कमबैक मैन ऑफ़ इंडियन क्रिकेट
कुछ फोटो अपनी अंतर्वस्तु में इतने समृद्ध और शक्तिशाली होते हैं कि आइकोनिक बन जाते हैं। वे केवल एक चित्र भर नहीं होते। वे एक पूरी कहानी कहते हैं।वे एक युग का, एक पूरे काल खंड का,एक सम्पूर्ण प्रवृति का प्रतिनिधित्व करते हैं।मोहिंदर अमरनाथ की हुक वाली इस फोटो को देखिए।ये केवल मोहिंदर का या उनके एक शॉट का फोटो भर नहीं है।ये मोहिंदर के पूरे खेल का,उनकी बैटिंग कौशल का, उनके चरित्र का,उनके साहस और आत्मविश्वास का,उनके संघर्ष करने के ज़ज़्बे का,किसी भी परिस्थिति में हार न मानने की ज़िद का और साथ ही साथ क्रिकेट के एक पूरे काल खंड का भी प्रतिनिधित्व करता है।एक ऐसा काल खंड जो क्रिकेट में बल्लेबाज़ों के लिए सबसे कठिन काल माना जाता है।तेज़ गेंदबाज़ों के खौफ का काल।तेज़ गेंदबाज़ों के उस खौफनाक समय में जब सुरक्षा उपकरण अपनी आदिम अवस्था में थे,ये चित्र उस खौफ के विरुद्ध बल्लेबाज़ों के अदम्य साहस का चित्र है।
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कुछ पीछे जाइए।अपनी स्मृति के घोड़े दौड़ाइए। सत्तर और अस्सी के दशक में गौते लगाइए। क्रिकेट को सोचिए और पांच दिनी टेस्ट मैचों को हेराइए। आने को तो बहुत कुछ याद आएगा। लेकिन अगर सबसे ज़्यादा कुछ याद आएगा तो अनिर्णीत और बोरिंग होते टेस्ट मैचों में तेज़ गेंदबाज़ों की रफ़्तार याद आएगी। याद आएगा ये वही समय था जब वेस्ट इंडीज़ की टीम की अपने तेज़ गेंदबाज़ों के दम पर तूती बोलती थी।ये एंडी रॉबर्ट्स,माइकेल होल्डिंग,गार्नर और मेल्कॉम मार्शल की कहर बरपाती गेंदों का समय था। ये जेफ़ थॉम्पसन और डेनिस लिली की आग उगलती गेंदों का समय था। ये इमरान खान,सरफ़राज़ नवाज,कपिल देव,इयान बॉथम,डेरेक अंडरवुड,रिचर्ड हेडली की घातक और मारक इन/आउट कटर/स्विंगर का समय था। गनीमत थी कि दक्षिण अफ्रिका उस समय तक क्रिकेट बिरादरी से बाहर था। और उस पर तुर्रा ये कि बॉलर चाहे जितनी बाउंसर फेंके कोई प्रतिबन्ध नहीं और सुरक्षा उपकरण ना के बराबर।
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यों तो उस समय भी तमाम महान बल्लेबाज़ हुए,पर मोहिंदर उन सब से अलग थे। दरअसल तेज़ गेंदबाज़ों के विरुद्ध उनकी जो अप्रोच थी वो सबसे अलग थी जो उन्हें अपने समकालीन सब बल्लेबाज़ों से अलहदा स्पेशल बनाती है। (सामान्यतः तेज़ गेंदबाज़ जो बाउंसर फेंकते हैं उसके पीछे बल्लेबाज़ के मन में खौफ पैदा करना होता है।बल्लेबाज़ उछाल वाली गेंदों को या तो गेंद की लाइन से अलग हट कर या नीचे बैठ कर विकेट के पीछे जाने देते हैं। ये सबसे आसान और प्रचलन वाला तरीका है। और जब बल्लेबाज़ उसे डक कर जाने देता है तो गेंदबाज़ों के लिए बल्लेबाज़ों का ये जेस्चर उन्हें सबसे सुकून देने वाला होता है।लेकिन मोहिंदर ने ये तरीका नहीं अपनाया।) वे बाउंसर को डक नहीं करना चाहते थे बल्कि हर उछाल वाली गेंद को खेलना चाहते थे और खेलते थे। इसीलिये हुक उनका सबसे पसंदीदा शॉट होता था। ये निसंदेह बहुत साहस की बात होती है।और केवल साहस की बात ही नहीं थी बल्कि तेज़ गेंदबाज़ को सबसे माकूल जवाब भी होता है,सबसे बेहतर काउंटर अटैक। एक तेज़ गेंदबाज़ के लिए इससे ज़्यादा चिढ़ वाली और कोई बात नहीं हो सकती कि उसके सबसे बड़े अस्त्र के विरुद्ध आप डक कर उसकी ताकत को मानने के बजाय आप उसकी आंखों में आँखें डाले खड़े हैं और उसे हुक करके उसको उल्टी चुनौती पेश कर होते हैं,उसके मर्म को भेद रहे होते हैं। मोहिंदर ऐसा ही करते थे,ये जानते हुए भी कि सीने या उससे ऊंची गेंदा की लाइन में आना और उस पर हुक खेलना निसंदेह खतरे से भरा शॉट होता है क्यूँकि चूकते ही बॉल से चोट लगने की बहुत ज़्यादा संभावना होती है। ये उनका साहस और जिद थी। वे हर परिस्थिति में हुक शॉट खेलते थे और हुक शॉट उनका ट्रेडमार्क बन गया था।
उन्हें हेडली की गेंद पर सर में हेयर लाइन फ्रेक्चर हुआ,इमरान खान की गेंद पर बेहोश हुए,मेलकॉम मार्शल की गेंद ने उनका दाँत तोड़ दिया और जेफ़ थॉमसन की गेंद ने उनका जबाड़ा ही तोड़ दिया। पर इनमें से कोई भी उन्हें अपना हुक शॉट खेलने से नहीं रोक पाया।
बात 1982-83 के वेस्ट इंडीज़ दौरे के ब्रिजटाउन टेस्ट की है। मोहिंदर को सर में होल्डिंग की गेंद से चोट लगी और टाँके लगवाने के लिए उन्हें मैदान छोड़ना पड़ा। वापस मैदान में आने पर माइकेल होल्डिंग फिर सामने थे। स्वाभाविक था उन्हें डराने के लिए होल्डिंग ने बाउंसर फेंकी। कोई भी दूसरा बल्लेबाज़ होता तो डक करता।पर वे मोहिंदर थे।उन्होंने बॉल को हुक कर गेंद को चार रन के लिए सीमा रेखा से बाहर का रास्ता दिखाया। हुक उनका सबसे पसंदीदा शॉट था और 1984-85 में इंग्लैंड के विरुद्ध दिल्ली के फ़िरोज़ शाह कोटला मैदान पर खेले गए टेस्ट मैच के दौरान उनका हुक शॉट वाला ये चित्र एक क्लासिक प्रतिनिधि चित्र है।
उन्हें हेडली की गेंद पर सर में हेयर लाइन फ्रेक्चर हुआ,इमरान खान की गेंद पर बेहोश हुए,मेलकॉम मार्शल की गेंद ने उनका दाँत तोड़ दिया और जेफ़ थॉमसन की गेंद ने उनका जबाड़ा ही तोड़ दिया। पर इनमें से कोई भी उन्हें अपना हुक शॉट खेलने से नहीं रोक पाया।
बात 1982-83 के वेस्ट इंडीज़ दौरे के ब्रिजटाउन टेस्ट की है। मोहिंदर को सर में होल्डिंग की गेंद से चोट लगी और टाँके लगवाने के लिए उन्हें मैदान छोड़ना पड़ा। वापस मैदान में आने पर माइकेल होल्डिंग फिर सामने थे। स्वाभाविक था उन्हें डराने के लिए होल्डिंग ने बाउंसर फेंकी। कोई भी दूसरा बल्लेबाज़ होता तो डक करता।पर वे मोहिंदर थे।उन्होंने बॉल को हुक कर गेंद को चार रन के लिए सीमा रेखा से बाहर का रास्ता दिखाया। हुक उनका सबसे पसंदीदा शॉट था और 1984-85 में इंग्लैंड के विरुद्ध दिल्ली के फ़िरोज़ शाह कोटला मैदान पर खेले गए टेस्ट मैच के दौरान उनका हुक शॉट वाला ये चित्र एक क्लासिक प्रतिनिधि चित्र है।
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दरअसल मोहिंदर अमरनाथ भारत के सबसे बेहतरीन बल्लेबाज़ों में से एक थे।खासकर तेज़ गेंदबाज़ों के विरुद्ध। 1983 में विश्व कप जीतने वाली टीम के वे हीरो थे। वे सेमीफाइनल और फाइनल के मैन ऑफ़ द मैच के अलावा मैन ऑफ़ थे टूर्नामेंट भी थे। वे बहुत ही ज़हीन खिलाड़ी थे। बहुत ही नफ़ासत से खेलने वाले खिलाड़ी। उनके खेल में गज़ब का ठहराव था।एक अलसायापन था। उनके पास तेज़ से तेज़ गेंद खेलने के लिए पर्याप्त समय होता था। वे तेज़ गेंदों को भी इतने आराम से खेलते प्रतीत होते मानों स्पिन खेल रहे हैं। सचिन के बारे में कहा जाता है कि उनके पास किसी भी गेंद को खेलने के लिए दो शॉट होते थे। पर मोहिंदर को खेलते देखकर ऐसा लगता मानो उनके पास एक साथ दो बॉल खेलने का समय होता था। उनका खेल इतना नफासत भरा होता कि उनके शॉट को देख कर लगता ही नहीं वे गेंद पर प्रहार कर रहे हैं। ऐसा लगता मानो वे गेंद को पुचकार रहे हों।उनके हुक जैसे शॉट भी।
दरअसल वे जेंटलमैन गेम के प्रतिनिधि खिलाड़ी थे।शांत,उत्तेजनाविहीन,अलसाएपन के बावजूद एक खास किस्म के ओजपूर्ण अभिजात्य से युक्त। उनके खेल को देखना दरअसल संगीत को विलंबित लय में सुनना है। एक ऐसी रचना जो सिर्फ और सिर्फ विलम्बित में बज रही है जो ना मध्यम में जाती है और ना द्रुत में। ये बात उनकी बैटिंग में ही नहीं बल्कि बॉलिंग में भी थी।हल्का सा तिरछा रन अप।धीमे धीमे दौड़ते हुए,सहज,प्रवाहपूर्ण।वे मध्यम तेज़ गति के गेंदबाज़ थे। पर लगता ही नहीं था कि वे माध्यम तेज़ गति से गेंदबाज़ी कर रहे हैं।बैटिंग की तरह बॉलिंग में भी वे विलम्बित से शुरू करते हुए विलम्बित पर ही ख़त्म होते ।
दरअसल वे जेंटलमैन गेम के प्रतिनिधि खिलाड़ी थे।शांत,उत्तेजनाविहीन,अलसाएपन के बावजूद एक खास किस्म के ओजपूर्ण अभिजात्य से युक्त। उनके खेल को देखना दरअसल संगीत को विलंबित लय में सुनना है। एक ऐसी रचना जो सिर्फ और सिर्फ विलम्बित में बज रही है जो ना मध्यम में जाती है और ना द्रुत में। ये बात उनकी बैटिंग में ही नहीं बल्कि बॉलिंग में भी थी।हल्का सा तिरछा रन अप।धीमे धीमे दौड़ते हुए,सहज,प्रवाहपूर्ण।वे मध्यम तेज़ गति के गेंदबाज़ थे। पर लगता ही नहीं था कि वे माध्यम तेज़ गति से गेंदबाज़ी कर रहे हैं।बैटिंग की तरह बॉलिंग में भी वे विलम्बित से शुरू करते हुए विलम्बित पर ही ख़त्म होते ।
उनको भारतीय क्रिकेट में वो मुकाम हासिल नहीं हुआ जिसके वे हकदार थी। वे अपनी तमाम योग्यताओं के बावजूद टीम में अंदर बाहर होते रहे। वे जब जब बाहर होते हर बार वे अपने को सिद्ध करते और टीम में शामिल होते। इसीलिये वे 'भारतीय क्रिकेट के कमबैक मैन' कहे जाने जाते हैं। वे कुछ अलग थे और शायद इसीलिये ऐसे लोग काम भी कुछ अलग हट के करते हैं। वे अपने साइड ऑन बैटिंग स्टांस के लिए जाने जाते हैं।तभी तो वे एकमात्र भारतीय क्रिकेटर हैं जो 'हैंडलिंग द बॉल' और 'ऑब्स्ट्रक्टिंग द फील्ड' तरीकों से आउट हुए हैं और विश्व में एकमात्र जो इन दोनों तरीकों से आउट हुए हों।
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24 सितम्बर को मोहिंदर अमरनाथ भारद्वाज का जन्मदिन है। अपने सबसे पसंदीदा क्रिकेटर 'जिमी' को जन्मदिन की बहुत बहुत बधाइयाँ।
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