष्क तकनीकी और वैज्ञानिक अप्रोच से विशाल रेगिस्तान बने खेल मैदान में किसी नखलिस्तान की तरह नमूदार होते हैं। वे डेविड बून और इंजमाम उल हक की परंपरा में आते हैं।


तीन
,जिस समय रोहित को ह्यूमिलेट करने का प्रयास किया जा रहा था ऐन उसी वक्त एक खिलाड़ी खेल और रोहित के चाहने वालों द्वारा हकीकत में ह्यूमीलेट हो रहा था। ये हार्दिक पांड्या थे। इस साल के पूरे आईपीएल सीजन में मुंबई के दर्शकों का शिकार बने रहे। उन्हें दर्शकों द्वारा लगातार बू किया जाता रहा। लेकिन मजाल उसके चेहरे पर शिकन आई हो। अपेक्षाओं के दबाव और ह्यूमिलेशन में ना तो उसका बल्ला चला और ना गेंद। पर योग्यता स्थायी होती है।      
इस विश्व कप में उनका बल्ला भी चला और गेंद भी बोली। जीत में उनका योगदान भी कम नहीं। आईपीएल के दौरान रोहित और हार्दिक के मनमुटाव की खबरें आ रही थीं। दरअसल चंडूलखाने की खबरों पर कान नहीं धरने चाहिए। रोहित ने सबसे ज्यादा भरोसा हार्दिक पर किया और सेमीफाइनल और फाइनल में आखरी ओवर कराया और वे उस भरोसे पर खरे उतरे। विश्व कप जीतने के बाद जब हार्दिक की आंखों से पानी बह रहा था उसमें जीत की खुशी की मिठास भर नहीं बह रही थी,बल्कि आईपीएल के दौरान मिले ह्यूमिलेशन का खारापन भी बह रहा था। उन्हें इस तरह देखना एक अनोखा अहसास था।

और हां याद आया, जिस समय  हार्दिक अपने कैरियर की उठान पर थे,उस समय लेखक पत्रकार अनुराग शुक्ल ने  हार्दिक को कपिल देव का वारिस बताते हुए उनकी प्रसंशा में एक पोस्ट लिखी थी। तब मैंने उनकी कटु आलोचना करते हुए एक लंबी टिप्पणी उनके कमेंट बॉक्स में लिखी थी कि 'कहां राजा भोज और कहां गंगू तेली'। दरअसल ये दो अलग नजरिए की बात थी। वे हार्दिक की योग्यता की बात कर रहे थे और मैं कपिल के भारतीय क्रिकेट को समूचे योगदान की बात कर रहा था। आज जब हार्दिक ने अपने को एक शानदार ऑल राउंडर के रूप में स्थापित कर लिया है और इस विश्व कप को जिताने में बहुमूल्य योगदान किया है तो मुझे बरबस ही उस कठोर टिप्पणी पर खेद होता है। लेकिन सबसे उल्लेखनीय है ये है कि सोशल मीडिया पर फैली नकारात्मकता और असहिष्णुता के बावजूद भी अनुराग भाई ने  उस टीप को ना केवल बहुत ही सकारात्मकता से लिया बल्कि उस लंबी टीप को प्रसंशा के साथ एक स्वतंत्र पोस्ट के रूप में लगाई थी। ये एक बेहद सुखद अहसास था और है।


चार, भारत की ये जीत उस देवतुल्य खिलाड़ी की बात किए बिना कहां पूरी होगी जिसने चौकों छक्कों और रनों की बरसात वाले फॉर्मेट में रनों की अतिवृष्टि से टीम इंडिया को  अपनी गोवर्धन पर्वत सरीखी गेंदबाजी से ना केवल टीम को हार से बचाया बल्कि उसे उसके मुकाम तक पहुंचाया। ये जसप्रीत बुमराह हैं। वैसे तो पूरा क्रिकेट ही और विशेष रूप से टी-20 फॉर्मेट,उसके नियम और उसका पूरा एनवायरमेंट बल्लेबाजों का खुल्लमखुल्ला समर्थन करता है। और ऐसे विपरीत माहौल में कोई गेंदबाज अगर महफिल लूट ले जाता है और मैन ऑफ द टूर्नामेंट का खिताब उड़ा ले जाता है तो समझा जा सकता है उसने क्या कमाल किया है और जीत में उसका क्या योगदान है। जसप्रीत ने ना केवल फाइनल में शानदार गेंदबाजी की और क्रिटिकल समय पर विकेट निकाला बल्कि पूरे टूर्नामेंट में 4.2 रन प्रति ओवर की दर से गेंदबाजी की। आधुनिक क्रिकेट में इस औसत से गेंदबाजी करना वन डे तो क्या टेस्ट मैच में भी मुश्किल होता है। लेकिन बूमराह ऐसे ही खिलाड़ी हैं जो अपनी गेंद से अपने चाहने वालों के लिए एक सिंफनी रचते हैं और बल्लेबाजों के लिए एक दुस्वप्न बुनते हैं।

पांच,आपने एक कहावत सुनी होगी सौ सुनार की एक लुहार की। दक्षिण अफ्रीका के बल्लेबाजों के चौकों छक्कों की ढेर सारी चोटों पर सूर्याकुमार यादव ने अपने एक अविश्वसनीय और अद्भुत कैच से ऐसी चोट की जो लुहार की चोट साबित हुई। उन्होंने पूरी प्रतियोगिता के दौरान शानदार बल्लेबाजी की लेकिन फाइनल में वो नहीं चला। पर एक कैच भर से एक हार को जीत में बदल दिया। 360 डिग्री शॉट्स से ए बी डीविलियर होने का खिताब उन्हें मिल चुका है। ये कैच लेकर उन्होंने अपने को जोंटी रोड्स भी सिद्ध किया। क्या ही विडंबना है या संयोग है या फिर दुर्योग है कि विपक्षी टीम के दो लीजेंड्स के खिताब पाकर वे उन्हें ही परास्त कर देते हैं।

छह, बात ऋषभ पंत की वापसी की। उनकी अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में वापसी किसी चमत्कार से कम नहीं।  एक इतनी भीषण सड़क दुर्घटना से जिससे जीवन की वापसी भी चमत्कार से कम नहीं था,वहां खेल के मैदान में शानदार वापसी उनकी दुर्धुष जिजीविषा तो है ही, बहुतों के लिए प्रेरणा भी और जिंदगी की एक खूबसूरत शै भी। उनकी इस वापसी को टीम इंडिया की इस जीत से ख़ूबसूरत और अविस्मरणीय और क्या हो सकती है।

सात, और ये भी कि हर सफलता के पीछे खिलाड़ियों की अपनी योग्यता के साथ साथ एक गुरु का परिश्रम,लगन और उसका ज्ञान होता है। टीम द्वारा कोच राहुल द्रविड़ को इस विदाई बेला में इससे शानदार गुरु दक्षिणा और कुछ हो भी नहीं सकती थी।


ये वैयक्तिक कसीदे  इस बात की ताईद ना समझे जाएं कि ये जीत कुछ खिलाड़ियों के व्यक्तिगत प्रयासों की जीत है। ये एक टीम की, टीम के प्रयास की जीत है। उनके सामूहिक एफर्ट की जीत है। एकजुटता की जीत है। उनके ज़ज्बे की जीत है। जिस किसी ने भी रोहित को मैच के बाद मैदान से गुफ्तगू करते देखा सुना होगा,जिस किसी ने भी खिलाड़ियों की आंख से बहते आंसू देखे होंगे, वे समझते होंगे कि खिलाड़ी के जीवन में एक जीत क्या मायने रखती है। यहां 'कैप्टन कूल' के बरस्क 'कैप्टन इमोशनल' को देखिए। कौन सा अंदाज आपको भाता है।

जिस तरह एक जीत खिलाड़ियों के लिए मायने रखती है। एक हार भी खिलाड़ियों के लिए बिल्कुल वैसी ही तीव्रता वाली लेकिन विपरीत संवेदना और जज्बात वाली होती है। ये एक तयशुदा तथ्य है। ये वो समय होता है जब मन के भीतर मिश्रित भावनाओं का उद्रेक होता है। कभी खुशी कभी ग़म।
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दरअसल खेल ऐसे ही होते हैं। खेल अगर उसके दीवानों की भावनाओं से खिलवाड़ ना करें तो वे काहें के खेल।  (क्षमा केशव भाई)। खेल इतिहास को इस बात की सहूलियत देते हैं कि वो हारने वाले और जीतने वाले दोनों की गाथाएं लिखे। 

और तब इतिहास हारने वाले के आंसुओं पर नज़्म लिखता है, निराशाओं की आंधियों पर त्रासदी रचता है और खामियों पर पोथी। और ठीक उसी समय जीतने वालों की खूबियों पर आल्हा रच रहा होता है। उनकी जीत की खुशियों पर समंदर की लहरों से झूम झूम कर गाए जाने वाले तराने लिख रहा होता है और प्रशंसा में महाकाव्य। 

अब गाथाएं दोनों की लिखी जाएंगी। भारत की भी और दक्षिण अफ्रीका की भी। दोनो की झोली में कुछ आएगा ही। भारत को विश्व विजेता का तमगा मिलेगा और दक्षिण अफ्रीका के हिस्से चोकर्स होने का कलंक।

लेकिन है तो ये खेल का मैदान ही। तो क्यों ना हम किसी की हार में उतने ही सहभागी हैं जितने वे खुद। हम उनकी हार में उतने ही गमगीन हों जितने किसी की जीत से उल्लसित।

फिलवक्त जीत मुबारक।

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