हम चाहे जितना प्रोग्रेसिव हो जाँए पर सामंती सोच का एक कीड़ा हमेशा हम सब के दिमाग में मौजूद रहता है। अपने को सबसे ज़्यादा जनतांत्रिक दल मानने वाले मजदूरों के एक वाम दल के एक विधायक जी का एक फोटो वायरल हुआ था जिसमें एक मजदूर खुद धूप में रहते हुए विधायक जी के ऊपर छाता ताने चल रहा था। ये एक उदाहरण भर है।
इसी तरह क्रिकेट और टेनिस जैसे कुछ खेलों का चरित्र बुनियादी तौर पर सामंती है। फटाफट क्रिकेट के साथ क्रिकेट का चरित्र तो बदला है,पर टेनिस में सामंती अवशेष बाकी हैं। खेल के दौरान बॉल उठाते और खिलाड़ियों को बॉल देते बॉल बॉय/गर्ल को तो आपने देखा ही होगा। चलिए इसे खेल के फॉर्मेट की ज़रूरत मान भी लें(हालांकि इतना ज़रूरी है भी नहीं),पर उन्हें हर दो गेम के बाद वाले ब्रेक में खिलाड़ियों के सामने हाथ बांधे या हाथ में तौलिया लिए खड़े देखना आंखों की चुभता ही नहीं है बल्कि दिल में गड़ता भी है। ऐसे दृश्य खेल का हिस्सा कतई नहीं हो सकते।
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दरअसल ड्रेस कोड के नाम पर बाज़ार का सबसे बड़ा शिकार भी महिला टेनिस खिलाड़ी ही बनी हैं।
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