आकाशवाणी में जिन बहुत ही प्रतिभाशाली युवाओं के साथ काम करने का अवसर मिला उसमें से एक है मेहेर वान राठौर। उनसे पहली मुलाकात आकाशवाणी इलाहाबाद में हुई जब वो युववाणी के प्रस्तुतकर्ता के रूप में आकाशवाणी से जुड़े। वे मितभाषी थे लेकिन उनका सहज,सरल और सौम्य व्यवहार किसी को भी अपनी और आकर्षित करता था। ये बात काबिलेगौर है कि मितभाषी होने के बाद भी उन्होंने रेडियो पर बोलने के कार्य का चयन किया।
दरअसल वो बंदा ही ऐसा था जो लीक से हटकर और चुनौतीपूर्ण कार्य पसंद करता था। इलाहाबाद आने वाला लगभग हर छात्र सरकारी नौकरी हेतु प्रतियोगिताओं की तैयारी करता है। लेकिन मेहेर वान इलाहाबाद आए उन थोड़े से अपवादों में से एक थे जिनका लक्ष्य प्रशासनिक सेवाओं में चयनित होना नहीं था। उनका विज्ञान से लगाव ज़ाहिर था और शोध कार्य कर रहे थे। अगर मैं सही हूँ तो ये कार्य वे अपने पिता की इच्छा के विरुद्ध कर रहे थे। एक अर्थ में वो स्वयं 'विनम्र विद्रोही' थे।
ये उन दिनों की बात है जब भारत में पहचान पत्र 'आधार कार्ड' की शुरुआत हुई ही थी । मेहेर वान ने उस समय पहचान पत्र पर एक बहुत ही शानदार शोधपरक पुस्तक लिखी थी जिसमें दुनिया के करीब करीब हर देश के पहचान पत्रों के साथ-साथ भारत की इस महत्वाकांक्षी योजना के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी दी गयी थी। क्योंकि मेहेर वान की रुचि विज्ञान अनुसंधान और उसके प्रचार प्रसार में थी तो एक तरफ तो वो इलाहाबाद से आईआईटी खड़गपुर में नैनो टेक्नोलॉजी में रिसर्च करने गए और दूसरी ओर विज्ञान से संबंधित विषयों पर लेखन और अनुवाद करने लगे। उनके जो महत्वपूर्ण कार्य हैं उनमें आइंस्टीन के कुछ पत्रों का अनुवाद भी शामिल है।
अभी हाल ही में उनकी सम्पादित,अनुदित और लिखित कई पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं। इनमें एक है भारत के प्रख्यात गणितज्ञ श्रीनिवास राजानुजन की जीवनी 'विनम्र विद्रोही'। इसे उन्होंने भारती राठौर के साथ लिखा है। इसे अभी पढ़कर खत्म किया है। कहना ना होगा ये एक महान व्यक्तित्व पर शानदार काम है।
इस किताब की दो खूबियां जरूर रेखांकित होनी
चाहिए।
एक, इसकी भाषा। बहुत ही सहज सरल लेकिन बहुत ही लालित्यपूर्ण और बिम्बात्मक। कितनी ही बात वे सूत्र रूप में कहते हैं। कितनी ही सूक्तियां आप इस पुस्तक से उदाहरण के तौर पर दे सकते हैं। मसलन वे अपनी बात शुरुआत ही करते हैं - 'विलक्षण रूप से प्रतिभावान होना एक प्रकार की त्रासदी है'। गणित के इस महानायक की बात करते करते उनकी भाषा बेहद काव्यात्मक हो जाती है। अक्सर लगता है कोई कविता पढ़ी जा रही है। रामानुजन जैसे असाधारण व्यक्तित्व और उसके जीवन को रेखांकित करने के लिए इसी तरह की समर्थ भाषा की दरकार होती है। निसंदेह ये एक मर्मस्पर्शी 'त्रासदी' है।
दो,इसमें केवल रामानुजन का जीवन,उनके संघर्ष,उनके जीवन की त्रासदी और उनकी उपलब्धियों का प्रामाणिक और शोधपरक लेखा जोखा है ही साथ ही उनका पूरा सामाजिक सांस्कृतिक परिवेश है। इतिहास और भूगोल तो है ही। जब आप ये जीवनी पढ़ रहे होते हैं तो पाठक को लगता है कि वे एक दक्षिण भारतीय व्यक्तित्व से ही रूबरू हो रहे हैं। ये केवल रामानुजन के जीवन की घटनाओं का प्रामाणिक दस्तावेज ही नहीं बल्कि तत्कालीन समय और समाज का भी दस्तावेज है।
फिलहाल ये पुस्तक वैली ऑफ वर्ड्स पुरस्कार हेतु नॉन फिक्शन कैटेगरी में नामांकित हुई है।
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लेखक द्वय को हिंदी में एक बहुत ही महत्वपूर्ण व्यक्तित्व पर एक महत्वपूर्ण किताब के लिए बहुत बधाई।
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