जब भी गाँव जाता हूँ मैं
मिलना चाहता हूँ सबसे पहले
कृशकाय वृद्ध महिला से
जो रोज़ सुबह आती है दरवाज़े पे
ओढ़नी से काढ़े लंबा सा घूंघट
और लिए एक टोकरा सर पर और कभी कमर पर टिकाये
खटखटाती है सांकल
ले जाती है दैनंदिन का कूड़ा
इसे गाँव कहता है चूढी(जमादारिन )
पर माँ मेरी कहती है 'बीवजी '
मैं बुलाता हूँ अम्मा
देखते ही मुझे जब पूछती है वो
"कैसा है बेट्टा"
तो मन में बजने लगते हैं वीणा के तार
कानों में घुल जाता है शहद
दुनिया भर की माओं का प्यार उमड़ आता है इस एक वाक्य में
तब मेरी बेटी पूछती है मुझसे
किस रिश्ते से ये तुम्हारी अम्मा लगती हैं
तो मैं समझाता हूँ उसे
कि बहुत से रिश्ते गाँव की रवायतें बनाती हैं
जो अब मर रहीं हैं
और ये ऐसे रिश्ते हैं शब्दों में बयां नहीं हो सकते
उन्हें सिर्फ और सिर्फ महसूसा जा सकता है।
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