इंडियन बैडमिंटन लीग का पहला संस्करण हैदराबाद हॉटशॉट्स ने अवध वारियर्स को आसानी से ३ -१ सेहराकर जीत लिया। मोटे तौर पर देखा जाए तो ये पहला संस्करण काफ़ी हद सफल रहा। इस पूरी प्रतियोगिताके दौरान बड़ी संख्या में दर्शक मैच देखने आए और वो भी टिकट खरीद कर। भारत में ऐसा सामान्यतयाकेवल क्रिकेट में ही होता है. अच्छा खेल देखने को मिला और कुछ बड़े अन्तर्राष्ट्रीय खिलाड़िओं को खेलते देखने का सौभाग्य भी प्राप्त हुआ। लेकिन इतने भर से ही ये मान लेना कि इससे भारतीय बैडमिंटन में कोई बड़ा बदलाव आने वाला है, ये कहना अभी जल्दबाजी ही होगी। क्रिकेट में आईपीएल की सफलता के बाद
पहले हॉकी में और अब बैडमिंटन में लीग की शुरुआत हुई है। ये लीग खेलों को बहुत फ़ायदा पहुचाएंगे इसबारे में आश्वस्त नहीं हुआ जा सकता। जिस लीग की तर्ज़ पर ये लीग शुरू की गयी हैं खुद उस आइपीएल ने क्रिकेट का कितना भला किया है, ये सभी जानते हैं। हाँ ये सफल जरूर रही है, पर उससे ज्यादा उसके साथ विवाद जुड़े हैं। इसके छठे संस्करण ने तो क्रिकेट की विश्वसनीयता पर ही प्रश्नचिन्ह लगा दिया था। मुझे कोई भी एक बड़ा नाम याद नहीं आता जो आइपीएल ने भारतीय क्रिकेट को दिया हो। दूसरी बात ये कि ये लीग मुख्यतया इनके मालिकों और प्रायोजकों के लाभ अर्जन के लिए आयोजित-प्रायोजित की जाती हैं और इस प्रक्रिया में खेलों का फायदा हो जाए तो उनके लिए सोने पे सुहागा। इंडियन बैडमिंटन लीग में महिला डबल्स को केवल इसलिए ड्राप कर दिया कि इससे टीम मालिकों को नुकसान हो रहा था। फलतः अश्विनी और ज्वाला गुट्टा जैसी शीर्ष खिलाड़ियो को आधा दाम मिला। इस एक उदाहरण से ये जाना जा सकता है कि प्राथमिकता क्या है। तीसरे इसमें मनोरंजन का तत्त्व प्रमुख होता है। न तो खिलाड़ी और न ही खेल आयोजक खेल के स्तर के प्रति बहुत गंभीर होते हैं। इस तरह की प्रतियोगिताओं में खिलाड़िओं में खेल के प्रति वो गंभीरता ,लगन ,प्रतिबद्धता नहीं आ सकती जैसी कि देश के लिए खेलते हुए आती है और जब खेल उचांई को नहीं छुएगा तो खेल का स्तर कैसे ऊँचा होगा।
खैर मैं बात बैडमिंटन लीग की नहीं बल्कि साइना नेहवाल की करना चाहता हूँ। साइना ने इस पूरी प्रतियोगिता के दौरान शानदार खेल का प्रदर्शन किया और वे एकमात्र ऐसी खिलाडी रही जिन्होंने एक भी मैच नहीं हारा। ये बात इसलिए अधिक महत्त्वपूर्ण है कि लीग शुरू होने से पहले साईना को चुका हुआ करार कर दिया गया था और पी वी सिन्धु को हाईलाइट किया जा रहा था। इस लीग में साईना और सिन्धु के बीच होने वाले मुक़ाबले को मीडिया ने जबरदस्त हाइप दिया था। ये बात विश्व बैडमिंटन प्रतियोगिता के बाद तब शुरू हुई जब फेवरिट साइना सेमीफ़ाइनल में नहीं पँहुच सकी और सिंधु ने सेमीफाईनल में प्रवेश कर किसी भी भारतीय महिला खिलाडी द्वारा इस प्रतियोगिता का पहला पदक जीता। इस पूरी प्रतियोगिता में सिन्धु ने शानदार खेल दिखाया और ऊँची रैंक की दो-दो चीनी खिलाड़िओं को हराया। लेकिन किसी एक प्रतियोगिता या मैच के आधार पर किसी खिलाडी या टीम को सफल घोषित कर देना या खारिज़ कर देना ठीक नहीं। ये बात सही है कि प्रशंसक अपनी फेवरिट खिलाडी या टीम को हमेशा जीतते हुए देखना चाहते हैं और हारने पर निराश होकर आलोचना करते हैं लेकिन मीडिया से ऐसी उम्मीद नहीं की जा सकती। अक्सर ऐसा होता है कि एक सफलता या असफलता से उसको सफल करार दिया जाता है या उसे खारिज कर दिया जाता है, जबकि कोई भी टीम या खिलाडी लगातार मैच नहीं जीत सकता। साइना के साथ भी ऐसा ही हुआ।
इसमें कोई संदेह नहीं हो सकता कि साइना महान ख़िलाड़ी हैं। उन्होंने भारतीय बैडमिंटन को नई ऊंचाई दी है। वे विश्व रैंकिंग में दूसरे नंबर तक पँहुच चुकी है और अभी भी नंबर तीन पर काबिज़ है। विश्व की अनेक प्रतियोगिताएँ उन्होंने जीती हैं और ओलिंपिक खेलों में बैडमिंटन का पदक जीतने वाली पहली भारतीय खिलाडी हैं । लेकिन ओलिंपिक के बाद वे कोई प्रतियोगिता नहीं जीत सकीं । उतार चढ़ाव हर खिलाडी के कैरियर में आते हैं और साईना का ओलिंपिक के बाद का दौर उतार का दौर था। हो सकता है ओलिंपिक में पदक जीतने के बाद उनमें एक प्रकार का संतुष्टि का भाव आ गया हो। ये भारतीय खिलाड़ियों की हमेशा से कमी रही है। संतुष्टि भारतीय संस्कृति का प्रमुख तत्त्व है और शायद अपने इस जन्मजात संस्कार के कारण वो किलिंग स्पिरिट नहीं आ पाती जो विदेशी खिलाड़िओं में होती है। लेकिन विश्व प्रतियोगिता के बाद जिस तरह से उनको खारिज़ किया जाने लगा उससे शायद उनके अहं को चोट पंहुची हो और इसका जवाब उन्होंने कोर्ट में देने का निश्चय किया, ठीक वैसे ही जैसे कि तेंदुलकर अपनी हर आलोचना का जवाब अपने बल्ले से मैदान में देते हैं। सिन्धु के साथ पहले मैच में शुरुआत में वे थोडा लडखडाई जरूर लेकिन एक बार जब उन्होंने अपनी लय पाई तो फिर उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। इस प्रतियोगिता में सिन्धु को दो बार हरा कर और लगातार मैच जीत कर उन्होंने ये दिखाया कि उनमे अभी भी बहुत खेल बाकी है।
यहाँ मैं सिन्धु को खारिज नहीं कर रहा हूँ। वे संभावाना जगाने वाली भविष्य की खिलाड़ी हैं जिनसे भारत साइना से आगे बढ़कर उम्मीद कर सकता है। पर उनकी सफलता को साइना के साथ प्रतिद्वन्दिता के तौर पर नहीं बल्कि साथी के तौर पर प्रोजेक्ट किया जाना चाहिए। प्रतिद्वन्दिता और वो भी अपनी टीम के साथी के साथ ,एक तरह का नकारात्मक भाव उत्पन्न करती है। यदि इन दोनों के बीच प्रतिद्वन्दिता बढ़ती गयी तो दोनों का ध्यान एक दूसरे को हराने पर ही केन्द्रित होगा और एक बड़ा लक्ष्य भारतीय बैडमिंटन को अन्तराष्ट्रीय स्तर पर नई ऊंचाईयों पर ले जाने का-पीछे रह जायेगा। साइना ने चाइना की दीवार को भेदने में कुछ हद तक सफलता पाई है,लेकिन चाइना की ये दीवार इतनी लम्बी है कि बिना साथियों के पूरी तरह से भेद पाना कठिन है। ये काम साईना और सिंधु सहयोगी के तौर पर आसानी से कर सकती हैं, प्रतिद्वंदी के तौर पर नहीं। हमें उम्मीद रखनी चाहिए ये दोनों मिलकर भारत के खाते में बहुत सारी उपलब्धियाँ दर्ज़ कराएंगी।
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