Wednesday, 12 June 2024

सुनील छेत्री

 



समय गौधूलि। दिन गुरुवार। दिनांक 6 जून। सन 2024।  स्थान भारतीय फुटबॉल का मक्का कोलकाता का बिबेकानंद जुबा भारती क्रीडांगन स्टेडियम। मने सॉल्ट लेक स्टेडियम।


इस स्टेडियम के भीतर शोर 120 डेसीबल हुआ जाता है। 68 हज़ार से भी ज़्यादा दर्शक उत्साह के चरम पर हैं। एक नीला समुद्र उमड़ आया है। लेकिन जैसे यहां का मौसम गरम होते हुए भी आर्द्रता से सीला सीला हुआ जाता है,वैसे ही दर्शक उछाह के उच्चतम बिंदु पर होने के बावजूद विदाई की करुणा से भीग रहे हैं। 


वे भारतीय फुटबॉल के एक युग के समापन के साक्षी बन रहे हैं।  


 आज इस शहर में एक नहीं दो सूरज अस्त हो रहे हैं। एक वो जो साल्ट लेक स्टेडियम की दीवारों से परे पश्चिम दिशा में विलीन हुआ जाता है। और एक वो जिसका स्टेडियम के भीतर 110 × 70 मीटर के मैदान में 90 मिनट में अवसान हुआ जाता है।


वे 19 साल से भारतीय फुटबॉल के सिरमौर बने भारतीय फुटबॉल के सबसे चमकदार सितारे को राष्ट्रीय टीम से खेलते हुए अंतिम बार देख रहे हैं।

भारतीय राष्ट्रीय फुटबॉल के कप्तान और सबसे शानदार फारवर्ड सुनील छेत्री अपना अंतिम मैच विश्व कप क्वालीफ़ायर में कुवैत के विरुद्ध खेल रहे हैं।


भारतीय टीम के लिए आज का मैच किसी जलसे से कम नहीं। उसके खिलाड़ी नई जर्सी पहने हुए हैं। ये क्लासिक ब्लू रंग की जर्सी है जिसमें फेडेड लायन स्ट्राइप्स बनी हैं। भारतीय फुटबॉल संघ और स्टारमैक्स एक्टिववियर ने खास इस मौके के लिए बनाया है। 


खिलाड़ियों से लेकर दर्शक तक एक ही भावना से ओतप्रोत हैं 'हमारी दहाड़ सुनो'(hear us roar)। मैच शुरू हो गया है। जैसी शुरुआत भारतीय चाहते थे, वैसी हुई नहीं। बॉल उनके हाथ लग ही नहीं रही है। लेकिन जैसे ही भारतीय खिलाड़ी गेंद को छू भर लेते हैं स्टेडियम गूंज उठता है। 12वें मिनट में भारतीय खिलाड़ी एक मूव बनाते हैं और कॉर्नर अर्जित करते हैं। अनवर अली बॉक्स से शानदार हैडर लगाते हैं, पर बॉल गोलपोस्ट से कुछ ऊपर से चली जाती है। अपने हीरो की शानदार विदाई का ये मैच का सबसे अच्छा अवसर था। पर मौका हाथ से फिसल जाता है।


अंततः मैच बिना गोल के अनिर्णीत समाप्त हो जाता है। जैसी विदाई सुनील छेत्री की होनी चाहिए, वैसी हो नहीं पाती। लेकिन इससे फर्क क्या पड़ता है। इससे उसकी महानता कम तो नहीं हुई जाती। उसका चमकदार कैरियर तो फीका नहीं हुआ जाता। कहां कुछ फर्क पड़ता है उसके साथी खिलाड़ियों पर और स्टेडियम में मौजूद 68 हज़ार दर्शकों पर।


 मैच खत्म हो गया है पर वे अभी भी डटे हैं।


सुनील अब मैदान के चारों और चक्कर लगा रहे हैं अपना आभार प्रकट करने के लिए और स्टेडियम 'छेत्री छेत्री' के गहरे शोर में डूब जाता है। उसके साथी दो कतार में खड़े उसका इंतजार कर रहे हैं। अब वे उसे गार्ड ऑफ ऑनर दे रहे हैं। सुनील के भीतर का बच्चा है कि किलक किलक जाता है। वे रोने लगते हैं। ये वो ही बालक है जिसे के लिए वे कहते हैं कि 'मेरे भीतर एक बच्चा है जो अभी और फुटबॉल खेलना चाहता है।' वो बच्चा मचल उठा है। अभी और फुटबॉल खेलना चाहता है। पर निर्णय लेने पड़ते हैं। वे खिलाड़ियों की दो पंक्तियों के बीच से आगे बढ़ते हैं। एक बार फिर हाथ जोड़ते हैं। और  फिर अदृश्य हो जाते हैं। एक सूरज दिन की यात्रा करके क्षितिज पार जा चुका है। एक सूरज अपना कैरियर पूरा कर मैदान की साइड लाइन के पार दर्शकों की भीड़ के बीच ओझल हो चुका है।  

 

फुटबॉल के एक युग का अवसान हो गया है।


वो सबकी आंखों से ओझल ज़रूर हो गया है लेकिन अपने पीछे एक ऐसी लीगेसी छोड़ गया जिसकी बराबरी कहां कोई कर पायेगा। एक ऐसी लीगेसी जिस पर वो खुद गर्व कर सकता है और हर भारतीय फुटबॉल का चाहने वाला भी।


2005 में पाकिस्तान के विरुद्ध 20 साल के युवा सुनील ने अपने अंतरराष्ट्रीय कैरियर की शुरुआत  की थी और अपना पहला गोल भी। उसके बाद उसने कहां पीछे मुड़कर देखा। अपने घोर अनुशासन, लगन और अभ्यास से  वो गोल मशीन बन जाता है। उसके पैर का जादू उसे मिले पास को गोल में तब्दील कर देता है। वो अपने कैरियर में कुल 94 अंतरराष्ट्रीय गोल करता है। ये केवल और केवल तीन खिलाड़ियों से कम है। रोनाल्डो,ईरान के अली देइ और मेस्सी से।


 1983 में  भारत क्रिकेट का विश्व कप जीत रहा होता है। क्रिकेट आशातीत रूप से लोकप्रियता हासिल कर रहा होता है और एक एलीट खेल से आम आदमी का खेल बन रहा होता है। हॉकी व फुटबॉल जैसे लोकप्रिय खेल नेपथ्य में चले जाते हैं। एक साल बाद 1984 में सिकंदराबाद में एक सैन्य अधिकारी के घर सुनील छेत्री का अवतरण होता है। उसे फुटबॉल की लीगेसी प्राप्त होती है। उसके पिता सेना की टीम के लिए फुटबॉल खेल रहे होते हैं और मां नेपाल की टीम के लिए। उस समय जब बच्चे क्रिकेट की ओर भाग रहे होते हैं,कान्वेंट में पढ़ने वाला ये बालक फुटबॉल को चुनता है और सफलता की नई परिभाषा गढ़ता है।


वो दार्जिलिंग में फुटबॉल का ककहरा सीखता है। मोहन बागान से 2002 में क्लब से कैरियर की शुरुआत करता है। और फिर जेसीटी फगवाड़ा होते हुए अंततः बंगलुरू एफसी से जुड़ जाता है। क्या ही कमाल है आरसीबी का विराट उसका सबसे अच्छा दोस्त होता है। दोनों अपने अपने फन  के उस्ताद खिलाड़ी। फिटनेस फ्रीक,बेहद लगनशील और बेहद अनुशासित भी।


बेंगलुरु जो क्रिकेट का गढ़ है,उसमें सुनील फुटबॉल का परचम लहराता है। जिस शहर में विराट कोहली का डंका बज रहा हो उसी शहर में वो खुद भी लोकप्रियता हासिल करता है। ये सुनील का ही कमाल है कि वो एक आमजन के खेल को एलीट क्लास में भी लोकप्रिय बना देता है।


पुराने समय की फुटबॉल के बाद जिस नई फुटबॉल के पहले स्टार बाइचुंग भूटिया होते हैं, उसके सुनील छेत्री सुपर स्टार बन जाते हैं। भले ही हमारे पास कोई मेस्सी,रोनाल्डो,बापे या हॉलैंड ना हो लेकिन आप गर्व कर सकते हैं कि आपके पास सुनील छेत्री है। हमारा रोनाल्डो भी सुनील है और मेस्सी भी। 


भले ही अब राष्ट्रीय टीम में ना दिखाई दो पर तुम हमारे 'सोनार सोनील' हो और हम 'तोमि हृद माजरे राखबो।'


लव यू सुनील। लव यू छेत्री।

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