आज जब सुनील छेत्री का सन्यास लेने वाला वक्तव्य सुना तो अनायास ही जाने माने कथाकार सुभाष पंत सर याद आ गए। मैं उन्हें अपने साहित्यिकी कार्यक्रम के लिए बुलाना चाहता था। लेकिन वे कोई कोई बहाना कर स्टूडियो आना टाल रहे थे। कई महीने बाद भी जब वे आने के लिए तैयार नहीं हुए तो मैने उनसे पूछा 'क्या वे नाराज हैं।' तो उन्होंने कहा ऐसा नहीं है कि 'मैं नाराज हूं या नया कुछ नहीं लिख रहा। बल्कि मुझे लगता है कि मैं आकाशवाणी पर बहुत बोल चुका। अब नए युवा साहित्यकारों को मौका मिलना चाहिए।'
सुनील अपने वक्तव्य में कुछ ऐसा ही कह रहे थे। वे कह रहे थे कि ऐसा नहीं है कि 'मैं थक गया हूं या कुछ ऐसा वैसा सोच रहा हूं। बल्कि मैं चाहता कि युवा खिलाड़ियों को मौका मिले और उन्हें ग्रूम किया जाए।'
दरअसल उन पर भी उम्र फिदा है। 39 साल की उम्र में भी वे शानदार फुटबॉल खेल रहे हैं। लेकिन उन्हें भारतीय फुटबॉल की और उसके भविष्य की भी चिंता है। वे चाहते है अब युवा आगे आएं। असाधारण प्रतिभा का ये खिलाड़ी उच्च विचारों से भी भरा है।
जो भी हो तुम एक खिलाड़ी के रूप में मैदान से विदा हो सकते हो पर यकीन मानो तुम कहीं नहीं जा रहे हो। तुम्हारा एक ठिकाना तुम्हारे प्रशंसकों के दिलों में हमेशा बना रहेगा।
दरअसल हमारे रोनाल्डो,हमारे मेसी,हमारे माराडोना या फिर हमारे पेले भी तुम हो और जरनैल सिंह ढिल्लो,पीके बैनर्जी,बलराम और आई एम विजयन के सच्चे वारिस भी।
हैप्पी रिटायरमेंट।
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