Friday, 9 July 2021

निशाने पर तीर




जब भी पेरिस की बात होती है तो राफेल नडाल,फ्रेंच ओपन और रोलां गैरों की लाल मिट्टी की बात होती है। सेंट जर्मेन फुटबॉल क्लब और उसके अद्भुत खिलाड़ी नेमार की बात होती है। उन गलियों की बात होती जिन गलियों में एमबापे अपराधियों के बीच फुटबॉल के गुर सीखता है और फ्रांस को विश्व चैंपियन बना देता है। 1900 और 1924 के ओलंपिक की बात होती है।

    और साथ ही बात होती है 2024 में होने वाले ओलंपिक की। लेकिन अब से जब भी पेरिस की बात होगी तो दीपिका कुमारी और विश्व तीरंदाजी प्रतियोगिताओं में उनके शानदार प्रदर्शन की भी बात होगी।

    21 से 27 जून तक फ्रांस की राजधानी पेरिस में आयोजित विश्व कप तीरंदाजी स्टेज 3 प्रतियोगिता में उन्होंने स्वर्ण पदकों की हैट्रिक पूरी की। सबसे पहले रिकर्व कैटेगरी में अंकिता भाकत और कोमालिका बारी के साथ महिला टीम का स्वर्ण पदक जीता। उसके बाद अपने पति और कोच अतानु दास के साथ मिश्रित टीम का स्वर्ण और अंत में व्यक्तिगत स्पर्धा का स्वर्ण पदक जीता। हालांकि यहां उल्लेखनीय है कि विश्व नम्बर एक दक्षिण कोरिया, चीन और ताइपे जैसी टीमें इन विश्व कप सीरीज में भाग नहीं ले रही हैं। लेकिन इससे दीपिका की उपलब्धियों का महत्व कम नहीं हो जाता। 

दरअसल वे ऐसा पहली बार नहीं कर रहीं थीं। ये विश्व कप में व्यक्तिगत स्पर्धा का उनका चौथा स्वर्ण पदक था। इससे पूर्व 2012 में अंताल्या में,2018 में साल्ट लेक सिटी में और इसी साल ग्वाटेमाला में भी सोने का तमगा जीत चुकी हैं।

विश्व कप में उनके हिस्से अब तक कुल मिलाकर 10 स्वर्ण,13 रजत और 05 कांसे के तमगे आ चुके हैं। इतना ही नहीं वे अब तक राष्टमंडल खेलों में दो स्वर्ण, एशियाई खेलों में एक कांस्य,एशियाई चैंपियनशिप में एक स्वर्ण, दो रजत और तीन कांसे और विश्व चैंपियनशिप में दो रजत पदक सहित लगभग 40 अंतरराष्ट्रीय तमगे हासिल कर चुकी हैं। 

लेकिन पेरिस में स्वर्ण पदकों की जीत की तिकड़ी सबसे न्यारी है। दरअसल जो शहर खूबसूरती  में चार चाँद लगाने के लिए नित फैशन के नए नए बाह्य उपादान प्रस्तुत करता हो,उस शहर में दीपिका बताती हैं कि वास्तविक सौंदर्य बाहर से नहीं आपके भीतर से उद्भूत होता है।

उनके भीतर के आत्मविश्वास से उनके चेहरे पर फैली ताम्बई आभा बोलती है कि कठिन परिश्रम,दृढ़ इच्छाशक्ति और लगन से ज़िन्दगी की जद्दोजहद के श्याम रंग को जीत के स्वर्णिम रंग में तब्दील किया जा सकता है। कि फर्श से अर्श तक का सफर तय किया जा सकता है। कि एक गांव से रांची तक के 15 किलोमीटर का गुमनामी का  सफर तय करते करते प्रसिद्धि के आकाश का सफर तय किया जा सकता है।

यूं तो संसार भर की स्त्रियां अपने बंधनों को काट फेंक कर अपने सपनों को उड़ान देने की इच्छा से भरी होती हैं। ये बंधन जितने ज्यादा होते हैं इच्छाएं उतनी ही प्रबल और तीव्रतर होती जाती है। शायद इसीलिए दीपिका के मन में अपने सपनों को उड़ान देने की इच्छा ज़्यादा बलवती हुई हो। अपने सपनों को उड़ान देने के लिए उन्होंने तीरों को चुना। दरअसल जब वे अपने धनुष से तीरों को टारगेट पर छोड़ रही होती हैं तो वे केवल अंक हासिल नहीं कर रही होती हैं बल्कि अपने सपनों को मंज़िल पर पहुंचा रही होती हैं। और जब वे अपने तीरों से टारगेट को भेद रही होती हैं तो सिर्फ जीत हासिल नहीं कर रही होती हैं,बल्कि पितृ सत्ता के बंधनों को भी भेद रही होती हैं,समाज की दकियानूसी रूढ़ियों की दीवारों को भेद रही होती हैं और अभावों,परेशानियों और कठिनाइयों से उपजी चुनौतियों को भी भेद रही होती हैं। वे उस चक्रव्यूह को भेद रही होती हैं जिसके आगे अनंत ऊंचाइयों का खुला आकाश है।

दरअसल पेरिस में वे अपने को दोहरा भी रही होती हैं। वे अंताल्या को दोहरा रही होती हैं। याद कीजिए 2012 में लंदन ओलंपिक  से ठीक पहले वे अंताल्या में व्यक्तिगत स्पर्धा में  स्वर्ण पदक जीतती हैं। सबको उनसे ओलंपिक में पदक की उम्मीद होती हैं। पर उम्मीदों के बोझ और बड़ी प्रतिस्पर्धा का दबाव उनके तीरों को निशाने से भटका देता है। वे एक बार फिर पेरिस में ना केवल अंताल्या को दोहरा रही हैं बल्कि उसे और आगे बढ़ा रही हैं। 2012 की तरह ही वे एक बार फिर नंबर एक पर काबिज हो जाती हैं। एक बार फिर उनसे टोक्यो में तमगों की उम्मीद है।

इतना दोहराना तो अच्छा है कि उम्मीदें जगा दी हैं। बस इससे आगे ना दोहराए। लंदन ओलंपिक की पुनरावृत्ति ना हो,बल्कि एक नया मकाम हासिल हो। 

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फिलहाल इस स्वर्णिम तिहरी जीत की दीपिका को बधाई और टोक्यो में नया इतिहास रचने के लिए शुभकामनाएं।



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