Wednesday 25 September 2013

रिश्ता




जब भी गाँव जाता हूँ मैं

मिलना चाहता हूँ सबसे पहले

कृशकाय वृद्ध महिला से

जो रोज़ सुबह आती है दरवाज़े पे

ओढ़नी से काढ़े लंबा सा घूंघट

और लिए एक टोकरा सर पर और कभी कमर पर टिकाये  

खटखटाती है सांकल

ले जाती है दैनंदिन का कूड़ा

इसे गाँव कहता है चूढी(जमादारिन )

पर माँ मेरी कहती है 'बीवजी '

मैं बुलाता हूँ अम्मा

देखते ही मुझे जब  पूछती है वो

"कैसा है बेट्टा"

तो मन में बजने लगते हैं वीणा के तार

 कानों में घुल जाता है  शहद

दुनिया भर की माओं का प्यार उमड़ आता  है इस एक वाक्य में    

तब मेरी बेटी  पूछती है  मुझसे

किस रिश्ते से ये तुम्हारी अम्मा लगती हैं

तो मैं समझाता हूँ उसे

कि बहुत से रिश्ते गाँव की रवायतें बनाती हैं

जो अब मर रहीं हैं

और ये ऐसे रिश्ते हैं शब्दों  में बयां नहीं हो सकते

उन्हें सिर्फ और सिर्फ महसूसा जा सकता है।

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